मुख्य बिंदु:
आयुर्वेदिक संपूर्ण प्रणाली (एडब्ल्यूएस) रूमटॉइड आर्थराइटिस (आरए) के प्रबंधन में प्रभावी है:
लक्षणों में कमी लाती है।
शरीर में चयापचय को सामान्य करने की दिशा में बदलाव लाती है।
अध्ययन:
ए-एटीएआरसी, काया चिकित्सा विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, सीबीएमआर, एसजीपीजीआईएमएस, और एसीएसआईआर द्वारा किया गया।
जेएआईएम में प्रकाशित।
परिणाम:
रोग गतिविधि स्कोर (डीएएस -28 ईएसआर) में कमी।
सूजे और अकड़े हुए जोड़ों की संख्या में कमी।
एएमए एक्टिविटी मेज़र (एएएम) स्कोर में कमी।
रूमटॉइड आर्थराइटिस रोगियों में चयापचयी मार्करों में सुधार।
निष्कर्ष:
एडब्ल्यूएस आरए के प्रबंधन के लिए एक आशाजनक पूरक उपचार है।
आगे के शोध की आवश्यकता है।
महत्व:
आधुनिक चिकित्सा के साथ पारंपरिक आयुर्वेदिक प्रथाओं को एकीकृत करने की क्षमता को दर्शाता है।
शामिलीकरण: 29 अगस्त, 2024 को विशाखापत्तनम में।
रक्षा मंत्री: श्री राजनाथ सिंह ने शामिल किया।
महत्व: परमाणु हथियारों की भारत की सैनिक रणनीति (न्यूक्लीयर ट्रायड) को मजबूत करेगा, परमाणु निवारण बढ़ाएगा, क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन स्थापित करेगा, देश की सुरक्षा में निर्णायक भूमिका निभाएगा।
आत्मनिर्भरता का प्रमाण: रक्षा में 'आत्मनिर्भरता' की नीति का एक उदाहरण।
स्वदेशी तकनीक: उन्नत डिजाइन, विनिर्माण, अनुसंधान, सामग्री, इंजीनियरिंग, कारीगरी - सब स्वदेशी।
आईएनएस अरिहंत से बेहतर: उन्नत तकनीक, देश के औद्योगिक क्षेत्र, खासकर एमएसएमई को बढ़ावा मिला।
भू-राजनीतिक परिदृश्य: तेजी से विकास जरूरी है, एक मजबूत सेना आवश्यक।
भारत की क्षमता: संभावित शत्रुओं को रोकने, राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने की क्षमता बढ़ेगी।
परिचय:
हर साल 30 अगस्त को मनाया जाता है।
एमएसएमई का समाज में महत्वपूर्ण योगदान, विशेष रूप से कामकाजी गरीबों, महिलाओं, युवाओं और कमजोर समुदायों को रोजगार प्रदान करते हैं।
एमएसएमई का महत्व:
विश्व स्तर पर 90% व्यवसायों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
वैश्विक GDP में 50% का योगदान करते हैं।
भारत में पिछले 5 दशकों में देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
रोजगार सृजन में कृषि के बाद दूसरे स्थान पर हैं।
घरेलू और वैश्विक बाजार की मांगों को पूरा करने के लिए विविध प्रकार के उत्पाद और सेवाएँ प्रदान करते हैं।
एमएसएमई परिभाषा:
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 के अनुसार वर्गीकृत।
निवेश और कारोबार की सीमाओं के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।
एमएसएमई की उपलब्धियां:
पिछले कुछ वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद में महत्वपूर्ण योगदान।
भारत के निर्यात में महत्वपूर्ण योगदान।
लाखों लोगों को रोजगार प्रदान किया है।
सरकारी पहल:
उद्यम पंजीकरण पोर्टल: 4,91,47,316 पंजीकृत एमएसएमई।
पीएम विश्वकर्मा योजना: कारीगरों और शिल्पकारों के लिए।
2.34 करोड़ आवेदन प्राप्त, 16.19 लाख पंजीकृत।
पीएमईजीपी: सूक्ष्म उद्यम स्थापना के लिए ऋण से जुड़ी सब्सिडी।
22,050 परियोजनाओं की स्थापना, 1,76,400 लोगों को रोजगार।
एसएफयूआरटीआई (स्फूर्ति): पारंपरिक उद्योगों के पुनरुद्धार के लिए।
513 क्लस्टरों को मंजूरी, 1,336.10 करोड़ रुपये का अनुदान।
सार्वजनिक खरीद नीति:
केन्द्रीय मंत्रालयों, विभागों और सीपीएसई द्वारा वार्षिक खरीद का 25 % एमएसई से।
82,431 करोड़ रुपये मूल्य की वस्तुओं और सेवाओं की खरीद।
अन्य उल्लेखनीय पहल:
आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत एमएसएमई की परिभाषा में संशोधन।
'चैंपियंस' ऑनलाइन प्लेटफॉर्म।
सीजीटीएमएसई के माध्यम से जमानत मुक्त ऋण।
आत्मनिर्भर भारत कोष के माध्यम से इक्विटी निवेश।
एमएसएमई प्रदर्शन को बढ़ाने और तेज करने (आरएएमपी) के लिये कार्यक्रम।
उद्यम पोर्टल को राष्ट्रीय कैरियर सेवा (एनसीएस) के साथ एकीकरण।
विवाद से विश्वास-I के तहत राहत।
समाधान पोर्टल।
राष्ट्रीय एससी-एसटी हब।
निष्कर्ष:
एमएसएमई भारत के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण हैं।
सरकार एमएसएमई को सशक्त बनाने के लिए प्रयासरत है।
राष्ट्रीय लघु उद्योग दिवस एमएसएमई के योगदान को सम्मानित करता है।
पहल: गिद्धों की गणना और इस गंभीर रूप से संकटग्रस्त पक्षी प्रजाति के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
तिथियाँ: 7 सितंबर से 6 अक्टूबर तक।
अंतर्राष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस के साथ मेल खाता है।
गिद्धों का महत्व:
स्वस्थ पारिस्थितिक तंत्र के लिए जरूरी हैं।
प्रकृति की सफाई करने वाले दल हैं, बीमारियों के प्रसार को रोकते हैं।
पोषक तत्वों के चक्रण और पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में मदद करते हैं।
गिद्धों को खतरे:
पशुओं के इलाज के लिए इस्तेमाल होने वाली जहरीली एनएसएआईडी (डाइक्लोफेनेक)।
आवास का नुकसान, बिजली के झटके, भोजन की कमी और मानवीय हस्तक्षेप।
गिद्ध गणना 2024 के उद्देश्य:
गिद्धों की आबादी का व्यवस्थित रूप से निरीक्षण करना।
बुनियादी डेटा एकत्र करना ताकि रुझानों को ट्रैक किया जा सके और महत्वपूर्ण आवासों की पहचान की जा सके।
पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रभाव का आकलन करें।
लक्षित संरक्षण रणनीतियाँ और नीतियाँ विकसित करें।
जनता में जागरूकता और गिद्ध संरक्षण के लिए समर्थन बढ़ाएँ।
नागरिक विज्ञान की भागीदारी:
WWF-India नागरिक वैज्ञानिकों, पक्षी उत्साही और स्थानीय समुदायों से भाग लेने का आग्रह कर रहा है।
स्वयंसेवकों को गिद्धों की पहचान और डेटा एकत्र करने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा।
मुख्य गिद्ध प्रजातियाँ:
सफेद-पुच्छ, लाल-सिर, भारतीय, दाढ़ी वाले, पतले-चोंच वाले, हिमालयी गिद्ध, यूरेशियन गिद्ध, मिस्री गिद्ध और सिनरेसियस गिद्ध।
वर्चुअल अभिविन्यास:
6 सितंबर को विशेषज्ञ पक्षी विज्ञानी नीरव भट्ट द्वारा एक वर्चुअल अभिविन्यास सत्र आयोजित किया जाएगा।
सत्र स्वयंसेवकों को आवश्यक प्रशिक्षण और जानकारी प्रदान करेगा।
सार्वजनिक भागीदारी:
WWF-India ने सार्वजनिक भागीदारी के लिए स्थानों की सिफारिश की है।
कुल मिलाकर: गिद्ध गणना 2024 इन खतरे वाले पक्षियों के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण डेटा एकत्र करने और उनके पारिस्थितिक तंत्र के लिए महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल है।
मुख्य बिंदु:
गहन अवदाब: पिछले तीन दिनों से गुजरात में भारी बारिश का कारण बना गहन अवदाब 30 अगस्त को अरब सागर में उष्णकटिबंधीय चक्रवात में तब्दील होने वाला है।
चक्रवात "असना": चक्रवात का नाम "असना" रखा गया है।
असामान्य मानसून: चक्रवात के निर्माण का कारण मौजूदा मानसून सीजन में असामान्य हवाओं का प्रणाली हो सकती है।
विरला घटना: यह वर्तमान मौसम प्रणाली में एक दुर्लभ घटना है क्योंकि गहन अवदाब भूमि पर बना और चक्रवात समुद्र पर बनने जा रहा है।
पहला चक्रवात: 1981 के बाद यह उत्तरी हिंद महासागर (NIO) क्षेत्र में अगस्त में बनने वाला पहला चक्रवात है और 1976 के बाद अरब सागर में बनने वाला पहला चक्रवात है।
चक्रवात की गति: IMD के अनुसार, चक्रवात पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम दिशा में आगे बढ़ेगा और 30 अगस्त को कच्छ और सौराष्ट्र के तटों से दूर अरब सागर के उत्तर-पूर्वी हिस्से में चक्रवाती तूफान में तब्दील हो जाएगा।
अधिक बारिश: गुजरात में इस मानसून सीजन में 48% अधिक बारिश हुई है।
विशेष नोट्स:
चक्रवात का स्पष्ट केंद्र और चक्रवाती हवा की गति वायुमंडलीय विश्लेषण और कल्पना प्लेटफ़ॉर्म "विंडी" द्वारा दिखाई जा रही है।
IMD के डेटा के अनुसार, 1891 से 2023 तक NIO क्षेत्र में अगस्त में 32 चक्रवात आए हैं, जिनमें से केवल चार अरब सागर में आए हैं।
मुख्य बिंदु:
श्रद्धांजलि: डॉ. मनसुख मांडविया और सुश्री रक्षा खडसे ने हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद, जिनका जन्मदिन राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है, को पुष्पांजलि अर्पित की।
खेलों का प्रोत्साहन: मंत्री ने खेलों को अपनाने और हर दिन कम से कम एक घंटे आउटडोर खेलों के लिए समर्पित करने का आग्रह किया।
साइकिलिंग: डॉ. मांडविया ने साइकिलिंग को पर्यावरण-अनुकूल और स्वस्थ जीवनशैली के लिए एक बेहतर विकल्प बताया।
सक्रियता: दोनों मंत्रियों ने रस्साकशी और फुटबॉल मैच में भाग लेकर खेलों की भावना को बढ़ावा दिया।
जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम: इसमें विभिन्न इनडोर और आउटडोर खेल गतिविधियां आयोजित की गईं।
मेजर ध्यानचंद:
हॉकी के जादूगर: उनके असाधारण कौशल ने उन्हें "हॉकी के जादूगर" के नाम से जाना जाता था।
विरासत: उनकी विरासत आज भी देश भर के एथलीटों को प्रेरित करती है।
राष्ट्रीय खेल दिवस: उनके जन्मदिन (29 अगस्त) को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है।
उद्देश्य:
मेजर ध्यानचंद को याद करना और उनकी विरासत को कायम रखना।
देश में खेलों और शारीरिक फिटनेस की संस्कृति को बढ़ावा देना।
पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली को बढ़ावा देना।
महत्वपूर्ण वाक्यांश:
"विकसित भारत"
"जो खेलेंगे, वो खिलेंगे"
"साइकिल चलाना प्रदूषण का सबसे अच्छा समाधान है।"
मुख्य बिंदु:
दिनांक: 27-28 अगस्त 2024, नई दिल्ली
उद्देश्य: दोनों देशों की नौसेनाओं के बीच सहयोग को मजबूत करना।
प्रमुख प्रतिनिधि:
भारतीय नौसेना: एसीएनएस (एफसीआई) रियर एडमिरल निर्भय बापना
दक्षिण अफ्रीकी नौसेना: रियर एडमिरल डेविड मनिंगी मखोंटो
मुख्य विषय:
नौसेना संबंधों और परिचालन तालमेल को मजबूत करना।
प्रशिक्षण और प्लेटफॉर्म के बीच सूचना साझाकरण में सुधार।
समुद्री सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिए संयुक्त अभ्यास (जैसे IBSAMaR)।
विषय वस्तु विशेषज्ञ आदान-प्रदान (SMEEs) और कार्मिक आदान-प्रदान।
सफलताएँ:
सहयोग की प्रतिबद्धता: दोनों देशों ने नौसेना संबंधों को बढ़ाने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
भविष्य के सहयोग के लिए आधार: वार्ता में भविष्य के संयुक्त प्रशिक्षण, अभ्यास और सूचना साझाकरण के लिए रणनीति बनाई गई।
क्षमता निर्माण: विषय वस्तु विशेषज्ञ आदान-प्रदान से क्षति नियंत्रण और गोताखोरी सहायता में सर्वोत्तम प्रथाओं का आदान-प्रदान किया गया।
महत्व:
समुद्री सुरक्षा: इस वार्ता ने हिंद महासागर में समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
रणनीतिक साझेदारी: भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच रणनीतिक साझेदारी को मजबूत किया।
क्षेत्रीय स्थिरता: क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया।
मुख्य बिंदु:
संशोधन: आर्थिक कार्य विभाग ने प्रतिभूति अनुबंध विनियमन नियम (SCRR), 1956 में संशोधन किया है।
उद्देश्य: भारतीय कंपनियों को GIFTS IFSC के अंतर्राष्ट्रीय एक्सचेंजों पर सीधे सूचीबद्ध करने की सुविधा प्रदान करना।
लाभ:
स्टार्टअप और उभरती प्रौद्योगिकी कंपनियों के लिए वैश्विक पूंजी तक आसान पहुँच।
वैश्विक बाजारों में विस्तार के अवसर।
भारत की वित्तीय प्रणाली को मजबूत करना।
मुख्य परिवर्तन:
न्यूनतम सार्वजनिक पेशकश: IFSC के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध होने वाली भारतीय कंपनियों के लिए न्यूनतम सार्वजनिक पेशकश 10% निर्धारित की गई है।
निरंतर सूचीबद्धता: सूचीबद्धता बनाए रखने के लिए भी 10% न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता की आवश्यकता है।
महत्व:
वैश्विक एकीकरण: यह संशोधन भारतीय कंपनियों को वैश्विक वित्तीय प्रणाली में एकीकृत करने में मदद करेगा।
आर्थिक विकास: वैश्विक पूंजी तक आसान पहुँच से भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।
नियामकीय सुधार: यह संशोधन IFSC को एक कुशल और आधुनिक व्यावसायिक केंद्र बनाने की सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
महत्वपूर्ण बिंदु:
संशोधन से पहले, भारतीय कंपनियों को अंतर्राष्ट्रीय एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध होने के लिए कई जटिल प्रक्रियाओं का सामना करना पड़ता था।
नए नियमों से सूचीबद्धता की प्रक्रिया सरल और पारदर्शी हो गई है।
इस कदम से भारत को एक प्रमुख वित्तीय केंद्र के रूप में स्थापित करने में मदद मिलेगी।
मुख्य बिंदु:
शी-बॉक्स पोर्टल: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायतों को दर्ज करने और निगरानी करने के लिए एक केंद्रीकृत ऑनलाइन मंच "शी-बॉक्स पोर्टल" लॉन्च किया है।
कार्यस्थल पर सुरक्षा: यह पोर्टल सरकारी और निजी क्षेत्रों में गठित आंतरिक समितियों (IC) और स्थानीय समितियों (LC) को जोड़ता है, जिससे शिकायतों का निवारण सुनिश्चित हो सके।
वेबसाइट लॉन्च: मंत्रालय ने अपनी नई वेबसाइट भी लॉन्च की, जिसका उद्देश्य डिजिटल प्लेटफॉर्म पर एक मजबूत उपस्थिति बनाना और लाभार्थियों के साथ जुड़ाव को बढ़ावा देना है।
समर्थन: सरकार ने 2047 तक "विकसित भारत" के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए महिलाओं के नेतृत्व और वीमेन-लेड-डिवेलपमेंट पर ध्यान केंद्रित किया है।
महत्व:
महिलाओं के लिए सुरक्षित वातावरण: शी-बॉक्स पोर्टल कार्यस्थलों को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाने और उनके यौन उत्पीड़न की शिकायतों का समाधान करने में मदद करेगा।
पारदर्शिता और जवाबदेही: यह पोर्टल शिकायतों की निगरानी और समयबद्ध कार्रवाई सुनिश्चित करके पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाएगा।
डिजिटल उपस्थिति: नई वेबसाइट मंत्रालय को डिजिटल दुनिया में अधिक प्रभावी ढंग से संवाद करने में मदद करेगी।
महत्वपूर्ण वाक्यांश:
"विकसित भारत"
"वीमेन-लेड-डिवेलपमेंट"
"कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013"
अतिरिक्त बिंदु:
इस पहल का उद्देश्य कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना है।
यह पोर्टल सुनिश्चित करेगा कि शिकायतें व्यक्तिगत जानकारी को सार्वजनिक किए बिना सुरक्षित रूप से दर्ज की जा सकें।
मुख्य बिंदु:
विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित एक नए अध्ययन ने दुनिया की मछली आबादी के लिए एक भयावह चित्र प्रस्तुत किया है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि पहले के अनुमानों की तुलना में काफी अधिक मछली स्टॉक अति-मत्स्य या पहले ही समाप्त हो चुके हैं।
दोषी: मछली पकड़ने का दबाव जो मछली आबादी को प्राकृतिक रूप से फिर से भरने की क्षमता से अधिक है।
यह दबाव स्थानीय मछुआरों और विशाल औद्योगिक बेड़ों दोनों से आता है जो बड़ी मात्रा में मछली पकड़ने में सक्षम हैं।
नीति निर्माताओं ने मत्स्यपालन को रोकने के लिए वैज्ञानिक सलाह के आधार पर मत्स्य सीमा निर्धारित की थी।
हालाँकि, नए अध्ययन ने सुझाव दिया कि ये सीमाएँ अक्सर बहुत अधिक निर्धारित की गई थीं।
सिद्धांत:
सिद्धांत में, मत्स्य सीमाएँ मछली आबादी की उत्पादक क्षमता से अधिक न होने और समाप्त हो चुके स्टॉक को फिर से भरने की अनुमति देकर स्थिरता सुनिश्चित करती हैं।
अध्ययन के निष्कर्ष:
अध्ययन ने दिखाया कि वर्तमान मत्स्य सीमाएँ पर्याप्त नहीं हैं और वास्तव में, मछली आबादी को और अधिक जोखिम में डाल रही हैं।
यह एक गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि यह दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित करता है।
अगले कदम:
शोधकर्ता नीति निर्माताओं से मत्स्य सीमाओं को फिर से मूल्यांकन करने और मछली स्टॉक के संरक्षण के लिए अधिक प्रभावी उपाय करने का आह्वान कर रहे हैं।
यह महत्वपूर्ण है कि हम समुद्री संसाधनों का स्थायी रूप से प्रबंधन करें ताकि भविष्य के लिए मछली आबादी को सुनिश्चित किया जा सके।
मुख्य बिंदु:
विनाशकारी आग: कनाडा में 2023 में जंगल की आग ने लगभग 640 मिलियन मीट्रिक टन कार्बन वातावरण में छोड़ा, जो एक औद्योगिक देश के वार्षिक कार्बन उत्सर्जन के बराबर है।
अत्यधिक गर्मी और सूखा: अत्यधिक गर्मी और बारिश की कमी ने कनाडा के जंगलों में 'टिंडरबॉक्स' जैसी स्थिति पैदा कर दी, जिसके कारण मई से सितंबर तक आग लगी।
कार्बन उत्सर्जन: कनाडा के जंगलों में 15 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र जल गया, जिससे 200,000 से अधिक लोगों को विस्थापित होना पड़ा और वायु गुणवत्ता में गिरावट आई।
भविष्य के लिए खतरा: जलवायु परिवर्तन के कारण, कनाडा के जंगलों में तापमान में वृद्धि और सूखापन बढ़ने की उम्मीद है, जिससे भविष्य में आग लगने का खतरा बढ़ जाएगा।
कार्बन सिंक पर प्रभाव: कनाडा के जंगल पहले कार्बन सिंक थे, लेकिन बढ़ते तापमान और सूखापन से उनके कार्बन अवशोषण की क्षमता में कमी आ सकती है।
नियंत्रण की आवश्यकता: भविष्य में आग के खतरे को कम करने और जंगल के प्रबंधन के लिए रणनीतियों में परिवर्तन की आवश्यकता है।
अध्ययन के निष्कर्ष:
2023 की आग ने कनाडा के जंगलों के कार्बन अवशोषण की क्षमता को कम कर दिया है।
जलवायु परिवर्तन के कारण भविष्य में जंगल की आग अधिक बार और गंभीर हो सकती है।
कनाडा सरकार को अपने जंगल प्रबंधन की रणनीतियों में बदलाव करने की आवश्यकता है।
महत्व:
यह अध्ययन जलवायु परिवर्तन के खतरों को दर्शाता है और जंगल की आग से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
कनाडा के जंगलों के नुकसान से वैश्विक जलवायु पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि वे कार्बन अवशोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
यह अध्ययन सभी देशों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने और जंगल के प्रबंधन के लिए बेहतर नीतियां बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है।
अतिरिक्त बिंदु:
अध्ययन ने 27 जलवायु मॉडल का उपयोग किया है ताकि आगामी दशकों के लिए तापमान और वर्षा के पैटर्न का अनुमान लगाया जा सके।
अध्ययन में कनाडा के जंगलों में कार्बन मॉनिटरिंग के लिए उपग्रह डेटा का उपयोग किया गया है।
यह अध्ययन एक सतर्कता है कि जलवायु परिवर्तन के खतरों को कम करके नहीं आंका जा सकता है और हमें अपने ग्रह को बचाने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है।
मुख्य बिंदु:
नई खोज: अमेरिकी और चीनी वैज्ञानिकों की एक टीम ने तिब्बत के गुलीया ग्लेशियर में बर्फ की चादरों के नीचे 1,705 वायरस के जीनोम की खोज की है।
नए वायरस: इनमें से कई वायरस नए हैं, जिसका अर्थ है कि वे विज्ञान के लिए अभी तक अज्ञात हैं।
जलवायु परिवर्तन से संबंध: वैज्ञानिकों ने पाया है कि इन वायरसों की संरचना विभिन्न जलवायु युगों में भिन्न होती है, जो यह दर्शाता है कि वायरस जलवायु परिवर्तन से जुड़े हो सकते हैं।
ग्लेशियर अनुसंधान: गुलीया ग्लेशियर, जो तिब्बती पठार के उत्तर-पश्चिम में 20,000 फीट से ऊपर स्थित है, लंबे समय से प्राचीन जलवायु अनुसंधान के लिए एक सक्रिय स्थान रहा है।
संभावित जोखिम:
सुरक्षित खोज: हालांकि, शोधकर्ताओं ने बताया है कि ये वायरस आमतौर पर जानवरों के बजाय अन्य सूक्ष्मजीवों को संक्रमित करते हैं, इसलिए वर्तमान मानव आबादी के लिए कोई खतरा नहीं है।
वातावरणीय अनुकूलन: इन वायरसों ने खुद को कठोर जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल बनाया है, जिससे उनके मेजबानों की जीवित रहने की क्षमता कम हो सकती है।
बर्फ पिघलने से खतरा: जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों के पिघलने से ये वायरस मुक्त हो सकते हैं और आधुनिक परिस्थितियों में उत्परिवर्तित हो सकते हैं, जिससे संभावित खतरा पैदा हो सकता है।
महत्व:
वैज्ञानिक समझ: यह खोज वायरस के विकास और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने के लिए एक नया दृष्टिकोण प्रदान करती है।
भविष्य के लिए खतरा: ग्लेशियरों के पिघलने से संभावित खतरों को समझने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान महत्वपूर्ण है।
जागरूकता: यह खोज हमें यह याद दिलाती है कि पृथ्वी पर कई खतरे छिपे हुए हैं जिन्हें हम पूरी तरह से नहीं समझते हैं।
अतिरिक्त बिंदु:
इस खोज ने प्राचीन वायरस के ज्ञात संग्रह को 50 गुना से अधिक बढ़ा दिया है।
शोधकर्ताओं ने ग्लेशियर में बर्फ के नमूने एकत्र किए और उनका विश्लेषण किया।
इस खोज से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने में मदद मिलेगी।
ख़बरों में क्यों?
RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने हाल ही में यूनिफाइड लेंडिंग इंटरफ़ेस (ULI) की घोषणा की, जिसका उद्देश्य यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफ़ेस (UPI) की सफलता पर निर्माण करना और ऋण प्रक्रिया को सरल बनाना है।
यूनिफाइड लेंडिंग इंटरफ़ेस (ULI) के बारे में:
स्रोत: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI)
प्लेटफ़ॉर्म: RBI इनोवेशन हब (RBIH) द्वारा विकसित एक प्लेटफ़ॉर्म।
कार्य: मानकीकृत एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफ़ेस (APIs) का उपयोग करके तकनीकी एकीकरण को सरल बनाना, जिससे विभिन्न सूचना स्रोतों तक डिजिटल पहुँच के लिए ‘प्लग एंड प्ले’ दृष्टिकोण संभव होता है।
‘नई त्रिमूर्ति’: JAM (जन धन-आधार-मोबाइल), UPI, और ULI को एक ‘नई त्रिमूर्ति’ के रूप में वर्णित किया गया है जो भारत के डिजिटल बुनियादी ढांचे को आगे बढ़ाएगी।
ULI के लाभ:
दक्षता: देश भर में, खासकर छोटे और ग्रामीण उधारकर्ताओं के लिए, ऋण वितरण को कुशल और कम खर्चीला बनाना।
माँग को पूरा करना: कृषि और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) जैसे क्षेत्रों में ऋण की महत्वपूर्ण अपूर्ण मांग को पूरा करना।
सूचना प्रवाह: विभिन्न राज्यों से भूमि रिकॉर्ड सहित डिजिटल जानकारी का सहमति-आधारित प्रवाह, कई डेटा सेवा प्रदाताओं से ऋणदाताओं तक।
डिजिटल लेंडिंग में मौजूदा चुनौतियाँ और ULI द्वारा प्रदान किया गया लाभ:
डेटा एकत्रीकरण: ऋण मूल्यांकन के लिए आवश्यक डेटा वर्तमान में विभिन्न संस्थाओं जैसे सरकारों, बैंकों, खाता एकत्रीकरणकर्ताओं और क्रेडिट सूचना कंपनियों में बिखरा हुआ है।
ULI का समाधान: ULI की वास्तुकला मानकीकृत APIs प्रदान करती है जो एक ‘प्लग एंड प्ले’ समाधान प्रदान करती हैं, जिससे विभिन्न स्रोतों से डिजिटल रूप से जानकारी तक पहुँचना आसान हो जाता है और कई तकनीकी एकीकरण की जटिलता कम हो जाती है।
ULI UPI से कैसे अलग है?
