प्रश्न 2:- भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार नागरिकों को शोषण, अन्याय और अत्याचार से बचाने में कितने प्रभावी रहे हैं? उदाहरणों सहित व्याख्या कीजिए। साथ ही, मौलिक अधिकारों की प्रभावशीलता को कम करने वाले कारकों का विश्लेषण कीजिए।
प्रश्न 2:- भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार नागरिकों को शोषण, अन्याय और अत्याचार से बचाने में कितने प्रभावी रहे हैं? उदाहरणों सहित व्याख्या कीजिए। साथ ही, मौलिक अधिकारों की प्रभावशीलता को कम करने वाले कारकों का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान में निहित मौलिक अधिकार, नागरिकों को शोषण, अन्याय और अत्याचार से बचाने के लिए एक महत्वपूर्ण आधार स्तंभ हैं। ये अधिकार न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सम्मान को सुनिश्चित करते हैं बल्कि समानता, न्याय और सामाजिक प्रगति के लिए भी मार्ग प्रशस्त करते हैं।
मौलिक अधिकारों की प्रभावशीलता के उदाहरण:
शिक्षा का अधिकार: शिक्षा का अधिकार अधिनियम (2009) ने 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा को सुनिश्चित किया है। इससे लाखों बच्चों, विशेष रूप से दलितों, आदिवासियों और गरीबों को शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला है।
समानता का अधिकार: समानता का अधिकार, धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। इस अधिकार ने महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और अन्य वंचित वर्गों को समान अवसर और सम्मान प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
स्वतंत्रता का अधिकार: स्वतंत्रता का अधिकार, अभिव्यक्ति, संगठन, धर्म और गति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है। इससे नागरिकों को अपनी राय व्यक्त करने, अपनी पसंद का धर्म अपनाने और बिना किसी डर के घूमने-फिरने की स्वतंत्रता प्राप्त हुई है।
न्यायिक समीक्षा: न्यायिक समीक्षा का अधिकार न्यायालयों को संसद द्वारा पारित कानूनों की वैधता की जांच करने और संविधान के अनुरूप न होने वाले कानूनों को रद्द करने की शक्ति प्रदान करता है। इससे मौलिक अधिकारों का संरक्षण सुनिश्चित होता है।
मौलिक अधिकारों की प्रभावशीलता को कम करने वाले कारक:
कानूनों का प्रभावी क्रियान्वयन न होना: कई मौलिक अधिकारों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए आवश्यक कानूनों का अभाव है या मौजूदा कानूनों का पूरी तरह से पालन नहीं हो रहा है।
न्यायिक प्रणाली की जटिलता: न्यायिक प्रणाली की जटिलता और लंबी कानूनी प्रक्रियाएं कई बार वंचित वर्गों को न्याय पाने से वंचित कर देती हैं।
राजनीतिक हस्तक्षेप: राजनीतिक हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं और नागरिकों की स्वतंत्रता को कमजोर करते हैं।
सामाजिक रूढ़िवादिता: सामाजिक रूढ़िवादिता और जाति, लिंग और धर्म आधारित भेदभाव मौलिक अधिकारों के प्रभावी क्रियान्वयन में बाधा डालते हैं।
निष्कर्ष:
भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार, नागरिकों को शोषण, अन्याय और अत्याचार से बचाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि, मौलिक अधिकारों की प्रभावशीलता को कम करने वाले कारकों को दूर करने की आवश्यकता है। प्रभावी कानूनों का निर्माण और क्रियान्वयन, न्यायिक प्रणाली में सुधार, राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करना और सामाजिक जागरूकता बढ़ाना, मौलिक अधिकारों को अधिक प्रभावी बनाने में मदद करेगा।
प्रश्न:- 1 ) भारत में संघीय व्यवस्था की विशेषताओं का विस्तार से वर्णन करते हुए, यह भी बताएं कि क्या आप इसे संघीय प्रणाली का सही उदाहरण मानते हैं या नहीं।
उत्तर -
भारत एक संघीय प्रणाली है, जो केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों के विभाजन पर आधारित है। संविधान में केंद्र और राज्यों के लिए अलग-अलग शक्तियाँ निर्धारित की गई हैं, जो संघीय व्यवस्था की विशेषताएं हैं:
1. शक्तियों का विभाजन: संविधान में सातवीं अनुसूची के तहत शक्तियों का विभाजन किया गया है, जिसमें केंद्र के लिए संघ सूची, राज्यों के लिए राज्य सूची और दोनों के लिए समवर्ती सूची शामिल है। यह विभाजन स्पष्ट करता है कि कौन सी शक्तियाँ केंद्र के पास हैं और कौन सी राज्यों के पास।
2. द्विसदनीय विधायिका: भारत में एक द्विसदनीय विधायिका है, जिसमें लोकसभा (निचला सदन) और राज्यसभा (ऊपरी सदन) हैं। राज्यसभा में राज्यों का प्रतिनिधित्व होता है, जो संघीय व्यवस्था में राज्यों को मजबूत करता है।
3. स्वतंत्र न्यायपालिका: भारत में एक स्वतंत्र न्यायपालिका है, जो केंद्र और राज्यों दोनों के बीच विवादों का निपटारा करती है। न्यायालयों की यह स्वतंत्रता संघीय व्यवस्था की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
4. संघीय न्यायालय: भारत में सर्वोच्च न्यायालय है, जो केंद्र और राज्यों दोनों के बीच विवादों का अंतिम न्यायाधीश है। यह संघीय व्यवस्था की स्थिरता और शक्तियों के संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
5. वित्तीय स्वायत्तता: राज्यों को अपने स्वयं के राजस्व का संग्रह करने और खर्च करने का अधिकार है, जो उनकी आर्थिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है। केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है, लेकिन यह राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता को प्रभावित नहीं करती है।
संघीय व्यवस्था का सही उदाहरण?:
भारत में संघीय व्यवस्था में कुछ अनूठी विशेषताएं हैं, जो इसे एक विशिष्ट संघीय व्यवस्था बनाती हैं:
मजबूत केंद्र: भारत में केंद्र की शक्ति अपेक्षाकृत मजबूत है, जो राज्यों की तुलना में अधिक शक्तिशाली है।
एकल नागरिकता: भारत में एकल नागरिकता है, जिसका अर्थ है कि सभी नागरिकों की केंद्र सरकार के साथ ही राज्य सरकारों के प्रति भी समान नागरिकता है।
राज्य सूची का हस्तक्षेप: केंद्र सरकार कुछ मामलों में राज्य सूची के विषयों में हस्तक्षेप कर सकती है, जो संघीय व्यवस्था में राज्यों की स्वायत्तता को कम करता है।
निष्कर्ष:
भारत की संघीय व्यवस्था अपने स्वयं के अनूठे लक्षणों के साथ एक विशिष्ट संघीय व्यवस्था है। जबकि शक्तियों के विभाजन, द्विसदनीय विधायिका और स्वतंत्र न्यायपालिका संघीय व्यवस्था के सिद्धांतों का समर्थन करते हैं, लेकिन केंद्र की मजबूत शक्ति और राज्य सूची में हस्तक्षेप करने की क्षमता कुछ चिंताएँ पैदा करती है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि संघीय व्यवस्था एक गतिशील प्रक्रिया है और समय के साथ यह विकसित और बदलती रहती है।