SCIENCE AND TECHNOLOGY
SCIENCE AND TECHNOLOGY
मुख्य बिंदु:
पहला वैश्विक मार्गदर्शन: डब्ल्यूएचओ ने एंटीबायोटिक निर्माण प्रक्रियाओं से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण पर पहला वैश्विक मार्गदर्शन जारी किया।
उद्देश्य: एंटीबायोटिक प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए वैज्ञानिक ढाँचा प्रदान करना।
लक्ष्य: नियामक, उद्योग और अन्य हितधारकों को प्रभावी नियंत्रण लागू करने में मदद करना।
मुख्य तत्व:
जोखिम मूल्यांकन के आधार पर प्रतिरोध चयन और पारिस्थितिक प्रभावों के लिए लक्ष्य निर्धारित करना।
इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जोखिम प्रबंधन प्रक्रियाएँ स्थापित करना।
लक्ष्यों को पूरा करने के लिए स्वतंत्र ऑडिट करना।
सिद्धांत:
लक्ष्य निर्धारण के लिए सतर्कतापूर्ण दृष्टिकोण।
इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए प्रगतिशील सुधार।
महत्वपूर्ण पहलू:
पारदर्शिता पर जोर।
एंटीबायोटिक की आपूर्ति और वहनीयता सुनिश्चित करना।
कार्यान्वयन के लिए वित्तीय और आर्थिक विश्लेषण को प्रोत्साहित करना।
प्रभाव:
एंटीबायोटिक प्रतिरोध (एएमआर) संकट को कम करने में मदद करता है।
एंटीबायोटिक निर्माण से उत्पन्न प्रदूषण को कम करता है।
एंटीबायोटिक दवाओं को प्रभावी बनाए रखने में योगदान देता है।
संक्षेप में: यह मार्गदर्शन डब्ल्यूएचओ द्वारा एक महत्वपूर्ण कदम है जो एंटीबायोटिक प्रदूषण को कम करने और मानव स्वास्थ्य की रक्षा के लिए एक वैश्विक प्रयास को प्रोत्साहित करता है।
मुख्य बिंदु:
फोलिक एसिड का खजाना: पानी पालक (इपोमिया एक्वाटिका) एक पत्तेदार हरी सब्जी है जो फोलिक एसिड (विटामिन बी9) से भरपूर है, साथ ही बीटा कैरोटीन, कैल्शियम, विटामिन ई, आयरन और एस्कॉर्बिक एसिड भी इसमें मौजूद हैं।
वैश्विक वितरण: उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में मूल निवासी, यह दक्षिण पूर्व एशिया में व्यावसायिक रूप से उगाया जाता है और अमेरिका और भारत में जंगली रूप में उगता है।
उगाने में आसान: जलमार्गों में पनपता है, कम देखभाल की आवश्यकता होती है और जल्दी बढ़ता है।
स्वास्थ्य लाभ:
फोलेट का स्रोत: गर्भवती महिलाओं में तंत्रिका ट्यूब दोषों को रोकने में मदद करता है, अवसाद, स्ट्रोक, स्मृति में गिरावट और संज्ञानात्मक कौशल को कम करता है।
हृदय और यकृत संरक्षण: अध्ययनों से पता चला है कि इसका अर्क कीमोथेरेपी दवाओं से होने वाले यकृत की चोट और हृदय विषाक्तता से बचाता है।
लीड डिटॉक्सीफिकेशन: शोध से पता चलता है कि यह लीड विषाक्तता का मुकाबला कर सकता है।
कम कैलोरी: वजन प्रबंधन के लिए अच्छा है।
अकाल का भोजन: आसानी से बढ़ता है, इसलिए अकाल के समय एक मूल्यवान संसाधन होता है।
संभावित जोखिम:
प्रदूषित पानी में उगाए जाने पर भारी धातुएँ (कैडमियम, लीड, पारा) जमा कर सकता है।
जिम्मेदारी से सेवन:
सुरक्षा और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए नियंत्रित वातावरण में खेती करें।
विभिन्न उपयोग:
सब्जी के रूप में खाया जाता है, सूप, स्टिर-फ्राई और सलाद में इस्तेमाल किया जाता है।
जलीय वातावरण के शोधक के रूप में क्षमता है।
कुल मिलाकर:
पानी पालक एक पौष्टिक और बहुमुखी हरी सब्जी है जिसमें संभावित स्वास्थ्य लाभ हैं। प्रदूषण के जोखिम से अवगत होना और विश्वसनीय स्रोतों से सेवन करना महत्वपूर्ण है।
1996 में पोल्ट्री में पहली बार HPAI का पता चला था, लेकिन 2021 से इसके नए सब-टाइप्स और क्लेड्स ने इसे एक बड़ा खतरा बना दिया है जो फ्लू महामारी शुरू कर सकता है।
2021 के बाद से, यह वायरस 25 पक्षी समूहों की कम से कम 485 प्रजातियों और 48 नई स्तनपायी प्रजातियों को प्रभावित कर चुका है।
इस साल जून तक, पेंगुइन और ध्रुवीय भालू सहित, दुनिया भर में जानवरों में HPAI के 142 प्रकोप की सूचना मिली है।
ये प्रकोप पाँच भौगोलिक क्षेत्रों में फैले हुए हैं और इसमें HxNx (1), H5Nx (48), H5N1 (85), H5N5 (2), H7N5 (1) और H7N8 (5) जैसे विभिन्न स्ट्रेन शामिल हैं।
ये स्ट्रेन संभावित महामारी का बढ़ता खतरा पैदा करते हैं।
पहले पोल्ट्री के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा माना जाता था, HPAI जंगली पक्षियों और स्तनधारियों को संक्रमित करने के लिए विकसित हुआ है, जिससे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) चिंतित है कि यह संभावित रूप से वैश्विक महामारी शुरू कर सकता है।
H5N1 स्ट्रेन को पहली बार 1997 में दक्षिणी चीन में घरेलू जलपक्षियों में खोजा गया था, जिससे चीन और हांगकांग में इसके प्रकोप के दौरान छह लोगों की मौत हुई थी।
तब से, इस वायरस ने 860 लोगों को संक्रमित किया है, जिसमें 50% से अधिक मृत्यु दर है।
अपने शुरुआती पता लगाने के बाद से, संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, वायरस एक मान्यता प्राप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता बन गया है।