फोकस: ULI ऋण और क्रेडिट सूचना साझाकरण पर केंद्रित है, जबकि UPI डिजिटल भुगतान पर केंद्रित है।
उपयोगकर्ता: ULI मुख्य रूप से वित्तीय संस्थानों और ऋण संस्थाओं के लिए है; UPI आम जनता और व्यवसायों के लिए पैसे के हस्तांतरण और भुगतान के लिए है।
एकीकरण: ULI क्रेडिट मूल्यांकन के लिए कई डेटा स्रोतों को एकीकृत करता है; UPI निर्बाध भुगतान के लिए कई बैंक खातों को एकीकृत करता है।
मुख्य बिंदु:
क्राकाटोआ का विस्फोट: 27 अगस्त, 1883 को इंडोनेशिया के क्राकाटोआ द्वीप पर ज्वालामुखी का विस्फोट हुआ, जिसने एडवर्ड मुंच की प्रसिद्ध पेंटिंग "द स्क्रिम" को प्रेरित किया।
विस्फोट का महत्व: यह विस्फोट एक वैश्विक आपदा थी, जिसके बारे में तार के माध्यम से दुनिया भर में खबर फैली। इसने ज्वालामुखियों और जलवायु परिवर्तन पर दुनिया की समझ को बदल दिया।
स्थान: क्राकाटोआ इंडोनेशिया के सुंडा जलडमरूमध्य में स्थित है, जहां इंडो-ऑस्ट्रेलियाई टेक्टॉनिक प्लेट यूरेशियन प्लेट के नीचे जाती है, जिससे भूकंप और सुनामी का खतरा पैदा होता है।
विस्फोट की प्रक्रिया: क्राकाटोआ में तीन ज्वालामुखी थे - डैनन, परबुआटन और राकाटा। विस्फोट में लावा और गैसें 50 किलोमीटर ऊपर तक उठीं, जिससे मैग्मा चेंबर खाली हो गया और राकाटा ज्वालामुखी का आधा हिस्सा नष्ट हो गया।
ध्वनि: विस्फोट की आवाज़ धरती के एक तिहाई हिस्से तक सुनाई दी।
सुनामी: विस्फोट से तीव्र सुनामी आई, जिसने दक्षिण एशिया, पूर्वी अफ्रीका और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के तटों को प्रभावित किया।
पीड़ित: विस्फोट से लगभग 36,417 लोगों की मृत्यु हुई और कई बसे हुए क्षेत्र तबाह हो गए।
जलवायु प्रभाव: क्राकाटोआ के विस्फोट से धरती पर 0.6 डिग्री सेल्सियस तक ठंडक आई।
वैज्ञानिक जांच: विस्फोट के बाद, ज्वालामुखियों और जलवायु परिवर्तन के बीच संबंधों के बारे में अधिक गहन अध्ययन शुरू हुए।
निष्कर्ष:
क्राकाटोआ का विस्फोट एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है जिसने दुनिया को बदल दिया। यह ज्वालामुखी का विस्फोट जलवायु परिवर्तन पर मानव समझ के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ।
मुख्य बिंदु:
वैश्विक खतरा: वायु प्रदूषण जीवन प्रत्याशा के लिए दुनिया भर में सबसे बड़ा बाहरी खतरा है, जो वैश्विक औसत जीवनकाल को लगभग 2 साल तक कम कर रहा है।
AQLI रिपोर्ट 2024: शिकागो विश्वविद्यालय के ऊर्जा नीति संस्थान (EPIC) द्वारा प्रकाशित, यह रिपोर्ट बताती है कि यदि PM2.5 प्रदूषण को WHO के दिशानिर्देशों के अनुरूप कम किया जाता है, तो औसत व्यक्ति 1.9 साल अधिक जी सकता है।
प्रभाव: धूम्रपान, शराब और एचआईवी/एड्स से भी अधिक घातक, वायु प्रदूषण से जीवन प्रत्याशा में गंभीर कमी आती है।
असमानता: प्रदूषण का बोझ समान रूप से वितरित नहीं है। सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले लोग सबसे स्वच्छ क्षेत्रों के लोगों की तुलना में छह गुना अधिक प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं, जिससे उनकी जीवन प्रत्याशा औसतन 2.7 साल कम हो जाती है।
मानदंड और प्रवर्तन: 94 देशों ने PM2.5 मानदंड स्थापित किए हैं, लेकिन 37 अपने स्वयं के दिशानिर्देशों को पूरा करने में विफल रहे। 158 देशों ने अभी तक कोई मानदंड स्थापित नहीं किया है।
प्रगति: अमेरिका, यूरोप और चीन ने प्रदूषण नियंत्रण में उल्लेखनीय प्रगति की है।
चीन में 2014 के बाद से प्रदूषण में 41% की कमी आई है, जिससे निवासियों की जीवन प्रत्याशा में 2 साल का इजाफा हुआ है।
अमेरिका में 1970 से प्रदूषण में 67.2% की कमी आई है, जिससे औसत जीवनकाल में 1.5 साल की बढ़ोतरी हुई है।
यूरोप में 1998 से प्रदूषण में 30.2% की कमी आई है, जिससे जीवन प्रत्याशा में 5.6 महीने का इजाफा हुआ है।
क्षेत्रीय भिन्नताएं:
दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में 2022 में PM2.5 के स्तर में 4% की कमी आई है, लेकिन यह क्षेत्र अभी भी दुनिया का सबसे प्रदूषित क्षेत्र है।
मध्य और पश्चिम अफ्रीका में वायु प्रदूषण एक प्रमुख स्वास्थ्य खतरा बन गया है।
मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका (MENA) क्षेत्र एक नया प्रदूषण केंद्र के रूप में उभरा है।
लैटिन अमेरिका में वायु प्रदूषण बढ़ रहा है।
नीतिगत सिफारिशें:
बायोमास, कृषि, वन और पीटलैंड की आग को कम करने के लिए सहयोग।
ईंधन उत्सर्जन मानकों को कड़ा करना।
सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना और वाहन उत्सर्जन को कम करना।
निष्कर्ष:
वायु प्रदूषण एक गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य समस्या है जिसे तत्काल संबोधित करने की आवश्यकता है। प्रदूषण के स्तर को कम करने और मानव जीवन को बचाने के लिए सरकारों, नागरिकों और उद्योगों को मिलकर काम करना होगा।
मुख्य बिंदु:
मंजूरी: कैबिनेट ने भारतीय रेलवे में कनेक्टिविटी बढ़ाने, यात्रा को आसान बनाने, लॉजिस्टिक्स लागत कम करने और पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से तीन नई परियोजनाओं को मंजूरी दी।
परियोजनाएं: दो नई रेलवे लाइनें और एक मल्टी-ट्रैकिंग परियोजना, जिसकी कुल अनुमानित लागत ₹6,456 करोड़ है।
लाभ:
कनेक्टिविटी: दूर-दराज के क्षेत्रों को आपस में जोड़ेगा।
लॉजिस्टिक्स: लॉजिस्टिक्स दक्षता में सुधार।
क्षमता: मौजूदा रेलवे लाइन की क्षमता बढ़ाएगा।
परिवहन: परिवहन नेटवर्क का विस्तार और सुव्यवस्थित आपूर्ति श्रृंखला।
रोजगार: परियोजना के निर्माण के दौरान 114 लाख मानव दिवसों का रोजगार पैदा होगा।
पर्यावरण: तेल आयात और कार्बन उत्सर्जन में कमी (9.7 करोड़ पेड़ लगाने के बराबर)।
स्थान: 4 राज्यों (ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़) के 7 जिलों में लागू की जाएंगी।
समयसीमा: परियोजनाएं 2028-29 तक पूरी होने की उम्मीद है।
यह परियोजना पीएम-गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान का हिस्सा है और देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
मुख्य बिंदु:
10 साल पूरे: पीएमजेडीवाई ने 28 अगस्त 2014 को शुरू होने के बाद सफलतापूर्वक 10 साल पूरे किए।
लक्ष्य: वित्तीय समावेशन, गरीबों को आर्थिक मुख्यधारा में शामिल करना, हाशिए के समुदायों का विकास।
सफलता:
53.14 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को बैंकिंग सुविधा मिली।
पीएमजेडीवाई खातों में कुल जमा ₹2,31,236 करोड़।
36.14 करोड़ से अधिक रुपे कार्ड जारी किए गए।
67% खाते ग्रामीण/कस्बाई क्षेत्रों में, 55% खाते महिलाओं द्वारा खोले गए।
महत्व:
सरकारी योजनाओं के लाभ पात्र लाभार्थियों के खातों में त्वरित, निर्बाध और पारदर्शी तरीके से हस्तांतरित करना।
डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना।
लोगों को बचत करने, ऋण प्राप्त करने और वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना।
जेएएम (जन-धन, आधार, मोबाइल): प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के लिए प्रभावी ढांचा साबित हुआ है।
मुद्रा लोन: पीएमजेडीवाई से मुद्रा लोन आवंटन में 5 वर्षों में 9.8% की चक्रवृद्धि दर से बढ़ोतरी हुई है।
भविष्य: पीएमजेडीवाई ने भारत में वित्तीय समावेशन में क्रांतिकारी बदलाव किया है और भविष्य में भी यह वित्तीय सुरक्षा और समृद्धि लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहेगा।
संक्षेप में, पीएमजेडीवाई एक सफल कार्यक्रम है जो वित्तीय समावेशन के लिए एक मॉडल के रूप में सामने आया है। यह लोगों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने और देश के विकास में योगदान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
समस्या: पार्किंसंस रोग में एल-डोपा की खुराक का निर्धारण मुश्किल है, क्योंकि बहुत कम या बहुत अधिक खुराक से दुष्प्रभाव होते हैं।
हल: वैज्ञानिकों ने एक किफायती, पोर्टेबल स्मार्टफोन-आधारित सेंसर विकसित किया है जो जैविक नमूनों में एल-डोपा की मात्रा का पता लगाता है।
तकनीक: सेंसर ग्राफीन ऑक्साइड नैनोकणों और सिल्क-फाइब्रोइन प्रोटीन नैनो-लेयर का उपयोग करके बनाया गया है। यह फ्लोरोसेंस टर्न-ऑन तकनीक का उपयोग करता है जो एल-डोपा की उपस्थिति में प्रकाश उत्सर्जित करता है।
लाभ:
सटीक खुराक निर्धारण के लिए सहायक।
दुष्प्रभावों को कम करता है।
किफायती और उपयोगकर्ता के अनुकूल।
दूरदराज के क्षेत्रों में भी उपयोगी।
भविष्य: यह सेंसर पार्किंसंस रोग के प्रबंधन में क्रांति लाने का वादा करता है।
नोट: इस सेंसर को अभी और परीक्षणों की आवश्यकता है।
समस्या: तिब्बती पठार में क्रस्टल गतिविधि की निगरानी के लिए जीपीएस स्टेशनों का घना नेटवर्क स्थापित करना महंगा और कठिन है।
हल: वैज्ञानिकों ने मशीन लर्निंग तकनीकों का उपयोग किया है ताकि मौजूदा जीपीएस डेटा से क्रस्टल गतिविधि की भविष्यवाणी की जा सके।
तकनीक:
सपोर्ट वेक्टर मशीन (SVM), डिसीजन ट्री (DT) और गॉसियन प्रोसेस रिग्रेशन (GPR) जैसी मशीन लर्निंग तकनीकें।
तिब्बती पठार में 1,271 जीपीएस स्टेशनों के डेटा का उपयोग किया गया।
परिणाम:
एमएल मॉडल ने पूर्वानुमानित वेग वैक्टर उत्पन्न किए जो वास्तविक वेग वैक्टर से मेल खाते हैं।
मॉडल का उपयोग जीपीएस स्टेशनों के स्थानों पर वेग वैक्टर की भविष्यवाणी करने के लिए किया जा सकता है जहां डेटा उपलब्ध नहीं है।
लाभ:
मशीन लर्निंग क्रस्टल गतिविधि की निगरानी के लिए एक लागत प्रभावी और कुशल समाधान प्रदान करता है।
यह भूगणितीय अध्ययनों को बढ़ावा दे सकता है और प्लेट गतिविधियों को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकता है।
भविष्य:
इस तकनीक का उपयोग भूकंप और अन्य प्राकृतिक आपदाओं की पूर्व सूचना के लिए किया जा सकता है।
मुख्य बिंदु:
कर्नाटक में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की संख्या घटकर मात्र दो रह गई है, जो कभी इस प्रजाति का घर था।
सरकार ने बल्लारी के सिरगुप्पा में अभयारण्य स्थापित किया है और संरक्षण के लिए 24 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।
बस्टर्ड के गायब होने के कारण वन विभाग ने तत्काल कदम उठाए हैं जिनमें जियो-टैगिंग, कृत्रिम प्रजनन और जागरूकता अभियान शामिल हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि आवास नुकसान, अवैध शिकार और मानव-वन्यजीव संघर्ष प्रमुख खतरे हैं।
कार्रवाई:
सिरगुप्पा अभयारण्य की सुरक्षा बढ़ाई गई है।
शोध केंद्र स्थापित करने और जीपीएस टैगिंग का पता लगाने के लिए 6 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
स्थानीय समुदायों को संरक्षण प्रयासों में शामिल किया गया है।
चिंताएं:
बस्टर्ड की संख्या तेजी से कम हो रही है।
अभयारण्य स्थापित करने के बावजूद, संरक्षण प्रयास अपर्याप्त साबित हो रहे हैं।
अवैध शिकार और आवास नुकसान प्रमुख खतरे बने हुए हैं।
आवश्यकता:
घास के मैदानों को बहाल करने के लिए ठोस प्रयास आवश्यक हैं।
अवैध शिकार पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।
स्थानीय समुदायों को संरक्षण के महत्व के बारे में शिक्षित करना चाहिए।
निष्कर्ष:
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड का अस्तित्व संकट में है। इस प्रजाति को बचाने के लिए सरकार और स्थानीय लोगों द्वारा ठोस प्रयासों की आवश्यकता है।
संचार के लिए जाने जाने वाले इस युग में, मानवजनित कारणों से रेडियोफ्रीक्वेंसी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड (RF EMF) वातावरण में फैल गए हैं। लोगों के स्वास्थ्य को अत्यधिक खतरों से बचाने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय दिशा-निर्देश निर्धारित किए गए हैं। जबकि पौधों और जानवरों की सुरक्षा को लेकर किसी तरह के विशेष रूप से तय किए गए दिशा-निर्देश नहीं हैं।
एक नया अध्ययन, जो जुलाई 2024 में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल स्टडीज में प्रकाशित हुआ था, इस सवाल का जवाब देने का प्रयास करता है कि क्या RF EMF पौधों और जानवरों के लिए खतरा है। इस अध्ययन को ऑस्ट्रेलियाई विकिरण संरक्षण और परमाणु सुरक्षा एजेंसी (ARPANSA) ने संचालित किया था, और 26,000 से अधिक शोध पत्रों का विश्लेषण किया गया।
मुख्य निष्कर्ष:
उच्च गुणवत्ता वाले शोधों से पता चला है कि सुरक्षा सीमा के भीतर RF EMF का पौधों और जानवरों पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है।
कम गुणवत्ता वाले शोधों में कई खामियां पाई गईं, जैसे नियंत्रण समूहों की कमी, गलत विकिरण आकलन और अन्य पर्यावरणीय कारकों पर ध्यान न देना।
आगे क्या?
अधिक उच्च गुणवत्ता वाले शोधों की आवश्यकता है ताकि किसी भी संदेह को दूर किया जा सके।
अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय इस बात पर सहमत है कि सुरक्षा सीमा के भीतर RF EMF पौधों और जानवरों के स्वास्थ्य के लिए खतरा नहीं है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि RF EMF का स्रोत मोबाइल फोन, वाई-फाई, टावर्स, आदि हैं। "सुरक्षा सीमा" एक ऐसा स्तर है जिसके ऊपर RF EMF के नकारात्मक प्रभावों का खतरा बढ़ जाता है।
इस शोध से हमें यह सीखने को मिला है कि RF EMF के बारे में और अधिक समझ विकसित करने के लिए अधिक शोध की आवश्यकता है। यह भी महत्वपूर्ण है कि RF EMF के संभावित प्रभावों को लेकर लोगों को सही और तटस्थ जानकारी प्रदान की जाए।
उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक धार्मिक समागम में हुई भगदड़ में 120 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद इस बात पर पुन: बहस शुरू हो गई है कि क्या भारत में शोषणकारी धार्मिक और अंधविश्वासी प्रथाओं से निपटने के लिए पर्याप्त कानून हैं। विशेषज्ञों ने अंधविश्वास, काला जादू, डायन-बिसाही और अन्य अमानवीय प्रथाओं से निपटने के लिए महाराष्ट्र तथा कर्नाटक के कानूनों की तरह ही एक राष्ट्रीय स्तर पर केंद्रीय कानून की वकालत की है।
केंद्रीय कानून के पक्ष में तर्क:
केंद्रीय कानून का अभाव: भारत में ऐसा कोई केंद्रीय कानून नहीं है जो विशेष रूप से जादू-टोना, अंधविश्वास या तंत्र-मंत्र से प्रेरित गतिविधियों से संबंधित अपराधों से निपटता हो।
राज्यों के कानून में कमियाँ: राज्यों के कानून विस्तृत होने एवं परिभाषाओं में अस्पष्टता होने से अधिकारियों को व्यक्तिपरक व भेदभावपूर्ण रवैया अपनाने का मौका मिल जाता है।
राष्ट्रीय कानून के अधिनियमित होने से अलग-अलग राज्य कानूनी प्रभावशीलता में वृद्धि के लिए स्थानीय चिंताओं को संबोधित करते हुए विशिष्ट संशोधन कर सकते हैं।
केंद्रीय कानून के विपक्ष में तर्क:
सामान्यीकरण की समस्या: राज्य सरकारें प्राय: स्थानीय आबादी की आवश्यकताओं एवं परंपराओं के प्रति अधिक सजग होती हैं। भारत की विविधता को देखते हुए, एक राष्ट्रीय कानून से व्यापक सामान्यीकरण हो सकता है जो कुछ प्रमुख समुदायों को सशक्त बना सकता है।
सर्वमान्य परिभाषा संबंधी चुनौती: कुछ आलोचकों का मानना है कि अंधविश्वास की कोई एक सर्वमान्य परिभाषा कभी नहीं हो सकती है क्योंकि अलग-अलग समाजों एवं अलग-अलग धर्मों व संस्कृतियों में इसकी प्रकृति भिन्न हो सकती है।
अंधविश्वास का अर्थ:
‘अंधविश्वास’ शब्द लैटिन शब्द ‘सुपरस्टिटियो’ से लिया गया है, जो ईश्वर के प्रति अत्यधिक भय को दर्शाता है। यह एक प्रकार की अज्ञानता या भयजनित विश्वास है जो किसी अलौकिक शक्ति के प्रति श्रद्धा एवं जुनूनी भाव प्रकट करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
काला जादू का अर्थ:
काला जादू को जादू-टोना के रूप में भी जाना जाता है। इसके अंतर्गत अंधविश्वास से प्रेरित कार्यों को शामिल किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह सजीव व निर्जीव दोनों को प्रभावित कर सकता है। इसके मूल में बुराई होती है और ऐसी मान्यता है कि इसके माध्यम से अलौकिक शक्तियों का उपयोग करते हुए अपने स्वार्थों की पूर्ति की जा सकती है तथा इसके द्वारा किसी व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक या किसी अन्य रूप से नुकसान अथवा लाभ पहुंचाया जा सकता है।
अंधविश्वास एवं काला जादू से जुड़े अपराधों से संबंधित आँकड़े:
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 में मानव बलि से संबंधित छह मौतें हुईं थी, जबकि 68 हत्याओं का कारण जादू-टोना था।
वर्ष 2020 में भारत में जादू-टोने के कारण 88 मौतें हुईं और 11 मौतें मानव बलि के कारण हुईं थी।
NCRB देश में तंत्र-मंत्र से जुड़े अपराधों एवं डायन-शिकार हमलों का ब्योरा नहीं प्रस्तुत करता है।
काला जादू एवं अंधविश्वास के खिलाफ विभिन्न राज्यों में कानून:
बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र, राजस्थान, असम और कर्नाटक ने डायन-शिकार और काला जादू से संबंधित अलग-अलग कानून बनाए हैं।
कानून के समक्ष चुनौतियां:
प्रवर्तन संस्थानों में संवेदनशीलता की कमी
कानून की दंडात्मक प्रकृति
संवैधानिक अधिकरों के खिलाफ होना
राजनीतिक हस्तक्षेप
जातिगत भेदभाव
वैज्ञानिक सोच का अभाव
डायन-शिकार मामलों के पीछे संपत्ति विवाद
पीड़ितों के राहत योजनाओं की कमी
आगे की राह:
संवैधानिक अधिकरों एवं धार्मिक प्रथाओं के मध्य संतुलन
कानून की सुधारात्मक प्रकृति एवं पीड़ित पुनर्स्थापना पर बल
पुलिस प्रशिक्षण
अन्य हितधारकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम
जागरूकता का प्रसार
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अंधविश्वास और काला जादू से जुड़े अपराधों को रोकने के लिए कानून बनाना एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। समाज में जागरूकता फैलाना, शिक्षा को बढ़ावा देना और पीड़ितों को सहायता प्रदान करना भी ज़रूरी है।
संक्षेप में:
भारत के कई शहरों में पानी की आपूर्ति प्रणाली में निजी टैंकरों का बढ़ता दबदबा चिंताजनक है।
पाइपलाइन से जल आपूर्ति की कमी, जल की खराब गुणवत्ता और ऊंची कीमतों के कारण लोग टैंकरों पर निर्भर हैं।
यह समस्या गर्मियों में और विकराल हो जाती है, जब पानी की मांग बढ़ जाती है।
राजनीतिक नेताओं और जल विभाग के अधिकारियों के साथ मिलीभगत करके टैंकर संचालक अपना धंधा चला रहे हैं।
बेंगलुरु, दिल्ली, कोलकाता और चेन्नई जैसे शहरों में टैंकरों के पानी की कीमत सरकारी दरों से कई गुना अधिक है।
पानी की कमी और टैंकरों का दबदबा भूजल दोहन, पानी की गुणवत्ता में गिरावट और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा कर रहा है।
मुख्य बातें:
एनएसएसओ रिपोर्ट बताती है कि भारत के शहरी क्षेत्रों में 38 प्रतिशत लोगों को पाइप से पानी नहीं मिलता है।
दिल्ली में दिल्ली जल बोर्ड 93.5 प्रतिशत परिवारों को पाइप से पानी उपलब्ध कराने का दावा करता है, लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं है।
बेंगलुरु में 50 प्रतिशत पानी वितरण नेटवर्क में ही बर्बाद हो जाता है।
कोलकाता में भी पानी की बर्बादी और असमान वितरण के कारण टैंकरों पर निर्भरता है।
लातूर, महाराष्ट्र में गन्ने की खेती के लिए भूजल का अंधाधुंध दोहन भी समस्या को बढ़ा रहा है।
निष्कर्ष:
भारत के शहरों को जल प्रबंधन में नई सोच लाने की आवश्यकता है।
पाइप नेटवर्क के साथ-साथ गैर-पाइप तकनीकों को भी अपनाया जाना चाहिए।
स्थानीय स्तर पर जल संरक्षण के उपायों पर ध्यान देना चाहिए।
टैंकरों को नियमित करना और उनके पानी की गुणवत्ता की जाँच करना आवश्यक है।
भूजल संरक्षण के लिए कड़े कदम उठाए जाने चाहिए।
समाधान:
शहरों को जल आपूर्ति प्रणालियों को बेहतर बनाना चाहिए और वितरण में सुधार करना चाहिए।
जल संरक्षण के तरीके अपनाकर पानी की बर्बादी को कम किया जाना चाहिए।
टैंकरों को नियमित करना और उनके पानी की गुणवत्ता की निगरानी करनी चाहिए।
भूजल दोहन को नियंत्रित करना और भूजल रिचार्ज को बढ़ावा देना चाहिए।
जनता को जल संरक्षण के बारे में जागरूक करना चाहिए।
संक्षेप में:
पारा एक अत्यंत विषैला प्रदूषक है जो वायुमंडल में लंबी दूरी तय करने के बाद जल पारिस्थितिकी तंत्र में प्रवेश करता है।
ग्लेशियरों में जमा पारा उनके पिघलने के साथ जल स्रोतों में पहुँचता है, जिससे मानव स्वास्थ्य को खतरा होता है।
एक नए शोध में पाया गया है कि किंघई-तिब्बती पठार में ग्लेशियरों के पिघलने से पारा जल में मिल रहा है।
मॉनसून के दौरान ग्लेशियरों के पिघलने से अधिक पारा जल में प्रवाहित होता है।
ग्लेशियरों के अपक्षय से ऐतिहासिक रूप से जमा पारा और चट्टान-पानी की परस्पर क्रिया दोनों ही पारा के स्रोत हैं।
महत्वपूर्ण बातें:
किंघई-तिब्बती पठार में ग्लेशियरों के पिघलने से प्रति वर्ष 947.7 किलोग्राम पारा निकलता है।
ग्लेशियर पारे को जमा करने वाले के रूप में काम करते हैं और उनके पिघलने से यह जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में प्रवेश करता है।
यह शोध पारा चक्र पर ग्लेशियर पिघलने के प्रभावों को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष:
ग्लेशियर पिघलने से पारा जल में मिलने की समस्या एक बढ़ती चिंता का विषय है।
यह अध्ययन पारा प्रदूषण को कम करने और जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ग्लेशियरों की निगरानी और प्रबंधन के महत्व पर प्रकाश डालता है।
संक्षेप में:
चर धाम राजमार्ग परियोजना के गंगोत्री-धरासू खंड के लिए पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (ईआईए) की सिफारिश करने के बावजूद, सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने इस तरह के मूल्यांकन की आवश्यकता को खारिज कर दिया है।
बीआरओ का कहना है कि इस परियोजना के लिए पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) की आवश्यकता नहीं हो सकती है।
गंगोत्री-धरासू मार्ग भागीरथी पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र (बीईएसजेड) में पड़ता है, और ईआईए के बिना सड़क चौड़ीकरण से 17.5 हेक्टेयर वन क्षेत्र साफ होगा।
चर धाम सड़क परियोजना को पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों का विरोध झेलना पड़ा है क्योंकि नाजुक हिमालयी क्षेत्र में निर्माण कथित रूप से अस्थिर है।
सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में रक्षा मंत्रालय के हस्तक्षेप के बाद ही सड़क चौड़ीकरण की अनुमति दी, जिसने भारी सैन्य हार्डवेयर की आवाजाही के लिए इसे आवश्यक बताया।
एक अध्ययन ने बताया है कि चर धाम राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना के कार्यान्वित होने पर उत्तराखंड में भूस्खलन का खतरा बढ़ने की संभावना है।
मुख्य बातें:
बीआरओ ने गंगोत्री-धरासू सड़क खंड के लिए ईआईए को अनिवार्य नहीं माना है, जबकि सुप्रीम कोर्ट नियुक्त पैनल ने इसकी सिफारिश की है।
बीईएसजेड में सड़क चौड़ीकरण के लिए वन क्षेत्र को साफ करने की आवश्यकता है।
परियोजना को राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर आगे बढ़ाया गया है, जिससे पर्यावरणीय चिंताओं को नजरअंदाज किया जा रहा है।
उत्तराखंड में भूस्खलन का खतरा पहले से ही अधिक है, और सड़क निर्माण इस खतरे को बढ़ा सकता है।
निष्कर्ष:
चर धाम राजमार्ग परियोजना का गंगोत्री-धरासू खंड पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा है।
ईआईए की उपेक्षा पर्यावरणीय नुकसान के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है।
सरकार को परियोजना के प्रभावों का पूरी तरह से आकलन करना चाहिए और पर्यावरण की रक्षा के लिए उचित उपाय करने चाहिए।
मुख्य बिंदु:
केरल में लेप्टोस्पायरोसिस (चूहे का बुखार) का प्रकोप बढ़ रहा है, विशेष रूप से मानसून के मौसम में।
यह बीमारी चूहों और अन्य जानवरों के मूत्र से फैलती है और बाढ़ वाले क्षेत्रों में विशेष रूप से खतरनाक होती है।
इस साल, 121 मौतें हो चुकी हैं, और 1,170 लोग इलाज करा रहे हैं।
अत्यधिक बारिश और जलभराव प्रकोप का मुख्य कारण है।
गरीब कचरा प्रबंधन ने चूहे की आबादी में वृद्धि की है।
डॉक्सीसाइक्लिन एक निवारक दवा है जो स्वास्थ्य केंद्रों में उपलब्ध है।
जल्दी पता लगाना महत्वपूर्ण है क्योंकि इलाज न करने पर यह बीमारी घातक हो सकती है।
हेपेटाइटिस ए और हैजा जैसे अन्य जल जनित रोग भी फैल रहे हैं।
राज्य में सुरक्षित पेयजल सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
निवारक उपाय:
जानवरों के मूत्र से दूषित मिट्टी या पानी के संपर्क से बचें।
बाढ़ के पानी से गुजरने या पीने से बचें।
यदि आपको ऐसा पानी पीना है, तो उसे उबालें या रासायनिक रूप से उपचार करें।
बाढ़ के पानी से गुजरने पर, किसी भी कट या घाव को ढँकें और सुरक्षात्मक गियर पहनें।
मृत जानवरों से संपर्क करने से बचें।
व्यक्तिगत स्वच्छता बनाए रखें।
निष्कर्ष:
लेप्टोस्पायरोसिस एक गंभीर स्वास्थ्य खतरा है जिसके लिए प्रभावी रोकथाम के उपाय और सतर्कता की आवश्यकता है।
राज्य सरकार को बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाने और प्रभावी उपचार सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने चाहिए।
मुख्य बिंदु:
भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (सीईसीए) वार्ता का 10वां दौर 19-22 अगस्त, 2024 को सिडनी में हुआ।
वार्ता के दौरान माल, सेवा, डिजिटल व्यापार, सरकारी खरीद, उत्पत्ति के नियम और कृषि तकनीक जैसे विषयों पर चर्चा हुई।
दोनों पक्षों ने समझौते के प्रावधानों में अभिसरण के लिए महत्वपूर्ण प्रगति की है।
अगला दौर संभवतः नवंबर 2024 में भारत में आयोजित किया जाएगा।
दोनों देशों ने 29 दिसंबर 2022 को लागू हुए भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता (ईसीटीए) के सकारात्मक परिणामों का स्वागत किया।
ऑस्ट्रेलिया ने 23 सितंबर, 2024 को नई दिल्ली में भारत-ऑस्ट्रेलिया कृषि तकनीक फोरम (आईएएटीएफ) की पहली बैठक का आयोजन करने का प्रस्ताव रखा है।
भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने सिडनी विश्वविद्यालय और सिकाडा इनोवेशन सेंटर का दौरा किया ताकि कृषि और कृषि प्रौद्योगिकी क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया की शोध गतिविधियों को समझ सकें।
निष्कर्ष:
भारत-ऑस्ट्रेलिया सीईसीए वार्ता दोनों देशों के बीच व्यापार और आर्थिक संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह वार्ता दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने और क्षेत्र में व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
मुख्य बिंदु:
गृह मंत्रालय ने लद्दाख में 5 नए जिलों के गठन को मंजूरी दी है: ज़ंस्कार, द्रास, शाम, नुब्रा और चांगथांग।
