लेखानुदान, प्रत्ययानुदान और अपवादानुदान
अनुच्छेद-116 के अन्तर्गत लेखानुदान, प्रत्ययानुदान तथा अपवादानुदान के द्वारा संचित निधि से धन निकालने का प्रावधान किया गया है।
लेखानुदान (Votes on Account)
यह एक अग्रिम व्यवस्था है। संचित निधि से धन निकालने के लिए विनियोग विधेयक का पारित होना आवश्यक है (अनुच्छेद-114)।
परन्तु, यदि किसी कारणवश किसी वित्तीय वर्ष के कुछ भाग के लिए अनुमानित व्यय हेतु विनियोग विधेयक पारित करना सम्भव न हो तो लोकसभा ऐसे वित्तीय वर्ष के किसी भाग के लिए भारत की संचित निधि से अग्रिम अनुदान दे सकती है।
अतः लेखानुदान संघ सरकार को एक निश्चित अवधि के लिए भारत की संचित निधि से धन निकालने की अनुमति प्रदान करता है। इसे अग्रिम अनुदान भी कहा जाता है।
प्रत्ययानुदान (Votes of Credit)
जब किसी सेवा के अति विशाल होने या उसके अनिश्चित स्वरूप के कारण उसकी माँग के विवरण को वार्षिक बजट के साथ देना सम्भव नहीं हो, तो ऐसी माँग के लिए लोकसभा संचित निधि से धन प्रदान कर सकती है। इसे प्रत्ययानुदान (Votes of Credit) कहा जाता है।
अपवादानुदान (Exceptional Grants)
लोकसभा किसी विशिष्ट प्रयोजन हेतु कोई ऐसा अनुदान पारित कर सकती है, जो किसी वित्तीय वर्ष की चालू सेवा का भाग नहीं हैं अर्थात् जो बजट में शामिल नहीं है। इसे अपवादानुदान कहा जाता है।
बजट के अवयव (Components of Budget)
सार्वजनिक आय तथा सार्वजनिक व्यय- बजट का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष है। सरकार को एक वित्तीय वर्ष में प्राप्त होने वाली अनुमानित आय को, सार्वजनिक आय कहते हैं और उसी 5 वित्तीय वर्ष में होने वाले अनुमानित व्यय को सार्वजनिक व्यय कहते हैं।
बजट में सार्वजनिक आय को दो भागों में बाँटा जा सकता है-
1. राजस्व प्राप्तियाँ,
2. पूँजीगत प्राप्तियाँ,
राजस्व प्राप्तियों तथा पूँजीगत प्राप्तियों में अन्तर
(Difference between Revenue Receipts and Capital Receipts)
राजस्व प्राप्तियाँ (Revenue Receipts)
1. वे प्राप्तियाँ सरकार की देयता की स्थिति को प्रभावित नहीं करती हैं।
2. राजस्व प्राप्तियाँ भावी पीढ़ी के लिए कोई कर भार उत्पन्न नहीं करती हैं।
3. राजस्व प्राप्तियों का उच्च स्तर (जैसे-कर प्राप्तियाँ) अर्थव्यवस्था की बेहतर वित्तीय स्थिति को प्रकट करता है।
पूँजीगत प्राप्तियाँ (Capital Receipts)
1.ये प्राप्तियाँ सरकार की देयता की स्थिति को प्रभावित करती हैं। इससे परिसंपत्तियाँ कम होती हैं अथवा देनदारियाँ बढ़ती हैं।
2. पूँजीगत प्राप्तियाँ भावी पीढ़ी के लिए कर दायित्व उत्पन्न कर सकती हैं। उदाहरणः उधार लिया गया ऋण अपनी अदायगी के लिए भावी पीढ़ी के लिए दायित्व होता है।
3. पूँजीगत प्राप्तियों का उच्च स्तर (जैसे- उधार तथा विनिवेश) अर्थव्यवस्था की कमजोर वित्तीय स्थिति को प्रकट करता है।