2003 में, यह चीन और एशिया के अन्य हिस्सों में फिर से उभरा, जिससे व्यापक पोल्ट्री प्रकोप हुए।
2005 तक, वायरस जंगली पक्षियों में पाया गया था, जिसने फिर इसे महाद्वीपों में फैलाया, अफ्रीका, मध्य पूर्व और यूरोप तक पहुंचा।
समय के साथ, वायरस के हेमाग्लूटिनिन (HA) जीन कई आनुवंशिक समूहों (क्लेड्स) में विविधतापूर्ण हो गया।
2014 और 2016 के बीच, कई आनुवंशिक वंश (जीनोटाइप) का पता चला और जीन स्वैपिंग के कारण नए H5N6 और H5N8 उपप्रकारों का उदय हुआ।
HA जीन आगे एशिया, अफ्रीका, यूरोप, मध्य पूर्व और उत्तरी अमेरिका में क्लेड 2.3.4.4 में विविधतापूर्ण हो गया, जिसमें H5 वायरस जंगली पक्षियों और पोल्ट्री में पाए जाने वाले विभिन्न न्यूरैमिडिनेज (NA) जीन के साथ संयोजन करते हैं।
हालाँकि, H5N1 का एक नया क्लेड, 2.3.4.4b, 2018 और 2020 के बीच विकसित हुआ, जो 2021-2023 तक दुनिया भर में फैल गया।
अध्ययनों से पता चलता है कि दुनिया भर में लाखों पक्षियों की या तो सीधे संक्रमण से या प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए उन्हें मार दिया गया है।
2022 में, इस क्लेड ने अकेले दक्षिण अमेरिका में समुद्री स्तनधारियों के हजारों को मार डाला।
एक प्री-प्रिंट अध्ययन में बताया गया है कि अक्टूबर 2023 में अर्जेंटीना के पेनिंसुला वाल्डेस में लगभग 17,000 दक्षिणी हाथी सील की अभूतपूर्व सामूहिक मृत्यु हुई।
इस साल अकेले, H5N1 अमेरिका के 13 राज्यों में 191 मवेशी झुंडों में फैल गया है, जिससे 48 राज्यों में 100 मिलियन से अधिक जानवर संक्रमित हुए हैं।
यह वायरस, अब दुनिया के सबसे दूरस्थ हिस्सों, जिसमें अंटार्कटिका भी शामिल है, में पाया जाता है, इसे जल्द ही प्रशांत द्वीपसमूह और न्यूजीलैंड - ऐसे क्षेत्रों तक पहुंचने की आशंका है जो अब तक अछूते रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार, क्लेड 2.3.4.4b A (H5N1) वायरस ने मनुष्यों में सीमित संख्या में मामले उत्पन्न किए हैं, लेकिन जलीय स्तनधारियों सहित स्तनपायी प्रजातियों में महत्वपूर्ण प्रकोप का कारण बना है।
अधिकारियों ने बताया है कि पोल्ट्री और डेयरी गायों से संक्रमित वायरस के 15 नए मामले सामने आए हैं।
2003 और 2023 के बीच, 878 लोगों में H5N1 वायरस के लिए सकारात्मक परीक्षण किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप 458 मौतें हुई हैं, जो 52% की मृत्यु दर का प्रतिनिधित्व करती है।
सीडीसी ने विभिन्न स्तनपायी प्रजातियों, विशेष रूप से वर्तमान पैंजोओटिक में पाए गए उत्परिवर्तन पर चिंता व्यक्त की है, उन्हें एक महत्वपूर्ण खतरा माना जाता है।
मई 2024 में द लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन ने चेतावनी दी कि इस वायरस से महामारी का खतरा अभी भी अधिक है।
एवियन इन्फ्लूएंजा वायरस के महामारी बनने के लिए, उन्हें मनुष्यों के बीच संक्रामक होना चाहिए और कुशलतापूर्वक प्रतिकृति बनाने में सक्षम होना चाहिए।
अध्ययन में कहा गया है कि "इसके लिए आमतौर पर मानव इन्फ्लूएंजा वायरस के साथ पुनर्संयोजन की आवश्यकता होती है, या वायरस अनुकूलन से गुजर सकता है - एक प्रक्रिया में लंबा समय लग सकता है, लेकिन स्तनधारियों और मनुष्यों के बार-बार संक्रमण से इसे तेज किया जा सकता है।"
अप्रैल 2024 में एक ईमेल साक्षात्कार में, प्रोफेसर सुरेश कुचिपुड़ी, पिट्सबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ, यूएस में सेंटर फॉर वैक्सीन रिसर्च के संक्रामक रोग और सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग के अध्यक्ष ने कहा, "जबकि हम मनुष्यों के बीच संचार करने की क्षमता हासिल करने के बाद वायरस की गंभीरता की सही भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं, यह मान लेना उचित है - वर्तमान डेटा के आधार पर - कि यह संभावना है कि कोविड-19 की तुलना में मनुष्यों में अधिक गंभीर बीमारी का कारण बनेगा और हमें इस संभावित वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए।"
संदर्भ
शोधकर्ताओं का मानना है कि पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत एक चरम पर्यावरणीय स्थिति में एक ‘एक्सट्रीमोफाइल’ (Extremophiles) के रूप में हुई थी।
चरम प्राकृतिक परिस्थितियों में रहने वाले सूक्ष्मजीवों को एक्सट्रीमोफाइल्स कहा जाता है। इन चरम स्थितियों में ज्वालामुखी, पर्माफ्रॉस्ट, गहरे समुद्र के नितल, ध्रुवीय बर्फ के नीचे झील, अंतरिक्ष यान के बाहरी भाग एवं परमाणु अपशिष्ट भंडारण स्थल इत्यादि शामिल हैं।
ये सूक्ष्मजीव, विशेषरूप से आर्कियन, अत्यधिक तापमान, अम्लता, क्षारीयता या रासायनिक सांद्रता की स्थितियों में रहते हैं, जैसे- थर्मस एक्वाटिकस, डाइनोकोकस रेडियोड्यूरान्स आदि।
ये विशेष जैव रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा चरम वातावरण के अनुकूल बन जाते हैं।