इससे लद्दाख में कुल जिले 7 हो जाएँगे (लेह और कारगिल के साथ)।
इस कदम से स्थानीय लोगों को प्रशासन की आसान पहुँच और सरकारी योजनाओं का लाभ मिलेगा।
लद्दाख, क्षेत्रफल के हिसाब से बड़ा है, लेकिन जनसंख्या कम और दुर्गम है, जिससे प्रशासन को मुश्किलें होती थीं।
गृह मंत्रालय ने 3 महीने के अन्दर नए जिलों के गठन से संबंधित विवरणों की रिपोर्ट माँगी है।
इस कदम को लद्दाख के विकास और लोगों को बेहतर सेवाएँ प्रदान करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
निष्कर्ष:
यह कदम लद्दाख के लोगों के लिए प्रशासनिक सुविधाएँ और विकास कार्यक्रमों की पहुंच सुलभ बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह नरेन्द्र मोदी सरकार की लद्दाख के विकास के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
1996 में पोल्ट्री में पहली बार HPAI का पता चला था, लेकिन 2021 से इसके नए सब-टाइप्स और क्लेड्स ने इसे एक बड़ा खतरा बना दिया है जो फ्लू महामारी शुरू कर सकता है।
2021 के बाद से, यह वायरस 25 पक्षी समूहों की कम से कम 485 प्रजातियों और 48 नई स्तनपायी प्रजातियों को प्रभावित कर चुका है।
इस साल जून तक, पेंगुइन और ध्रुवीय भालू सहित, दुनिया भर में जानवरों में HPAI के 142 प्रकोप की सूचना मिली है।
ये प्रकोप पाँच भौगोलिक क्षेत्रों में फैले हुए हैं और इसमें HxNx (1), H5Nx (48), H5N1 (85), H5N5 (2), H7N5 (1) और H7N8 (5) जैसे विभिन्न स्ट्रेन शामिल हैं।
ये स्ट्रेन संभावित महामारी का बढ़ता खतरा पैदा करते हैं।
पहले पोल्ट्री के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा माना जाता था, HPAI जंगली पक्षियों और स्तनधारियों को संक्रमित करने के लिए विकसित हुआ है, जिससे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) चिंतित है कि यह संभावित रूप से वैश्विक महामारी शुरू कर सकता है।
H5N1 स्ट्रेन को पहली बार 1997 में दक्षिणी चीन में घरेलू जलपक्षियों में खोजा गया था, जिससे चीन और हांगकांग में इसके प्रकोप के दौरान छह लोगों की मौत हुई थी।
तब से, इस वायरस ने 860 लोगों को संक्रमित किया है, जिसमें 50% से अधिक मृत्यु दर है।
अपने शुरुआती पता लगाने के बाद से, संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, वायरस एक मान्यता प्राप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता बन गया है।
2003 में, यह चीन और एशिया के अन्य हिस्सों में फिर से उभरा, जिससे व्यापक पोल्ट्री प्रकोप हुए।
2005 तक, वायरस जंगली पक्षियों में पाया गया था, जिसने फिर इसे महाद्वीपों में फैलाया, अफ्रीका, मध्य पूर्व और यूरोप तक पहुंचा।
समय के साथ, वायरस के हेमाग्लूटिनिन (HA) जीन कई आनुवंशिक समूहों (क्लेड्स) में विविधतापूर्ण हो गया।
2014 और 2016 के बीच, कई आनुवंशिक वंश (जीनोटाइप) का पता चला और जीन स्वैपिंग के कारण नए H5N6 और H5N8 उपप्रकारों का उदय हुआ।
HA जीन आगे एशिया, अफ्रीका, यूरोप, मध्य पूर्व और उत्तरी अमेरिका में क्लेड 2.3.4.4 में विविधतापूर्ण हो गया, जिसमें H5 वायरस जंगली पक्षियों और पोल्ट्री में पाए जाने वाले विभिन्न न्यूरैमिडिनेज (NA) जीन के साथ संयोजन करते हैं।
हालाँकि, H5N1 का एक नया क्लेड, 2.3.4.4b, 2018 और 2020 के बीच विकसित हुआ, जो 2021-2023 तक दुनिया भर में फैल गया।
अध्ययनों से पता चलता है कि दुनिया भर में लाखों पक्षियों की या तो सीधे संक्रमण से या प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए उन्हें मार दिया गया है।
2022 में, इस क्लेड ने अकेले दक्षिण अमेरिका में समुद्री स्तनधारियों के हजारों को मार डाला।
एक प्री-प्रिंट अध्ययन में बताया गया है कि अक्टूबर 2023 में अर्जेंटीना के पेनिंसुला वाल्डेस में लगभग 17,000 दक्षिणी हाथी सील की अभूतपूर्व सामूहिक मृत्यु हुई।
इस साल अकेले, H5N1 अमेरिका के 13 राज्यों में 191 मवेशी झुंडों में फैल गया है, जिससे 48 राज्यों में 100 मिलियन से अधिक जानवर संक्रमित हुए हैं।
यह वायरस, अब दुनिया के सबसे दूरस्थ हिस्सों, जिसमें अंटार्कटिका भी शामिल है, में पाया जाता है, इसे जल्द ही प्रशांत द्वीपसमूह और न्यूजीलैंड - ऐसे क्षेत्रों तक पहुंचने की आशंका है जो अब तक अछूते रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार, क्लेड 2.3.4.4b A (H5N1) वायरस ने मनुष्यों में सीमित संख्या में मामले उत्पन्न किए हैं, लेकिन जलीय स्तनधारियों सहित स्तनपायी प्रजातियों में महत्वपूर्ण प्रकोप का कारण बना है।
अधिकारियों ने बताया है कि पोल्ट्री और डेयरी गायों से संक्रमित वायरस के 15 नए मामले सामने आए हैं।
2003 और 2023 के बीच, 878 लोगों में H5N1 वायरस के लिए सकारात्मक परीक्षण किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप 458 मौतें हुई हैं, जो 52% की मृत्यु दर का प्रतिनिधित्व करती है।
सीडीसी ने विभिन्न स्तनपायी प्रजातियों, विशेष रूप से वर्तमान पैंजोओटिक में पाए गए उत्परिवर्तन पर चिंता व्यक्त की है, उन्हें एक महत्वपूर्ण खतरा माना जाता है।
मई 2024 में द लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन ने चेतावनी दी कि इस वायरस से महामारी का खतरा अभी भी अधिक है।
एवियन इन्फ्लूएंजा वायरस के महामारी बनने के लिए, उन्हें मनुष्यों के बीच संक्रामक होना चाहिए और कुशलतापूर्वक प्रतिकृति बनाने में सक्षम होना चाहिए।
अध्ययन में कहा गया है कि "इसके लिए आमतौर पर मानव इन्फ्लूएंजा वायरस के साथ पुनर्संयोजन की आवश्यकता होती है, या वायरस अनुकूलन से गुजर सकता है - एक प्रक्रिया में लंबा समय लग सकता है, लेकिन स्तनधारियों और मनुष्यों के बार-बार संक्रमण से इसे तेज किया जा सकता है।"
अप्रैल 2024 में एक ईमेल साक्षात्कार में, प्रोफेसर सुरेश कुचिपुड़ी, पिट्सबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ, यूएस में सेंटर फॉर वैक्सीन रिसर्च के संक्रामक रोग और सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग के अध्यक्ष ने कहा, "जबकि हम मनुष्यों के बीच संचार करने की क्षमता हासिल करने के बाद वायरस की गंभीरता की सही भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं, यह मान लेना उचित है - वर्तमान डेटा के आधार पर - कि यह संभावना है कि कोविड-19 की तुलना में मनुष्यों में अधिक गंभीर बीमारी का कारण बनेगा और हमें इस संभावित वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए।"
NOAA की "स्टेट ऑफ द क्लाइमेट इन 2023" रिपोर्ट से प्रमुख निष्कर्ष:
सूखा: जुलाई 2023 में लगभग 8% वैश्विक भूमि क्षेत्र अत्यधिक सूखे के अंतर्गत था, जो एक नया रिकॉर्ड है। 2022 में 6.2% के पिछले उच्चतम स्तर को पार कर गया।
मध्यम से गंभीर सूखा: 2023 में वैश्विक स्तर पर 29.7% भूमि ने मध्यम या इससे भी बदतर सूखे का अनुभव किया, जो एक और रिकॉर्ड तोड़ने वाला आंकड़ा है।
ग्रीनहाउस गैसें: कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी प्रमुख ग्रीनहाउस गैसें 2023 में रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गईं।
तापमान: 2023, 1800 के दशक के मध्य से अंत तक रिकॉर्ड शुरू होने के बाद से सबसे गर्म वर्ष था, 1991-2020 के औसत से 0.55 से 0.60 डिग्री सेल्सियस अधिक।
समुद्री तापमान: 2000 मीटर की गहराई तक वैश्विक समुद्री तापमान 2023 में बढ़कर नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया।
समुद्र का स्तर: वैश्विक औसत समुद्री स्तर 1993 के औसत से 4 इंच (10 सेंटीमीटर से अधिक) ऊपर था, जो लगातार 12वें वर्ष रिकॉर्ड उच्च स्तर पर रहा।
विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट प्रभाव:
मेक्सिको: 1950 में रिकॉर्ड शुरू होने के बाद से सबसे शुष्क (और सबसे गर्म) वर्ष।
पश्चिम एशिया, यूरोप और दक्षिण अमेरिका: सूखे की गंभीरता सूचकांक पर उच्च स्कोर, जो लंबी अवधि के मौसम संबंधी सूखे को मापता है।
दक्षिण अमेरिका: वर्ष के उत्तरार्ध में पूरे अमेज़ॅन बेसिन में गंभीर सूखा, ब्राजील के मनाउस में रियो नीग्रो, अमेज़ॅन नदी की एक प्रमुख सहायक नदी, 1902 में रिकॉर्ड शुरू होने के बाद से अपने सबसे निचले स्तर पर पहुँच गई।
कनाडा: 2023 में रिकॉर्ड तोड़ने वाला सबसे खराब राष्ट्रीय जंगल की आग का मौसम, मई से सितंबर तक बड़े पैमाने पर आग लगती रही। जलने वाला क्षेत्र लगभग 15 मिलियन हेक्टेयर था, जो 1989 के पिछले रिकॉर्ड से दोगुना से अधिक था।
ग्रीस: रिकॉर्ड जंगल की आग, 2023 में देश में जलने वाला कुल क्षेत्रफल अपनी लंबी अवधि के औसत से चार गुना से अधिक था।
ऑस्ट्रेलिया: अगस्त और अक्टूबर 2023 के बीच 104 साल के रिकॉर्ड में ऑस्ट्रेलिया में सबसे शुष्क तीन महीनों का दौर। उत्तरी क्षेत्र में हफ्तों तक लाखों हेक्टेयर में बुशफायर लगी रही।
आर्कटिक: 124 साल के रिकॉर्ड में 2023 में चौथा सबसे गर्म वर्ष। क्षेत्र के आधे से अधिक स्थलों में रिकॉर्ड में सबसे अधिक भूमिगत, पर्माफ्रॉस्ट तापमान देखा गया।
अंटार्कटिका: वर्ष के आठ महीनों में समुद्री बर्फ के विस्तार और समुद्री बर्फ के क्षेत्र में नए मासिक औसत रिकॉर्ड निचले स्तर देखे गए। 21 फरवरी, 2023 को अंटार्कटिक समुद्री बर्फ का विस्तार और समुद्री बर्फ का क्षेत्र सभी समय के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुँच गया, जो फरवरी 2022 में देखे गए पिछले रिकॉर्ड निचले स्तर को पार कर गया।
निष्कर्ष:
2023 में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं। वैश्विक तापमान, समुद्री बर्फ का विस्तार, समुद्री स्तर और ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता में रिकॉर्ड स्तरों के साथ, जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली चुनौतियाँ अधिक तीव्र होती जा रही हैं। इन प्रभावों का मानव स्वास्थ्य, जैव विविधता और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) दुनिया की सबसे बड़ी फसल बीमा योजना है, जो किसानों की संख्या के मामले में सबसे बड़ी है। लेकिन, इसमें कई चुनौतियां भी हैं:
मुख्य समस्याएं:
कवरेज: भारत में 70% से अधिक फसल क्षेत्र बीमा कवरेज से वंचित है।
बीमा कंपनियों की भूमिका: कई रिपोर्टों में बीमा कंपनियों द्वारा PMFBY के नियमों का उल्लंघन करने और किसानों को परेशान करने के मामले सामने आए हैं।
किसान स्तर पर बीमा: बीमा इकाई ग्राम पंचायत स्तर पर होने के कारण, फसल नुकसान का आकलन सही ढंग से नहीं हो पाता है।
मुआवजा: किसानों को मुआवजा बहुत कम मिलता है, खासकर जलवायु परिवर्तन के कारण प्रभावित क्षेत्रों में।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन: असमय मौसम परिवर्तन और लू जैसे आपदाओं को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कोष में सूचीबद्ध नहीं किया गया है, जिससे प्रभावित किसानों को राहत नहीं मिल पाती।
राज्य स्तरीय राहत: राज्यों द्वारा प्रदान की जाने वाली राहत राशि अलग-अलग होती है, और अक्सर राजनीतिक कारकों से प्रभावित होती है।
कृषि सलाह: मौसम पूर्वानुमान आधारित कृषि सलाह सिर्फ 18% किसानों तक पहुँचती है, और इसकी सटीकता भी संदिग्ध है।
सुझाव:
किसान स्तर पर बीमा: बीमा इकाई ग्राम पंचायत स्तर से कम करके किसान स्तर पर होनी चाहिए।
किसानों को विकल्प: किसानों को सभी उपलब्ध बीमा कंपनियों में से चुनने का अधिकार होना चाहिए।
मुआवजे में सुधार: मुआवजा राशि में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ध्यान में रखना चाहिए।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन में सुधार: असमय मौसम परिवर्तन और लू जैसे आपदाओं को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कोष में शामिल किया जाना चाहिए।
मौसम पूर्वानुमान सलाह: मौसम पूर्वानुमान आधारित कृषि सलाह को और अधिक सटीक और सभी किसानों तक पहुँचाना चाहिए।
जैविक खेती: जैविक खेती को प्रोत्साहित करना, जिससे किसानों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना करने में मदद मिलेगी।
निष्कर्ष:
PMFBY में सुधार करके, भारत के किसानों को जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों का सामना करने में मदद मिल सकती है, और देश की खाद्य सुरक्षा को मजबूत किया जा सकता है। यह न केवल किसानों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि पूरे देश के लिए भी आवश्यक है।
उपराष्ट्रपति ने धर्म-धम्म अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में अपने भाषण में धर्म और धम्म की अवधारणाओं की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला, यह बताते हुए कि ये विचार सदियों से मानव जीवन का मार्गदर्शन करते आ रहे हैं।
मुख्य बिंदु:
धर्म और धम्म की महत्ता: उपराष्ट्रपति ने कहा कि हिंदू और बौद्ध धर्मों में निहित धर्म और धम्म के सिद्धांत न केवल स्थायी हैं, बल्कि नैतिक जीवन और समाज के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
धर्म के सिद्धांत: उन्होंने महाभारत और भगवद गीता जैसे ग्रंथों के माध्यम से धर्म के मूल्यों को समझाया, यह बताते हुए कि धर्म का अर्थ है कर्तव्य का पालन करना, परिणामों की चिंता किए बिना।
धर्म का दुरुपयोग: उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ लोग राजनीतिक लाभ के लिए धर्म का दुरुपयोग करते हैं, जो राष्ट्रीय हित और मानवता को नुकसान पहुंचाता है।
संविधान और धर्म: उपराष्ट्रपति ने बताया कि भारतीय संविधान में धर्म के मूल्यों को शामिल किया गया है, जैसे कि राम, सीता, लक्ष्मण और श्रीकृष्ण का चित्रण।
आपातकाल का उदाहरण: उन्होंने 1975 के आपातकाल को धर्म के अपवित्र्रीकरण का उदाहरण दिया, जिसमें लाखों लोगों को गलत तरीके से कैद किया गया था।
राजनेताओं का धर्म से हटना: उन्होंने चिंता व्यक्त की कि कई राजनेता अपने पद का दुरुपयोग करते हैं और धर्म के मूल्यों को नहीं निभाते हैं।
संवैधानिक धर्म: उपराष्ट्रपति ने लोगों से अपने प्रतिनिधियों को संवैधानिक धर्म में लगे रहने के लिए प्रेरित किया, मानवता के लिए काम करने की अपील की, और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों से बचने का आग्रह किया।
निष्कर्ष:
उपराष्ट्रपति ने धर्म और धम्म को जीवन का मार्गदर्शक सिद्धांत बताया, जो समाज के विकास और राष्ट्र की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने लोगों से अपने धार्मिक कर्तव्यों को निभाने का आह्वान किया, और धर्म के दुरुपयोग से बचने की अपील की।
हीट डोम एक उच्च दबाव का क्षेत्र है जो एक विशाल भौगोलिक क्षेत्र में स्थिर हो जाता है और गर्म हवा को जकड़े रखता है। यह गर्म हवा एक गुंबद के आकार में फैलती है, जिसके कारण प्रभावित क्षेत्र में तापमान काफी बढ़ जाता है और लू जैसी स्थिति पैदा होती है।
हीट डोम के निर्माण में योगदान देने वाले कारक:
उच्च वायुमंडलीय दबाव: एक स्थिर उच्च वायुमंडलीय दबाव का क्षेत्र गर्म हवा को फँसा लेता है, जिससे तापमान बढ़ता है।
विशिष्ट भौगोलिक संरचना: पहाड़ों, मैदानों और समुद्र के पास का विशिष्ट भूगोल हीट डोम के निर्माण को प्रभावित कर सकता है।
मानवजनित कारक: जलवायु परिवर्तन के कारण, ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से तापमान में वृद्धि हो रही है, जो हीट डोम के निर्माण की संभावना को बढ़ाता है।
शहरी ताप द्वीप प्रभाव: शहरों में, कंक्रीट और डामर की अधिकता गर्मी को अवशोषित करती है, जिससे शहरी क्षेत्र आसपास के क्षेत्रों की तुलना में गर्म होते हैं। यह हीट डोम के निर्माण को और भी बढ़ावा दे सकता है।
हीट डोम के प्रभाव:
अत्यधिक गर्मी: तापमान काफी बढ़ जाता है, जिससे लू लगने, शरीर में पानी की कमी, हार्ट अटैक और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है।
सूखा: हीट डोम के कारण लंबे समय तक सूखा पड़ सकता है, जिससे फसलें नष्ट हो सकती हैं और जल संसाधन कम हो सकते हैं।
जंगल की आग: सूखी घास और जंगल के कारण हीट डोम के दौरान जंगल की आग लगने का खतरा बढ़ जाता है।
वायु गुणवत्ता में गिरावट: गर्मी के कारण वायु प्रदूषण बढ़ सकता है, जिससे सांस लेने में परेशानी और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
आर्थिक नुकसान: हीट डोम के कारण फसलें नष्ट होने, बिजली कटौती और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण आर्थिक नुकसान हो सकता है।
निवारण:
जलवायु परिवर्तन से निपटना: ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए कार्रवाई करना हीट डोम की आवृत्ति और तीव्रता को कम करने में मदद कर सकता है।
शहरी योजना: शहरी क्षेत्रों में हरे-भरे क्षेत्रों और पेड़ों को शामिल करके शहरी ताप द्वीप प्रभाव को कम किया जा सकता है।
लू से बचाव: हीट डोम के दौरान पर्याप्त पानी पीना, हाइड्रेटेड रहना, और गर्मी से बचाव के लिए उपाय करना जरूरी है।
जागरूकता: लोगों को हीट डोम के खतरों और बचाव के उपायों के बारे में जागरूक करना जरूरी है।
हीट डोम एक गंभीर मौसमी घटना है, जिसके प्रभाव दूरगामी हो सकते हैं। जलवायु परिवर्तन और मानवजनित कारकों से हीट डोम की घटनाओं में वृद्धि हो रही है, जिससे यह एक बड़ी चुनौती बन गया है। इसके प्रभावों को कम करने और लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
2+2 वार्ता:
विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री या उनके समकक्ष शामिल होते हैं।
भारत के अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, ब्राज़ील एवं रूस आदि देशों के साथ भी 2+2 वार्ता होती है।
भारत की पहली 2+2 वार्ता सितंबर 2018 में अमेरिका के साथ हुई थी।
भारत-जापान 2+2 वार्ता:
2019 में शुरू हुई।
द्विपक्षीय सुरक्षा और रक्षा सहयोग को मजबूत करने और विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी को बढ़ावा देने के लिए।
भारत के लिए, यह वार्ता 'एक्ट ईस्ट नीति' का परिणाम है।
मुख्य बिंदु:
रक्षा:
जहाज रखरखाव सहयोग।
मानवरहित भू-वाहन (यू.जी.वी.)/रोबोटिक्स सहयोग।
UNICORN और संबंधित प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण पर प्रगति।
रक्षा उपकरण और प्रौद्योगिकी सहयोग पर सातवें जापान-भारत संयुक्त कार्य समूह।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र:
शांति और स्थिरता के लिए तीसरे देशों को रक्षा और सुरक्षा सहायता।
'स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत' (FOIP) के प्रति प्रतिबद्धता।
आसियान की एकता और केंद्रीयता के लिए समर्थन।
'हिंद-प्रशांत पर आसियान आउटलुक (AOIP)' के लिए समर्थन।
सैन्य अभ्यास:
तरंग शक्ति, धर्म गार्जियन, JIMAX और मालाबार जैसे द्विपक्षीय और बहुपक्षीय अभ्यास जारी रखना।
सुरक्षा परिषद सुधार:
संयुक्त राष्ट्र को मजबूत करने के लिए मिलकर काम करना जारी रखना।
आतंकवाद:
सभी आतंकवादी समूहों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का आह्वान।
महत्वपूर्ण क्षेत्र:
अंतरिक्ष, सेमीकंडक्टर और साइबर सुरक्षा में द्विपक्षीय सहयोग।
अंतर्राष्ट्रीय संगठन:
क्वाड में सहयोग को मजबूत करना।
कूटनीतिक संबंध:
फुकुओका में एक नया वाणिज्य दूतावास स्थापित करने का फैसला।
महिला भागीदारी:
महिला, शांति और सुरक्षा (WPS) में महिलाओं की भागीदारी का स्वागत।
निष्कर्ष:
भारत-जापान 2+2 वार्ता ने दोनों देशों के बीच रक्षा और सुरक्षा सहयोग को मजबूत किया और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग को आगे बढ़ाया। इस वार्ता ने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने और वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए दोनों देशों की प्रतिबद्धता को दर्शाया।
मुख्य बिंदु:
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) की एकीकृत केंद्रीय क्षेत्र योजना है।
तीन प्रमुख योजनाओं (विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, अनुसंधान एवं विकास, और नवाचार) का विलय।
15वें वित्त आयोग की अवधि (2021-26) के लिए 10,579.84 करोड़ रुपये का बजट।
विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार से संबंधित इकोसिस्टम को मजबूत करना लक्ष्य है।
योजना के उद्देश्य:
अनुसंधान और विकास गतिविधियों को बढ़ावा देना।
मानव संसाधन विकास और क्षमता निर्माण।
नवाचार और प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देना।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी बुनियादी ढांचे को मजबूत करना।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना।
कार्यान्वयन:
शैक्षणिक संस्थानों में अनुसंधान प्रयोगशालाओं को बढ़ावा देना।
अंतर्राष्ट्रीय मेगा सुविधाओं तक पहुंच।
अनुसंधान और विकास के लिए एएनआरएफ के अनुरूप।
राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और वैश्विक मानदंडों का पालन।
फायदे:
निधि के उपयोग की दक्षता बढ़ेगी।
विभिन्न कार्यक्रमों के बीच समन्वय होगा।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र को मजबूत करेगा।
विकसित भारत 2047 के विजन को प्राप्त करने में मदद करेगा।
मुख्य बिंदु:
जैव प्रौद्योगिकी विभाग की एक नई नीति, उच्च प्रदर्शन वाले जैव विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए।
"अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार के लिए जैव प्रौद्योगिकी" का लक्ष्य।
अनुसंधान एवं विकास, उद्यमिता, प्रौद्योगिकी विकास और व्यावसायीकरण को बढ़ावा देना।
जैव विनिर्माण और बायो-एआई हब की स्थापना।
नीति के उद्देश्य:
जैव विनिर्माण क्षेत्र को मजबूत करना।
रोजगार सृजन और कुशल कार्यबल का विस्तार।
हरित विकास और स्थायी समाधान।
'नेट जीरो' कार्बन अर्थव्यवस्था और 'पर्यावरण के लिए जीवनशैली' को बढ़ावा देना।
चक्रीय जैव अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करना।
केंद्रित क्षेत्र:
उच्च मूल्य वाले जैव-आधारित रसायन, बायोपॉलिमर और एंजाइम।
स्मार्ट प्रोटीन और फंक्शनल फूड।
सटीक जैव चिकित्सा।
जलवायु सहनीय कृषि।
कार्बन स्तर में कमी और इसका उपयोग।
समुद्री और अंतरिक्ष अनुसंधान।
फायदे:
जैव विनिर्माण क्षेत्र में नवाचार और विकास।
जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा और मानव स्वास्थ्य के समाधान।
भारत को 'हरित विकास' के मार्ग पर आगे बढ़ाने में मदद करेगा।
विकसित भारत के लिए बायो-विजन को साकार करेगा।
सुनिश्चित पेंशन: 25 साल सेवा के बाद, अंतिम 12 महीनों के औसत वेतन का 50%। कम सेवा के लिए, पेंशन आनुपातिक होगी।
सुनिश्चित पारिवारिक पेंशन: कर्मचारी की मृत्यु पर पेंशन का 60%।
सुनिश्चित न्यूनतम पेंशन: 10 साल सेवा के बाद, कम से कम 10,000 रुपये प्रति माह।
महंगाई राहत: सुनिश्चित पेंशन, पारिवारिक पेंशन और न्यूनतम पेंशन पर लागू होगी।
सैन्य कर्मचारी: ग्रेच्युटी के अतिरिक्त, प्रत्येक 6 महीने की सेवा के लिए, सेवानिवृत्ति पर मासिक परिलब्धियों का 1/10वां हिस्सा। यह पेंशन राशि को कम नहीं करेगा।
उद्देश्य: पीवीटीजी समुदायों में जागरूकता बढ़ाना और सरकारी योजनाओं का लाभ सुनिश्चित करना।
अवधि: 23 अगस्त से 10 सितंबर, 2024
क्षेत्र: 194 जिले (18 राज्य + अंडमान और निकोबार), 28,700 पीवीटीजी बस्तियाँ
लक्ष्य: 10.7 लाख पीवीटीजी परिवारों के 44.6 लाख पीवीटीजी व्यक्तियों तक पहुँचना
प्रमुख गतिविधियाँ:
पीवीटीजी बस्तियों में लाभार्थी शिविर
आधार कार्ड, सामुदायिक प्रमाण पत्र, जन धन खाते और वन अधिकार पट्टे वितरण
स्वास्थ्य शिविर (विशेषकर सिकल सेल रोग जांच)
जागरूकता सामग्री (पैम्फलेट, वीडियो, इन्फोग्राफिक्स) का उपयोग
योजनाओं के लाभार्थी और सफलता की कहानियों को साझा करना
मिशन के मुख्य बिंदु:
9 प्रमुख मंत्रालयों/विभागों से संबंधित 11 महत्वपूर्ण हस्तक्षेप
अन्य योजनाओं और मंत्रालयों/विभागों से जुड़े 10 अन्य हस्तक्षेप
2023-24 से 2025-26 तक 24,104 करोड़ रुपये का बजटीय परिव्यय
महत्वपूर्ण पहलू:
दूरस्थ और डिजिटल कनेक्टिविटी की कमी वाले परिवारों तक पहुँच
स्थानीय और जनजातीय भाषाओं का उपयोग
विभिन्न विभागों और संगठनों का सहयोग
जिला स्तर पर अधिकारियों की नियुक्ति
राज्य स्तर पर समन्वय
यह अभियान पीएम-जनमन मिशन के तहत सरकार की पहल का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य पीवीटीजी समुदायों को सशक्त बनाना और उनका समग्र विकास सुनिश्चित करना है।
विषय: लोक प्रशासन और शासन सुधार के क्षेत्र में सहयोग
पक्ष:
भारत सरकार का प्रशासनिक सुधार विभाग (डीएआरपीजी)
मलेशिया सरकार का प्रधानमंत्री विभाग का लोक सेवा विभाग
अवधि: पांच साल (20 अगस्त, 2024 से प्रभावी)
उद्देश्य:
नागरिक केंद्रित सेवाओं के डिजिटल वितरण में सहयोग
सार्वजनिक सेवाओं के प्रभावी वितरण के लिए प्रक्रिया का सरलीकरण और सुधार
पारदर्शिता और जवाबदेही में वृद्धि
मानव संसाधन प्रबंधन/नेतृत्व विकास
सार्वजनिक क्षेत्र प्रबंधन और सुधार
लोक शिकायत निवारण तंत्र
ई-गवर्नेंस/डिजिटल सरकार
कार्यान्वयन:
संयुक्त कार्य समूह का गठन
महत्वपूर्ण बिंदु:
दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की उपस्थिति में हस्ताक्षर
सहयोग के माध्यम से दोनों देशों के लोक प्रशासन और शासन को मजबूत करना
डिजिटल परिवर्तन और नागरिक सेवाओं में सुधार के लिए संयुक्त प्रयास
यह समझौता ज्ञापन भारत और मलेशिया के बीच सहयोग के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे दोनों देशों के नागरिकों को बेहतर सार्वजनिक सेवाएं मिल सकेंगी।
स्थान: राष्ट्रीय सुशासन केंद्र (एनसीजीजी), मसूरी
अवधि: 19 अगस्त से 30 अगस्त, 2024 (दो सप्ताह)
प्रतिभागी: 39 श्रीलंकाई मिडिल-कैरियर सिविल सेवक, विभिन्न प्रमुख मंत्रालयों से
कार्यक्रम का उद्देश्य:
श्रीलंकाई सिविल सेवकों को भारत के सुशासन मॉडल के बारे में शिक्षित करना
डिजिटल शासन, ई-गवर्नेंस और सार्वजनिक सेवा वितरण में सुधार के बारे में प्रशिक्षण देना
साझा शासन प्रथाओं और सांस्कृतिक बारीकियों को समझना
प्रमुख बिंदु:
श्री वी. श्रीनिवास, आईएएस, महानिदेशक, एनसीजीजी और सचिव, डीएआरपीजी ने प्रतिभागियों को संबोधित किया
भारत में शासन के अनुकरणीय मॉडल, डिजिटल शासन और प्रशासनिक दक्षता पर जोर दिया गया
ई-ऑफिस, आधार जैसी पहलों और उनके सफलता के उदाहरणों का उल्लेख
कार्यक्रम के दौरान कई विषयों को शामिल किया जाएगा, जैसे शासन के बदलते प्रतिमान, डिजिटल इंडिया, सेवा का अधिकार, आयुष्मान भारत
विभिन्न स्थानों की यात्राओं का आयोजन
एनसीजीजी ने अब तक 174 श्रीलंकाई सिविल सेवकों को प्रशिक्षित किया है
महत्वपूर्ण पहलू:
भारत और श्रीलंका के बीच सहयोग का प्रतीक