राजस्व प्राप्तियाँ (Revenue Receipts)
(A) राजस्व प्राप्तियाँ- इसके अन्तर्गत उस आय को रखा जाता हैं, जिसका सम्बंध उसी वित्तीय वर्ष से होता है। इसे चालू खाता के नाम से भी जाना जाता है। इस खाते में आय के उन स्रोतों को शामिल किया जाता है जिनके बदले में कोई भुगतान नहीं करना होता है।
राजस्व आय के प्रमुख स्त्रोत निम्नलिखित हैं-
1. कर आय
2. गैर-कर आय
3. सार्वजनिक उपक्रमों के द्वारा अर्जित लाभ
4. सरकार द्वारा दिए गए ऋण से प्राप्त ब्याज
राजस्व प्राप्तियों से सरकार की देयताओं (Liabilities) में किसी भी प्रकार से वृद्धि नहीं होती है।
(i) कर आय
कर लोगों द्वारा सरकार को किया जाने वाला एक अनिवार्य भुगतान है, जिसके माध्यम से सरकार को सार्वजनिक व्यय हेतु धन की प्राप्ति होती है।
करों द्वारा प्राप्त होने वाली आय को करों के आधार पर दो भागों में विभाजित किया जाता है- प्रत्यक्ष करों से प्राप्त आय तथा अप्रत्यक्ष करों से प्राप्त आय।
प्रत्यक्ष कर (Direct Tax)
केन्द्र सरकार के प्रत्यक्ष कर
1. आय कर
2. निगम कर (Corporate Tax)
3. सम्पत्ति कर
4. सम्पदा शुल्क (Estate Duty)
5. उपहार कर
6. व्यय-कर (Expenditure Tax)
7. ब्याज कर
राज्य सरकार के प्रत्यक्ष कर
1. होटल प्राप्तियों पर कर
2. भू-राजस्व
3. कृषि आय पर कर
4. व्यवसाय कर
5. गैर-शहरी अचल सम्पत्तियों पर कर
6. रोजगारों पर कर
अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax)
केन्द्र सरकार के अप्रत्यक्ष कर
1. सीमा शुल्क
2. केन्द्रीय उत्पाद शुल्क
3. जी.एस.टी.
4. केन्द्रीय बिक्री कर
5. केन्द्रीय व्यापार कर
राज्य सरकार के अप्रत्यक्ष कर
1. जी. एस. टी.
2. स्टाम्प एवं पंजीयन शुल्क
3. राज्य उत्पाद शुल्क
4. डीजल/पेट्रोल पर बिक्री कर
5. वाहनों पर कर
6. परिवहन कर
7. प्रवेश कर (चुंगीकर)
8. विज्ञापन कर
9. विद्युत पर कर व शुल्क
10. शिक्षा उपकर
11. सट्टेबाजी पर कर
(ii) लाभ एवं लाभांश
भारत सरकार स्वयं अनेक प्रकार की औद्योगिक कम्पनियों तथा वित्तीय संस्थाओं का संचालन करती है, जैसे-तेल तथा प्राकृतिक
गैस निगम (ONGC), भारतीय इस्पात प्राधिकरण लिमिटेड (SAIL), राज्य व्यापार निगम (STC), खनिज तथा धातु व्यापार निगम (MMTC), राष्ट्रीय बैंक, जीवन बीमा निगम आदि। सरकार को इन कम्पनियों एवं संस्थाओं से प्रतिवर्ष लाभ तथा लाभांश प्राप्त होता है।
(iii) ब्याज आय
केन्द्र सरकार के द्वारा राज्य सरकारों, अन्य संस्थाओं तथा विदेशी सरकारों को ऋण दिया जाता है, जिस पर केन्द्र सरकार को वार्षिक ब्याज के रूप में आय प्राप्त होती है।
(iv) करेत्तर या गैर-कर आय
सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली विभिन्न सेवाओं, जैसेः डाकघर सेवाएँ, रेडियो तथा टीवी के विज्ञापन आदि से प्राप्त होने वाला शुल्क करेत्तर आय के अंतर्गत रखा जाता है।