मनुष्य जैसे अधिक जटिल जीवन-रूपों (More complex life-forms) में प्रोटीन का एक सेट विकसित हुआ है जिससे वे जीवन जीते हैं।
एक्सट्रीमोफाइल्स में प्रोटीन के कई सेट होते हैं, जिनमें से प्रत्येक एक विशिष्ट पर्यावरणीय स्थान में जीवन के लिए अनुकूलित होता है।
उदाहरण के लिए, ज्वालामुखी विस्फोट की ऊष्मा, दीर्घकालिक सुखा, ज्वालामुखी क्रेटर झील की अत्यधिक अम्लता के लिए अलग-अलग प्रोटीन सेट का विकास।
अर्थ माइक्रोबायोम प्रोजेक्ट : इसकी स्थापना वर्ष 2010 में 200,000 आनुवंशिक नमूनों को अनुक्रमित करने और 500,000 सूक्ष्मजीव जीनोम को इकट्ठा करने के लिए की गई थी।
अर्थ बायोजीनोम प्रोजेक्ट : वर्ष 2018 में स्थापित इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य एक दशक के भीतर पृथ्वी पर जीवों के सबसे बड़े और सबसे व्यापक मानचित्र बनाने के लिए ग्रह के सभी यूकैरियोटिक जीवों के जीनोम को अनुक्रमित करना था।
जीव विज्ञान : इस क्षेत्र में शोध कार्यों का लाभ अनेक जैविक व औद्योगिक अनुप्रयोगों में निहित है।
उदाहरण के लिए, थर्मस एक्वाटिकस (Thermus aquaticus) सूक्ष्म जीव, टैक डी.एन.ए. पॉलीमरेज़ (Taq DNA polymerase) नामक एक ऊष्मा-प्रतिरोधी एंजाइम का उत्पादन करता है, जो पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन में अनुप्रयोग के कारण जीव विज्ञान का एक महत्वपूर्ण कार्यक्षेत्र है।
जीवों को नई क्षमताएँ देना : एक्सट्रीमोफाइल्स को नियंत्रित करने वाले जैविक नियमों के सामने आने से शोधकर्ताओं को जीवों को नई क्षमताएँ प्रदान करने में सक्षम बनाया जा सकता है।
उदाहरण के लिए, प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत करने के उद्देश्य से, पोल्ट्री को संक्रामक रोग का प्रतिरोध करने में मदद करना या कृत्रिम जैविक प्रणाली का निर्माण करना।
अन्य ग्रहों पर जीवन की संभावना : इनका ज्ञान वैज्ञानिकों को अन्य ग्रहों पर रहने की संभावना की सीमा निर्धारित करने में भी मदद कर सकता है।
उदाहरण के लिए, वर्ष 2011 में जापान के वैज्ञानिकों ने 400,000 से अधिक G-फोर्स (1G वह बल है जिसे पृथ्वी की सतह पर अनुभव किया जाता है) में एक सेंट्रीफ्यूज में बढ़ते सूक्ष्मजीवों को रिपोर्ट किया था।
डाइनोकोकस रेडियोड्यूरान्स (Deinococcus radiodurans), अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के बाहर चिपके रहने और पराबैंगनी विकिरण से नष्ट होने के बावजूद, तीन साल से अधिक समय तक बाह्य अंतरिक्ष में जीवित रहा।
जैव-उपचार : माइक्रोवेव ओवन में पाए जाने वाले एक्सट्रीमोफाइल की विकिरण से बचने की क्षमता का उपयोग विषाक्त अपशिष्ट के जैव-उपचार में हो सकता है।
यह एक जैविक नमूने में कुछ डी.एन.ए. की उपस्थिति की पहचान करने की एक तकनीक है, जिसे कोविड-19 महामारी के दौरान भी प्रयोग किया गया था।
सामान्य परिचय (General Introduction)
'जैव प्रौद्योगिकी' या 'बायोटेक्नोलॉजी' शब्द की उत्पत्ति जीव विज्ञान (Biology) और प्रौद्योगिकी (Technology) शब्दों के परस्पर मिलने से हुई है। यह जैविक कारकों, जैसे सूक्ष्म जीवों (Micro Organisms), जंतुओं और पादप कोशिकाओं अथवा उनके अवयवों और उनमें होने वाली क्रियाओं के नियंत्रित उपयोग से मानव के लिये उपयोगी उत्पादों का निर्माण करने वाली प्रौद्योगिकी है। जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय, 1992 के अनुच्छेद-2 के अनुसार, कोई भी तकनीकी अनुप्रयोग जिसमें जैविक प्रणालियों, सजीवों या व्युत्पन्न पदार्थ का उपयोग किसी विशिष्ट कार्य के लिये, उत्पाद या प्रक्रियाओं के निर्माण या रूपांतरण में किया जाता है, जैव प्रौद्योगिकी कहलाता है।
हज़ारों वर्षों से मानव कृषि, खाद्य उत्पादन और औषधि निर्माण में जैव प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करता आया है। 20वीं सदी के अंत तथा 21वीं सदी के आरंभ से जैव प्रौद्योगिकी में विज्ञान के कई अन्य आयाम, जैसे- जीनोमिक्स, रीकॉम्बिनेंट जीन प्रौद्योगिकी, अप्लायड प्रतिरक्षा तकनीक, औषधीय चिकित्सा का विकास तथा डायग्नोस्टिक जाँच आदि सम्मिलित होने लगे हैं। जैव प्रौद्योगिकी के अंतर्गत उन तकनीकों का वर्णन मिलता है जिनमें जीवधारियों या उनसे प्राप्त एंजाइमों का उपयोग करते हुए मनुष्य के लिये उपयोगी उत्पाद या प्रक्रमों (प्रोसेस) का विकास किया जाता है। वर्तमान में, सीमित अर्थ में जैव प्रौद्योगिकी को देखा जाए तो इसमें वे प्रक्रम आते हैं, जिनमें आनुवंशिक रूप से रूपांतरित (जेनेटिकली मोडिफाइड) जीवों का उपयोग पदार्थों के अधिक मात्रा में उत्पादन के लिये किया जाता है। उदाहरणार्थ- इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) द्वारा परखनली शिशु का निर्माण, जीन का संश्लेषण एवं उपयोग, डी.एन.ए. टीके का निर्माण या दोषयुक्त जीन का सुधार, ये सभी जैव प्रौद्योगिकी के ही भाग हैं।
नोट: Karl Ereky, a Hungarian engineer, coined the term 'Biotechnology' in 1919.