श्रीलंकाई सिविल सेवा की क्षमता को बढ़ावा देना
बेहतर शासन प्रथाओं को अपनाने में सहायता
भारत के शासन के अनुभवों से लाभ उठाने का अवसर
यह कार्यक्रम भारत और श्रीलंका के बीच द्विपक्षीय सहयोग का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है, जिसका लक्ष्य बेहतर शासन और सार्वजनिक सेवा वितरण को बढ़ावा देना है।
मुख्य बिंदु:
शिक्षा मंत्रालय ने सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए "स्कूल सुरक्षा और संरक्षा पर दिशानिर्देश" लागू करने का निर्देश दिया है।
ये दिशानिर्देश 2021 में विकसित किए गए थे और माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के अनुपालन में हैं।
दिशानिर्देश स्कूल प्रबंधन की जवाबदेही निर्धारित करते हैं, निवारक शिक्षा, रिपोर्टिंग प्रक्रिया, कानूनी प्रावधानों, सहायता और परामर्श प्रदान करते हैं।
उद्देश्य:
स्कूलों में बच्चों के लिए एक सुरक्षित और संरक्षित माहौल बनाना
सभी हितधारकों (छात्रों, अभिभावकों, स्कूल प्रबंधन आदि) को सुरक्षा और संरक्षा के विभिन्न पहलुओं के बारे में जागरूक करना
विभिन्न हितधारकों की भूमिकाओं को स्पष्ट करना
स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा के लिए निजी और सरकारी स्कूलों के प्रबंधन और शिक्षकों की जवाबदेही निर्धारित करना
लापरवाही के प्रति "जीरो टॉलरेंस पॉलिसी" लागू करना
अनुरोध:
सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों से अपने राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में "स्कूल सुरक्षा और संरक्षा-2021" दिशानिर्देशों की अधिसूचना की स्थिति के बारे में जानकारी देने का अनुरोध किया गया है।
महत्वपूर्ण पहलू:
ये दिशानिर्देश स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण कदम हैं।
शिक्षा मंत्रालय द्वारा ली गई ये पहल स्कूलों को सुरक्षित और अनुकूल बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
इन दिशानिर्देशों का पालन करके, स्कूल सभी बच्चों के लिए सुरक्षित और सकारात्मक शिक्षण वातावरण प्रदान करने में सक्षम होंगे।
थायरॉइड हार्मोन: मेटाबॉलिज्म, तापमान, हृदय गति और विकास को नियंत्रित करता है।
नया अध्ययन: यह बताता है कि थायरॉइड हार्मोन संभवतः व्यवहार को भी नियंत्रित करता है।
उच्च थायरॉइड हार्मोन स्तर: चूहों में अन्वेषी व्यवहार बढ़ावा देते हैं, दिमाग पर कार्य करके।
निम्न थायरॉइड हार्मोन स्तर: अवसाद की स्थिति ला सकती है, जिसमें अन्वेषण की इच्छा कम होती है।
बहुत उच्च स्तर: अति उत्साह की स्थिति पैदा कर सकते हैं, जिसमें अन्वेषण की इच्छा बहुत अधिक होती है।
थायरॉइड ग्रंथि: दो हार्मोन उत्पन्न करती है: T3 और T4, जो सामूहिक रूप से "थायरॉइड हार्मोन" कहलाते हैं।
दिमाग में थायरॉइड हार्मोन रिसेप्टर: हाइपोथैलेमस के अलावा दिमाग के सभी क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
अध्ययन का निष्कर्ष: थायरॉइड हार्मोन दिमाग के तारों को बदलकर अन्वेषी व्यवहार को प्रभावित करता है।
भविष्य के अनुसंधान: अवसाद और द्विध्रुवी विकार जैसे मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों को समझने में मदद कर सकते हैं।
मुख्य निष्कर्ष:
अगले 50 वर्षों में पृथ्वी के 56.6% भूमि क्षेत्र पर मानव-जंगली जीव संघर्ष बढ़ने की संभावना है।
यह वृद्धि मुख्य रूप से जनसंख्या वृद्धि के कारण है, न कि जलवायु परिवर्तन के कारण।
संघर्ष में वृद्धि से आवास क्षरण, मानव-जंगली जीव संघर्ष और जैव विविधता हानि का खतरा पैदा होता है।
विशिष्ट क्षेत्र:
अफ्रीका (66.5%), दक्षिण अमेरिका (66.5%) और उत्तरी अमेरिका (38.5%) में संघर्ष में सबसे अधिक वृद्धि होने की संभावना है।
ऑस्ट्रेलिया में भी 25% क्षेत्र में वृद्धि होने की उम्मीद है।
चीन और भारत जैसे क्षेत्रों में मानव-जंगली जीव संघर्ष पहले से ही बहुत अधिक है।
यूरोप में संघर्ष में कमी (21.4%) होने की संभावना है।
जंगली जीवों पर प्रभाव:
दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के जंगलों में स्तनपायी प्रजातियों की विविधता में कमी की संभावना है।
दक्षिण अमेरिका में उभयचरों और सरीसृपों की विविधता में सबसे अधिक कमी होने की संभावना है।
दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका में पक्षियों की विविधता में भी कमी होने की संभावना है।
पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं पर प्रभाव:
फसलों में कीटनाशक पक्षियों की कमी होने की संभावना है, जिससे फसलों को कीटों से नुकसान हो सकता है।
घास के मैदानों में बड़े मांसाहारी जानवरों की विविधता में कमी आएगी।
शहरी क्षेत्रों में जैव विविधता में कमी आएगी।
सुझाव:
जंगलों में मानव-जंगली जीव संघर्ष के केंद्र बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
शहरी क्षेत्रों में जंगली जीव संरक्षण के प्रयासों को बढ़ाना होगा।
संघर्ष के प्रबंधन के लिए नीतियों का विकास और कार्यान्वयन करना महत्वपूर्ण है।
मुख्य निष्कर्ष:
दुनिया भर में लागू की गई 1500 जलवायु नीतियों में से केवल 4% ही उत्सर्जन में कमी लाने में सफल रहीं।
63 सफल नीतियों ने कुल 0.6 से 1.8 अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी लाई।
भारत में कोई भी जलवायु नीति आवश्यक स्तर पर उत्सर्जन में कमी लाने में सफल नहीं हुई।
अध्ययन में शामिल नीतियाँ:
ऊर्जा-संबंधित भवन कोड
जलवायु-अनुकूल उत्पादों के लिए सब्सिडी
कार्बन टैक्स (भवन, बिजली, उद्योग, परिवहन)
सफलता के लिए मुख्य कारक:
नीतियों का सही मिश्रण: सब्सिडी या नियमन के साथ कार्बन और ऊर्जा टैक्स जैसी मूल्य-आधारित नीतियां।
कोयला आधारित बिजली संयंत्रों या पेट्रोल-डीजल कारों पर प्रतिबंध अकेले पर्याप्त नहीं हैं, टैक्स या मूल्य प्रोत्साहन के साथ संयुक्त होने पर ही सफल होते हैं (जैसे, यूके में कोयला बिजली उत्पादन या नॉर्वे में कारों के लिए)।
विकासशील देशों के लिए चुनौतियाँ:
विकासशील देशों में मूल्य निर्धारण कम प्रभावी है।
विकासशील देशों को पहले नियमन और सब्सिडी नीतियों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
महत्व:
यह अध्ययन नीति निर्माताओं को जलवायु तटस्थता प्राप्त करने के लिए प्रभावी नीतियों का मिश्रण बनाने में मदद करेगा।
यह अध्ययन समाज को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में बेहतर निर्णय लेने में मदद करेगा।
भारत के लिए सीख:
भारत को अपनी जलवायु नीतियों को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए अध्ययन के निष्कर्षों को ध्यान में रखना होगा।
भारत को विकासशील देशों के लिए प्रभावी नीतियों की पहचान करने के लिए अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
स्थिति:
पुर्तगाल के मदीरा द्वीप के दक्षिणी भाग में पिछले हफ़्ते से जंगल की आग लगातार फैल रही है।
5000 हेक्टेयर से ज़्यादा वन क्षेत्र तबाह हो चुके हैं।
दुनिया के सबसे बड़े बचे हुए लॉरेल (Laurus nobilis) वनों को खतरा है, जो यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल भी हैं।
कारण:
गर्मी और तटीय हवाएँ आग फैलने में सहायक हैं।
17 अगस्त को लैंडसैट 8 उपग्रह द्वारा ली गई तस्वीरों से पता चला कि आग तीन अलग-अलग मोर्चों पर जल रही थी।
18 अगस्त को तेज हवाओं (70 किलोमीटर प्रति घंटे) और 30 डिग्री सेल्सियस के तापमान ने आग को और फैलाया।
प्रभाव:
दर्जनों पर्यटक द्वीप पर फँस गए हैं।
स्थानीय लोगों को अपने घरों से निकालना पड़ा।
आग से आवासीय क्षेत्रों को कोई खतरा नहीं है, लेकिन बुनियादी ढाँचे पर असर हो सकता है।
अधिकारियों की प्रतिक्रिया:
मदीरा की क्षेत्रीय सरकार के अध्यक्ष मिगुएल अलबुकरक्यू ने कहा कि आग दूरस्थ क्षेत्रों में जल रही है और आबादी को कोई खतरा नहीं है।
अग्निशामकों द्वारा कठिन भू-भाग में आग बुझाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
यह जंगल की आग मदीरा द्वीप के लिए एक गंभीर खतरा है और यह दुनिया के महत्वपूर्ण प्राकृतिक वन क्षेत्रों के लिए एक चेतावनी है।
मुख्य बिंदु:
भारत सरकार, आईआईटी-बीएचयू और डेनमार्क सरकार के बीच त्रिपक्षीय गठबंधन।
वाराणसी में वरुणा नदी के संरक्षण के लिए स्थापित।
जल शक्ति मंत्रालय से 16.80 करोड़ रुपये और डेनमार्क से 5 करोड़ रुपये का अनुदान।
उद्देश्य:
सतत तरीके से वरुणा नदी का संरक्षण करना।
स्वच्छ नदी जल के लिए समाधान विकसित करना।
अभिज्ञान साझा करना और सहयोग को बढ़ावा देना।
परियोजनाओं में शामिल है:
निर्णय समर्थन प्रणाली (डीएसएस) विकसित करना।
प्रदूषकों का लक्षण वर्णन और फिंगरप्रिंट विश्लेषण।
समग्र योजना और नदी मैनुअल के आधार पर हस्तक्षेप प्रदर्शित करना।
रिचार्ज साइट्स के लिए वरुण बेसिन का हाइड्रोजियोलॉजिकल मॉडल।
संरचना:
संयुक्त संचालन समिति (जेएससी): रणनीतिक मार्गदर्शन और प्रगति की समीक्षा।
परियोजना समीक्षा समिति (पीआरसी): परियोजना स्तर पर गुणवत्ता नियंत्रण।
बहु-हितधारक कार्य समूह (एमएसडब्ल्यूजी): केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के प्रयासों का समन्वय।
सचिवालय: दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों, परियोजना विकास और ज्ञान प्रसार का प्रबंध।
उम्मीदें:
अकादमिक जगत, उप-राष्ट्रीय और राष्ट्रीय सरकारों के बीच सहयोग।
नदियों की स्वच्छता के मापदंड और छोटी नदियों के संरक्षण के लिए समाधान विकसित करना।
मुख्य बिंदु:
जेएनसीएएसआर और हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (एचजेडएल) ने जिंक-आयन बैटरी तकनीकों को बढ़ावा देने के लिए समझौता किया।
लक्ष्य: स्वदेशी जिंक-आयन बैटरी विकसित करना जो कम लागत वाली और लिथियम-आयन बैटरियों का विकल्प हो।
जेएनसीएएसआर ने जिंक सामग्री के नए प्रकार विकसित किए हैं, और डीएसटी द्वारा वित्त पोषित उनके अत्याधुनिक बैटरी लक्षण-वर्णन सुविधा ने क्षेत्र में प्रगति की है।
एचजेडएल चल रहे वैश्विक ऊर्जा संक्रमण का समर्थन करने के लिए बैटरी क्रांति में अग्रणी भूमिका निभाना चाहता है।
महत्व:
भारत में महंगी लिथियम-आयन बैटरियों के लिए कम लागत और अधिक टिकाऊ विकल्प प्रदान करता है।
ग्रिड-स्केल ऊर्जा भंडारण और अन्य संबंधित अनुप्रयोगों में महत्वपूर्ण योगदान देगा।
सतत विकास लक्ष्यों एसडीजी 7 (सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा) और एसडीजी 13 (जलवायु कार्रवाई) को प्राप्त करने में मदद करेगा।
अगले कदम:
जेएनसीएएसआर टीम बड़े पैमाने पर व्यावसायिक अनुप्रयोगों के लिए जिंक-आयन पाउच बैटरी का प्रदर्शन करेगी।
एचजेडएल नवाचारक नए उत्पाद समाधान प्रदान करके बैटरी क्रांति में सबसे आगे रहेगा।
मुख्य बिंदु:
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने दो साल में दूसरी बार अफ्रीका में बंदर चेचक के प्रकोप को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य के लिए आपात स्थिति घोषित की।
इस बार प्रकोप 2022 के प्रकोप से अलग है, क्योंकि वैज्ञानिकों ने समलैंगिक यौन संपर्क से जुड़े संक्रमणों के समूह दर्ज किए हैं।
ये संक्रमण बंदर चेचक वायरस के क्लेड 1बी से संबंधित हैं।
क्लेड 1बी 2023 में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में पहली बार देखा गया था और यौन संबंध और निकट संपर्क के माध्यम से फैल रहा है।
क्लेड 1बी महामारी की संभावना है और इसके फैलने के तरीके अलग हैं।
क्लेड 1बी बच्चों में 10% तक और वयस्कों में 5% तक मृत्यु दर दर्शाता है। गर्भावस्था हानि की भी खबरें हैं।
2022 में बंदर चेचक का प्रसार क्लेड 2बी से संबंधित था, जो पहले पश्चिम अफ्रीकी क्लेड के रूप में जाना जाता था।
क्लेड 1 मध्य अफ्रीका में स्थानिक है और क्लेड 2 की तुलना में अधिक गंभीर बीमारी और उच्च मृत्यु दर का कारण बनता है।
अन्य महत्वपूर्ण बिंदु:
बंदर चेचक वायरस एक डीएनए वायरस है जो आरएनए वायरस जैसे एचआईवी की तुलना में धीरे-धीरे विकसित होता है।
2022 में, वायरस ने मानव मेजबानों के अनुकूल होने के लिए माइक्रोएवोल्यूशन का प्रदर्शन किया।
बंदर चेचक वायरस का स्वरूप बदल रहा है और मानव-से-मानव संचरण बढ़ रहा है।
2024 की पहली छमाही में WHO अफ्रीकी क्षेत्र में 1,854 मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से 95% कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में हैं।
निष्कर्ष:
बंदर चेचक का बदलता स्वरूप और क्लेड 1बी की उपस्थिति चिंता का विषय है। इसके फैलने के तरीकों और मृत्यु दर को कम करने के लिए और अधिक अध्ययन और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयासों की आवश्यकता है।
मुख्य बिंदु:
एक नए अध्ययन के अनुसार, यदि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन जारी रहा, तो 2020 से 2100 के बीच वैश्विक बाढ़ की घटनाओं में 49% की वृद्धि होगी।
उष्णकटिबंधीय अफ्रीका और एशिया के तटों, और शुष्क उत्तरी अफ्रीका में बाढ़ की सबसे अधिक वृद्धि होने की संभावना है।
उत्तरी अटलांटिक और हिंद महासागर के तटों, साथ ही दक्षिण-पूर्वी एशिया और प्रशांत द्वीपों पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ने की संभावना है।
अध्ययन में एक नया "ग्लोबल फ्लड मैप" (GFM) का उपयोग किया गया है जो बारिश, नदियों और समुद्र के स्तर में वृद्धि से होने वाली बाढ़ की घटनाओं पर विचार करता है।
अध्ययन में पाया गया कि 2050 तक, कम उत्सर्जन परिदृश्य में बाढ़ का जोखिम 7% और उच्च उत्सर्जन परिदृश्य में 15% होगा।
अध्ययन से पता चला है कि तटीय बाढ़ का खतरा लगभग दोगुना हो सकता है, 2100 तक 99% तक बढ़ सकता है, यहां तक कि कम उत्सर्जन परिदृश्य में भी।
नदी से होने वाली बाढ़ उप-सहारा अफ्रीका, दक्षिणी, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशिया और दक्षिण अमेरिका में होने की संभावना है।
वर्षा से होने वाली बाढ़ के जोखिम बढ़ने की संभावना है और वे मानवजनित जलवायु परिवर्तन के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील हैं। कम उत्सर्जन परिदृश्य में, 2100 तक 6% की वृद्धि होने की संभावना है, जबकि उच्च उत्सर्जन मॉडल में 44% की वृद्धि होने की संभावना है।
मुख्य बिंदु:
इटली के सिसिली तट पर एक भयंकर तूफान आया है, जिसे जलस्तंभ माना जा रहा है।
जलस्तंभ क्या है? एक जल निकाय के ऊपर घूमने वाली हवा और धुंध का एक बड़ा स्तंभ, बवंडर जैसा दिखता है, लेकिन कमज़ोर होता है।
यह आम तौर पर 5 से 10 मिनट तक रहता है, 165 फीट व्यास तक फैल सकता है, और 100 किलोमीटर प्रति घंटा गति से हवा चल सकती है।
जलस्तंभ के लिए आदर्श स्थिति उच्च आर्द्रता और गर्म पानी का तापमान होता है।
समुद्र के तापमान में वृद्धि के साथ जलस्तंभ की आवृत्ति भी बढ़ रही है।
जलस्तंभ के प्रकार:
बवंडरयुक्त जलस्तंभ (Tornadic Waterspouts): वास्तविक बवंडर जो पानी के ऊपर बनते हैं या स्थल से पानी की ओर बढ़ते हैं। ये तीव्र हवाओं, ओलावृष्टि, बिजली गिरने और विनाश का कारण बन सकते हैं।
स्वच्छ-मौसम जलस्तंभ (Fair-weather Waterspouts): अधिक सामान्य, केवल पानी के ऊपर बनते हैं, कम खतरनाक होते हैं, और छोटे आकार के होते हैं।
निष्कर्ष:
जलस्तंभ समुद्री तटों के लिए खतरा हैं और समुद्र के तापमान में वृद्धि से उनकी आवृत्ति बढ़ने की संभावना है।
मुख्य बिंदु:
IPCC रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन सबसे गरीब और कमजोर लोगों को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है, जिससे मौजूदा असमानताएं बढ़ती हैं।
ट्रांसजेंडर और यौनकर्मी समुदाय जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जिसमें आजीविका का अभाव, स्वास्थ्य पर प्रभाव, सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दे और जलवायु आपदाओं के प्रति संवेदनशीलता शामिल है।
ट्रांसजेंडर समुदाय को स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में कठिनाइयां आ रही हैं, और गोपनीयता की समस्या के कारण, इस समुदाय के लोग एचआईवी और अन्य यौन संचारित संक्रमणों की उच्च दर का सामना कर रहे हैं।
भारत सरकार ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 पारित किया है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इसका प्रभाव सीमित है।
कई संगठन, जैसे कि विश्व स्वास्थ्य संगठन, ग्लोबल नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्क प्रोजेक्ट्स (NSWP), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP), हमसफर ट्रस्ट (HST) और सेंटर फॉर सेक्सुअलिटी एंड हेल्थ रिसर्च एंड पॉलिसी (C-SHARP) इस समुदाय की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहे हैं।
आगे की राह:
ट्रांसजेंडर समुदाय और यौनकर्मी महिलाओं को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल ढालने में मदद करने के लिए सरकार, नागरिक समाज और गैर-सरकारी संगठनों को मिलकर काम करना चाहिए।
सामाजिक सेवाओं, रोजगार के अवसरों, स्वास्थ्य और शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए समावेशी नीतियाँ और सामाजिक सुरक्षा आवश्यक हैं।
यौनकर्मी महिलाओं और ट्रांसजेंडर समुदाय की सुरक्षा नीतियों और कार्यक्रमों में पर्यावरणीय आपदाओं को ध्यान में रखते हुए जलवायु-संवेदनशील विशेषताएँ एकीकृत की जानी चाहिए।
इस समुदाय की सुरक्षा और सशक्तिकरण को बढ़ाने के लिए जागरूकता अभियान चलाने चाहिए।
राष्ट्रीय और स्थानीय आंकड़ों में ट्रांसजेंडर और यौनकर्मी समुदाय को शामिल किया जाना चाहिए ताकि जलवायु परिवर्तन से संबंधित आपदाओं के प्रभावों की सही पहचान हो सके।
निष्कर्ष:
ट्रांसजेंडर समुदाय और यौनकर्मी महिलाओं को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाने के लिए समावेशी नीतियों, समाज में उनके एकीकरण, और उनके सशक्तिकरण की आवश्यकता है।
पृष्ठभूमि:
भारत सरकार ने "भारत जीरो एमिशन ट्रकिंग (जेडईटी) नीति परामर्श" नामक सलाहकार दस्तावेज़ लॉन्च किया।
यह दस्तावेज़ डीकार्बोनाइजेशन और ऊर्जा सुरक्षा में जेडईटी के महत्व पर प्रकाश डालता है।
इसका उद्देश्य भारत में जेडईटी को अपनाने में तेजी लाना है।
प्रमुख विशेषताएं:
30 नीतिगत हस्तक्षेप की रूपरेखा प्रस्तुत करता है, जिन्हें पाँच क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है:
प्रोत्साहन: वित्तीय और गैर-वित्तीय प्रोत्साहन।
विनियमन: उत्सर्जन मानदंड, जनादेश और ज़ोनिंग नियम।
बुनियादी ढाँचा: चार्जिंग स्टेशन, ग्रिड अपग्रेड, हाइड्रोजन ईंधन भरने वाले स्टेशन।
व्यवसाय और वित्तपोषण: वित्तपोषण मॉडल, व्यापार मॉडल, क्षमता निर्माण।
हितधारक-केंद्रित पहल: जागरूकता अभियान, कौशल विकास।
कार्यान्वयन:
प्रत्येक नीति हस्तक्षेप के लिए नोडल एजेंसी, हितधारक, प्रभाव, और कार्यप्रणाली की पहचान की गई है।
व्यापक परामर्श और लागत-लाभ विश्लेषण के बाद अंतिम सिफारिशें की जाएँगी।
भागीदार:
पीएसए कार्यालय द्वारा गठित नीति सलाहकार पैनल (पीएपी) ने दस्तावेज़ का मार्गदर्शन किया।
आईआईटी मद्रास में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर जीरो एमिशन ट्रकिंग (सीओईजेडईटी) ने मसौदा तैयार किया।
विभिन्न सरकारी विभागों, उद्योग विशेषज्ञों और शोध संस्थानों ने योगदान दिया।
लक्ष्य:
2050 तक 100% जेडईटी बिक्री पैठ हासिल करना।
भारत के नेट जीरो 2070 लक्ष्य को प्राप्त करने में योगदान देना।
निष्कर्ष:
यह नीति परामर्श दस्तावेज़ भारत में जेडईटी पारिस्थितिकी तंत्र को आकार देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
सफल कार्यान्वयन के लिए सरकार, उद्योग और अन्य हितधारकों के बीच समन्वित प्रयासों की आवश्यकता होगी।
प्रमुख बिंदु:
उद्देश्य: भारत और अफ्रीका के बीच व्यापार और विकास साझेदारी को मजबूत करना।
थीम: "एक भविष्य का निर्माण", जो भारत की G20 अध्यक्षता थीम "एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य" से जुड़ती है।
महत्वपूर्ण मुद्दे:
जलवायु परिवर्तन: दोनों क्षेत्रों के लिए सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता है।
विकास सहयोग: वित्तीय भागीदारी, बुनियादी ढाँचा, अंतरिक्ष, कृषि, खनन, खाद्य प्रसंस्करण।
मज़बूत संबंध: साझा इतिहास, समान संघर्ष, पारस्परिक आकांक्षाएं, समतामूलक विश्व व्यवस्था के लिए साझेदारी।
वर्तमान स्थिति: भारत, अफ्रीका का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार (85 बिलियन डॉलर व्यापार, 75 बिलियन डॉलर निवेश)।
प्रमुख पहल: 43 अफ्रीकी देशों में 206 बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में 12.37 बिलियन डॉलर से अधिक का भारतीय निवेश, क्षमता निर्माण, ई-वीजा सुविधाएं, राजनयिक उपस्थिति में वृद्धि।
भविष्य की संभावनाएं: स्वच्छ प्रौद्योगिकी, जलवायु अनुकूल कृषि, समुद्री सुरक्षा, नीली अर्थव्यवस्था, दक्षिण-दक्षिण सहयोग, भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन IV।
आह्वान: सभी स्तरों पर सहयोग बढ़ाना, मानव संसाधन और प्राकृतिक संपदा की क्षमता का उपयोग करना, साझेदारी को परिवर्तनकारी बनाना।
संदेश: भारत का उदय, वैश्विक स्थिरता और शांति के लिए शुभ संकेत। भारत और अफ्रीका की साझेदारी, वैश्विक संतुलन और दक्षिण-दक्षिण सहयोग को मज़बूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
मुख्य भागीदार:
भारत
अफ्रीकी देश
सीआईआई
उपराष्ट्रपति का दृष्टिकोण: आशावादी, दोनों क्षेत्रों के बीच साझेदारी की अपार संभावनाओं पर जोर।
चेन्नई महानगर क्षेत्र में चीतल हिरण: मुख्य बिंदु
विस्तृत मानचित्रण आवश्यक: चेन्नई महानगर क्षेत्र (5,000 वर्ग किलोमीटर) में चीतल हिरण के वितरण का मानचित्रण जरूरी है। इससे उप-जनसंख्याओं और महत्वपूर्ण गलियारों की पहचान हो सकेगी और प्रजातियों का उचित प्रबंधन संभव होगा।
मेटा-जनसंख्या: शोधकर्ताओं के अनुसार, चेन्नई में चीतल "मेटा-जनसंख्या" के रूप में जीवित रहे हैं। इसका अर्थ है कि छोटे समूहों का समय-समय पर फैलाव, उप-जनसंख्याओं को आपस में जोड़े रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
अलगाव रोकना: प्रबंधन का उद्देश्य उप-जनसंख्याओं को पूरी तरह से अलग होने से रोकना होना चाहिए। जानवरों का आपस में आदान-प्रदान बना रहना चाहिए, ताकि प्रजनन में समस्या न हो।
इतिहास: ऐसा माना जाता है कि चेन्नई में चीतल को गुइंडी पार्क में लाया गया था, लेकिन 19वीं सदी के अंत में एक ब्रिटिश शिकारी ने गुइंडी पार्क में चीतल की "अधिकता" का उल्लेख किया है। इससे पता चलता है कि चीतल का चेन्नई में इतिहास पहले की सोच से कहीं ज़्यादा पुराना हो सकता है।
अध्ययन की कमी: 1990 के दशक के बाद से चेन्नई में चीतल की जनसंख्या पर कोई विस्तृत अध्ययन नहीं हुआ है।
आगे का रास्ता:
चीतल के वितरण का मानचित्रण।
उप-जनसंख्याओं और गलियारों की पहचान।
जनसंख्या प्रबंधन योजना तैयार करना।
निष्कर्ष:
चेन्नई में चीतल के संरक्षण के लिए विस्तृत जानकारी एकत्रित करना और उसके आधार पर प्रभावी प्रबंधन योजना लागू करना आवश्यक है।
मुख्य चिंता:
हिमालय में ग्लेशियल झीलें तेज़ी से पिघल रही हैं और उनका आकार बढ़ रहा है, जिससे ग्लेशियल झील विस्फोट बाढ़ (GLOF) का खतरा बढ़ रहा है।
हाल ही में नेपाल के थैम गांव में थयांबो झील के फटने से यह खतरा एक बार फिर सामने आया है।
प्रभाव:
थैम गांव में आई बाढ़ से 14 संपत्तियों को नुकसान हुआ, जिनमें स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, होटल और घर शामिल हैं।
लाखों लोग जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में नगण्य योगदान देते हैं, जलवायु परिवर्तन के इन खतरनाक प्रभावों का सामना कर रहे हैं।
अध्ययन और रिपोर्ट:
ICIMOD के अनुसार, थैम नदी के ऊपर स्थित झील के आकार में लगातार परिवर्तन हो रहा है।
ICIMOD की रिपोर्ट "वॉटर, आइस, सोसाइटी, एंड इकोसिस्टम इन द हिंदू कुश हिमालय" के अनुसार, 21वीं सदी के अंत तक GLOF घटनाओं में तीन गुना वृद्धि होने की आशंका है।
हिंदू कुश हिमालय में 25,000 से अधिक ग्लेशियल झीलें हैं, जिनमें से 47 संभावित रूप से खतरनाक हैं।
नई ग्लेशियल झील इन्वेंटरी रिपोर्ट के अनुसार, लगभग दस लाख लोग ग्लेशियल झील के 10 किलोमीटर के दायरे में रहते हैं।
आगे का रास्ता:
जी20 देशों को जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने और नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने की आवश्यकता है।
प्रभावित समुदायों तक अनुकूलन, हानि और क्षति निधि पहुँचाना सुनिश्चित करना होगा।
पहाड़ी समुदायों को जागरूक होना होगा और तत्काल कार्रवाई की मांग करनी होगी।
निष्कर्ष:
हिमालयी क्षेत्रों में GLOF एक बढ़ता हुआ खतरा है जिसके लिए तत्काल ध्यान और ठोस कार्रवाई की आवश्यकता है।
पृष्ठभूमि:
भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (ZSI) और ओडिशा वन विभाग ने हॉर्सशू क्रैब की टैगिंग के लिए समझौता किया है।
यह भारत में पहला ऐसा प्रयास है, जिसका उद्देश्य संरक्षण और प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण जानकारी एकत्रित करना है।
टैगिंग के लाभ:
हॉर्सशू क्रैब की आबादी, प्रवासन पैटर्न और आवास के उपयोग की बेहतर समझ।
मछली पकड़ने के लिए हानिकारक जालों पर प्रतिबंध लगाने में मदद।
हॉर्सशू क्रैब:
प्रागैतिहासिक जीव: 450 मिलियन वर्षों से अधिक समय से अस्तित्व में, डायनासोर से भी पुराने।
विशेषताएँ:
घोड़े की नाल के आकार का सिर
नौ आँखें और कई प्रकाश रिसेप्टर्स
कठोर बाह्यकंकाल और 10 पैर
मादा नर से बड़ी होती है
विस्तार:
दुनिया भर में चार प्रजातियाँ, जिनमें से दो भारत में पाई जाती हैं।
ओडिशा तट पर सबसे अधिक आबादी, बालासोर प्रमुख प्रजनन स्थल।
औषधीय महत्व:
मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली, रक्त का उपयोग दवा परीक्षण और निदान अभिकर्मकों में होता है।
प्री-एक्लेमप्सिया के इलाज में मददगार।
संरक्षण स्थिति:
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत अनुसूची 2 में शामिल।
IUCN स्थिति: आंकड़े अपर्याप्त (DD)।
निष्कर्ष:
हॉर्सशू क्रैब का संरक्षण महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक प्राचीन प्रजाति है और चिकित्सा विज्ञान के लिए बहुत मूल्यवान है। टैगिंग पहल इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
शोध: वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है कि क्वांटम नॉनलोकैलिटी को मापने का कोई एक सर्वमान्य तरीका नहीं हो सकता।
क्वांटम नॉनलोकैलिटी: यह घटना उस अजीबोगरीब संबंध को दर्शाती है जो दूर स्थित कणों के बीच देखा जाता है, जहाँ सूचना का आदान-प्रदान प्रकाश की गति से भी तेज़ प्रतीत होता है।
महत्व:
नए अध्ययन से क्वांटम नॉनलोकैलिटी के अनुप्रयोगों का दायरा बढ़ता है।
सुरक्षित संचार, रैंडम संख्या निर्माण और क्रिप्टोग्राफ़िक कुंजी निर्माण में पहले से ही इसका उपयोग हो रहा है।
यह शोध क्वांटम यांत्रिकी की हमारी समझ को और गहरा करता है।
प्रमुख निष्कर्ष:
क्वांटम नॉनलोकैलिटी की प्रकृति हर प्रकार के सहसंबंध के लिए अलग-अलग होती है।
यह दर्शाता है कि एक भी, सर्व-समावेशी क्वांटम संसाधन मौजूद नहीं है।
प्रत्येक क्वांटम संसाधन अनूठा है और विशिष्ट कार्य करने में सक्षम है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
1964 में जॉन स्टीवर्ट बेल ने एक प्रमेय प्रस्तुत किया जिसने क्वांटम जगत के बारे में हमारी समझ बदल दी।
बेल ने दिखाया कि "स्थानीय यथार्थवाद", जो शास्त्रीय भौतिकी का एक आधार स्तंभ है, क्वांटम स्तर पर लागू नहीं होता।
बाद के प्रयोगों ने बेल के प्रमेय की पुष्टि की, जिससे क्वांटम जगत की गैर-स्थानीय प्रकृति स्थापित हुई।
इस खोज को 2022 के भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से मान्यता मिली।
समस्या:
एज़ोल दवाएं कवकीय झिल्ली पर हमला करती हैं, लेकिन प्रतिरोध बढ़ रहा है।
बेहतर दवा वितरण प्रणाली की आवश्यकता है।
समाधान:
अगरकर अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने चिटिन सिंथेसिस फंजिसाइड का उपयोग करके निक्कोमाइसिन पॉलिमरिक नैनोकणों को विकसित किया है।
चिटिन कवक कोशिका भित्ति का एक घटक है जो मानव शरीर में नहीं पाया जाता है।
नैनोकण से युक्त दवा एस्परगिलस एसपीपी के विकास को रोकती है और एस्परगिलोसिस के खिलाफ प्रभावी है।
विकसित नैनोफॉर्मूलेशन साइटोटोक्सिक और हेमोलिटिक प्रभावों से मुक्त पाया गया।
भविष्य की संभावनाएँ:
शोधकर्ता फुफ्फुसीय एस्परगिलोसिस के खिलाफ इनहेलेशन नैनोफॉर्मूलेशन विकसित करने की योजना बना रहे हैं।
व्यावसायीकरण के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी की उम्मीद है।
लाभ:
अस्थमा, सिस्टिक फाइब्रोसिस, एचआईवी, कैंसर और कॉर्टिकोस्टेरॉइड उपयोगकर्ताओं जैसे समझौता प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों के लिए फायदेमंद।
मुख्य बिंदु:
नैनोपार्टिकल दवा वितरण प्रणाली फंगल संक्रमण के उपचार में क्रांति ला सकती है।
विकसित नैनोफॉर्मूलेशन सुरक्षित और प्रभावी पाया गया है।
यह शोध कवक रोगों के इलाज के लिए नए रास्ते खोलता है।
मुख्य बिंदु:
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने 20 अगस्त, 2024 को राष्ट्रीय भूविज्ञान पुरस्कार-2023 प्रदान किए।
उन्होंने 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए खनिज उत्पादन में आत्मनिर्भरता पर बल दिया।
सरकार भू-वैज्ञानिक डेटा के एकीकरण, खनिज संसाधनों की खोज और खनन में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) जैसी उभरती तकनीकों के उपयोग को बढ़ावा दे रही है।
राष्ट्रपति ने हरित ऊर्जा परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण खनिजों और दुर्लभ पृथ्वी तत्वों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन भारत को आत्मनिर्भर बनाने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में मदद करेगा।
कोलकाता में स्थापित राष्ट्रीय भूस्खलन पूर्वानुमान केंद्र, भूस्खलन की आशंका वाले सभी राज्यों के लिए पूर्व चेतावनी बुलेटिन जारी करेगा।
राष्ट्रपति ने युवाओं से भू-पर्यटन और भू-विरासत स्थलों के महत्व को समझने का आग्रह किया।
राष्ट्रीय भूविज्ञान पुरस्कार:
भारत सरकार के खान मंत्रालय द्वारा स्थापित।
भूविज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में असाधारण उपलब्धियों और उत्कृष्ट योगदान के लिए व्यक्तियों और टीमों को सम्मानित करने के लिए।
TRAI ने मैसेजिंग सेवाओं के दुरुपयोग को रोकने और उपभोक्ताओं को धोखाधड़ी से बचाने के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए हैं।
ये निर्देश सभी एक्सेस प्रदाताओं पर लागू होते हैं।
प्रमुख निर्देश:
टेलीमार्केटिंग कॉल का ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर स्थानांतरण:
140 सीरीज से शुरू होने वाले टेलीमार्केटिंग कॉलों को 30 सितंबर 2024 तक ऑनलाइन DLT प्लेटफॉर्म पर स्थानांतरित किया जाए।
संदिग्ध लिंक वाले संदेशों पर प्रतिबंध:
1 सितंबर 2024 से, ऐसे यूआरएल, एपीके, ओटीटी लिंक या कॉल बैक नंबर वाले संदेशों को भेजने पर प्रतिबंध होगा जो प्रेषकों की सूची में नहीं हैं।
संदेश ट्रैकिंग:
1 नवंबर 2024 से, प्रेषक से प्राप्तकर्ता तक सभी संदेशों का पता लगाया जा सकेगा।
अपरिभाषित या बेमेल टेलीमार्केटर श्रृंखला वाले संदेशों को अस्वीकृत कर दिया जाएगा।
टेम्पलेट दुरुपयोग के लिए दंड:
गलत श्रेणी के तहत पंजीकृत सामग्री टेम्पलेट्स को ब्लैकलिस्ट किया जाएगा।
बार-बार उल्लंघन करने पर प्रेषक की सेवाओं को एक महीने के लिए बंद कर दिया जाएगा।
हेडर और टेम्पलेट दिशानिर्देश:
सभी हेडर और कंटेंट टेम्पलेट को निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन करना होगा।
एक ही कंटेंट टेम्पलेट को कई हेडर से लिंक नहीं किया जा सकता है।
दुरुपयोग की स्थिति में कार्रवाई:
दुरुपयोग की पुष्टि होने पर प्रेषक के सभी हेडर और कंटेंट टेम्पलेट से ट्रैफ़िक तुरंत निलंबित कर दिया जाएगा।
डिलीवरी-टेलीमार्केटर्स को दो दिनों के भीतर दुरुपयोग के लिए जिम्मेदार संस्थाओं की पहचान और रिपोर्ट करनी होगी।
उद्देश्य:
मैसेजिंग सेवाओं के दुरुपयोग और धोखाधड़ी पर अंकुश लगाना।
उपभोक्ताओं को बेहतर सुरक्षा प्रदान करना।
नोट: TRAI (Telecom Regulatory Authority of India) भारत में दूरसंचार सेवाओं के लिए नियामक प्राधिकरण है।
मुख्य बिंदु:
कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) की सहायक कंपनी, साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (SECL) ने एसीए दिशानिर्देशों को लागू करके पर्यावरणीय स्थिरता में उल्लेखनीय प्रगति हासिल की है।
एसीए का उद्देश्य वन क्षेत्र का विस्तार करना और गैर-वन भूमि पर वनीकरण को बढ़ावा देना है, जो राष्ट्रीय पर्यावरणीय लक्ष्यों में योगदान करता है और कार्बन क्रेडिट अर्जित करता है।
एसीए दिशानिर्देशों की आवश्यकता:
कोयला खनन परियोजनाओं को वन भूमि की आवश्यकता होती है, जिसके लिए वानिकी मंजूरी (FC) की आवश्यकता होती है।
उपयुक्त क्षतिपूरक वनरोपण (CA) भूमि की पहचान करना एक चुनौती है।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने FC प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने और वनीकरण को बढ़ावा देने के लिए 24 जनवरी 2023 को एसीए दिशानिर्देश जारी किए।
एसईसीएल द्वारा की गई कार्रवाई:
SECL ने एसीए के लिए छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में लगभग 2,245 हेक्टेयर गैर-वन भूमि (डी-कोल्ड भूमि) की पहचान की है।
इस भूमि को एसीए भूमि बैंकों के रूप में अधिसूचित करने के लिए राज्य वन विभागों को प्रस्ताव प्रस्तुत किए गए हैं।
प्रमुख उपलब्धियां:
जैविक सुधार और वृक्षारोपण: SECL ने छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में विभिन्न साइटों पर जैविक सुधार और वृक्षारोपण किया है, जिससे डी-कोल्ड भूमि का कायाकल्प हुआ है।
जैव विविधता संवर्धन: पुनर्निर्मित भूमि अब वनस्पतियों और जीवों की एक विविध श्रेणी का समर्थन करती है, जिसमें स्लॉथ भालू, लोमड़ी, सरीसृप और प्रवासी पक्षी शामिल हैं।
एसीए भूमि सत्यापन: छत्तीसगढ़ में चिन्हित 1,424 हेक्टेयर भूमि में से 696 हेक्टेयर का निरीक्षण किया गया है और राज्य वन विभाग ने साइट उपयुक्तता प्रमाण पत्र जारी किए हैं।
निष्कर्ष:
SECL के एसीए कार्यान्वयन से जिम्मेदार खनन प्रथाओं और देश में अन्य कोयला खनन संस्थाओं के लिए एक मिसाल कायम हुई है।
यह पहल भारत के पर्यावरणीय लक्ष्यों और एक हरित, अधिक टिकाऊ भविष्य के निर्माण में योगदान देती है।
उद्देश्य: जलवायु-स्मार्ट कृषि तकनीक (एग्रीटेक) में स्टार्ट-अप और एमएसएमई का समर्थन।
आयोजक: अटल इनोवेशन मिशन (भारत) और कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ऑस्ट्रेलिया)।
फोकस: ऐसी तकनीकों और समाधानों को बढ़ावा देना जो जलवायु परिवर्तन, संसाधनों की कमी और खाद्य असुरक्षा जैसी चुनौतियों का सामना करते हुए कृषि उत्पादकता और लचीलापन बढ़ाते हैं।
कार्यक्रम की अवधि: 9 महीने (अक्टूबर 2024 से शुरू)।
लाभ:
ऑनलाइन और व्यक्तिगत प्रशिक्षण सत्र।
बाजार अंतर्दृष्टि, कोचिंग और विशेषज्ञों से सलाह।
संभावित भागीदारों और ग्राहकों से जुड़ने के अवसर।
फील्ड परीक्षण और प्रौद्योगिकी पायलट।
गैर-इक्विटी अनुदान में 45 लाख रुपये तक की सहायता (चयनित स्टार्ट-अप/एसएमई के लिए)।
ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच यात्रा के अवसर।
आवेदन की अंतिम तिथि: 15 सितंबर 2024।
मुख्य उद्देश्य: नवाचार को बढ़ावा देना और स्टार्ट-अप को उनके समाधानों को आगे बढ़ाने के लिए एक मंच प्रदान करना, जिससे कृषि क्षेत्र की चुनौतियों का समाधान निकल सके और किसानों तक बेहतर तकनीक पहुँच सके।
मुख्य बिंदु:
कोयला मंत्रालय, कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) और नेवेली लिग्नाइट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (NLCIL) के माध्यम से सामुदायिक कल्याण के लिए सक्रिय रूप से सीएसआर पहल कर रहा है।
स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल विकास और पर्यावरणीय स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करते हुए, इन पहलों के लिए लगभग 800 करोड़ रुपये की वार्षिक प्रतिबद्धता है।
स्वास्थ्य सेवा में प्रमुख उपलब्धियाँ:
थैलेसीमिया बाल सेवा योजना (TBESY):
CIL द्वारा शुरू की गई, 500 से अधिक बोन मैरो ट्रांसप्लांट को सफलतापूर्वक पूरा किया गया है।
थैलेसीमिया मेजर और अप्लास्टिक एनीमिया वाले बच्चों को 10 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
NLCIL द्वारा डायलिसिस सेंटर:
कुड्डालोर के सरकारी अस्पताल में स्थापित, सालाना 13,000 डायलिसिस चक्र प्रदान करता है।
मेडिकल ऑक्सीजन प्लांट:
NLCIL ने महामारी के दौरान विभिन्न राज्यों में 28 मेडिकल ऑक्सीजन प्लांट स्थापित किए, जिससे 2,500 बिस्तरों की क्षमता बढ़ी।
प्रोजेक्ट नन्हा सा दिल:
CIL द्वारा जन्मजात हृदय रोगों से पीड़ित बच्चों के इलाज के लिए शुरू किया गया।
झारखंड में लगभग 18,000 बच्चों की जांच की गई है, 500 बच्चों को शल्य चिकित्सा/कैथेटर-आधारित उपचार प्रदान करने का लक्ष्य है।
अन्य उल्लेखनीय स्वास्थ्य संबंधी सीएसआर प्रयास:
प्रेमाश्रय (कैंसर रोगियों के लिए आवास) का निर्माण।
मोबाइल स्वास्थ्य सेवाएँ।
COVID-19 सहायता (बुनियादी ढाँचा विकास, चिकित्सा उपकरण)।
कैंसर देखभाल सहायता (टाटा कैंसर केयर के साथ सहयोग सहित)।
निष्कर्ष:
कोयला मंत्रालय की सीएसआर पहल स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढांचे को मजबूत करने और समुदायों को महत्वपूर्ण चिकित्सा सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
उद्देश्य: भारतीय खाद्य पदार्थों में माइक्रोप्लास्टिक की व्याप्ति का पता लगाना और आकलन करना।
प्रेरणा: खाद्य पदार्थों में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण को उभरते खतरे के रूप में मान्यता देना।
कार्य:
माइक्रो/नैनो-प्लास्टिक का पता लगाने के लिए विश्लेषणात्मक विधियों का विकास और सत्यापन।
भारत में विभिन्न खाद्य पदार्थों में माइक्रो/नैनो-प्लास्टिक की व्यापकता और जोखिम के स्तर का आकलन।
महत्वपूर्ण पहलू:
मानक प्रोटोकॉल विकसित करना।
प्रयोगशालाओं के बीच तुलना करना।
उपभोक्ता जोखिम के स्तर पर डेटा एकत्र करना।
सहयोगी:
CSIR-भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान (लखनऊ)
ICAR-केंद्रीय मत्स्य प्रौद्योगिकी संस्थान (कोच्चि)
बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान (पिलानी)
पृष्ठभूमि:
FAO रिपोर्ट ने आम खाद्य पदार्थों में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति पर प्रकाश डाला है।
भारत-विशिष्ट डेटा की कमी।
लाभ:
भारतीय खाद्य पदार्थों में माइक्रोप्लास्टिक संदूषण की समझ में वृद्धि।
सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए विनियमन और सुरक्षा मानकों को सूचित करना।
माइक्रोप्लास्टिक संदूषण से निपटने के वैश्विक प्रयासों में योगदान।
संक्षेप में: FSSAI परियोजना का उद्देश्य भारतीय खाद्य पदार्थों में माइक्रोप्लास्टिक संदूषण की गंभीर समस्या का समाधान करना है, जिसका उद्देश्य सुरक्षित और स्वस्थ भोजन सुनिश्चित करने और स्थायी खाद्य प्रणालियों में योगदान करने के लिए वैज्ञानिक डेटा और नियामक ढाँचे का उपयोग करना है।
समस्या: जलवायु परिवर्तन ने भारतीय कृषि को अनिश्चित और जोखिम भरा बना दिया है।
समाधान: जलवायु अनुकूल कृषि (सी.ए.ए.), जो जलवायु परिवर्तन के बावजूद टिकाऊ कृषि उत्पादकता और आय सुनिश्चित करता है।
सी.ए.ए. रणनीतियाँ और प्रौद्योगिकियाँ:
सहिष्णु फसलें: जल्दी पकने वाली और सूखा-सहनशील किस्में (जैसे, मूंग, चना, अरहर)।
पशुधन अनुकूलन: स्थानीय, जलवायु-सहिष्णु नस्लों और बेहतर चारा प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करना।
जल प्रबंधन: नाली-सिंचाई, सूक्ष्म सिंचाई, वर्षा जल संचयन, आवरण फसलें, आदि।
कृषि-सलाह: स्थानीय मौसम की जानकारी के आधार पर कृषि कार्य।
मृदा स्वास्थ्य: संरक्षण कृषि, जैविक खेती और मृदा संरक्षण के माध्यम से मृदा कार्बन का निर्माण।
भारत में सी.ए.ए. की आवश्यकता:
अधिकांश कृषि वर्षा आधारित है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील है।
किसानों की आजीविका और खाद्य सुरक्षा को जोखिम।
संसाधन उपयोग में दक्षता और उत्पादकता बढ़ाने की आवश्यकता।
सरकारी पहल:
राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA)
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)
परम्परागत कृषि विकास योजना (PKVY)
ग्रीन इंडिया मिशन
मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना
राष्ट्रीय जैविक खेती परियोजना
राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति
कृषि आकस्मिक योजना
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA)
आगे का रास्ता:
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी।
किसानों को प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण।
प्रौद्योगिकी और ज्ञान का प्रसार।
हितधारकों के बीच सहयोग।
निष्कर्ष:
जलवायु अनुकूल कृषि भारत में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का मुकाबला करने, टिकाऊ कृषि विकास सुनिश्चित करने और किसानों की आजीविका की रक्षा करने के लिए महत्वपूर्ण है। सरकार, वैज्ञानिक समुदाय और किसानों के बीच समन्वित प्रयासों से इसे प्राप्त किया जा सकता है।
स्थान: ब्रह्मयोनी पहाड़ी, गया, बिहार
शोधकर्ता: मगध विश्वविद्यालय
खोजे गए पौधे:
जिम्नेमा सिल्वेस्ट्रे (गुड़मार)
पिथेसेलोबियम डुल्स (मनीला इमली/मद्रास थॉर्न/मंकीपॉड ट्री/जंगल जलेबी)
ज़िज़िफ़स जुजुबा (बेर प्रजाति)
गुड़मार (जिम्नेमा सिल्वेस्ट्रे) पर ध्यान केंद्रित:
विवरण: औषधीय गुणों वाली बारहमासी बेल।
उपयोग: मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल, नेत्र रोग, एलर्जी, कब्ज, खांसी, दंत क्षय, मोटापा, पेट की बीमारियों और वायरल संक्रमण के लिए।
क्रियाविधि:
जिम्नेमिक एसिड रक्त शर्करा के स्तर को कम करता है और मिठास की लालसा को कम करता है।
फ्लेवोनोइड्स एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करते हैं।
सैपोनिन कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करते हैं।
महत्व: CSIR ने पहले ही गुड़मार का उपयोग करके मधुमेह रोधी दवा BGR-34 विकसित की है।
निष्कर्ष: यह खोज औषधीय पौधों के मामले में बिहार की समृद्ध जैव विविधता को उजागर करती है और नए उपचार विकसित करने के लिए अनुसंधान के नए रास्ते खोलती है।
संदर्भ
शोधकर्ताओं का मानना है कि पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत एक चरम पर्यावरणीय स्थिति में एक ‘एक्सट्रीमोफाइल’ (Extremophiles) के रूप में हुई थी।
चरम प्राकृतिक परिस्थितियों में रहने वाले सूक्ष्मजीवों को एक्सट्रीमोफाइल्स कहा जाता है। इन चरम स्थितियों में ज्वालामुखी, पर्माफ्रॉस्ट, गहरे समुद्र के नितल, ध्रुवीय बर्फ के नीचे झील, अंतरिक्ष यान के बाहरी भाग एवं परमाणु अपशिष्ट भंडारण स्थल इत्यादि शामिल हैं।
ये सूक्ष्मजीव, विशेषरूप से आर्कियन, अत्यधिक तापमान, अम्लता, क्षारीयता या रासायनिक सांद्रता की स्थितियों में रहते हैं, जैसे- थर्मस एक्वाटिकस, डाइनोकोकस रेडियोड्यूरान्स आदि।
ये विशेष जैव रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा चरम वातावरण के अनुकूल बन जाते हैं।
मनुष्य जैसे अधिक जटिल जीवन-रूपों (More complex life-forms) में प्रोटीन का एक सेट विकसित हुआ है जिससे वे जीवन जीते हैं।
एक्सट्रीमोफाइल्स में प्रोटीन के कई सेट होते हैं, जिनमें से प्रत्येक एक विशिष्ट पर्यावरणीय स्थान में जीवन के लिए अनुकूलित होता है।
उदाहरण के लिए, ज्वालामुखी विस्फोट की ऊष्मा, दीर्घकालिक सुखा, ज्वालामुखी क्रेटर झील की अत्यधिक अम्लता के लिए अलग-अलग प्रोटीन सेट का विकास।
अर्थ माइक्रोबायोम प्रोजेक्ट : इसकी स्थापना वर्ष 2010 में 200,000 आनुवंशिक नमूनों को अनुक्रमित करने और 500,000 सूक्ष्मजीव जीनोम को इकट्ठा करने के लिए की गई थी।
अर्थ बायोजीनोम प्रोजेक्ट : वर्ष 2018 में स्थापित इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य एक दशक के भीतर पृथ्वी पर जीवों के सबसे बड़े और सबसे व्यापक मानचित्र बनाने के लिए ग्रह के सभी यूकैरियोटिक जीवों के जीनोम को अनुक्रमित करना था।
जीव विज्ञान : इस क्षेत्र में शोध कार्यों का लाभ अनेक जैविक व औद्योगिक अनुप्रयोगों में निहित है।
उदाहरण के लिए, थर्मस एक्वाटिकस (Thermus aquaticus) सूक्ष्म जीव, टैक डी.एन.ए. पॉलीमरेज़ (Taq DNA polymerase) नामक एक ऊष्मा-प्रतिरोधी एंजाइम का उत्पादन करता है, जो पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन में अनुप्रयोग के कारण जीव विज्ञान का एक महत्वपूर्ण कार्यक्षेत्र है।
जीवों को नई क्षमताएँ देना : एक्सट्रीमोफाइल्स को नियंत्रित करने वाले जैविक नियमों के सामने आने से शोधकर्ताओं को जीवों को नई क्षमताएँ प्रदान करने में सक्षम बनाया जा सकता है।
उदाहरण के लिए, प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत करने के उद्देश्य से, पोल्ट्री को संक्रामक रोग का प्रतिरोध करने में मदद करना या कृत्रिम जैविक प्रणाली का निर्माण करना।
अन्य ग्रहों पर जीवन की संभावना : इनका ज्ञान वैज्ञानिकों को अन्य ग्रहों पर रहने की संभावना की सीमा निर्धारित करने में भी मदद कर सकता है।
उदाहरण के लिए, वर्ष 2011 में जापान के वैज्ञानिकों ने 400,000 से अधिक G-फोर्स (1G वह बल है जिसे पृथ्वी की सतह पर अनुभव किया जाता है) में एक सेंट्रीफ्यूज में बढ़ते सूक्ष्मजीवों को रिपोर्ट किया था।
डाइनोकोकस रेडियोड्यूरान्स (Deinococcus radiodurans), अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के बाहर चिपके रहने और पराबैंगनी विकिरण से नष्ट होने के बावजूद, तीन साल से अधिक समय तक बाह्य अंतरिक्ष में जीवित रहा।
जैव-उपचार : माइक्रोवेव ओवन में पाए जाने वाले एक्सट्रीमोफाइल की विकिरण से बचने की क्षमता का उपयोग विषाक्त अपशिष्ट के जैव-उपचार में हो सकता है।
यह एक जैविक नमूने में कुछ डी.एन.ए. की उपस्थिति की पहचान करने की एक तकनीक है, जिसे कोविड-19 महामारी के दौरान भी प्रयोग किया गया था।
बिहार के गोपालगंज से पुलिस ने संदिग्ध रूप से 50 ग्राम कैलिफ़ोर्नियम जब्त किया है, जिसकी अनुमानित कीमत 850 करोड़ रुपए है। यह अत्यधिक रेडियोधर्मी धातु होता है। हालांकि, परमाणु वैज्ञानिकों की जांच में यह पदार्थ बिल्कुल भी रेडियोधर्मी नहीं पाया गया है।
परिचय : यह चाँदी की तरह सफ़ेद रंग का अत्यधिक शक्तिशाली न्यूट्रॉन उत्सर्जक एवं रेडियोधर्मी रासायनिक तत्व है। यह आवर्त सारणी के एक्टिनाइड समूह (परमाणु क्रमांक 89 से 102 तक) का एक सदस्य है।
खोज : वर्ष 1950 में (यह खोजा जाने वाला छठा ट्रांसयूरेनियम तत्व है)
खोजकर्ता : स्टेनली थॉम्पसन, केनेथ स्ट्रीट जूनियर, अल्बर्ट घियोरसो और ग्लेन सीबॉर्ग।
नामकरण : कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय और कैलिफोर्निया राज्य के नाम पर
यह तत्व यहाँ पहली बार निर्मित किया गया था।
परमाणु क्रमांक और प्रतीक चिह्न : 98 एवं Cf
परमाणु द्रव्यमान : 251 (सभी तत्वों में दूसरे नंबर पर आइंस्टीनियम के बाद)
उपलब्धता : पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से अनुपलब्ध और केवल प्रयोगशाला में निर्मित। (यह आवर्त सारणी के 24 ज्ञात सिंथेटिक रासायनिक तत्वों में से एक है जो पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से नहीं पाया जाता है।)
कीमत : अंतर्राष्ट्रीय बाजार में एक ग्राम की कीमत 17 करोड़ रुपए।
पोर्टेबल मेटल डिटेक्टर्स में सोने व चांदी के अयस्कों की पहचान करने में
तेल कुओं में पानी व तेल की परतों की पहचान करने में
हवाई जहाजों में धातु क्षीणता एवं तनाव (Metal Fatigue and Stress) का पता लगाने में
परमाणु रिएक्टरों को शुरू करने में मदद करने के लिए
उच्च द्रव्यमान वाले तत्वों के परमाणु संश्लेषण में
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने जलवायु परिवर्तन के प्रति सुभेद्य देशों के लिए डाटा आधारित एक नया ‘भेद्यता’ सूचकांक (Vulnerability Index) शुरू किया है।
परिचय : बहुआयामी भेद्यता सूचकांक (Multidimensional Vulnerability Index: MVI) सभी देशों में राष्ट्रीय स्तर पर सतत विकास के विभिन्न आयामों में संरचनात्मक भेद्यता एवं लचीलेपन की कमी को मापने के लिए एक नया अंतरराष्ट्रीय मात्रात्मक बेंचमार्क है।
उद्देश्य : अत्यधिक जलवायु सुभेद्य छोटे द्वीपीय देशों एवं विकासशील देशों को निम्न ब्याज दर पर वित्तपोषण प्राप्त करने में मदद करना।
प्रमुख संकेतक :
आयात पर निर्भरता
चरम मौसमी घटनाओं एवं महामारियों का जोखिम
क्षेत्रीय हिंसा का प्रभाव
शरणार्थी
जनसांख्यिकीय दबाव
जल एवं कृषि योग्य भूमि संसाधन
पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर
सार्वभौमिक मात्रात्मक मूल्यांकन (Universal Quantitative Assessment) : इसमें सभी विकासशील देशों के लिए एक सामान्य पद्धति का उपयोग करते हुए मात्रात्मक मूल्यांकन किया जाता है, जिससे देशों की रैंकिंग प्राप्त होती है।
भेद्यता एवं लचीलापन देश प्रोफ़ाइल (Vulnerability and Resilience Country Profiles) : यह मूल्यांकन प्रत्येक देश की गैर-संरचनात्मक पहलुओं सहित भेद्यता एवं लचीलापन कारकों की विस्तृत व अनुकूलित प्रोफ़ाइल प्रदान करता है।
परिणाम स्कोर : निम्न MVI स्कोर दर्शाता है कि कोई देश बाह्य आघातों के प्रभावों के प्रति अपेक्षाकृत कम संवेदनशील है, जबकि अधिक स्कोर अधिक संवेदनशीलता को दर्शाता है।
देशों के लिए आवश्यक वित्त तक पहुँच या पात्रता का निर्धारण देश की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (GNIpc) द्वारा होती है।
किंतु GNIpc की सीमाएँ है क्योंकि यह संरचनात्मक एवं भेद्यता के आयामों व सतत विकास के बीच अंतःक्रियाओं की जटिल प्रकृति पर विचार नहीं करती हैं।
MVI इन सीमाओं को संबोधित कर सकता है, जिसमें आय से परे अन्य कारक शामिल कर, भेद्यता का एक व्यापक उपाय प्रदान किया जाता है।
MVI का प्रभाव भेद्यता एवं गरीबी की अवधारणाओं को अलग-अलग करना है।
भेद्यता का तात्पर्य यह नहीं है कि देश में गरीबी हो। एक धनी देश भी भेद्यता की स्थिति में हो सकता है। हालाँकि, उनके पास अपनी भेद्यता पर नियंत्रण पाने के लिए संसाधन हैं।
MVI भेद्यता के व्यापक डाटा का आकलन कर किसी देश की विकास आवश्यकताओं की अधिक गहन समझ प्रदान करेगा, जिससे विकास संसाधनों के बेहतर आवंटन में मदद मिलेगी।
हाल ही में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ने पारसी दंपत्तियों को जियो पारसी योजना हेतु आवेदन की सुविधा प्रदान करने के लिये जियो पारसी योजना पोर्टल का शुभारंभ किया।
यह एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है जिसे वैज्ञानिक प्रोटोकॉल और संरचित हस्तक्षेपों का उपयोग करके भारत में पारसी समुदाय की घटती जनसंख्या की समस्या से निपटने के लिये क्रियान्वित किया गया है।
यह पारसी दंपत्तियों को मानक चिकित्सा प्रोटोकॉल के तहत चिकित्सा उपचार के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करेगा, साथ ही बच्चों की देखभाल और आश्रित वृद्धजनों को सहायता भी प्रदान करेगा।
लाभार्थी और आवेदक अपने आवेदन की स्थिति की जाँच कर सकेंगे तथा प्रत्यक्ष लाभ अंतरण मोड के माध्यम से ऑनलाइन वित्तीय सहायता प्राप्त कर सकेंगे।
वर्ष 2013-14 में अपनी शुरुआत के बाद से इस योजना ने 400 से अधिक पारसी बच्चों को सहायता प्रदान की है।
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मंकी पॉक्स को पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित किया
इससे पहले अफ़्रीका सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने भी इसे पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया था
मध्य और पूर्वी अफ़्रीका में मंकी पॉक्स के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं.
अफ़्रीका से बाहर इसका पहला मामला स्वीडन में दर्ज किया गया
इस बीमारी के होने का कारण मंकी पॉक्स वायरस है
ये चेचक जैसे ही वायरस के ग्रुप से है, लेकिन इसके मुकाबले काफ़ी कम हानिकारक है
मंकी पॉक्स जानवरों से इंसानों में फैलता था, लेकिन अब ये इंसानों से इंसानों में भी फैल रहा है.
मंकी पॉक्स किसी संक्रमित व्यक्ति के निकट संपर्क में आने से फैलता है.
इसमें यौन संबंध और चमड़ी से त्वचा का संपर्क और संक्रमित शख्स से करीब से बात करना शामिल है.
शरीर में यह वायरस टूटी त्वचा के माध्यम से आंख, श्वसन तंत्र, नाक या मुंह में प्रवेश कर सकता है.
यह उन वस्तुओं को छूने से भी फैल सकता है जिसका संक्रमित शख़्स ने इस्तेमाल किया हो
लक्षण
इस वायरस के शुरुआती लक्षण बुखार, सिरदर्द, सूजन, पीठ दर्द और मांसपेशियों में दर्द है.
बुखार उतरने पर शरीर पर चकत्ते आ जाते हैं, जो कि अक्सर चेहरे से शुरू होते हैं और शरीर के अन्य हिस्सों तक फैल जाते हैं.
इन चकत्तों में अधिक खुजली या दर्द हो सकता है.