पूँजीगत प्राप्तियाँ (Capital Receipts)
सरकार की ऐसी प्राप्तियाँ जो या तो परिसम्पत्तियों के विक्रय से प्राप्त हों अथवा जिनके कारण सरकार की देयता (Liability) में वृद्धि हो, पूँजीगत प्राप्तियाँ कहलाती हैं।
इसके अन्तर्गत आय के उन समस्त स्रोतों को रखा जाता है, जिनके बदले में सरकार को कुछ भुगतान करना आवश्यक होता है परन्तु, ये भुगतान उसी वित्तीय वर्ष में न होकर आगामी वित्तीय वर्षों में किए जाते हैं।
इसे पूँजी खाता के नाम से जानते हैं, इस प्रकार राजस्व प्राप्तियों की प्रकृति जहाँ अल्पकालिक होती है वहीं पूँजीगत प्राप्तियों की प्रकृति दीर्घकालिक होती है। पूँजी खाते का प्रमुख स्रोत है- निवल घरेलू ऋण, निवल विदेशी ऋण वापसी तथा लोक लेखा प्राप्तियाँ।
केन्द्र सरकार की पूँजीगत प्राप्तियाँ
बाजारी ऋण (निवल प्राप्तियाँ)
अल्प बचतें (निवल)
लोक भविष्य निधियाँ (निवल)
गैर-सरकारी भविष्य निधियों के विशेष निक्षेप
विशेष प्रतिभूतियाँ
विविध पूँजीगत प्राप्तियाँ (निक्षेपों एवं अग्रिमों की प्राप्तियाँ)
अन्तरण प्रारक्षित कोष
नकदी अधिशेष खाते प्रतिभूतियों की बिक्री
आकस्मिकता निधि से प्राप्तियाँ
राज्य सरकारों की पूँजीगत प्राप्तियाँ
1. बाजारी ऋण (निवल)
2. केन्द्र से प्राप्त ऋण
3. अन्य ऋण (निवल)
→ राष्ट्रीय कृषि साख निधि (भारतीय रिजर्व बैंक)
→ राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम
→ केन्द्रीय भण्डारागार निगम
→ जीवन बीमा निगम
→ अन्य ऋण देयतायें
4. राज्य भविष्य निधियाँ (निवल)
5. विविध पूँजीगत प्राप्तियाँ
(1) निवल घरेलू ऋण
निवल घरेलू ऋण से आशय उन सरकारी प्रपत्रों (बॉण्ड एवं प्रतिभूतियों) द्वारा अर्जित आय से है, जिनका प्रयोग भारत सरकार धन उगाहने के लिए करती है। ये प्रतिभूतियाँ प्रायः बैंक तथा ट्रस्टों द्वारा क्रय की जाती हैं। इनकी भिन्न-भिन्न परिपक्वता अवधियों (Maturity Periods) पर भिन्न-भिन्न ब्याज दरें देय होती हैं, जिनके भुगतान हेतु भारत सरकार वचनबद्ध होती है। अतः सरकार को विगत वर्षों में प्राप्त नये ऋणों में से इस वर्ष चुकाए जाने वाले ब्याज को घटाने पर निवल घरेलू ऋण की मात्रा ज्ञात हो जाती है।
(ii) निवल विदेशी ऋण
सरकार को विदेशी सरकारों, विदेशी वाणिज्यिक बैंकों तथा अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक संस्थाओं से ऋण प्राप्त होता है। तथा विगत वर्षों में प्राप्त हुए ऋणों पर ब्याज भी देना होता है। अतः सभी नये ऋणों में से विगत वर्षों के ऋणों पर इस वर्ष चुकाए जाने वाले ब्याज की मात्रा घटाने पर निवल विदेशी ऋण की मात्रा ज्ञात होती है।
(III) ऋण वापसी
सरकार ने पिछले वित्तीय वर्ष में राज्य सरकारों, सार्वजनिक निगमों, अन्य संस्थाओं तथा विदेशी सरकारों को यदि कोई ऋण दिया है.