जैव प्रौद्योगिकी के सिद्धांत (Principles of Biotechnology)
आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के विकास में निम्नलिखित दो तकनीकों का सर्वाधिक योगदान है-
आनुवंशिक इंजीनियरिंग (Genetic Engineering)
आनुवंशिक इंजीनियरिंग एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा वैज्ञानिक एक जीव के जीनोम को संशोधित (Modify) करते हैं। इसमें रिकॉम्बिनेंट डी.एन.ए. तकनीक का उपयोग किया जाता है। इस तकनीक में आनुवंशिक पदार्थों (DNA तथा RNA) के रसायन में परिवर्तन कर उसे परपोषी जीवों (Host Organism) में प्रवेश कराया जाता है, जिससे इनके फीनोटाइप में परिवर्तन आ जाता है।
रासायनिक इंजीनियरिंग (Chemical Engineering)
इसमें रोगाणुमुक्त वातावरण के निर्माण द्वारा सिर्फ वांछित सूक्ष्मजीवों/ यूकैरियोटिक कोशिकाओं में वृद्धि कराकर अधिक मात्रा में जैव प्रौद्योगिकी उत्पादों, जैसे- प्रतिजैविकों (Antibiotics), टीके, एंजाइमों आदि का निर्माण किया जाता है।
आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी से संबंधित शब्दावलियाँ (Terminology related to Modern Biotechnology)
• रेड बायोटेक्नोलॉजी: जैव प्रौद्योगिकी का चिकित्सा के क्षेत्र में प्रयोग रेड बायोटेक्नोलॉजी कहलाता है।
• व्हाइट बायोटेक्नोलॉजीः औद्योगिक उत्पादन एवं प्रक्रियाओं में जैव प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग व्हाइट बायोटेक्नोलॉजी कहलाता है।
• ग्रीन बायोटेक्नोलॉजी: जैव प्रौद्योगिकी का कृषि के क्षेत्र में अनुप्रयोग ग्रीन बायोटेक्नोलॉजी कहलाता है। इसके अंतर्गत कृषि उत्पादकता को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है।
• यलो बायोटेक्नोलॉजी: कीटों का जैव प्रौद्योगिकी के संसाधन के रूप में प्रयोग यलो बायोटेक्नोलॉजी कहलाता है।
• ब्लैक डार्क बायोटेक्नोलॉजीः जैव आतंक (Bioterrorism) से संबंधित जैव प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग ब्लैक डार्क बायोटेक्नोलॉजी कहलाता है।
• ब्लू बायोटेक्नोलॉजीः समुद्री व अन्य जलीय जीवों से संबंधित जैव प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग ब्लू बायोटेक्नोलॉजी के अंतर्गत आता है।
संबद्ध अवधारणाएँ (Related Concepts)
डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड-डी.एन.ए. (Deoxyribonucleic Acid-DNA)
DNA एक न्यूक्लिक अम्ल (Nucleic acid) है जो प्रोटीन के साथ मिलकर गुणसूत्र (Chromosome) की संरचना बनाता है। यह कोशिका के केंद्रक में धागे के रूप में फैला रहता है। डी.एन.ए. की कुछ मात्रा केंद्रक के अतिरिक्त माइटोकॉण्ड्यिा तथा क्लोरोप्लास्ट में भी पाई जाती है। मूल रूप से DNA एक आनुवंशिक पदार्थ (Hereditary Material) है जो लक्षणों (Traits) या गुणों को माता-पिता से संतानों में पहुँचाने का कार्य करता है। यूकैरियोटिक कोशिकाओ में DNA लंबा, अशाखित तथा सर्पिलाकार (Spiral) होता है, जबकि प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं, माइटोकॉण्ड्रिया तथा क्लोरोप्लास्ट में यह वृत्ताकार (Circular) होता है। DNA अनेक न्यूक्लियोटाइड (Nucleotides) का बहुलक होता है। DNA की संरचना तीन प्रकार के पदार्थों (Materials) से होती है- 1. नाइट्रोजनी क्षार, 2. शर्करा, 3. फॉस्फेट ग्रुप।
एडिनीन और थायमीन के बीच दो हाइड्रोजन बंध तथा साइटोसीन एवं गुआनिन के बीच तीन हाइड्रोजन बंध होते हैं। ध्यान देने योग्य बात है कि एडिनीन एवं थायमीन केवल आपस में ही बंध बना सकते हैं और इसी प्रकार साइटोसीन एवं गुआनिन भी केवल एक-दूसरे के साथ ही बंध बना सकते हैं।
जेम्स वाट्सन तथा फ्राँसिस क्रिक ने DNA की संरचना का द्विकुंडली नमूना (Double Helical Structure) प्रस्तुत किया था, जिसके लिये उन्हें 1962 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
डी.एन.ए. प्रतिकृति (DNA Replication)
डी.एन.ए. प्रतिकृति ऐसी जैविक प्रक्रिया है जो सभी सजीवों में संपन्न होती है और उनके डी.एन.ए. की प्रति बनाती है। इंटरफेज के दौरान होने वाली डी.एन.ए. प्रतिकृति जैविक वंशानुक्रम का आधार होती है। जब एक युग्मित डी.एन.ए. अणु उस अणु की एकसमान दो प्रतिकृतियाँ उत्पन्न करता है तब डी.एन.ए. प्रतिकृति की प्रक्रिया प्रारंभ होती है। मूल युग्मित डी.एन.ए. अणु की 'प्रत्येक धागानुमा संरचना' पूरक धागानुमा संरचना की उत्पत्ति के लिये एक नमूने की भाँति कार्य करती है।