इसका संक्रमण आम तौर पर अपने आप ठीक हो जाता है और 14 से 21 दिनों के बीच रहता है
संदर्भ
तमिलनाडु जल संसाधन विभाग (WRD) ने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण को सूचित किया है कि उसने कामराजार बंदरगाह से 160 करोड़ रुपए की मांग की हैं ताकि बंदरगाह के पास तट पर विदेशज सीपियों (Invasive Mussel) को हटाने में मदद मिल सके।
यह माइटेला स्ट्रिगाटा (Mytella strigata) नामक सीपियों के प्रसार से संबंधित है, जिसे ‘चारु सीपी’ (Charru Mussel) भी कहते हैं।
यह समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाता है और मछुआरों की नावों की आवाजाही में बाधक बनता है। इससे उनकी आजीविका प्रभावित होती है।
WRD के अनुसार, तमिलनाडु के एन्नोर में स्थित कामराजार बंदरगाह द्वारा जलयानों से आने वाले ब्लॅास्ट वॉटर के विनियमिन का अभाव आक्रामक प्रजातियों के प्रसार का मुख्य कारण है।
ब्लॅास्ट वाटर समुद्री जहाजों (जलयानों) में भरकर लाया जाने वाला समुद्री जल है, जिसका उपयोग जहाज के स्थायित्व व संतुलन के लिए किया जाता है।
एक पारितंत्र से दूसरे पारितंत्र में जाने के कारण यह जल पर्यावरण एवं जैव विविधता के लिए गंभीर खतरा भी उत्पन्न कर सकता है।
ब्लॅास्ट वाटर में विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीव, पौधे व छोटे समुद्री जीव होते हैं। जब ये एक समुद्री क्षेत्र से दूसरे समुद्री क्षेत्र में ले जाए जाते हैं तो स्थानीय पारितंत्र को प्रभावित कर सकते हैं।
इन जीवों में कुछ आक्रामक व विदेशज प्रजातियाँ भी हो सकती हैं, जो नए पर्यावरण में तेजी से फैलकर वहां की स्थानीय प्रजातियों को नुकसान पहुंचा सकती हैं।
ब्लॅास्ट वाटर आक्रामक प्रजातियों को दूसरे देशों में ले जाता है जो पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट करते हैं। इसलिए, भारत में वैश्विक शिपिंग ने ब्लॅास्ट पानी के निर्वहन को विनियमित करने की मांग की है।
ब्लॅास्ट वाटर प्रबंधन की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि यह समुद्री पर्यावरण के लिए खतरा बन सकते हैं।
यह अनुमान है कि दुनिया भर में वार्षिक 5 बिलियन टन तक ब्लॅास्ट वॉटर स्थानांतरित होता है और लगभग 10,000 अवांछित प्रजातियाँ प्रतिदिन जलयानों के ब्लॅास्ट टैंक में ले जाई जाती हैं।
इसलिए, ब्लॅास्ट वॉटर को व्यापक रूप से एक प्रमुख पर्यावरणीय खतरा माना जाता है क्योंकि यह संवेदनशील समुद्री पारितंत्र को खतरे में डालता है और समुद्री जीवन को अपरिवर्तनीय क्षति पहुँचा सकता है।
हाल ही में, भारत में वैज्ञानिकों ने ब्लॅास्ट वाटर से आने वाली लगभग 30 आक्रामक प्रजातियों को दर्ज किया है और सबसे ज़्यादा नुकसानदायक प्रजातियों में ‘चारु सीपी’ है।
केरल विश्वविद्यालय में जलीय जीव विज्ञान एवं मत्स्य पालन विभाग के अनुसार, तमिलनाडु की पुलिकट झील में केरल की अष्टमुडी झील की तरह चारु सीपी ने लगभग सभी अन्य प्रजातियों का स्थान ले लिया है।
चारु सीपी की जीवित रहने और अंडा देने की दर बहुत अधिक है। यद्यपि यह समुद्री मूल का जीव है किंतु यह ताजे पानी में भी जीवित रह सकता है।
ब्लॅास्ट वाटर प्रबंधन को नियमित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) ने वर्ष 2004 में ब्लॅास्ट वाटर प्रबंधन अभिसमय (BWM Convention) को अपनाया। यह अभिसमय वैश्विक स्तर पर वर्ष 2017 से लागू हुआ।
इसका उद्देश्य जलयान ब्लॅास्ट वाटर को पर्यावरण अनुकूल तरीके से प्रबंधित करना और समुद्री जीवन व पर्यावरण को खतरे से बचाने के लिए जलयानों को अपने ब्लॅास्ट वाटर को विशेष तकनीकों से स्वच्छ करना है।
BWM अभिसमय लागू होने पर 400 सकल रजिस्टर टन भार (Gross Register Tonnage : GRT) और उससे अधिक के सभी जलयानों को जहाज पर एक स्वीकृत ब्लॅास्ट वाटर उपचार प्रणाली फिट करना आवश्यक होगा। साथ ही, जलयानों को समुद्री प्रशासन द्वारा अनुमोदित एक जलयान विशिष्ट BWM योजना की आवश्यकता होगी जिसे एक अंतर्राष्ट्रीय BWM प्रमाण-पत्र जारी करके सत्यापित किया जाएगा।
ब्लॅास्ट वाटर विनिमय : इस प्रक्रिया में जलयान द्वारा समुद्र के गहरे जल में अपने ब्लॅास्ट वाटर का आदान-प्रदान करना शामिल है, जिससे तटीय क्षेत्रों में रहने वाले सूक्ष्मजीव व अन्य जीव गहरे समुद्र में जाने से वहां जीवित नहीं रह सकते हैं।
ब्लॅास्ट वाटर उपचार प्रणालियाँ : इन प्रणालियों में ब्लॅास्ट वाटर को जैविक व रासायनिक तरीकों से साफ किया जाता है। इसमें फ़िल्ट्रेशन, यूवी विकिरण और क्लोरीनीकरण जैसी तकनीकें शामिल हैं, जो पानी में मौजूद जीवों को नष्ट करने या उन्हें निष्क्रिय करने के लिए उपयोग की जाती हैं।
निक्षेप प्रबंधन : ब्लॅास्ट टैंक के तल पर जमा होने वाले निक्षेप को नियंत्रित व प्रबंधित करना भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इनमें भी आक्रामक प्रजातियाँ हो सकती हैं।
भारत ने वर्ष 2015 में BWM अभिसमय को स्वीकार किया और केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मई 2015 में मर्चेंट शिपिंग (संशोधन) विधेयक, 2015 को पेश करने को मंजूरी दी।
विधेयक में अभिसमय में निहित नियमों के उल्लंघन या अनुपालन न करने पर जुर्माने का प्रावधान है और बंदरगाहों पर अतिरिक्त सुविधाओं का उपयोग करने वाले जहाजों से शुल्क लेने का प्रावधान है।
इसके अलावा, भारत के प्रादेशिक जल में चलने वाले 400 जी.आर.टी. से कम के भारतीय जहाजों को अंतर्राष्ट्रीय प्रमाणपत्र के बजाए भारतीय ब्लॅास्ट वाटर प्रबंधन प्रमाण-पत्र जारी किया जाएगा और उन्हें भारतीय जल में अभिसमय के तहत सभी नियमों का पालन करना होगा।
भारत ने BWM पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, इसलिए भारतीय बंदरगाहों पर आने वाले जहाजों पर BWM अभिसमय को लागू करने की कोई बाध्यता नहीं है।
यद्यपि पेट्रोलियम के रिसाव (निष्कर्षण) से संबंधित अन्य नियम भारतीय बंदरगाहों पर लागू होते हैं किंतु अन्य देशों से आने वाले ब्लॅास्ट वाटर के निष्कर्षण पर जाँच या विनियमन नहीं होता है।
भारतीय बंदरगाहों ने भी ब्लॅास्ट वाटर प्रबंधन के प्रति अपने प्रयासों को तेज किया है। कुछ प्रमुख बंदरगाहों पर आधुनिक ब्लॅास्ट वाटर उपचार प्रणालियों की स्थापना की गई है।
समुद्री पर्यावरण के संरक्षण के लिए जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं, ताकि जलयान स्वामी व संचालक ब्लॅास्ट वाटर प्रबंधन के नियमों का पालन कर सके।
सभी जलयानों पर ब्लॅास्ट वाटर प्रबंधन प्रणाली को लागू करना महंगा व तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
विभिन्न देशों के बीच कानूनों व नियमों में भी एकरूपता का अभाव है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय समुद्री परिवहन पर प्रभाव पड़ सकता है।
ब्लॅास्ट वाटर के कारण समुद्री पारितंत्र असंतुलित हो रहा है और गैर-स्थानीय प्रजातियों के प्रसार के कारण अन्य प्रजातियों का जीवन चुनौतीपूर्ण हो गया है।
आगे की राह
भारत में ब्लॅास्ट वाटर प्रबंधन को अधिक प्रभावी बनाने के लिए नीतिगत स्तर पर और कदम उठाने की आवश्यकता है।
जलयान स्वामियों को सख्त निगरानी में लाने, बेहतर तकनीकी समाधान विकसित करने और स्थानीय समुद्री पारितंत्र संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय सहयोग एवं अनुभव साझा करने से भी भारत इस चुनौती का सामना करने में सफल हो सकता है।
क्या है : संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी
स्थापना : जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में अपनाए गए एक अभिसमय के माध्यम से 17 मार्च, 1948 को
सदस्य देश : 174
मुख्यालय : लन्दन
उद्देश्य :
समुद्री सुरक्षा पर अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ व अन्य तंत्र विकसित करना
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भेदभावपूर्ण एवं प्रतिबंधात्मक प्रथाओं को हतोत्साहित करना
शिपिंग चिंताओं द्वारा अनुचित व्यवहार को रोकना
समुद्री प्रदूषण को कम करना
यह परिचालन या दुर्घटना के कारण जहाजों द्वारा समुद्री पर्यावरण के प्रदूषण की रोकथाम को कवर करने वाला मुख्य अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय है।
2 नवंबर, 1973 को MARPOL अभिसमय को अपनाया गया था।
क्या है : भारत में जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 के तहत नागरिक पंजीकरण प्रणाली जन्म व मृत्यु जैसी महत्वपूर्ण घटनाओं के रिकॉर्ड के लिए कानूनी रूप से अनिवार्य तथा सार्वभौमिक रूप से लागू प्रणाली है।
शुरूआत : भारतीय नागरिक पंजीकरण प्रणाली की शुरुआत 1860 के दशक में हुई, जब स्वास्थ्य अधिकारियों ने प्लेग से बचने के लिए मौतों का पंजीकरण करना शुरू किया।
पंजीकरण : राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में विभिन्न स्तरों पर पंजीकरण कार्य विभिन्न विभागों द्वारा किया जाता है।
निगरानी : भारत के महापंजीयक नागरिक पंजीकरण प्रणाली के कामकाज की निगरानी करते हैं।
डिजिटल अनिवार्यता : जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण (संशोधन) अधिनियम के अनुसार, 1 अक्तूबर, 2023 से देश में होने वाले सभी जन्म व मृत्यु को केंद्र के पोर्टल के माध्यम से डिजिटल रूप से पंजीकरण करना अनिवार्य है।
समवर्ती सूची में शामिल : ‘जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण’ का विषय संविधान की समवर्ती सूची में शामिल है।
अंतरिक्ष एजेंसी SpaceX पोलारिस डॉन मिशन को लॉन्च करने के लिए तैयार है, जो निजी अंतरिक्ष उड़ान के लिए महत्वपूर्ण होगा।
इस मिशन को फ्लोरिडा स्थित नासा के कैनेडी स्पेस सेंटर से फाल्कन 9 रॉकेट द्वारा लॉन्च किया जाएगा।
पोलारिस डॉन मिशन के बारे में
यह मिशन पोलारिस कार्यक्रम के तहत नियोजित तीन मिशनों में से पहला है, जिसका वित्तपोषण व संचालन उद्यमी जेरेड इसाकमैन द्वारा किया जा रहा है।
इससे पहले उन्होंने सितंबर 2021 में इंस्पिरेशन4 मिशन का नेतृत्व किया था।
पोलारिस डॉन अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के साथ डॉक (Dock) नहीं करेगा, बल्कि पृथ्वी की कक्षा में एक मुक्त-उड़ान मिशन के रूप में कार्य करेगा।
चालक दल में चार सदस्य शामिल हैं : जेरेड इसाकमैन, स्कॉट किड पोटेट और मिशन विशेषज्ञ सारा गिलिस और अन्ना मेनन, दोनों स्पेसएक्स में इंजीनियर हैं।
मिशन के उद्देश्य
वाणिज्यिक रूप से पहली बार निजी स्पेसवॉक करना
स्टारलिंक के लेजर-आधारित संचार का परीक्षण करना और मानव स्वास्थ्य पर अंतरिक्ष उड़ान व अंतरिक्ष विकिरण के प्रभावों पर अनुसंधान को आगे बढ़ाना
स्पेसएक्स के नए डिज़ाइन किए गए अतिरिक्त वाहन गतिविधि (Extravehicular Activity : EVA) स्पेससूट का अंतरिक्ष में परीक्षण करना
इन प्रयासों का उद्देश्य भविष्य के लंबी अवधि के मिशनों, जैसे- चंद्रमा व मंगल पर उपयोग के लिए स्केलेबल स्पेससूट डिजाइन के विकास का मार्ग प्रशस्त करना है।
लगभग 700 किलोमीटर की ऊंचाई तक पृथ्वी की सबसे ऊंची कक्षा तक पहुंचना
यह अपोलो युग (अपोलो के मिशनों) के बाद से किसी चालक दल के मिशन के लिए सबसे अधिक दूरी होगी।
सेंट जूड चिल्ड्रेन्स रिसर्च हॉस्पिटल के लिए धन जुटाना
केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री ने लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में सरकार की पीएम-प्रणाम पहल के विषय में जानकारी प्रदान की।
पीएम-प्रणाम का अर्थ धरती माता की उर्वरता की बहाली, जागरूकता, पोषण और सुधार हेतु प्रधानमंत्री कार्यक्रम (PM Programme for Restoration, Awareness, Nourishment and Amelioration of Mother Earth) है।
पीएम-प्रणाम की घोषणा पहली बार केंद्र सरकार द्वारा 2023-24 के बजट में की गई थी।
उद्देश्य: राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के प्रयासों को बढ़ावा देना:
उर्वरकों का सतत् और संतुलित उपयोग।
वैकल्पिक उर्वरकों को अपनाने हेतु प्रोत्साहित करना।
जैविक और प्राकृतिक कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना।
वित्तीय तंत्र: जो राज्य और केंद्र शासित प्रदेश पिछले तीन वर्षों के औसत की तुलना में अपने रासायनिक उर्वरक उपयोग को कम करेंगे, उन्हें उर्वरक सब्सिडी से 50% बचत प्राप्त होगी।
इस अनुदान का उपयोग किसानों सहित स्थानीय आबादी के लाभ के लिये किया जा सकता है।
सम्मिलित उर्वरक के प्रकार: यूरिया, डायमोनियम फॉस्फेट (Diammonium Phosphate- DAP), नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम(NPK) और म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP)।
क्षेत्र: भारत के सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश।
आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA):
इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं और यह सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश हेतु प्राथमिकताएँ निर्धारित करता है।
यह एक एकीकृत आर्थिक नीति ढाँचा विकसित करने हेतु आर्थिक रुझानों की निरंतर समीक्षा करता है तथा विदेशी निवेश सहित आर्थिक क्षेत्र में नीतियों व गतिविधियों की देखरेख करता है, जिसके लिये उच्च स्तरीय निर्णय लेने की आवश्यकता होती है।
वर्ष 2024 में पर्सिड उल्का बौछार (पर्सिड मेटोर शावर-Perseid Meteor Shower) जुलाई के आसपास शुरू हुआ और अगस्त के अंत तक चरम गतिविधि के साथ 11 से 13 अगस्त, 2024 तक जारी रहा।
पर्सिड उल्का कॉमेट स्विफ्ट-टटल द्वारा पीछे छोड़े गए मलबे हैं, जो सूर्य की एक अण्डाकार पथ में परिक्रमा करते हैं, जिसमें एक परिक्रमा में 133 वर्ष लगते हैं।
माना जाता है कि पर्सिड नाम ,पर्सियस नक्षत्र से लिया गया है।
कॉमेट जमे हुए अपशिष्ट हैं, जो धूल, चट्टान और बर्फ से बनी सौर प्रणाली के गठन से बने होते हैं।
जब पृथ्वी सूर्य के चारों ओर अपने मार्ग को काटते हुए मलबे के बादल (cloud of debris) से होकर गुजरती है, तो पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण मलबे को खुद की ओर आकर्षित करता है, जिससे उल्का बौछार उत्पन्न होती है।
एक उल्का बौछार वर्ष के एक विशेष समय में अंतरिक्ष से पृथ्वी पर उल्काओं (अंतरिक्ष में चट्टान के छोटे टुकड़े) की वर्षा है।
अधिकांश उल्का वातावरण में जलकर नष्ट हो जाते हैं।
कुछ उल्का जिनका वायु के माध्यम से अधिक स्पर्शरेखा मार्ग (tangential path) होता हैं, वे छोटे आग के गोले (fireball) का उत्पादन करते हैं।
उल्काओं को "शूटिंग स्टार" के नाम से जाना जाता है: प्रकाश की चौंका देने वाली धारियाँ जो अचानक आकाश में दिखाई देती हैं जब बाहरी अंतरिक्ष से धूल का कण पृथ्वी के वायुमंडल में ऊपर वाष्पित हो जाता है। हम वायुमंडल में प्रकाश की घटना को "उल्का" कहते हैं, जबकि धूल के कण को "उल्कापिंड" कहा जाता है।
संदर्भ
केंद्र सरकार ने वक्फ़ अधिनियम, 1995 में संशोधन के लिए लोकसभा में एक विधेयक प्रस्तुत किया है। इसे संसद की संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को प्रेषित कर दिया गया है।
‘वक्फ़’ अरबी भाषा के ‘वकुफा’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ ‘बाँधना’, 'रोकना' या 'समर्पण करना' होता है।
इस्लामी मान्यता में धर्म के आधार पर दान की गई चल या अचल संपत्ति ‘वक्फ़’ कहलाती है। दान देने वाले व्यक्ति को ‘वकिफा/वकीफ’ कहा जाता है।
हालाँकि, संपत्ति दान करने की शर्त यह है कि उस चल/अचल संपत्ति से होने वाली आय को इस्लाम धर्म की खिदमत (सेवा) में ही व्यय किया जा सकता है।
इस संपत्ति से गरीब व जरूरतमंदों की मदद करना, मस्जिद या अन्य धार्मिक संस्थान को बनाए रखना, शिक्षा की व्यवस्था करना और अन्य धार्मिक कार्यों के लिए धन देने संबंधी कार्य किए जा सकते हैं।
कुल संपत्ति : स्वतंत्रता के पश्चात वक्फ़ की पूरे देश में लगभग 52,000 संपत्तियां थीं, जो वर्ष 2009 में बढ़कर 3 लाख (4 लाख एकड़ क्षेत्रफल) तक हो गई।
संपत्ति में वृद्धि : वर्तमान में वक्फ़ की 8 लाख एकड़ भूमि में फैली 8,72,292 से ज्यादा पंजीकृत अचल संपत्तियाँ है जबकि कुल चल संपत्तियों की संख्या 16,713 हैं।
अचल संपत्तियों के के क्षेत्रफल में पिछले 13 वर्षों में दो गुनी वृद्धि हुई है।
WAMSI पोर्टल : इन संपत्तियों का विवरण वक्फ़ एसेट्स मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया (WAMSI) पोर्टल पर दर्ज किया गया है।
तीसरा सबसे बड़ा भूस्वामित्त्व : सशस्त्र बलों (सेना) और भारतीय रेलवे के बाद देश में तीसरा सबसे बड़ा भूस्वामित्त्व वक्फ़ बोर्ड के पास है अर्थात सर्वाधिक भूमि के मामले में वक्फ़ बोर्ड देश में तीसरे स्थान पर है।
कीमत : वक्फ़ बोर्ड की संपत्तियों की अनुमानित कीमत 1.2 लाख करोड़ रुपए है।
वक्फ संपत्ति का प्रबंधन : वक्फ संपत्ति का प्रबंधन मुतवल्ली (देखभालकर्ता) करता है, जो पर्यवेक्षक के रूप में कार्य करता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत में वक्फ़ की अवधारणा दिल्ली सल्तनत के काल में प्रारंभ हुई।
प्रथम उदाहरण : वर्ष 1173 में सुल्तान मुहम्मद ग़ौरी द्वारा मुल्तान की जामा मस्जिद को गाँव समर्पित करना।
वक्फ़ को विनियमित करने का पहला प्रयास वर्ष 1923 में मुस्लिम वक्फ़ अधिनियम के माध्यम से किया गया।
स्वतंत्र भारत में, संसद ने पहली बार वर्ष 1954 में वक्फ़ अधिनियम पारित किया।
इस अधिनियम को वर्ष 1995 में एक नए वक्फ़ अधिनियम से प्रतिस्थापित किया गया, जिसने वक्फ़ बोर्ड्स को अधिक शक्तियाँ प्रदान कर दी।
इस नए कानून से अतिक्रमण में वृद्धि के साथ-साथ वक्फ़ संपत्तियों के अवैध पट्टे एवं बिक्री की शिकायतों में वृद्धि हुई।
इन शिकायतों को दूर करने के लिए वर्ष 2013 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया। इसमें वक्फ़ बोर्ड्स को मुस्लिम दान के नाम पर संपत्तियों का दावा करने के लिए इन बोर्ड्स को असीमित अधिकार प्रदान कर दिए गए और न्यायालय का हस्तक्षेप समाप्त कर दिया गया।
वक्फ़ बोर्ड के पास निर्णयन संबंधी असीमित अधिकार होने मामला अधिक गंभीर हो गया।
पृष्ठभूमि : ‘वक्फ़ अधिनियम, 1995’ में कैबिनेट द्वारा 40 संशोधनों की स्वीकृति के पश्चात केंद्र सरकार ने 8 अगस्त, 2024 को वक्फ़ (संशोधन) विधेयक, 2024 लोकसभा में प्रस्तुत किया।
उद्देश्य : वक्फ संपत्तियों के प्रशासन एवं प्रबंधन की दक्षता बढ़ाना।
प्रमुख लक्ष्य :
वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन का आधुनिकीकरण करना
महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना
केंद्रीय वक्फ परिषद और वक्फ बोर्ड्स में सभी समुदायों का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना
मुकदमेबाजी को कम करना
राजस्व विभाग के साथ प्रभावी समन्वय स्थापित करना
न्यायाधिकरण के निर्णयों पर न्यायिक निगरानी
नाम परिवर्तन
वर्तमान नाम : वक्फ़ अधिनियम, 1995
संशोधित नाम : संयुक्त वक्फ़ प्रबंधन, सशक्तीकरण, दक्षता एवं विकास अधिनियम, 1995
वर्तमान स्थिति
वर्तमान अधिनियम वक्फ़ के गठन या किसी भूमि को वक्फ़ घोषित करने की अनुमति निम्नलिखित तरीकों से देता है :
घोषणा द्वारा (वक्फ़ बोर्ड द्वारा निर्धारित करना)
दीर्घकालिक उपयोग के आधार पर मान्यता (उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ़ की घोषणा)
उदाहरणस्वरुप : यदि कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति मदरसा आदि धार्मिक कार्यों के उपयोग के लिए देता है किंतु कुछ समय बाद मदरसे का देखभाल करने वाला उसे वक्फ संपत्ति के रूप में बदलने की मांग करता है, तब यह वक्फ बोर्ड का अधिकार होगा कि वह उस भूमि को वक्फ घोषित करे या नहीं। संशोधन के बाद ऐसा करना संभव नहीं होगा, जब तक कि भूमि का वास्तविक स्वामी अपनी सहमति नहीं देता है।
उत्तराधिकार का वंश समाप्त होने पर बंदोबस्ती (वक्फ़-अलल-औलाद)
वक्फ-अलल-औलाद : इस इस्लामी कानून के अनुसार, किसी संपत्ति को वक्फकर्ता के अपने परिवार या उसके बच्चों या उसके बच्चों के बच्चों के कल्याण के लिए वक्फ किया जाता है।
संशोधन
संसोधित विधेयक के अनुसार, केवल कम-से-कम पाँच वर्षों से इस्लाम का पालन करने वाला व्यक्ति ही वक्फ़ की घोषणा कर सकता है।
यदि कोई व्यक्ति वक्फ़ की घोषणा करता है तो उसे वक्फ़ घोषित की जा रही संपत्ति का मालिक होना चाहिए। यह ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ़ की घोषणा’ को समाप्त करता है।
विधेयक के अनुसार, वक्फ़-अलल-औलाद के परिणामस्वरूप महिला उत्तराधिकारियों सहित दानकर्ता के उत्तराधिकारी को अपने अधिकारों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।
वर्तमान स्थिति
अधिनियम के अनुसार वक्फ़ के रूप में पहचान की गई कोई भी संपत्ति (सरकारी व गैर-सरकारी) वक्फ़ मानी जा सकती है।
अधिनियम की धारा 40 के अनुसार वक्फ़ बोर्ड को यह जांच करने और निर्धारित करने का अधिकार है कि कोई संपत्ति वक्फ़ है या नहीं।
संशोधन
विधेयक के अनुसार, वक्फ़ के रूप में पहचान की गई कोई भी सरकारी संपत्ति वक्फ़ नहीं मानी जाएगी।
अनिश्चितता की स्थिति में उस क्षेत्र का कलेक्टर स्वामित्व का निर्धारण करेगा और राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपेगा।
विधेयक द्वारा अधिनियम की धारा 40 (वक्फ़ बोर्ड की वक्फ़ निर्धारित करने की शक्ति) के प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है।
वर्तमान स्थिति : अधिनियम में वक्फ़ का सर्वेक्षण करने के लिए सर्वेक्षण आयुक्त एवं अतिरिक्त आयुक्तों की नियुक्ति का प्रावधान है।
संशोधन : विधेयक कलेक्टरों को सर्वेक्षण करने का अधिकार देता है। लंबित सर्वेक्षण राज्य के राजस्व कानूनों के अनुसार किए जाएंगे।
वर्तमान स्थिति
अधिनियम में केंद्रीय वक्फ़ परिषद के गठन का प्रावधान है जो केंद्र व राज्य सरकारों तथा वक्फ़ बोर्ड्स को सलाह देती है।
वक्फ़ के प्रभारी केंद्रीय मंत्री परिषद के पदेन अध्यक्ष होते हैं।
परिषद के सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए और उनमें से कम-से-कम दो महिलाएँ (मुस्लिम होना आवश्यक नहीं) होनी चाहिए।
संशोधन
विधेयक में प्रावधान है कि दो सदस्य गैर-मुस्लिम होने चाहिए।
संशोधन के बाद परिषद में नियुक्त सांसदों, पूर्व न्यायाधीशों व प्रतिष्ठित व्यक्तियों का मुस्लिम होना आवश्यक नहीं है।
हालाँकि, निम्नलिखित सदस्यों का मुस्लिम होना ज़रूरी है : (i) मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधि, (ii) इस्लामी कानून के विद्वान और (iii) वक्फ़ बोर्ड्स के अध्यक्ष।
मुस्लिम सदस्यों में से दो महिलाएँ अवश्य होनी चाहिए।
वर्तमान स्थिति : वक्फ़ बोर्ड अधिनियम 1995 के अनुसार, किसी राज्य और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के लिए बोर्ड में निम्नलिखित सदस्य शामिल होंगे :
एक अध्यक्ष
निर्वाचित सदस्य: सदस्यों (प्रत्येक वर्ग से अधिकतम दो सदस्य अर्थात अधिकतम 8 निर्वाचित सदस्य संभव) का निर्वाचन प्रत्येक निर्वाचक मंडल द्वारा होगा। निर्वाचक मंडल के चार वर्ग होंगे जो आपस में ही सदस्यों का चुनाव करेंगे। निर्वाचक मंडल में निम्नलिखित व्यक्ति (वर्ग) शामिल होंगे:
राज्य से संसद के मुस्लिम सदस्य
राज्य विधानमंडल के मुस्लिम सदस्य
संबंधित राज्य या संघ राज्य क्षेत्र की बार काउंसिल के मुस्लिम सदस्य
यदि बार काउंसिल का कोई मुस्लिम सदस्य नहीं है, तो राज्य/संघ सरकार राज्य/संघ राज्य क्षेत्र से किसी वरिष्ठ मुस्लिम अधिवक्ता को नामित कर सकता है।
मुतवल्ली (वक्फ़ देखभालकर्ता) जिनकी वार्षिक आय एक लाख रुपए या उससे अधिक है।
यदि उल्लिखित किसी भी श्रेणी में कोई मुस्लिम सदस्य नहीं हैं, तो वहां संसद, राज्य विधानमंडल के पूर्व मुस्लिम सदस्य या राज्य बार काउंसिल के पूर्व सदस्य से निर्वाचक मंडल का गठन करेंगे।
यदि उल्लिखित किसी भी श्रेणी के लिए निर्वाचक मंडल का गठन करना उचित रूप से व्यवहार्य नहीं है, तो राज्य सरकार ऐसे व्यक्तियों को बोर्ड के सदस्यों के रूप में नामित कर सकती है जिन्हें वह ठीक समझे।
केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार का कोई मंत्री बोर्ड के सदस्य के रूप में निर्वाचित या मनोनीत नहीं किया जाएगा। बोर्ड में नियुक्त कम-से-कम दो सदस्य महिलाएं होंगी।
संशोधन
विधेयक राज्य सरकार को बोर्ड में उपरोक्त प्रत्येक पृष्ठभूमि से एक व्यक्ति को नामित करने का अधिकार देता है। साथ ही, उन्हें मुस्लिम होने की आवश्यकता नहीं है।
यद्यपि नामित सदस्यों की योग्यता को लेकर पूर्व व्यवस्था लागू रहेगी किंतु सदस्यों के समुदाय से संबंधित कुछ संशोधन प्रस्तावित है। संशोधन के अनुसार, बोर्ड में निम्नलिखित सदस्य होने चाहिए : (i) दो गैर-मुस्लिम सदस्य (ii) शिया, सुन्नी व पिछड़े मुस्लिम वर्गों से कम-से-कम एक सदस्य (iii) इसमें बोहरा व आगाखानी समुदायों से भी एक-एक सदस्य होना चाहिए, यदि उनके पास राज्य में वक्फ़ संपति है।
इसमें दो मुस्लिम महिला सदस्य होना आवश्यक है।
वर्तमान स्थिति
अधिनियम के अनुसार राज्यों को वक्फ़ से संबंधित विवादों को निपटाने के लिए न्यायाधिकरणों का गठन करना होगा।
इन न्यायाधिकरणों का अध्यक्ष प्रथम श्रेणी, जिला, सत्र या सिविल न्यायाधीश के समकक्ष रैंक का न्यायाधीश होना चाहिए।
अन्य सदस्यों में शामिल हैं : (i) अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट के बराबर का एक राज्य अधिकारी, और (ii) मुस्लिम कानून व न्यायशास्त्र का जानकार व्यक्ति।
संशोधन
विधेयक तीसरे सदस्य के रूप में मुस्लिम कानून व न्यायशास्त्र के जानकार व्यक्ति को न्यायाधिकरण से हटा देता है।
संशोधन केवल निम्नलिखित दो सदस्यों को न्यायाधिकरण में शामिल करता है : (i) अध्यक्ष के रूप में एक वर्तमान या पूर्व जिला न्यायालय का न्यायाधीश, और (ii) राज्य सरकार के संयुक्त सचिव के रैंक का एक वर्तमान या पूर्व अधिकारी।
वर्तमान स्थिति : अधिनियम के तहत, ट्रिब्यूनल के निर्णय अंतिम होते हैं और न्यायालयों में उसके निर्णयों के खिलाफ अपील निषिद्ध है।
संशोधन : विधेयक ट्रिब्यूनल के निर्णयों को अंतिम माने जाने वाले प्रावधानों को हटा देता है। ट्रिब्यूनल के आदेशों के खिलाफ 90 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
वर्तमान स्थिति : अधिनियम के तहत केवल राज्य सरकार वक्फ़ के खातों का ऑडिट वार्षिक रूप से करवा सकती है।
संशोधन : विधेयक केंद्र सरकार को निम्नलिखित के संबंध में नियम बनाने का अधिकार देता है : (i) पंजीकरण, (ii) वक्फ़ के खातों का प्रकाशन, और (iii) वक्फ़ बोर्ड की कार्यवाही का प्रकाशन।
विधेयक केंद्र सरकार को CAG या किसी नामित अधिकारी से वक्फ़ का ऑडिट करवाने का अधिकार प्रदान करता है।
शिया संप्रदाय के लिए : अधिनियम सुन्नी व शिया संप्रदायों के लिए अलग-अलग वक्फ़ बोर्ड स्थापित करने की अनुमति देता है, बशर्ते शिया वक्फ़ की संपति राज्य में सभी वक्फ़ संपत्तियों या वक्फ़ आय का 15% से अधिक हो।
बोहरा एवं आगाखानी के लिए : विधेयक आगाखानी व बोहरा मुस्लिम संप्रदायों के लिए अलग-अलग वक्फ़ बोर्ड की भी अनुमति देता है।
वक्फ़ अधिनियम, 1995 के तहत वक्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए प्रत्येक राज्य में एक वक्फ़ बोर्ड के गठन का प्रावधान किया गया है।
इसके तहत सभी वक्फ़ संपत्तियों का पंजीकरण संबंधित राज्य वक्फ़ बोर्ड में अनिवार्य होता है।
केंद्र ने सभी वक्फ़ बोर्ड्स के साथ तालमेल के लिए केंद्रीय वक्फ़ परिषद् का गठन किया है।
वक्फ़ एसेट्स मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया के अनुसार, देश में कुल 30 वक्फ़ बोर्ड्स हैं।
कार्य
बोर्ड का प्रमुख कार्य वक्फ़ संपत्तियों का पंजीकरण, संरक्षण व प्रबंधन करना है।
बोर्ड यह सुनिश्चित करता है कि वक्फ़ संपत्तियों का उपयोग धार्मिक एवं चैरिटेबल उद्देश्यों के लिए हो रहा है।
अधिकार
वक्फ़ बोर्ड के पास वक्फ़ संपत्तियों का निरीक्षण करने और उन पर नियंत्रण रखने का अधिकार होता है।
यह बोर्ड वक्फ़ संपत्तियों के प्रबंधकों (मुतवल्ली) की नियुक्ति और उनके कार्यों की समीक्षा भी करता है।
विवाद समाधान के लिए : जब कोई संपत्ति एक बार वक्फ घोषित हो जाती है, तो वह हमेशा के लिए वक्फ ही रहती है। इसने विभिन्न विवादों व दावों को जन्म दिया है।
उदाहरण के लिए, द्वारका में दो द्वीपों, बेंगलुरु ईदगाह मैदान, सूरत नगर निगम भवन, कोलकाता का टॉलीगंज क्लब और बेंगलुरु में आई.टी.सी. विंडसर होटल इत्यादि विवाद के मामले।
अतिक्रमण के मुद्दे : वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण भी एक चुनौती है।
उदाहरण के लिए, सितंबर 2022 में तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने वस्तुत: हिंदुओं द्वारा बसाए गए पूरे थिरुचेंदुरई गांव पर स्वामित्व का दावा कर दिया है।