तो उसके जिस भाग की वापसी चालू वित्तीय वर्ष में होती है, उस धन को ऋण वापसी के अन्तर्गत रखा जाता हैं।
(iv) लोक लेखा प्राप्तियाँ
सरकार बैंकिग संस्थाओं का नियंत्रक होने के साथ-साथ बैंकर के रूप में भी कार्य करती हैं। डाकघरों में सावधि जमाएँ, लघु बचतों तथा विभिन्न प्रकार के बचत-पत्र, किसान विकास-पत्र आदि समय-समय पर जारी होते रहते हैं। इन सबसे जो निवल आय प्राप्त होती है, उसे लोक लेखा प्राप्तियों के अन्तर्गत रखा जाता है।
इन स्रोतों से प्राप्त समग्र आय में से, उसी वित्तीय वर्ष में किए जाने वाले ब्याज भुगतान को घटाकर जो आय प्राप्त होती हैं उसे निवल लोक लेखा प्राप्तियाँ कहते हैं।
2. सार्वजनिक व्यय
सरकार के बजट में सर्वप्रथम चालू वित्तीय वर्ष में होने वाले व्यय के अनुमान लगाए जाते हैं। सरकार द्वारा किए जाने वाले सम्पूर्ण सार्वजनिक व्यय को दो भागों में बाँटा जा सकता है-
(i) राजस्व व्यय (Revenue Expenditure)
(ii) पूँजीगत व्यय (Capital Expenditure)
राजस्व व्यय (Revenue Expenditure)
राजस्व व्यय के अन्तर्गत गैर-विकासात्मक मदें
(i) सरकारी सेवाओं पर होने वाले व्यय
(ii) सरकारी सब्सिडी
(iii) ब्याज अदायगी
(iv) सरकारी अनुदान
i) सरकारी सेवाओं पर होने वाला व्यय- सरकार के व्यय का मुख्य कारण कल्याणकारी योजनाओं में वृद्धि होना है।
समाज कल्याण हेतु सरकार कई प्रकार की सेवाएँ उपलब्ध कराती हैं, जैसे- प्रतिरक्षा सेवाएँ, प्रशासकीय सेवाएँ, आर्थिक सेवाएँ, सामाजिक सेवाएँ, तथा सामुदायिक सेवाएँ।
जो व्यय सेना के तीनों अंगों के कर्मचारियों तथा उनकी आवश्यकताओं पर होता है, उसे प्रतिरक्षा सेवाओं पर होने वाले व्यय में शामिल किया जाता है।
प्रशासनिक सेवाओं में राष्ट्र के सम्पूर्ण आन्तरिक प्रशासन में होने वाला व्यय शामिल है। इन सेवाओं में न्यायालय, पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्थाओं, विदेशी राजनयिक मामलों आदि सेवाओं पर होने वाले व्यय शामिल होते हैं।
आर्थिक सेवाओं में होने वाले व्यय में उन सेवाओं पर होने वाले व्यय को शामिल किया जाता है, जो किसी भी प्रकार की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आर्थिक सुविधा उपलब्ध कराते हैं, जैसे- सिंचाई सुविधाएँ, विदेश व्यापार एवं प्रोत्साहन सेवाएँ, परिवहन तथा संचार सेवाएँ, खाद्यान्न उपलब्ध कराने की योजनाएँ आदि।
सामाजिक तथा सामुदायिक सेवाओं से आशय उन सेवाओं से है, जो किसी भी प्रकार से सामाजिक की प्रगति में सहायक सिद्ध हों अर्थात वे सेवाएँ जो लोगों के जीवन स्तर में सुधार करती हैं, जैसे- स्वास्थ्य व परिवार कल्याण, खेलकूद, युवा तथा महिला विकास, सूचना तथा प्रसारण, सांस्कृतिक विकास कार्यक्रम आदि पर होने वाला व्यय।
(ii) ब्याज अदायगी - चालू खाते में दूसरा महत्वपूर्ण मद ब्याज अदायगियों का है। इनके अंतर्गत सभी प्रकार के ऋणों के कारण उत्पन्न होने वाले ब्याज की अदायगियों को शामिल किया जाता है। ये अदायगियाँ घरेलू, विदेशी, निजी या संस्थागत हो सकती है।