किसी कोशिका में विशिष्ट स्थानों पर डी.एन.ए. प्रतिकृति प्रक्रिया प्रारंभ होती है। मूल स्थान पर डी.एन.ए. के पृथक्करण और नई धागेनुमा संरचनाओं के संश्लेषण से एक प्रतिकृति शाखा (Replication Fork) बनती है। इस शाखा से कुछ प्रोटीन जुड़े होते हैं और ये डी.एन.ए. संश्लेषण में मदद करते हैं। नमूनारूपी धागानुमा संरचना के साथ संगत न्यूक्लियोटाइड्स जोड़कर डी.एन.ए. पॉलीमरेज नए डी.एन.ए. को संश्लेषित करता है।
डी.एन.ए. प्रतिकृति कोशिका के बाहर कृत्रिम रूप से भी संश्लेषित की जा सकती है। कोशिकाओं से अलग किये गए डी.एन.ए. पॉलीमरेज और कृत्रिम डी.एन.ए. प्राइमर का उपयोग डी.एन.ए. संश्लेषण को प्रारंभ करने के लिये किया जा सकता है।
राइबोन्यूक्लिक अम्ल (आर.एन.ए.) (Ribonucleic Acid - R.N.A.)
RNA कोशिका द्रव्य (Cytoplasm) में बिखरा रहता है। यह एकल कुंडलित (Single Stranded) संरचना है। यह मुख्य रूप से प्रोटीन निर्माण की प्रक्रिया में भाग लेता है। यह एक गैर-आनुवंशिक पदार्थ (Non Hereditary Material) है, यद्यपि यह कुछ विषाणुओं में आनुवंशिक पदार्थ की तरह भी कार्य करता है, जैसे- टोबेको मोजेक वायरस (T.M.V.) आदि। RNA निम्न तीन प्रकार का होता है-
1. मैसेंजर आर.एन.ए. (mRNA) - यह DNA में अंकित सूचनाओं को प्रोटीन संश्लेषण स्थल (Protein Synthesis Site) पर लाने का कार्य करता है।
2. राइबोसोमल आर.एन.ए. (rRNA)- इसका निर्माण केंद्रिका (Nucleolus) में होता है। यह कोशिका में उपस्थित समस्त RNA का लगभग 80% होता है। इसका मुख्य कार्य राइबोसोम के संरचनात्मक संगठन में सहायता प्रदान करना है।
3. ट्रांसफर आर.एन.ए. (IRNA) - यह सभी RNA में सबसे छोटा है। इसका मुख्य कार्य अमीनो अम्ल को प्रोटीन संश्लेषण स्थल पर लाना है।
tRNA की संरचना जानने में भारतीय मूल के जीव विज्ञानी एच. जी. खुराना (H.G. Khorana) का महत्त्वपूर्ण योगदान है। उनके इस योगदान के लिये उन्हें नीरेनबर्ग (Nirenberg) तथा रॉबर्ट होले (Robert Holley) के साथ संयुक्त रूप से 1968 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
जीन (Gene)
जीन आनुवंशिकता की इकाई है। जीन DNA का वह छोटा भाग है जो किसी विशिष्ट कार्य को संपादित करता है। विषाणु में जीन DNA अथवा RNA से बना होता है, जबकि यूकैरियोटिक कोशिका वाले जीवों में यह केवल DNA का बना होता है। ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट (Human Genome Project) के अनुसार मानव में लगभग 30 हज़ार जीन्स मौजूद हैं। जीन अपना कार्य एंजाइम के माध्यम से करता है, अर्थात् किसी जीव में प्रत्येक जीन एक विशिष्ट एंजाइम का उत्पादन करता है जो विशिष्ट उपापचयी (Metabolic) क्रिया को नियंत्रित करता है। जंपिंग जीन की अवधारणा बारबरा मैक क्लिटॉक (Barbara Mc Clintock) द्वारा मक्का पर प्रयोग के दौरान दी गई थी। ट्रांसपोज़ोन (Transposon) के नाम से प्रचलित जंपिंग जीन, DNA के ऐसे भाग हैं जो एक ही क्रोमोसोम में अथवा एक क्रोमोसोम से दूसरे क्रोमोसोम पर अपनी स्थिति (Position) बदलते रहते हैं।
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जेनेटिक कोड (Genetic Code)
डी.एन.ए. एक द्विकुंडलित संरचना है। इसी संरचना में जीवन की संहिता सूत्रबद्ध रहती है। डी.एन.ए. की इस संहिता की अपनी कूटभाषा (Code) होती है जिसकी वर्णमाला में निम्नलिखित चार वर्ण हैं-
A-एडिनीन, G-गुआनिन, C-साइटोसीन और T-थायमीन। इन चार वर्णों अथवा क्षारों में से तीन वर्षों या क्षारों के मेल द्वारा इस कूटभाषा का एक संयुक्त अक्षर बनता है।
यदि इन तीन-तीन के वर्णों को लेकर संयुक्त अक्षर बनाए जाएँ तो ऐसे कुल 64 संयुक्त अक्षर बनेंगे। डी.एन.ए. की कुंडलिनी में आनुवंशिक संहिता की कूटभाषा (Genetic Code) में यही 64 संयुक्त अक्षर बनते हैं। प्रत्येक संयुक्त अक्षर अर्थात् डी.एन.ए. के क्षारों के त्रिक (Triode) से अमीनो अम्ल का निर्धारण होता है, जो जीवन का आधार है।
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जैव प्रौद्योगिकी की विभिन्न तकनीकें (Various Techniques of Biotechnology)
आर.एन.ए. हस्तक्षेप (RNA interference-RNAi)
आर.एन.ए. हस्तक्षेप (RNA interference-RNAi) एक जीन साइलेंसिंग तकनीक है जो कि 'डबल स्ट्रैंडेड आर.एन.ए.' के माध्यम से लक्षित कोशिकाओं में प्रोटीन संश्लेषण को रोकती है और उनकी गतिविधियों को घटा या बढ़ा सकती है। उदाहरण के लिये, ये एक मैसेंजर आर.एन.ए. को प्रोटीन उत्पादन में रोक सकते हैं। कोशिकाओं को जेनेटिक पारासाइट्स (वायरस एवं ट्रांसपोसोन) से बचाने में आर.एन.ए. हस्तक्षेप की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
भारत के लिये उपयोगी क्यों?