वक्फ नौकरशाही की अकुशलता : वक्फ नौकरशाही की अकुशलता के कारण अतिक्रमण, कुप्रबंधन, स्वामित्व विवाद एवं पंजीकरण व सर्वेक्षण में देरी जैसी समस्याएं सामने आई हैं।
उदाहरण के लिए, लखनऊ में जिस भूखंड पर फोरेंसिक विज्ञान संस्थान की स्थापना की गई है, उसे पूर्व में फर्जी तरीके से वक्फ संपत्ति घोषित करके निजी स्वामित्त्वधारक को बेच दिया गया था।
न्यायिक निगरानी न होना : वक्फ न्यायाधिकरणों के निर्णयों पर न्यायिक निगरानी की अनुपस्थिति से समस्या और भी जटिल हो गई है।
उदाहरण के लिए, वक्फ प्रणाली का हिस्सा बनने वाले न्यायाधिकरणों में 40,951 मामले लंबित हैं।
सच्चर कमेटी की सिफारिशें : सच्चर समिति की वर्ष 2006 की रिपोर्ट में अन्य बातों के अलावा विनियमन, अभिलेखों के कुशल प्रबंधन, वक्फ प्रबंधन में गैर-मुस्लिम तकनीकी विशेषज्ञता को शामिल करने और वक्फ को वित्तीय लेखा परीक्षण के तहत लाने की आवश्यकता की सिफारिश की गई थी।
वक्फ पर संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट : मार्च 2008 में राज्यसभा में प्रस्तुत वक्फ पर संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट में वक्फ बोर्ड्स की संरचना में सुधार करने, वक्फ संपत्तियों के अनधिकृत हस्तांतरण के लिए सख्त कार्रवाई करने, भ्रष्ट मुतव्वलियों के लिए सख्त सजा का प्रावधान करने, कुछ मामलों में उच्च न्यायालयों द्वारा हस्तक्षेप की गुंजाइश बनाने, वक्फ बोर्ड्स का कम्प्यूटरीकरण करने और केंद्रीय वक्फ परिषद में शिया समुदाय को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने की सिफारिश की गई थी।
कुछ समय पूर्व आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने अहमदिया मुस्लिम को मुसलमान मानने से इनकार कर दिया था। अत: वक्फ बोर्ड्स की संरचना में सुधार की आवश्यकता थी।
धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन : यह संशोधन संविधान के अनुच्छेद 26 द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन हो सकता हैं क्योंकि विधेयक में प्रावधान है कि गैर-मुस्लिम भी वक्फ बोर्ड के सदस्य हो सकते हैं। यह धर्म की आस्था एवं स्वतंत्रता पर हमला है।
प्रशासनिक अव्यवस्था : वक्फ बोर्ड की स्थापना एवं संरचना में संशोधन करने से प्रशासनिक अव्यवस्था उत्पन्न होगी।
स्वायत्ता की समाप्ति : नए विधेयक से वक्फ बोर्ड्स की स्वायत्ता एवं स्वतंत्रता खत्म हो जाएगी।
सामजिक तनाव : हितधारकों के साथ पर्याप्त परामर्श किए बिना संशोधन करने से तनाव में वृद्धि हो सकती है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस विधेयक को मुस्लिमों के पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप बताया है। हालांकि, सूफी दरगाहों का प्रतिनिधित्व करने वाली सर्वोच्च संस्था ऑल इंडिया सूफी सज्जादानशीन काउंसिल ने नए विधेयक का स्वागत किया है।
आगे की राह
भारत में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त एक मौलिक अधिकार है, जिसके उल्लंघन से किसी भी धार्मिक समुदाय के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है। नए विधेयक में यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, कि सरकार द्वारा किसी भी प्रकार से धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन न हो। इसके लिए सरकार को सभी हितधारकों के साथ समन्वय की आवश्यकता है, जिससे समाज में सौहार्द की स्थिति बनी रहे।
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे के पीछे अमेरिका की भूमिका की संभावना होने का दावा किया जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यदि शेख हसीना ने ने बंगाल की खाड़ी में सेंट मार्टिन द्वीप की संप्रभुता अमेरिका को सौंप दी होती और बंगाल की खाड़ी में उसे बेस बनाने की अनुमति दे देतीं तो वह सत्ता में बनी रह सकती थीं।
सेंट मार्टिन द्वीप के बारे में
परिचय : सेंट मार्टिन द्वीप बांग्लादेश का एकमात्र प्रवाल भित्ति द्वीप है। इसे लोकप्रिय रूप से बंगाली में ‘नारिकेल ज़िन्ज़िरा’ भी कहते हैं, जिसका हिंदी अर्थ ‘नारियल द्वीप’ होता है।
इसे 'दारुचिनी द्वीप' या दालचीनी द्वीप के नाम से भी जाना जाता है।
अवस्थिति : यह बंगाल की खाड़ी के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित यह द्वीप केवल 3 किमी. वर्ग क्षेत्र में फैला एक छोटा आइलैंड है। बांग्लादेश के कॉक्स बाजार-टेकनाफ प्रायद्वीप के सिरे से लगभग 9 किमी. दक्षिण में और म्यांमार के उत्तर-पश्चिमी तट से 8 किमी. पश्चिम में स्थित है। यह त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से 429 किमी. दूर अवस्थित है।
उपयोगिता : यह पर्यटकों के लिए एक पसंदीदा स्थल और स्थानीय समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन है।
द्वीप की अर्थव्यवस्था : यह मुख्यत: मछली पकड़ने, धान एवं नारियल की खेती और पर्यटन पर निर्भर करती है, जो इसके लगभग 5,500 निवासियों को आजीविका प्रदान करती है।
समुद्री सीमाएँ : यह द्वीप समुद्री सीमा विवादों के केंद्र में है, जिसका विशेष आर्थिक क्षेत्रों (EEZ) और महाद्वीपीय शेल्फों के सीमांकन पर प्रभाव पड़ता है।
अंतर्राष्ट्रीय कानून : म्यांमार के नौसैनिक बलों से जुड़ी घटनाएं अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून और संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय (UNCLOS) के पालन के बारे में सवाल उठाती हैं।
समुद्री मार्ग : इस द्वीप से समुद्री मार्ग के माध्यम से दुनिया के किसी भी हिस्से में जाया जा सकता है।
रणनीतिक स्थान : सेंट मार्टिन द्वीप बंगाल की खाड़ी में बांग्लादेश-म्यांमार समुद्री सीमा के निकट स्थित है। यह बांग्लादेश का सबसे दक्षिणी बिंदु है। यह बांग्लादेश के विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) संबंधी समुद्री दावों को पुष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
आर्थिक क्षमता : सेंट मार्टिन द्वीप के आसपास का जल समुद्री संसाधनों से समृद्ध है, जिसमें मछली व संभावित रूप से हाइड्रोकार्बन शामिल हैं। इस द्वीप में पर्यटन की भी अत्यधिक क्षमता है। यह घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को आकर्षित करता है, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान देता है।
पर्यावरणीय महत्व : यह द्वीप पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र है, जो प्रवाल भित्तियों, समुद्री कछुओं एवं विभिन्न मत्स्य प्रजातियों सहित विविध समुद्री जीवों का आवास है। जैव-विविधता संरक्षण और द्वीप के प्राकृतिक संसाधनों को बनाए रखने के लिए इसका पर्यावरणीय संरक्षण महत्वपूर्ण है।
भू-राजनीतिक हित : सेंट मार्टिन द्वीप रणनीतिक रूप से बंगाल की खाड़ी में स्थित होने और प्रमुख समुद्री मार्गों, अंडमान सागर एवं मलक्का जलडमरूमध्य के निकट होने के कारण भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है।
अमेरिका का तर्क है कि वह इस क्षेत्र में नौवहन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने और समुद्री मार्गों को सुरक्षित करने का इच्छुक है, जो वैश्विक व्यापार के लिए महत्वपूर्ण हैं।
क्षेत्रीय सुरक्षा : अमेरिका को अपनी व्यापक हिंद-प्रशांत रणनीति के हिस्से के रूप में दक्षिण एशिया, विशेष रूप से बंगाल की खाड़ी में स्थिरता बनाए रखने में रुचि है। सेंट मार्टिन द्वीप अपनी अवस्थिति के आधार पर क्षेत्रीय सुरक्षा गतिशीलता में प्रमुख भूमिका निभाता है।
यह भूमिका विशेष रूप से हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव के संबंध में महत्त्वपूर्ण है।
पर्यावरण संबंधी चिंताएँ : वैश्विक पर्यावरण संरक्षण में अमेरिका का निहित स्वार्थ है, विशेष रूप से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा में। सेंट मार्टिन द्वीप की प्रवाल भित्तियाँ और समुद्री जीवन अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरणीय हित के अनुरूप हैं और अमेरिका इन पारितंत्रों को संरक्षित करने के उद्देश्य से पहल का समर्थन कर सकता है।
अमेरिका इस पर सैन्य अड्डा स्थापित करना चाहता है। इसके लिए कथित तौर पर अमेरिका द्वारा सेंट-मार्टिन द्वीप को अधिगृहीत करने का प्रयास लगातार किया जा रहा है।
हालाँकि, अमेरिकी सेंट-मार्टिन द्वीप पर नियंत्रण करने या सैन्य अड्डा स्थापित करने से इनकार करता रहा है।
संभावित सैन्य अड्डा बांग्लादेश की संप्रभुता और रणनीतिक हितों के लिए सीधा खतरा पैदा कर सकता है। इससे क्षेत्रीय तनाव, विशेषकर पड़ोसी देश भारत के साथ, भी बढ़ सकता है।
यदि यह द्वीप बांग्लादेश के अलावा किसी अन्य शक्ति (जैसे- अमेरिका या चीन) द्वारा नियंत्रित होता है तो यह भारत के लिए एक चेक पोस्ट के रूप में काम करेगा। इससे बंगाल की खाड़ी एवं आसपास के पूरे समुद्री इलाके पर नजर रखी जा सकती है।
इससे भारत के पूर्वी तट से होने वाला व्यापार भी प्रभावित हो सकता है। साथ ही, भारत के सैन्य अभियानों व सैन्य गतिविधियों पर भी प्रभाव पड़ेगा।
इस द्वीप पर अमेरिका या चीन के प्रभाव से भारत के क्षेत्रीय एकीकरण के प्रयासों को झटका लग सकता है। इसके अतिरिक्त इसका प्रयोग किसी रणनीतिक मामले में भारत को संतुलित व नियंत्रित करने के लिए भी किया जा सकता है।
इस द्वीप का प्रयोग भारत के पूर्वोत्तर सीमावर्ती क्षेत्रों को प्रभावित करने के लिए भी किया जा सकता है। अन्य देशों के प्रवेश से बंगाल की खाड़ी में भारत के प्रभुत्त्व को कम किया जा सकता है।
सेंट मार्टिन द्वीप से भारत की सैन्य एवं अंतरिक्ष गतिविधियों की भी निगरानी की जा सकती है।
क्षेत्रीय सहयोग : वर्तमान परिस्थिति में बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल (BIMSTEC) देशों के बीच क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता है।
अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता : विवादों में मध्यस्थता करने और विवादों को बढ़ने से रोकने में आसियान या संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की भूमिका हो सकती है।
कूटनीतिक प्रयास : द्वीपीय देशों सहित हिंद महासागर में भारत के कूटनीतिक प्रयासों का उद्देश्य क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा बनाए रखना है।
आर्थिक सहायता : भारत द्वारा हिंद महासागर क्षेत्र के देशों को आर्थिक सहायता और चिकित्सा सहायता का प्रावधान एक जिम्मेदार क्षेत्रीय शक्ति होने की उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान ने ‘इंडिया रैंकिंग-2024’ जारी किया। इसमें वर्ष 2015 में शिक्षा मंत्रालय की ओर से इस उद्देश्य के लिए तैयार किए गए राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (National Institute Ranking Framework : NIRF) का उपयोग किया गया है।
यह भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों की रैंकिंग का लगातार 9वां संस्करण है। इंडिया रैंकिंग के 2024 संस्करण के विशिष्ट बिंदु इस प्रकार हैं :
तीन नई श्रेणियों अर्थात् राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालय, मुक्त विश्वविद्यालय और कौशल विश्वविद्यालय की शुरुआत
एन.आई.आर.एफ. ढाँचे का उपयोग करके इंडिया रैंकिंग में ‘नवाचार’ रैंकिंग का एकीकरण
तीन श्रेणियों अर्थात् मुक्त विश्वविद्यालय, राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालय और कौशल विश्वविद्यालय को जोड़ने के साथ इंडिया रैंकिंग का मौजूदा पोर्टफोलियो बढ़कर 16 श्रेणियों व विषयों तक पहुंच गया है।
इंडिया रैंकिंग-2016 में विश्वविद्यालयों के साथ-साथ तीन विषय-विशिष्ट रैंकिंग अर्थात् इंजीनियरिंग, प्रबंधन एवं फार्मेसी के लिए रैंकिंग की घोषणा की गई थी।
एन.आई.आर.एफ. में चिह्नित किए गए मापदंडों की पाँच व्यापक श्रेणियां हैं :
क्रम संख्या मापदंड भारांश
शिक्षण, सीखना एवं संसाधन 30%
अनुसंधान एवं पेशेवर कार्यप्रणाली 30%
स्नातक परिणाम 20%
संपर्क एवं समावेशिता 10%
धारणा 10%
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास ने लगातार छठे वर्ष समग्र श्रेणी में और इंजीनियरिंग में भी लगातार 9वें वर्ष अपना पहला स्थान बरकरार रखा है।
चेन्नई का सविता इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एंड टेक्निकल साइंसेज लगातार तीसरे वर्ष दंत चिकित्सा विषय में शीर्ष स्थान पर है।
कॉलेज श्रेणी में हिंदू कॉलेज ने लगातार सात वर्षों से शीर्ष पर विद्यमान मिरांडा हाउस को प्रतिस्थापित कर दिया है।
दिल्ली के कॉलेजों ने कॉलेजों की रैंकिंग में दबदबा बनाए रखा है। शीर्ष 10 में से 6 कॉलेज दिल्ली के ही हैं।
78वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर रक्षा मंत्रालय के तत्वावधान में हिमालय पर्वतारोहण संस्थान (HMI) के दिव्यांगजन अभियान दल ने अफ्रीकी महाद्वीप की सबसे ऊंची चोटी किलिमंजारो के उहुरू शिखर पर 7,800 वर्ग फुट का भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया है।
इसका उद्देश्य दिव्यांगजनों एवं अन्य वंचित युवाओं की भावी पीढ़ियों को अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित करना है।
क्या है : अफ्रीका का सबसे ऊँचा पर्वत है और दुनिया की सबसे ऊँची स्वतंत्र चोटी (5895 मीटर)
स्वतंत्र चोटी का अर्थ है कि यह किसी वास्तविक पर्वत श्रृंखला का हिस्सा नहीं है।
अवस्थिति : उत्तर-पूर्वी तंजानिया
विशेषता : एक प्रकार का स्ट्रेटोवॉल्कैनो
यह कठोर लावा, ज्वालामुखीय राख एवं टेफ़्रा परतों से बना है।
ज्वालामुखी चोटियाँ : तीन अलग-अलग ज्वालामुखी चोटियों का निर्माण
इसकी दो चोटियों मावेंज़ी व शिरा को विलुप्त माना जाता है। तीसरी चोटी किबो (किबो पर सबसे ऊँचा स्थान उहुरू) सबसे ऊँची है। इसको निष्क्रिय माना जाता है किंतु अभी तक यह विलुप्त नहीं हुई है। इसमें अंतिम ज्वालामुखी गतिविधि लगभग 200,000 वर्ष पूर्व हुई थी।
अद्वितीय जलवायु : आधार से शिखर तक पाँच अलग-अलग पारितंत्र या जलवायु क्षेत्र
किलिमंजारो राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना : वर्ष 1973 में
इस पार्क को वर्ष 1987 में यूनेस्को का विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ एलन मस्क का साक्षात्कार शुरू होने से कुछ मिनट पहले ही क्रैश हो गया। प्लेटफॉर्म X ने इसका कारण DDoS अटैक को माना है।
परिचय : DDoS (Distributed Denial of Service) साइबर अटैक में हमलावर किसी कंप्यूटर या नेटवर्क रिसोर्स को कई स्रोतों से आने वाले ट्रैफ़िक से भरकर उसे अनुपलब्ध बनाने का प्रयास करता है।
कार्यप्रणाली : इसमें लक्षित सिस्टम पर ट्रैफ़िक भेजने के लिए अवैध उपकरणों (बॉट्स) के नेटवर्क को नियंत्रित किया जाता है, जिससे सिस्टम ओवरलोड (Overloaded) हो जाता है और वैध अनुरोधों (Legitimate Requests) को संभालने में असमर्थ हो जाता है।
वॉल्यूमेट्रिक अटैक : इसमें लक्षित वेबसाइट की बैंडविड्थ को अन्य स्रोत से संतृप्त (Saturate) कर दिया जाता है अर्थात उसकी अधिकतम सीमा तक पंहुचा दिया जाता है। इस अटैक के परिमाण (Magnitude) को बिट्स प्रति सेकंड (Bps) में मापा जाता है।
प्रोटोकॉल अटैक : इस प्रकार का अटैक वास्तविक सर्वर रिसोर्स या फ़ायरवॉल एवं लोड बैलेंसर जैसे मध्यवर्ती संचार उपकरणों का उपभोग करता है। इसे पैकेट प्रति सेकंड (Pps) में मापा जाता है।
एप्लीकेशन लेयर अटैक : इस अटैक का उद्देश्य वेब सर्वर को क्रैश करना होता है। इसके परिमाण को रिक्वेस्ट प्रति सेकंड (Rps) में मापा जाता है।
DDoS हमले की पहचान करना कठिन होता है। हालाँकि, इसे निम्न तरीके से समझा जा सकता है, जैसे :
धीमी अपलोड या डाउनलोड प्रदर्शन गति
वेबसाइट का अनुपलब्ध हो जाना
इंटरनेट कनेक्शन का बंद हो जाना
असामान्य मीडिया एवं सामग्री
अत्यधिक मात्रा में स्पैम, इत्यादि
महत्वपूर्ण वित्तीय संरचना पर खतरा
समस्या समाधान की उच्च लागत
वित्तीय क्षति की संभावना
सर्वर डाउन होना
फिरौती की मांग
जोखिम आकलन एवं ऑडिट करना
असामान्य ट्रैफ़िक की गुणवत्ता या स्रोत का पता लगाना
ब्लैक होल रूटिंग
ब्लैक होल रूटिंग में नेटवर्क एडमिनिस्ट्रेटर या संगठन का इंटरनेट सेवा प्रदाता ब्लैक होल रूट का निर्माण करता है और ट्रैफ़िक को उस ब्लैक होल में पुश करता (धकेलता) है।
ट्रैफ़िक दर सीमित करना
सर्वर द्वारा एक निश्चित समय-सीमा के भीतर स्वीकार किए जाने वाले अनुरोधों की संख्या को सीमित कर देना भी इसका उपाय है।
संदर्भ
विश्व भर में शरणार्थी संकट के दौरान, महिलाएँ और लड़कियाँ सबसे अधिक संवेदनशील और असुरक्षित होती हैं। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) के अनुसार, 2023 में शरणार्थियों की कुल संख्या लगभग 35 मिलियन थी, जिसमें से लगभग 50% महिलाएँ और लड़कियाँ थीं।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ने स्वीकार किया है कि विस्थापन का चेहरा महिला है। विस्थापन की लैंगिक प्रकृति महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ उनकी भलाई को भी प्रभावित करती है।
क्या आप जानते है?
2023 के अंत तक दुनिया भर में 11.73 करोड़ लोग उत्पीड़न, संघर्ष, हिंसा, मानवाधिकार उल्लंघन या अन्य घटनाओं के कारण जबरन विस्थापित हुए। इनमें से 3.76 करोड़ शरणार्थी थे।
भारत को ऐतिहासिक रूप से एक ‘शरणार्थी-प्राप्तकर्ता’ (refugee-receiving) राष्ट्र के रूप में माना जाता है, जिसने अपनी स्वतंत्रता के बाद विभिन्न समूहों के 200,000 से अधिक शरणार्थियों को शरण दी है।
31 जनवरी, 2022 तक 46,000 शरणार्थी और शरण चाहने वाले (asylum-seekers) UNHCR इंडिया में पंजीकृत थे।
सामाजिक और लैंगिक भेद्यता : सीमित वित्तीय संसाधनों के कारण शरणार्थी परिवार मानसिक स्वास्थ्य की तुलना में शारीरिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हैं और महिलाओं की तुलना में पुरुषों के स्वास्थ्य को ज्यादा प्राथमिकता दी जाती हैं।
महिलाओं को अक्सर बच्चों, बुजुर्गों और बीमारों की देखभाल सहित असंगत देखभाल संबंधी जिम्मेदारियां उठानी पड़ती हैं, जिससे उनका शारीरिक और भावनात्मक बोझ बढ़ जाता है।
प्रायः सबसे अंत में महिलाएं ही पलायन करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप विस्थापन के दौरान उन्हें हिंसा और शोषण का अधिक सामना करना पड़ता है।
यौन और लैंगिक हिंसा : शरणार्थी महिलाओं को यौन हिंसा, उत्पीड़न और शोषण का अधिक खतरा रहता है, जिसमें विशेष रूप से संघर्ष क्षेत्रों और शरणार्थी शिविरों में लेन-देन के लिए यौन संबंध जैसी प्रथाएं भी शामिल होती हैं।
मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियाँ : विस्थापित महिलाओं में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, जैसे- पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD), चिंता और अवसाद विकसित होने का जोखिम अधिक होता है, जो दर्दनाक अनुभवों , प्रियजनों की हानि और शिविरों में कठोर जीवन स्थितियों के कारण होता है।
स्वास्थ्य सेवाओं की कमी : शरणार्थी शिविरों में महिलाओं को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँचने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
लगभग 60% गर्भवती शरणार्थी महिलाएँ स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण प्रसव के दौरान जटिलताओं का सामना करती हैं। इसके अलावा, शरणार्थी शिविरों में मातृ मृत्यु दर सामान्य आबादी की तुलना में दोगुनी होती है।
भाषा संबंधी बाधाओं और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े कलंक के कारण यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है।
आर्थिक असुरक्षा और जीविका : UNHCR के आंकड़ों के अनुसार, शरणार्थी महिलाओं में से लगभग 70% अनौपचारिक रोजगार में काम करती हैं, जहां मजदूरी कम होती है और काम की सुरक्षा भी नहीं होती।
इसके अलावा, केवल 10% शरणार्थी महिलाएँ ही किसी स्थायी रोजगार में होती हैं, जिससे उनकी असुरक्षा बढ़ जाती है।
शिक्षा में व्यवधान : शरणार्थी शिविरों में लड़कियों की शिक्षा में भारी व्यवधान होता है। शरणार्थी लड़कियों के स्कूल छोड़ने की दर 50% से अभी अधिक है। इससे उनके दीर्घकालिक सशक्तिकरण और जीवन की गुणवत्ता पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
कानूनी अधिकार और पहचान : शरणार्थी महिलाओं को कानूनी अधिकार और पहचान संबंधी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। लगभग 30% शरणार्थी महिलाओं के पास कानूनी पहचान नहीं होती जिससे उन्हें नागरिकता, संपत्ति अधिकार और कानूनी सेवाओं तक पहुँच में कठिनाई होती है।
इसके अलावा, कई महिलाएँ भूमि और संपत्ति के अधिकारों से भी वंचित होती हैं जिससे उनकी स्थिति और भी कमजोर हो जाती है।
वापसी और पुनर्वास : विस्थापन के बाद वापसी और पुनर्वास की प्रक्रिया में भी लिंग आधारित असमानताएँ देखी जाती हैं। महिलाओं के पास पुनर्वास के लिए आवश्यक संसाधनों तक पहुँच कम हो सकती है, जैसे कि भूमि अधिकार, वित्तीय सेवाएँ, और शिक्षा।
पुनर्वास के दौरान महिलाओं को अपने परिवार और समुदाय में पुन:स्थापना की कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, विशेष रूप से यदि वे हिंसा या दुर्व्यवहार की शिकार हुई हों।
शरणार्थी कन्वेशन,1951 और प्रोटोकॉल : यह कन्वेशन और इससे जुदा 1967 का प्रोटोकॉल शरणार्थियों के संरक्षण के लिए कानूनी आधार प्रदान करता है, लेकिन इसमें लिंग-विशिष्ट आवश्यकताओं को स्पष्ट रूप से संबोधित नहीं किया गया है।
विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCRPD) : 12 दिसंबर 2006 को अपनाएं गए इस कन्वेंशन में मनोवैज्ञानिक विकलांगता वाली महिलाओं सहित विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों को मान्यता दी गई है तथा समान व्यवहार को अनिवार्य बनाया गया है।
महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (CEDAW): 18 दिसंबर 1979 को, संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन को अपनाया गया था।
यह शरणार्थी महिलाओं सहित महिलाओं को लिंग आधारित भेदभाव से बचाता है।
भारत ने यू.एन.सी.आर.पी.डी. की पुष्टि की है और विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (RPWDA) के माध्यम से विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों को कानूनी गारंटी प्रदान की है।
RPWDA विकलांग महिलाओं को भी समान रूप से अधिकारों की गारंटी प्रदान करता है।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने स्वास्थ्य के अधिकार को शामिल करते हुए अनुच्छेद 21 के तहत शरणार्थियों के जीवन के अंतर्निहित अधिकार की लगातार पुष्टि की है।
हालांकि, शरणार्थियों की स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहुंच बेहद सीमित है और मुख्य रूप से सरकारी अस्पतालों तक ही सीमित है।
भारत 1951 के शरणार्थी सम्मेलन और इसके 1967 के प्रोटोकॉल का पक्षकार नहीं है।
भारत में शरणार्थियों निम्नलिखित कानूनों के तहत विनियमित किया जाता है:
विदेशी अधिनियम, 1946 : केंद्र सरकार को अवैध विदेशी नागरिकों का पता लगाने, हिरासत में लेने और निर्वासित करने का अधिकार देता है।
पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 : संविधान के अनुच्छेद 258 (1) के अनुसार, अधिकारियों को अवैध विदेशियों को बलपूर्वक निर्वासित की अनुमति देता है।
विदेशियों का रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1939 : यह दीर्घकालिक वीज़ा (180 दिनों से अधिक) पर आने वाले विदेशी नागरिकों को आगमन के 14 दिनों के भीतर पंजीकरण अधिकारी के पास पंजीकरण को अनिवार्य करता है।
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) : यह शरणार्थियों, जिनमें महिलाएं भी शामिल हैं, को आश्रय, कानूनी सहायता तथा उनके अधिकारों की वकालत प्रदान करके उनकी सुरक्षा और सहायता के लिए कार्य करता है।
ग्लोबल कॉम्पैक्ट ऑन रिफ्यूजी (GCR) : 2018 में अपनाए गए जी.सी.आर. का उद्देश्य शरणार्थियों की सुरक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाना तथा महिलाओं और बच्चों जैसे कमजोर समूहों पर ध्यान केंद्रित करते हुए स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और रोजगार सहित सेवाओं तक उनकी पहुंच सुनिश्चित करना है।
यूएन वूमेन पहल : यह संयुक्त राष्ट्र एजेंसी लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए समर्पित है। यह शरणार्थी प्रतिक्रिया नीतियों में लैंगिक दृष्टिकोण को शामिल करने की वकालत करती है तथा लिंग आधारित हिंसा, आर्थिक सशक्तिकरण और नेतृत्व से संबंधित कार्यक्रमों के माध्यम से शरणार्थी महिलाओं को सहायता प्रदान करती है।
सतत विकास लक्ष्य (SDG): एजेंडा 2030 एसडीजी 5 (लैंगिक समानता) और एसडीजी 10 (असमानताओं में कमी) जैसे लक्ष्यों के माध्यम से शरणार्थियों और महिलाओं सहित कमजोर आबादी को सशक्त बनाने का प्रयास।
आगे की राह
व्यापक शरणार्थी कानून : शरणार्थी अधिकारों के लिए सभी देशों को संहिताबद्ध ढांचा स्थापित करने की आवश्यकता है।
भारत को शरणार्थियों के अधिकारों और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए व्यापक कानूनी प्रक्रिया की स्थापना करनी चाहिए, जिसमें लिंग-संवेदनशीलता और मानसिक स्वास्थ्य सहायता भी शामिल हो।
शरणार्थी महिलाओं तक बेहतर स्वास्थ्य पहुँच: हिंसा से पीड़ित महिलाओं के लिए आपातकालीन सहायता, चिकित्सा सेवाएँ और परामर्श सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए।
शरणार्थी शिविरों में मातृ और शिशु स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता बढ़ाने के लिए समर्पित स्वास्थ्य केंद्र स्थापित करने चाहिए।
गर्भावस्था और प्रसव के दौरान महिलाओं को पोषण और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए विशेष कार्यक्रम चलाने चाहिए।
मानसिक स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान : प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को एकीकृत किया जाना चाहिए।
शिक्षा : शरणार्थी शिविरों में लड़कियों की शिक्षा को प्राथमिकता देने के लिए शिक्षा के विशेष कार्यक्रम शुरू करने चाहिए।
सामुदायिक सहभागिता और जागरूकता: शरणार्थी महिलाओं को समर्थन और उन्हें मेजबान समाजों में शामिल के दृष्टिकोण से सामुदायिक जागरूकता और सहभागिता को बढ़ावा देने का प्रयास।
ऑस्ट्रेलिया ने शिशुओं के लिए‘पीनट एलर्जी इम्यूनोथेरेपी कार्यक्रम’ शुरू किया है। इसे मुख्यधारा के लोगों की देखभाल के लिए प्रस्तुत किया जाने वाला दुनिया का पहला कार्यक्रम माना जा रहाहै। पीनट एलर्जी ऑस्ट्रेलिया में होने वाली सबसे सामान्य प्रकार की खाद्य एलर्जी है।
क्या है :12 माह से कम आयु के शिशुओं में ‘पीनट एलर्जी’ के प्रति संवेदनशीलता को कम करने के लिए ऑस्ट्रेलिया द्वारा शुरू किया गया इम्यूनोथेरेपी कार्यक्रम
क्रियान्वयन:आहार में मूंगफली को आवश्यक रूप से शामिल करने से लेकर धीरे-धीरे मूंगफली से एलर्जी के प्रति सहिष्णुता पैदा करना
वस्तुतः ऐसे शिशुओं को दो वर्ष तक प्रतिदिन मूंगफली पाउडर को अन्य खाद्य पदार्थों में मिलाकर दिया जाएगा।
कार्यक्रम की आवश्यकता :ऑस्ट्रेलिया में 12 माह के लगभग 3% बच्चेपीनट एलर्जी से प्रभावित
ऑस्ट्रेलिया में10 में से एक शिशु में खाद्य संवेदनशीलता पाई जाती है, जिससे पाचन संबंधी समस्याएँ,वायुमार्ग में सूजन वपित्ती (Hives/Urticaria) हो सकती है।
खाद्य एलर्जी कुछ खाद्य पदार्थों के प्रति शरीर की असामान्य प्रतिक्रिया है। वस्तुतः जब शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को लगता है कि कोई विशिष्ट भोजन स्वास्थ्य के लिए ‘खतरा’ हैतो यह इम्युनोग्लोबुलिनई (ImmunoglobulinE : IgE) एंटीबॉडी उत्पन्न करता है।
ये एंटीबॉडी भोजन पर प्रतिक्रिया करते हैं, जिससे पित्ती, अस्थमा, मुंह में खुजली, पेट दर्द, उल्टी या दस्त जैसे एलर्जी के लक्षण होते हैं।
गंभीर एलर्जी प्रतिक्रिया (एनाफिलेक्सिस) में सांस लेने में कठिनाई, घरघराहट (Wheezing) या लगातार खांसी, जीभ या गले में सूजन, बात करने में कठिनाई एवं लगातार चक्कर आना जैसे लक्षण शामिल हैं।
सामान्यत: सॉना (Sauna) ऐसे कक्ष होते हैं जिनका तापमान उच्च (आमतौर पर 150-200 डिग्री फ़ारेनहाइट के बीच) होता है जिसमें बैठने या लेटने के लिए बेंच होते हैं।
इसका प्रयोग प्राय: वजन कम करने के लिए किया जाता है।
सॉना में रहने से शरीर के तापमान में वृद्धि के साथ ही हृदय गति बढ़ जाती है। इससे शरीर से पसीना निकलता है जो शरीर को प्राकृतिक रूप से ठंडा करता है।
सॉना से कम होने वाला वजन मुख्यत: पसीने के रूप में निकला पानी का वजन होता है, इसलिए यह अस्थायी होता है।
कुछ अध्ययनों के अनुसार सॉना के दौरान निकले पसीने की मात्रा एक घंटे में 0.6 से 1.0 किग्रा. तक हो सकती है।