वर्तमान में राजस्व व्यय खाते में ब्याज अदायगी ही सबसे बड़ी व्यय मद है।
(iii) अनुदान- केन्द्र सरकार राज्य सरकारों, सार्वजनिक उद्यम की इकाइयों तथा अन्य संस्थाओं को विभिन्न कारणों से समय-समय पर अनुदान देती है। अकाल, सूखा, भूकम्प, बाढ़ तथा अन्य असामान्य परिस्थितियों में भी अनुदान देती है। कभी-कभी सरकार आवश्यकता पड़ने पर अन्य देशों को भी अनुदान देती है।
(iv) सब्सिडी - केन्द्र सरकार निर्यात प्रोत्साहन, उत्पादन प्रोत्साहन तथा निम्न आय वर्ग के लोगों के लिए खाद्यान्न को उचित मूल्य पर या निःशुल्क उपलब्ध कराने के लिए सब्सिडी प्रदान करती है।
राजस्व व्यय के अन्तर्गत विकासात्मक मदें
सामाजिक एवं सामुदायिक सेवाएँ
सामान्य आर्थिक सेवाएँ
कृषि एवं सहायक सेवाएँ
उद्योग एवं खनिज रासायनिक उर्वरका सब्सिडी
परिवहन एवं संचार • लोक निर्माण विद्युत, सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण
राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों को अनुदान
राज्यों को संवैधानिक अनुदान
सामाजिक एवं सामुदायिक सेवाएँ- शिक्षा, कला एवं संस्कृति, वैज्ञानिक सेवाएँ एवं अनुसंधान, चिकित्सा (सार्वजनिक स्वास्थ्य) स्वच्छता, जल आपूर्ति, परिवार कल्याण, आवास, नगर विकास, श्रम एवं रोजगार, सूचना एवं प्रसारण आदि।
सामान्य आर्थिक सेवाएँ- विदेश व्यापार एवं निर्यात संवर्द्धन, सहकारिता आदि।
कृषि एवं सहायक सेवाएँ- फसल उत्पादन, पशुपालन खाद्य भण्डारण एवं भण्डारागार, ग्रामीण विकास आदि।
विद्युत, सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण- विद्युत परियोजनाएँ, मध्यम एवं लघु सिंचाई तथा वृहत सिंचाई परियोजनाएँ।
परिवहन एवं संचार- सड़कें एवं पुल, नागरिक उड्डयन, बन्दरगाह, लाइट-हाउस एवं जहाजरानी आदि।
राज्यों एवं केन्द्रशासित क्षेत्रों को अनुदान- ग्रामीण जलापूर्ति योजनाएँ, ग्रामीण सड़कें, ग्रामीण रोजगार आयोजनागत अनुदान, पिछड़े वर्गों का कल्याण, अनुसूचित जनजातियों को विशेष केन्द्रीय सहायता, विविध अनुदान आदि।
राज्यों को संवैधानिक अनुदान- संविधान के अनुच्छेद-275 के अन्तर्गत तथा रेलयात्री भाड़े पर कर के बदले दिया जाने वाला अनुदान।
पूँजीगत व्यय (Capital Expenditure)
जिनमें व्यय तो चालू वर्ष में किया जाता है, किन्तु जिनसे सामाजिक कल्याण में वृद्धि चालू वर्ष के साथ-साथ आगामी वर्षों में भी होती रहती है। जैसेः यदि सरकार लोगों के स्वास्थ्य कल्याण हेतु किसी जिले में चिकित्सालय की स्थापना करे, तो सरकार को दो प्रकार का व्यय करना होगा-
(i) अस्पताल के भवन तथा अन्य स्थायी परिसम्पत्तियों (उपकरण व अन्य सुविधाएँ) का निर्माण
(ii) डॉक्टर तथा नर्सों की नियुक्ति, दवाइयों का क्रय आदि।
• दवाइयों तथा वेतन पर होने वाले खर्च से रोगियों को तत्काल लाभ मिलेगा, किन्तु स्थायी परिसम्पत्तिया से आगामी वर्षों में भी लाभ प्राप्त होगा। इस कारण इन पर होने वाला व्यय पूँजी खाते में शामिल किया जाएगा।