• बीटी कपास और आनुवंशिक रूप से संशोधित अन्य फसलों के हो रहे विरोध को देखते हुए भारतीय संदर्भ में 'आर.एन.ए. हस्तक्षेप' का व्यापक महत्त्व है।
• यह अपेक्षित है कि भारत आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों के विनियमन के लिये एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करे। इन परिस्थितियों में आर.एन.ए. आधारित समाधान एक व्यवहार्य विकल्प हो सकता है।
• RNAi प्रौद्योगिकियों पर आधारित दवाओं के माध्यम से लोगों के कोलेस्ट्रॉल के स्तर में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है।
• भारत सहित विश्व के कई देशों में मोटापा एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। ऐसे में यह तकनीक अत्यंत ही उपयोगी प्रमाणित हो सकती है।
• यह तकनीक एड्स जैसे संक्रमणों के उपचार में भी बहुत महत्त्व रखती है। भारत सहित एशिया के कई देशों में एड्स एक गंभीर और लाइलाज बीमारी है। अतः आर.एन.ए. तकनीक पर आधारित दवाओं को बढ़ावा मिलना चाहिये।
एंटीसेंस तकनीक
• कुछ विकारों, जैसे कैंसर, परजीवी और वायरल संक्रमण जो रोजमर्रा के जीवन में विशिष्ट प्रोटीन का अत्यधिक उत्पादन करते हैं, के लिये एक वैकल्पिक उपचार एंटीसेंस तकनीक के रूप में जाना जाता है।
• सिंगल स्ट्रैंडेड आर.एन.ए., जो कि mRNA का पूरक है, को एंटीसेंस आर.एन.ए. के रूप में निर्दिष्ट किया जाता है।
m RNA Sequence (Sense) →AUGAAACCCGUG
Antisense RNA → UACUUUGGGCAC
एंटीसेंस तकनीक (Antisense technology)
• एंटीसेंस आर.एन.ए. एक सिंगल स्ट्रैंडेड आर.एन.ए. है जो कि किसी कोशिका के अंदर प्रतिलिखित (Transcribed) mRNA स्ट्रैंड के पूरक हैं।
• Translation प्रक्रिया को बाधित करने के लिये एंटीसेंस आर.एन.ए. को कोशिका में प्रवेश कराया जाता है। यह प्रक्रिया सेंस m RNA के साथ बेस पेयरिंग तथा RNAase एंजाइम की सक्रियता से संपन्न होती है।
उदाहरण के लिये-
m RNA Sequence (Sense)
AUGAAACCCGUG
Antisense RNA
UACUUUGGGCAC
• उल्लेखनीय है कि जीन अभिव्यक्ति को बाधित करने के लिये एंटीसेंस तकनीक का प्रयोग किया जाता है।
जीन अभिव्यक्ति वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक जीन की जानकारी कार्यात्मक जीन के उत्पाद के संश्लेषक में उपयोग की जाती है।
• इस तकनीक में सिंगल स्ट्रैंडेड डीएनए के छोटे सेगमेंट को इंट्रोड्यूज़्ड कराया जाता है।
• ये Oligo deoxynucleotide m RNA का पूरक होता है जो कि m RNA को जकड़ (Bind) लेता है जिससे विशेष प्रकार के प्रोटीन का संश्लेषण नहीं हो पाता है।
• ज्ञातव्य है कि यह तकनीक जीन फंक्शन का अध्ययन करने और रोग के अधिक विशिष्ट उपचार की खोज के लिये एक शक्तिशाली हथियार के रूप में साबित हुई है।
(एंटीसेंस RNA ट्रांसलेशन प्रक्रिया को ब्लॉक करके प्रोटीन निर्माण को रोकता है।)
एंटीसेंस थैरेपी (Antisense therapy)
आनुवंशिक विकार या संक्रमण के उपचार का एक तरीका है।
इसमें एक पूरक m RNA स्टैंड ज्ञात रोगजनक अनुक्रम के आधार पर संश्लेषित किया जाता है और जो अपचयनीय RNAse H को सक्रिय करके पैथोजेनिक जीन को बंद कर देता है।
कैंसर, एचआईवी, साइटोमेगालोवायरस (CMV) आदि के इलाज के लिये एंटीसेंस दवाओं की खोज की जा रही है।
'Formivirsen', CMV के इलाज के लिये विकसित की गई पहली एंटीसेंस एंटीवायरल दवा है। इसे अगस्त 1998 में एफडीए द्वारा लाइसेंस प्राप्त हुआ था।
RNAi तथा एंटीसेंस तकनीक में अंतर
RNAi तथा एंटीसेंस तकनीक का उद्देश्य और प्रभाव दोनों समान है, लेकिन प्रसंस्करण (Processing) दोनों में थोड़ा अलग हैं। एंटीसेंस तकनीक में m RNA को degradation के लिये RNAse H को नियुक्त किया जाता है जबकि RNAi में एंजाइम Dicer का उपयोग किया जाता है।
RNAi, Antisense Oligonucleotide से दो गुना बड़ा होता है।
एंटीसेंस आर.एन.ए. टेक्नोलॉजी बुनियादी अनुसंधान और चिकित्सा के लिये विभिन्न अनुप्रयोगों की संभावना को दर्शाती है। यह तकनीक दवा के डिजाइन के नए तरीकों के विकास के लिये लगभग एक असीमित अवसर प्रदान करती है और एक चुने हुए जीन को निष्क्रिय करने के लिये कई अन्य लोगों के बीच सबसे स्वीकृत दृष्टिकोण में से एक है। हालाँकि इस वादे की पूर्ण प्रतिबद्धता अभी तक स्थापित नहीं की गई है।
जीन (Gene)
जीन आनुवंशिकता की इकाई है। जीन DNA का वह भाग है जो किसी विशिष्ट कार्य को संपादित करता है। विषाणु में जीन DNA अथवा RNA से बना होता है, जबकि यूकैरियोटिक कोशिका वाले जीवों में यह केवल DNA का बना होता है। ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट (Human Genome Project) के अनुसार मानव में 30 हज़ार जीन्स मौजूद हैं। जीन अपना कार्य एंजाइम के माध्यम से करता है अर्थात् किसी जीव में प्रत्येक जीन एक विशिष्ट एंजाइम का उत्पादन करता है जो विशिष्ट उपापचयी (Metabolic) क्रिया को नियंत्रित करता है। जंपिंग जीन की अवधारणा बारबरा मैक क्लिन्टॉक (Barbara Mc Clintock) द्वारा मक्का पर प्रयोग के दौरान दी गई थी। ट्रांसपोजोन (Transposon) के नाम से प्रचलित जंपिंग जीन, DNA के ऐसे भाग हैं जो एक ही क्रोमोसोम में अथवा एक क्रोमोसोम से दूसरे क्रोमोसोम पर अपनी स्थिति (position) बदलते रहते हैं।
जेनेटिक कोड (Genetic code)
डी.एन.ए. एक द्विकुंडलित संरचना है। इसी संरचना में जीवन की संहिता सूत्रबद्ध रहती है। डी.एन.ए. की इस सहिता की अपनी कूटभाषा (Code) होती है जिसकी वर्णमाला में निम्नलिखित चार वर्ण हैं-
A- एडिनीन, G- गुआनीन, C- साइटोसीन और T- थायमीन। इन चार वर्षों अथवा क्षारों में से तीन वर्षों या क्षारों के मेल द्वारा इस कूटभाषा का एक संयुक्त अक्षर बनता है।
यदि इन तीन-तीन के वर्णों को लेकर संयुक्त अक्षर बनाए जाएँ तो ऐसे कुल 64 संयुक्त अक्षर बनेंगे। डी.एन.ए. की कुंडलिनी में आनुवंशिक संहिता की कूटभाषा (Genetic Code) में यही 64 संयुक्त अक्षर बनते हैं। प्रत्येक संयुक्त अक्षर अर्थात् डी.एन.ए. के क्षारों के त्रिक (Triode) से अमीनो अम्ल का निर्धारण होता है, जो जीवन का आधार है।
जेनेटिक अभियांत्रिकी (Genetic engineering)
जेनेटिक अभियांत्रिकी वस्तुतः एक तकनीक है जिसके अंतर्गत किसी जीव के किसी विशेष लक्षण अथवा लक्षणों में वाछित सुधार लाने के उद्देश्य से उस विशेष लक्षण अथवा लक्षणों को नियंत्रित करने वाले जीन में कृत्रिम तरीके से परिवर्तन किया जाता है। इसलिये किसी विशेष डी.एन.ए. खंड को या किसी विशिष्ट जीन या जीनों को अलग करके उन्हें नए जीवों में आरोपित कर दिया जाता है, जैसे किसी जीन या जीनों का किसी जीवाणु से मनुष्य में, पौधों में अथवा जंतुओं में हस्तांतरित करना या इसकी विपरीत प्रक्रिया। इससे जीनों का एक बिल्कुल नए प्रकार का पुनर्संयोजन (Recombination) बनता है या दूसरे शब्दों में कहें तो पुनर्संयोजित डी.एन.ए. (Recombinant DNA) बनता है। इस प्रकार जीन अभियांत्रिकी तकनीक के माध्यम से किसी जीव में वाछित लक्षणों को प्राप्त किया जा सकता है।
जेनेटिक अभियांत्रिकी का एक महत्त्वपूर्ण एवं प्रत्यक्ष लाभ यह है कि इसकी सहायता से असाध्य एवं आनुवंशिक बीमारियों का निराकरण किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त इसके माध्यम से पशुओं की अधिक उत्पादक एवं उपयोगी नस्लों का विकास भी संभव है। वर्तमान समय में जीन अभियांत्रिकी का उपयोग मुख्य रूप से एड्स, हृदय से संबंधित रोगों, मलेरिया, हीमोफीलिया एवं अन्य घातक बीमारियों आदि के लिये वैक्सीन निर्माण में किया जा रहा है।
वायरस समूह का ऐसा कोई भी सदस्य जो रेट्रोविरिडे परिवार से संबंधित है, रेट्रोवायरस कहलाता है। यह रेट्रोवायरस एक ऐसा वायरस है जो जीनोमिक सामग्री के रूप में RNA का उपयोग करता है।
रेट्रोवायरस से संक्रमित होने पर, संक्रमित कोशिकाएं रेट्रोवायरल RNA को DNA में बदल देती है।
जिससे कोशिका फिर अधिक रेट्रोवायरस का निर्माण करती है, जो अन्य कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं।
रेट्रोवायरस एड्स और कुछ प्रकार के कैंसर सहित अन्य बीमारियों का कारण बनते हैं।
ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस (HIV) एक रेट्रोवायरस है, जो अपनी आनुवंशिक जानकारी को DNA के बजाय RNA के रूप में संग्रहित करता है, जबकि अधिकांश अन्य जीवित चीजें DNA का इस्तेमाल करती हैं।
HIV के अलावा दो अन्य रेट्रोवायरस हैं जो मानव बीमारी का कारण बन सकते हैं।
मानव टी-लिम्फोट्रोपिक वायरस टाइप-1 (HTLV-1) और मानव टी-लिम्फोट्रोपिक वायरस टाइप 2 (HTLV-II)।
ये दोनों वायरस यौन संपर्क, संक्रमित रक्त या ऊतक के संपर्क में आने, या गर्भावस्था या प्रसव के दौरान संक्रमित व्यक्ति से उसके बच्चे में फैलते हैं।
पर्यावरण मंत्रालय द्वारा असम के कुछ हिस्सों में तेल और गैस की खोज के लिए मंजूरी देने से हूलॉक गिब्बन (Hoolock Gibbon) पर और अधिक खतरा मंडरा सकता है।
यह सभी वानरों में सबसे छोटा और सबसे तेज़ वानर है।
ये बहुत मिलनसार होते हैं। ये आक्रामक नहीं होते और इसलिए मनुष्यों के साथ उनका कोई संघर्ष नहीं होता।
गिब्बन अन्य प्रजातियों के लिए एक संकेतक माने जाते हैं, इसलिए हूलॉक गिब्बन एक प्रमुख प्रजाति (Key Species) है।
वैज्ञानिक नाम : हूलॉक ल्यूकोनेडिस (Hoolock leuconedys)
संरक्षण स्थिति
IUCN : संवेदनशील (Vulnerable)
CITES : परिशिष्ट I
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 : अनुसूची I
खतरे : तेल और गैस खनन, लकड़ी काटना, अतिक्रमण, अन्य विकास परियोजनाएं, कृषि एवं आवास संबंधित भूमि अधिग्रहण के लिए वनों का कटान।
प्रसार क्षेत्र : पूर्वी बांग्लादेश, पूर्वोत्तर भारत (अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा) और उत्तर-पश्चिमी म्यांमार और चीन (दक्षिण-पूर्वी तिब्बत)।
असम सरकार ने 1997 में असम के जोरहाट जिले में हूलोंगापार रिजर्व फॉरेस्ट का दर्जा बढ़ाकर गिब्बन वन्यजीव अभयारण्य कर दिया जिससे यह प्राइमेट प्रजाति के नाम पर पहला संरक्षित क्षेत्र बन गया।
अगरकर शोध संस्थान के शोधकर्ताओं ने पश्चिमी भारत में चावल के खेतों और आर्द्रभूमियों से ‘मिथाइलोकुकुमिस ओरिजे’ (Methylocucumis oryzae) नामक मीथेनोट्रॉफ़ (Methanotroph) जीवाणु की एक नई प्रजाति की खोज की है।
क्या है : प्राकृतिक रूप से मीथेन का ऑक्सीकरण करने वाले बैक्टीरिया
मीथेनोट्रॉफ़्स प्राकृतिक मीथेन शमन एजेंट हैं।
प्राप्ति स्थान : मीथेन एवं ऑक्सीजन दोनों गैसों की उपलब्धता वाले सभी वातावरण में
ये प्रमुखतया आर्द्रभूमि, चावल के खेत, तालाब एवं अन्य जल निकाय में पाए जाते हैं।
कार्य : मीथेन को CO2 एवं पानी में ऑक्सीकृत करके मीथेन के प्रभाव का प्रतिकार करने में सहायक
इस प्रकार, ये वायुमंडल में मीथेन के स्तर को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
मिथाइलोकुकुमिस ओरिजे शोधकर्ताओं द्वारा खोजा गया एक नया मीथेनोट्रॉफ़ जीवाणु है।
यह खोज भारत के लिए अद्वितीय है क्योंकि दुनिया के अन्य हिस्सों से अभी तक इसे रिपोर्ट नहीं किया गया है।
नए खोजे गए जीवाणु की अंडाकार व खीरे जैसी आकृति के कारण इसे ‘मीथेन खाने वाला खीरा’ (मीथेन ईटिंग ककुम्बर्स) कहा गया।
यह जीवाणु हल्के गुलाबी रंग की कॉलोनी बनाता है और जीनोम कैरोटीनॉयड मार्ग का संकेतक है। कैरोटीनॉयड बायोसिंथेटिक मार्ग प्रकाश संश्लेषक रंगद्रव्य (पिगमेंट) एवं हार्मोन के उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है।
यह मेथीनोट्रोफ अपने बड़े आकार एवं सख्त मेसोफिलिक प्रकृति के लिए भी उल्लेखनीय है। यह 37 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान को सहन नहीं कर सकता है।
मेसोफाइल ऐसे जीव होते है जो मध्यम तापमान में या मानव शरीर के तापमान में सबसे अच्छी तरह से विकसित हो सकते हैं। इनकी इष्टतम विकास सीमा 20 से 45 डिग्री सेल्सियस तक होती है।
यह जीवाणु मिथेनोट्रोफ़ धान के पौधों में जल्दी फूल आने और अनाज की उपज में वृद्धि करके उनके विकास को बढ़ाने के लिए भी महत्त्वपूर्ण है।
हाल के अध्ययनों में पाया गया है कि पुणे में एक पत्थर की खदान में मीथेन चक्र का एक महत्वपूर्ण घटक मिथाइलोक्यूमिस ओराइज़ी है, जो विभिन्न आवासों में मीथेन को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इससे भविष्य में मीथेन गैस के उत्पादन को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण अवसर खुलेंगे।
इस तरह के अनोखे व संभवतः स्थानिक मीथेनोट्रोफ़ की खोज आगामी जलवायु चुनौतियों के संबंध में अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण है।
मीथेन (CH4) एक रंगहीन, गंधहीन एवं अत्यधिक ज्वलनशील गैस है।
कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के बाद दूसरी सबसे शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, जिसकी ग्लोबल वार्मिंग क्षमता CO2 से 26 गुना अधिक है।
यह मुख्य रूप से आर्द्रभूमि, जुगाली करने वाले पशुओं, चावल के खेतों और लैंडफिल में मीथेनोजेन्स द्वारा निर्मित होती है।