हालाँकि सॉना के तापमान एवं आर्द्रता तथा व्यक्ति के पसीने की दर जैसे कारकों के आधार पर वजन में कमी अलग-अलग हो सकती है।
सॉना का नियमित उपयोग पसीने के माध्यम से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालकर शरीर के विषहरण (Detoxification) में सहायता करता है।
यह हृदय स्वास्थ्य में सुधार के साथ ही यह मांसपेशियों को कसरत से उबरने में भी मदद करता है।
सॉना चिंता के स्तर को कम कर नींद की गुणवत्ता को बढ़ा सकता है जो अंतत: स्वास्थ्य में सुधार करता है।
संदर्भ
हाल ही में, दक्षिणी जापान में 7.1 तीव्रता का भूकंप आने के बाद, देश की मौसम विज्ञान एजेंसी ने पहली बार ‘मेगाभूकंप चेतावनी’ जारी की।
यह चेतावनी नानकाई द्रोणी (Nankai Trough) के लिए जारी की गयी। ऐसी चेतावनी में निवासियों से तैयार रहने, निकासी मार्गों की समीक्षा करने और भविष्य की संभावित चेतावनियों पर विचार करने के लिए कहा गया है।
8 से अधिक तीव्रता वाले भूकंपों को मेगाभूकंप (Megaquake) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
नानकाई द्रोणी (गर्त) जापान के दक्षिण-पश्चिमी प्रशांत तट पर एक सबडक्शन जोन है।
सबडक्शन जोन एक ऐसा क्षेत्र होता है,जहां विवर्तनिक प्लेट एक-दूसरे से टकराती हैं और भारी प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे खिसक जाती है।
इस द्रोणी में यूरेशियन प्लेट फ़िलिपीन प्लेट से टकराती है, जिससे फ़िलिपीन प्लेट पृथ्वी के मेंटल में चली जाती है।
ऐसे में विवर्तनिक तनाव मेगाभूकंप का कारण बन सकता है। ऐसे भूकंप 8 से अधिक तीव्रता के हो सकते हैं।
जर्नल नेचर में प्रकाशित 2023 के एक अध्ययन के अनुसार, गर्त में लगभग प्रत्येक 100 से 150 वर्षों में बड़े भूकंप आते हैं।
ये भूकंप आमतौर पर जोड़े में आते हैं, आर्थात पहले के बाद दूसरा भूकंप प्राय: अगले दो वर्षों में आता है।
सबसे हालिया ‘जुड़वां’ भूकंप वर्ष 1944 एवं 1946 में आए थे जिनकी तीव्रता 8.0 थी।
विशेषज्ञों के अनुसार, अगले तीन दशकों के भीतर द्रोणी के आस-पास 8 या 9 तीव्रता का भूकंप आने की 70% से 80% संभावना है।
निक्केई एशिया पत्रिका की एक रिपोर्ट के अनुसार, नानकाई द्रोणी में आने वाला एक बड़ा भूकंप उस पूरे क्षेत्र को प्रभावित कर सकता है जो जापान के लगभग एक-तिहाई हिस्से को कवर करता है। यहाँ देश की लगभग आधी आबादी अर्थात 120 मिलियन से अधिक लोग रहते हैं।
इस आपदा के कारण होने वाली आर्थिक क्षति 1.50 ट्रिलियन डॉलर या जापान के वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद के एक-तिहाई से भी अधिक हो सकती है।
इसका दीर्घकालिक प्रभाव तटीय औद्योगिक पावरहाउस, बुनियादी ढांचे एवं आपूर्ति श्रृंखलाओं पर भी पड़ेगा।
पूर्वानुमानों के अनुसार, इससे पूर्वी एशियाई राष्ट्र के प्रशांत तट पर संभावित रूप से 100 फीट की ऊँचाई तक पहुँचने वाली अत्यंत विनाशकारी सुनामी आ सकती है।
प्रत्येक वर्ष जापान में करीब 1,500 भूकंप आते हैं। साथ ही, यहाँ प्रत्येक पांच मिनट में किसी-न-किसी तरह की भूकंपीय गतिविधि दर्ज की जाती है।
इसका मुख्य कारण जापान की भौगोलिक अवस्थिति है ।
वर्ष 2011 में पूर्वोत्तर जापान में 9.0 तीव्रता का भूकंप आया था।
जापान दुनिया के सबसे अधिक भूकंप-प्रवण देशों में से एक है, जो प्रशांत महासागर के ‘रिंग ऑफ़ फायर’ क्षेत्र में स्थित है।
यहाँ 400 से अधिक सक्रिय ज्वालामुखी हैं। यह क्षेत्र ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट से लेकर पूर्वी रूस तक और उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट से नीचे और चिली के पश्चिमी तट तक विस्तृत है।
अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और अंतर्राष्ट्रीय सुनामी सूचना केंद्र के अनुसार, दुनिया के सबसे बड़े भूकंप व सुनामी में से लगभग 80% इसी क्षेत्र में आते हैं।
नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने 9 अगस्त, 2024 को ‘पीएम-सूर्य घर: मुफ्त बिजली योजना’ के अंतर्गत 'मॉडल सौर गाँव' के कार्यान्वयन के लिए योजना दिशानिर्देशों को अधिसूचित किया है।
‘पीएम-सूर्य घर: मुफ्त बिजली योजना’ के घटक 'मॉडल सौर गाँव' के अंतर्गत देश के हर जिले में एक मॉडल सौर गाँव बनाने पर बल दिया गया है।
लक्ष्य : सौर ऊर्जा को अपनाने को बढ़ावा देना और ग्रामीण समुदायों को अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में आत्मनिर्भर बनाना।
वित्त : इस घटक के लिए कुल 800 करोड़ रुपए के वित्तीय परिव्यय का आवंटन
इसमें से चयनित किए गए प्रत्येक मॉडल सौर गाँव को एक करोड़ रुपए प्रदान किए जाएंगे।
चयन प्रक्रिया :
प्रतिस्पर्धा में शामिल गाँव को 5,000 (विशेष श्रेणी के राज्यों के लिए 2,000) से अधिक आबादी वाला राजस्व गाँव होना चाहिए।
चयन प्रक्रिया में एक प्रतिस्पर्धी मोड शामिल है जिसमें गांवों का मूल्यांकन जिला स्तरीय समिति द्वारा संभावित उम्मीदवारी की घोषणा के 6 महीने में उनकी समग्र वितरित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के आधार पर किया जाता है।
प्रत्येक जिले में सबसे अधिक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वाले विजेता गाँव को एक करोड़ रुपए का केंद्रीय वित्तीय सहायता अनुदान दिया जाएगा।
इस योजना का कार्यान्वयन जिला स्तरीय समिति की देखरेख में राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी द्वारा किया जाएगा।
भारत सरकार ने 29 फरवरी, 2024 को पीएम-सूर्य घर: मुफ़्त बिजली योजना को मंज़ूरी दी है।
इसका उद्देश्य सौर रूफटॉप क्षमता की हिस्सेदारी बढ़ाना और आवासीय घरों को बिजली उत्पन्न करने के लिए सशक्त बनाना है।
इस योजना का परिव्यय 75,021 करोड़ रुपए है और इसे वित्त वर्ष 2026-27 तक लागू किया जाएगा।
न्यू ब्रिज इंडिया नामक एक गैर-लाभकारी संस्कृतिक संस्था एवं ओडिशा राज्य संग्रहालय द्वारा आयोजित ‘बॉय डांसर’ नामक कला प्रदर्शनी में गोटीपुआ नृत्य और इसके नर्तकों के भविष्य के बारे में चिंता व्यक्त की गई।
परिचय : ओडिसी शास्त्रीय नृत्य का अग्रदूत मने जाने वाला ओडिशा का एक पारंपरिक नृत्य रूप
प्रतिभागी : मुख्यतः युवा लड़कों द्वारा
ये भगवान जगन्नाथ एवं कृष्ण की स्तुति करने के लिए महिलाओं की तरह कपड़े पहनते हैं।
केन्द्रीय विषय : राधा एवं कृष्ण के जीवन से प्रेरित प्रदर्शन
ओडिया भाषा में अर्थ : गोटी का अर्थ ‘अविवाहित’ और पुआ का अर्थ ‘बालक’
आयोजन स्थल : पारंपरिक रूप से मंदिर परिसर में और केवल त्योहारों के दौरान
हालाँकि, वर्तमान में यह नृत्य मंदिर के बाहर, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में मनोरंजन का एक लोकप्रिय साधन बन गया है।
ओडिशा के पुरी के पास रघुराजपुर गाँव इसके लिए प्रसिद्ध है।
संगीत एवं वाद्ययंत्र : गोटीपुआ के नृत्य के साथ पारंपरिक ओडिसी संगीत में मुख्य ताल वाद्य ‘मर्दला’
प्राचीन काल में उड़ीसा के मंदिरों में महिला नर्तकियाँ द्वारा यह नृत्य किया जाता था जिन्हें देवदासी या महारी कहा जाता था, जो भगवान जगन्नाथ को समर्पित थीं।
16वीं सदी के आसपास भोई वंश के दौरान महारी नर्तकियों के पतन के साथ इस परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए उड़ीसा में बाल नर्तको का वर्ग अस्तित्व में आया।
ओडिसी नृत्य का वर्तमान स्वरूप काफी हद तक गोटीपुआ नृत्य से प्रेरित है। ओडिसी नृत्य के अधिकांश वर्तमान गुरु (केलुचरण महापात्र आदि) अपने युवावस्था में गोटीपुआ थे।
ऐतिहासिक रूप से गोटीपुआ गुरुकुल राजाओं व ज़मींदारों के संरक्षण में फले-फूले।
20वीं सदी में गोटीपुआ को औपचारिक रूप देने और संरचनागत करने के प्रयास किए गए, जिसने ओडिसी को एक अलग व व्यवस्थित नृत्य शैली के रूप में स्थापित किया।
इसरो ने 15 अगस्त को 8वां पृथ्वी अवलोकन उपग्रह (Earth Observation Satellites- 8 : EOS-8) लॉन्च करने की घोषणा की है।
पृथ्वी अवलोकन उपग्रह वे उपग्रह हैं जो अंतरिक्ष से पृथ्वी पर घटित विभिन्न घटनाओं का अवलोकन करते हैं।
इन्हें पृथ्वी सुदूर संवेदन उपग्रह भी कहा जाता है और इनका उपयोग या डिज़ाइन कक्षा से भू प्रेक्षण (Earth Observation) के लिए किया जाता है।
इसमें जासूसी उपग्रह और गैर-सैन्य उपयोग जैसे पर्यावरण निगरानी, मौसम विज्ञान, मानचित्रण और अन्य के लिए अभिप्रेत समान उपग्रह शामिल होते हैं।
उपयोगिता : ये उपग्रह पर्यावरण की निगरानी और सुरक्षा करने, संसाधनों का प्रबंधन करने, वैश्विक मानवीय आपदाओं को संबोधित करने और सतत विकास को सक्षम करने में मदद करते हैं।
इसके अलावा कई अन्य क्षेत्रों पर आवश्यक जानकारी प्रदान करते हैं, जैसे : महासागर की लवणता, बर्फ की मोटाई, फसल स्वास्थ्य और वायु गुणवत्ता आदि।
प्रकार : ई.ओ.एस को छवियों को कैप्चर करने के तरीके के आधार पर दो प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है: निष्क्रिय और सक्रिय।
निष्क्रिय उपग्रह पृथ्वी की सतह से परावर्तित दृश्य प्रकाश व अवरक्त विकिरण के आधार पर जानकारी प्रदान करते है। ये उपग्रह सामान्यतः बादलों में काम नहीं करते हैं।
सक्रिय उपग्रह पृथ्वी की ओर ऊर्जा संचारित करते हैं और वापस आये सिग्नल को मापते हैं जो पृथ्वी की सतह के बारे में जानकारी प्रदान करता है। ये उपग्रह किसी भी मौसम में काम करने में सक्षम होते हैं।
कक्षा : इसे 475 किमी. की ऊंचाई और 37.4 डिग्री के झुकाव वाली एक गोलाकार निम्न-पृथ्वी कक्षा (LEO) में स्थापित किया जाना है।
प्रेक्षण यान : लघु उपग्रह प्रमोचन यान (SSLV-D3)
कार्यावधि : इसका मिशन अवधि एक वर्ष है।
मिशन का उद्देश्य :
देश और दुनिया को आपदा निगरानी, पर्यावरण निगरानी, आग का पता लगाने, ज्वालामुखी गतिविधि जैसी गतिविधियों का अवलोकन करना और सूचना देना।
मिशन को दिन और रात दोनों समय काम करने के लिए बनाया गया है।
पेलोड :
इलेक्ट्रो ऑप्टिकल इंफ्रारेड पेलोड (EOIR) : यह मिड-वेव आईआर (MIR) और लॉन्ग-वेव आईआर (LWIR) बैंड दोनों में छवियाँ लेने में सक्षम। इसका उपयोग उपग्रह-आधारित निगरानी, आपदा निगरानी, पर्यावरण अवलोकन, आग का पता लगाने, ज्वालामुखी गतिविधि ट्रैकिंग और औद्योगिक और बिजली संयंत्र से संबंधित आपदाओं की निगरानी के लिए किया जाता है।
ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम रिफ्लेक्टोमेट्री पेलोड (GNSS-R) : समुद्री सतह वायु विश्लेषण, मृदा नमी मूल्यांकन, हिमालयी क्षेत्र में क्रायोस्फीयर अनुसंधान, बाढ़ का पता लगाने और अंतर्देशीय जल निकायों की निगरानी आदि में उपयोगी।
एसआईसी यूवी डोसिमीटर (SiC UV Dosimeter) : इसे गगनयान मिशन में क्रू मॉड्यूल व्यूपोर्ट पर UV विकिरण की निगरानी के लिए डिज़ाइन किया गया है।
हाल ही में महाराष्ट्र सरकार द्वारा वेनगंगा-नलगंगा नदी जोड़ो परियोजना को मंजूरी दी गयी है।
प्रस्तावित परियोजना : गोदावरी नदी की सहायक नदी वेनगंगा को तापी नदी की सहायक नदी नलगंगा से जोड़ा जाना है।
इस परियोजना में भंडारा में वेनगंगा नदी पर बने गोसीखुर्द बांध के पानी को नहरों और पाइपलाइनों के 427 किलोमीटर लंबे नेटवर्क के माध्यम से बुलढाणा में नलगंगा नदी तक लाया जाना है।
उद्देश्य : विदर्भ के अधिकांश सूखाग्रस्त क्षेत्रों में सिंचाई की समस्या का समाधान करना।
इस परियोजना से नागपुर, वर्धा, अमरावती, यवतमाल, अकोला और बुलढाणा के पंद्रह तालुकाओं तक सिंचाई सुविधा उपलब्ध होगी।
परियोजना के तहत पानी का इस्तेमाल पीने के साथ-साथ औद्योगिक उपयोग के लिए भी किया जा सकेगा।
लागत : वर्तमान अनुमानित लागत ₹85,575 करोड़।
उद्गम : मध्य प्रदेश के सतपुड़ा रेंज की महादेव पहाड़ी।
अपवाह क्षेत्र : लगभग 580 किमी लंबी यह नदी मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र राज्यों से होकर दक्षिण की ओर बहती है।
संगम : वर्धा नदी में मिलने के बाद इस संयुक्त धारा को प्राणहिता के रूप में गोदावरी से मिलती है।
सहायक नदियाँ : थेल, थानवार, गढ़वी, हिर्री, चंदन और बावनथरी आदि।
प्रायद्वीपीय भारत की सबसे बड़ी, जिसे दक्षिण गंगा भी कहा जाता है।
उद्गम : महाराष्ट्र में नासिक ज़िले के त्रयंबक पहाड़ी।
लम्बाई : 1465 किमी.।
सहायक नदियाँ : प्राणहिता, इन्द्रावती, मंजिरा।
मुहाना : यह राजमुन्द्री के समीप बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती और डेल्टा का निर्माण करती है।
नलगंगा नदी विदर्भ के बुलढाणा जिलों से होकर बहती है। इस मोताला तालुका में नलगंगा बांध बनाया गया है।
यह तापी की प्रमुख सहायक पूर्णा नदी नदी के बाएँ तट पर मिलती है।
विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में ऋण स्वैप का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करने के लिए हितधारकों के मार्गदर्शन के उद्देश्य से हाल ही में आई.एम.एफ. ने विकास ऋण की अदला-बदली (Debt for Development Swaps) एक ढाँचा जारी किया है।
क्या हैं : ऋण अदला-बदली (स्वैप) से तात्पर्य है सरकार और उसके एक या अधिक लेनदारों के बीच एक या अधिक देनदारियों के साथ संप्रभु ऋण को बदलने के लिए किए गए समझौता।
ये ऋण विकास लक्ष्य के लिए समय के साथ खर्च करने की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।
उदाहरण के लिए, प्रकृति, संरक्षण, जलवायु कार्रवाई, शिक्षा, पोषण, शरणार्थियों को सहायता, अन्य।
प्रकार :
द्विपक्षीय स्वैप
वाणिज्यिक ऋण स्वैप
कुछ ऋण स्वैप के उदाहरण :
प्रकृति के लिए ऋण संबंधी समझौता :
1987 में अमेरिका स्थित पर्यावरण संबंधी गैर-लाभकारी संस्था कंजर्वेशन इंटरनेशनल और बोलीविया के बीच पहला समझौता हस्ताक्षरित हुआ था।
यूरोपीय निवेश बैंक और अंतर-अमेरिकी विकास बैंक (IDB) ने नवंबर 2023 में बारबाडोस को जल अवसंरचना के उन्नयन के लिए ऋण-के-लिए-जलवायु विनिमय निष्पादित करने हेतु 300 मिलियन डॉलर की गारंटी प्रदान की।
शिक्षा के लिए ऋण विनिमय : शिक्षा के लिए ऋण स्वैप से संबंधित गतिविधियों के लिए धन एकत्र करने के लिए एक विशेष खाते की स्थापना का अनुरोध 2009 में यूनेस्को के महाधिवेशन के 35वें सत्र के दौरान भी किया गया था।
स्वास्थ्य ऋण के लिए विनिमय : वर्ष 2024 में जी-20 टास्क फोर्स ने स्वास्थ्य निवेश के लिए ऋण स्वैप पर चर्चा की।
यह ऋण के बोझ को कम करने में मदद करते हैं, साथ ही सामाजिक या पर्यावरणीय विकास को भी बढ़ावा देते हैं।
चर्चा में क्यों
हाल ही में, केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित स्वच्छ पौध कार्यक्रम (Clean Plant Programme: CPP) को मंजूरी दी है।
स्वच्छ पौधे से तात्पर्य ऐसे पौधे से है, जिसे रोपण से पहले वायरस, बैक्टीरिया, कवक एवं अन्य सूक्ष्मजीवों से संक्रमण का परीक्षण किया गया है।
इनमें से कुछ को उत्पादकता बढ़ाने के लिए विशेष परिस्थितियों में भी रखा जाता है।
घोषणा: फरवरी 2023 में वित्त मंत्री द्वारा बजट भाषण में।
शुरुआत: 9 अगस्त 2024 से (कैबिनेट की मंजूरी)।
उद्देश्य: बागवानी फसलों में उत्पादकता और गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले वायरस के संक्रमण को दूर करना।
वित्त आवंटन : 1,765.67 करोड़ रुपये (अगस्त 2024 में)
क्रियान्वयन : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग से राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड द्वारा।
स्वच्छ पौध केंद्र (CPC) :
पूरे भारत में नौ विश्व स्तरीय अत्याधुनिक CPC की स्थापना।
ये केंद्र बड़े पैमाने पर वायरस मुक्त रोपण सामग्री के उत्पादन और रखरखाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
प्रस्तावित CPC निम्नलिखित हैं:-
अंगूर (राष्ट्रीय अंगूर अनुसंधान केंद्र, पुणे)
शीतोष्ण फल- सेब, बादाम, अखरोट आदि (केंद्रीय शीतोष्ण बागवानी संस्थान, श्रीनगर)
खट्टे फल (सेंट्रल साइट्रस रिसर्च इंस्टीट्यूट, नागपुर और केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर)
आम/अमरूद/एवाकाडो (भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलुरु)
आम/अमरूद/लीची (केंद्रीय उपोष्णकटिबंधीय बागवानी संस्थान, लखनऊ)
अनार (राष्ट्रीय अनार अनुसंधान केंद्र, शोलापुर)
पूर्वी भारत में उष्णकटिबंधीय/उप-उष्णकटिबंधीय फलों के लिए।
प्रमाणन और कानूनी ढांचा : बीज अधिनियम 1966 के तहत एक नियामक ढांचे द्वारा समर्थित मजबूत प्रमाणन प्रणाली।
सभी किसानों तक पहुँच : सभी किसानों के लिए स्वच्छ पौध सामग्री तक किफायती पहुंच को प्राथमिकता, चाहे उनकी भूमि का आकार या सामाजिक-आर्थिक स्थिति कुछ भी हो।
महिला किसानों को प्राथमिकता : कार्यक्रम की योजना और कार्यान्वयन में महिला किसानों को सक्रिय रूप से शामिल कर संसाधनों, प्रशिक्षण और निर्णय लेने के अवसरों तक उनकी पहुंच सुनिश्चित की जाएगी।
नई किस्मों का विकास : यह कार्यक्रम क्षेत्र-विशिष्ट स्वच्छ पौधों की किस्मों और प्रौद्योगिकियों को विकसित करके भारत भर में विविध कृषि-जलवायु स्थितियों को संबोधित करेगा।
स्वच्छ पौध कार्यक्रम वायरस मुक्त, उच्च गुणवत्ता वाली रोपण सामग्री तक पहुंच प्रदान करके फसल की पैदावार बढ़ाने और आय के अवसरों में सुधार करने में सहायक हो सकता है।
सुव्यवस्थित प्रमाणन प्रक्रिया और बुनियादी ढांचे का समर्थन नर्सरियों को स्वच्छ रोपण सामग्री को कुशलतापूर्वक प्रचारित करने, विकास और स्थिरता को बढ़ावा देने में सक्षम बनाएगा।
उपभोक्ताओं के लिए वायरस मुक्त और बेहतर पोषण उत्पाद की उपलब्धता।
उच्च गुणवत्ता वाले और रोगमुक्त फलों के एक एक अग्रणी वैश्विक निर्यातक के रूप में भारत की स्थिति मजबूत होगी।
स्वच्छ पौधा कार्यक्रम मिशन लाइफ और वन हेल्थ पहलों के साथ तालमेल बिठाते हुए भारत के बागवानी क्षेत्र को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ावा दे सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अपनी रिपोर्ट में संयुक्त राज्य अमेरिका सहित 16 देशों में ‘हाइपरवायरुलेन्ट’ सुपरबग के खतरनाक नए स्ट्रेन पर चिंता व्यक्त की है।
हाइपरवायरुलेंट सुपरबग : हाइपरवायरुलेंट क्लेबसिएला न्यूमोनिया (HVKP) के नाम से जाना जाने वाला यह सुपरबग स्वस्थ प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों में भी तेजी से बढ़ने वाले, घातक संक्रमण का कारण बन सकता है।
सुपरबग बैक्टीरिया के ऐसे प्रकार हैं जो कई प्रकार के एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी होते हैं।
उपस्थित : सामान्य तौर पर, यह सुपरबग मिट्टी और पानी वाले वातावरण के साथ ही मनुष्यों सहित विभिन्न जानवरों के ऊपरी गले और जठरांत्र में पाया जाता है ।
प्रभाव : यह निमोनिया, मूत्र पथ के संक्रमण, रक्तप्रवाह संक्रमण और तंत्रिका तंत्र संक्रमण मेनिन्जाइटिस का कारण बनता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की चिंताएं :
यह सुपरबग स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के लिए एक बड़ी समस्या है। यह चिकित्सा उपकरणों को दूषित करके कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों में संक्रमण का कारण बन सकता है।
हाल के वर्षों में, अत्यधिक एंटीबायोटिक एम्पीसिलीन के प्रयोग से बैक्टीरिया में इन दवाओं के प्रति प्रतिरोध विकसित हो गया है।
WHO ने इन संक्रमणों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और उनके लिए परीक्षण का विस्तार करने की आवश्यकता पर बल दिया।
संदर्भ
भारत सरकार पूर्वी राज्यों सहित पूर्वोत्तर राज्यों के विकास के लिए प्रतिबद्ध है। बजट 2024-25 में पूर्वी राज्यों के लिए पूर्वोदय योजना की घोषण की गयी है। इसके अतिरिक्त पूर्वोत्तर के लिए ‘पीएम-डिवाइन’ और ‘पूर्वोत्तर विशेष बुनियादी ढांचा विकास योजना (सड़क)’ जैसी योजनाएँ संचालित हैं।
भारत का उद्देश्य अपने भू-आबद्ध पूर्वोत्तर राज्यों को दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ संपर्क केंद्र में बदलना है जो इसकी ‘एक्ट ईस्ट’ नीति का दृष्टिकोण है।
व्यापार में वृद्धि करने, सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने, क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान देने और दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत के रणनीतिक तथा भू-आर्थिक प्रभाव को मजबूत करने के लिए मेगा कनेक्टिविटी परियोजनाओं एवं आर्थिक गलियारों की स्थापना महत्वपूर्ण है।
लगभग 1360 किमी. तक विस्तृत भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग (IMT-TH) का उद्देश्य भारत, बांग्लादेश, म्यांमार एवं थाईलैंड के बीच एक निर्बाध सड़क संपर्क स्थापित करना है।
यह राजमार्ग भारत के मणिपुर के मोरेह से शुरू होकर म्यांमार में तामू एवं मांडले से होते हुए थाईलैंड के माई सोत में समाप्त होता है।
यह संपर्क परियोजना व्यापार मार्गों को सुव्यवस्थित कर और विदेशी निवेश को बढ़ावा देकर पर्याप्त आर्थिक लाभ का वादा करती है।
आई.एम.टी.-टी.एच. अधिक कुशल एवं लागत प्रभावी परिवहन मार्ग प्रदान करके तीनों देशों के बीच व्यापार, शिक्षा, पर्यटन व स्वास्थ्य संबंधों को सुगम बनाता है।
आसियान को भारत का निर्यात वर्ष 2021-22 के 42.32 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 44 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
आयात पिछले वर्ष के 68 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में वर्ष 2022-23 में 87.57 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
आर्थिक दृष्टिकोण : इस राजमार्ग को दक्षिण एशिया को दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ने वाला गलियारा बनाकर आर्थिक संभावनाओं को बढ़ावा दिया जा सकता है।
इस राजमार्ग परियोजना में बांग्लादेश को शामिल करने से यह एक व्यापक क्षेत्रीय नेटवर्क में बदल जाएगा।
एकीकरण में वृद्धि : इससे बहु-क्षेत्रीय तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल (बिम्सटेक) की अर्थव्यवस्थाओं का और अधिक एकीकरण होगा।
इससे नेपाल, भूटान एवं अन्य क्षेत्रों के बाजारों तक पहुँच में वृद्धि होगी।
रणनीतिक लाभ : आई.एम.टी.-टी.एच. परियोजनाएँ भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं।
यह भारत के गहन क्षेत्रीय एकीकरण और दक्षिण-पूर्व एशियाई भू-राजनीति में स्वयं को एक महत्वपूर्ण हितधारक के रूप में स्थापित करने के दृष्टिकोण को दर्शाता है।
विदेश नीति के अनुरूप : भारत की एक्ट ईस्ट नीति के अनुरूप यह राजमार्ग दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ जुड़ाव बढ़ाएगा और एशियाई राजमार्ग नेटवर्क एवं बिम्सटेक परिवहन मास्टर प्लान सहित विभिन्न अन्य पहलों में योगदान देकर सहयोग को बढ़ावा देगा।
समुद्री संपर्क के माध्यम से सहयोग : राजमार्ग को समुद्री संपर्क प्रयासों द्वारा समर्थित किया जाएगा जिसमें थाईलैंड में रानोंग बंदरगाह और भारत के विशाखापत्तनम, चेन्नई व कोलकाता बंदरगाहों के बीच पहले से ही समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं।
अन्य लाभ : इसके पूर्ण होने से परिवहन लागत एवं समय में उल्लेखनीय कमी आएगी। यह भौगोलिक विभाजन को पाटने और स्थानीय समुदाय की जरूरतों को पूरा करने के लिए भी महत्वपूर्ण होगा।
प्रारंभ में इसे वर्ष 2015 से चालू करने का लक्ष्य रखा गया था। बाद में इस समय सीमा को वर्ष 2019 तक बढ़ा दिया गया।
वर्तमान में नई समय सीमा वर्ष 2027 निर्धारित की गई है।
इस देरी का मुख्य कारण म्यांमार में राजनीतिक अस्थिरता, वित्तीय मुद्दें एवं अन्य क्षेत्रीय बाधाएँ हैं।
म्यांमार में वर्ष 2021 के सैन्य तख्तापलट और जुंटा सरकार के उदय ने इस परियोजना को पंगु बना दिया है, जिससे पहले से मौजूद अस्थिरता और बढ़ गई है।
सत्ता पर सेना की पकड़ से हिंसा एवं व्यापक अशांति बढ़ी है, जिससे निर्माण श्रमिकों व यात्रियों की सुरक्षा गंभीर रूप से प्रभावित हुई है। संघर्ष ने एक अस्थिर माहौल को बढ़ावा दिया है, जिससे परियोजना की समयसीमा में बाधा आई है और जोखिम बढ़ गया है।
म्यांमार के चिन राज्य और सागाइंग क्षेत्र में वर्तमान में भी जुंटा एवं जातीय सशस्त्र समूहों के बीच संघर्ष जारी है।
भारत के पूर्वोत्तर में जातीय संघर्ष भी महत्वपूर्ण बाधा है। राजमार्ग के आस-पास कई जातीय समूहों के आवास हैं जिनके बीच लंबे समय से विवाद जारी है। इससे राजमार्ग के निर्माण एवं रखरखाव में जटिलताएँ आ रही हैं।
मणिपुर में कुकी व मैतेई समुदायों के बीच हुए हालिया सांप्रदायिक संघर्षों ने परियोजना की प्रगति को और भी बाधित कर दिया है।
उदाहरण के लिए, इन बाधाओं में तामू-कायगोन-कलेवा सड़क के किनारे 69 पुलों के नवीनीकरण का विलंबित होना है।
भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय मोटर वाहन समझौते (IMT-TMVA) को तैयार करना और लागू करना भी एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है। इसका कारण अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा, नौकरशाही बाधाएँ एवं सुरक्षा चिंताएँ हैं।
चीन की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के साथ प्रतिस्पर्धा क्षेत्रीय सहयोग एवं परियोजना कार्यान्वयन को जटिल बनाती है।
अन्य कारक
म्यांमार में सड़क नेटवर्क का अभाव वाहनों की सुचारू आवाजाही में बाधा डालते हैं।
तीनों देशों में नौकरशाही संबंधी जटिलताएँ आवश्यक परमिट एवं मंज़ूरी प्राप्त करने में अत्यधिक समय लेने वाली हैं।
म्यांमार के संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों में सुरक्षा संबंधी चिंताएँ, वाहनों एवं सामानों की सुरक्षित आवाजाही के लिए जोखिम उत्पन्न करती हैं।
राजमार्ग और उसके उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करना और सभी हितधारकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना
इसके लिए राजनयिक जुड़ाव बढ़ाने से लाभ हो सकता है।
परियोजनाओं के लिए स्थानीय समुदायों से उनका समर्थन प्राप्त करना
क्षमता निर्माण एवं बुनियादी ढांचे के विकास के लिए सहयोगात्मक प्रयास करना
संदर्भ
भारतीय हिमालय पर्वतमाला (IHR) में 11 राज्य और दो केंद्र-शासित प्रदेश शामिल हैं। इन क्षेत्रों में 2011-2021 तक दशकीय शहरी विकास दर 40% से अधिक रही। इन क्षेत्रों में कस्बों का विस्तार हुआ है और अधिक शहरी बस्तियाँ विकसित हो रही हैं। हालाँकि, हिमालयी शहरों को शहरीकरण की एक अलग परिभाषा की आवश्यकता है।
असंतुलित शहरीकरण एवं विकास : भारतीय हिमालय पर्वतमाला शहरीकरण एवं विकास के बढ़ते दबाव का सामना कर रही है जोकि उच्च तीव्रता वाले अस्थिर बुनियादी ढाँचे व संसाधनों (भूमि और जल) के उपयोग से अधिक जटिल हो गया है। बदलते वर्षा पैटर्न एवं बढ़ते तापमान जैसे जलवायु परिवर्तनों से इसमें और भी वृद्धि हो गयी है।
उदाहरण के लिए, उत्तराखंड में जोशीमठ का डूबना, हिमाचल प्रदेश में बाढ़ एवं भूस्खलन, सिक्किम में ग्लेशियल झील का फटना, उत्तरकाशी में सिल्क्यारा-बरकोट सुरंग आदि आपदाओं का सामना करना पड़ा है।
जल संकट : पानी की गुणवत्ता एवं प्रबंधन में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। श्रीनगर में जल निकायों में लगभग 25% की कमी आई है।
अपशिष्ट प्रबंधन का अभाव : श्रीनगर, गुवाहाटी, शिलांग एवं शिमला जैसे शहरों के साथ-साथ छोटे शहरों को स्वच्छता, ठोस व तरल अपशिष्ट प्रबंधन में अत्यधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
उदाहरणस्वरुप श्रीनगर में लगभग 90% तरल अपशिष्ट बिना उपचार के जल निकायों में प्रवेश करता है।
पर्यटन का दबाव : पर्यटन के विकास से स्थानीय संसाधनों पर दबाव बढ़ता है।
भारतीय हिमालय पर्वतमाला (IHR) में पर्यटन का विस्तार एवं विविधता जारी रही है। वर्ष 2013 से 2023 तक इसकी अनुमानित औसत वार्षिक वृद्धि दर 7.9% रही है।
इन क्षेत्रों में पर्यटन के विकास से पर्यावरणनुकूल बुनियादी ढांचे के स्थान पर प्राय: अनुपयुक्त व खतरनाक निर्माण गतिविधि, जोखिमपूर्ण तरीके से डिज़ाइन की गई सड़कें और अपर्याप्त ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। इससे प्राकृतिक संसाधनों का नुकसान होता है और जैव-विविधता एवं पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को क्षति पहुँचती है।
नियोजन संस्थाओं की विफलता : इन राज्यों के शहरी क्षेत्रों के विकास के लिए मैदानी क्षेत्रों से कॉपी किए गए मॉडल का उपयोग किया जाता हैं। इन योजनाओं को लागू करने की उनकी क्षमता सीमित होती है।
मानव संसाधन की कमी : शहरी सरकारों में मानव संसाधनों की लगभग 75% कमी है। उदाहरण के लिए, कश्मीर घाटी में श्रीनगर नगर निगम को छोड़कर 40 से अधिक शहरी स्थानीय निकायों में केवल 15 कार्यकारी अधिकारी हैं।
भूमि अतिक्रमण : शहरों का विस्तार गांवों की सामान्य भूमि पर अतिक्रमण के साथ होता जा रहा है। श्रीनगर और गुवाहाटी ऐसे विस्तार के उदाहरण हैं जिसके कारण खुले स्थानों, वन भूमि व जलग्रहण क्षेत्रों में कमी आ रही है।
उदाहरणस्वरुप श्रीनगर में वर्ष 2000-2020 के बीच भूमि उपयोग परिवर्तन में 75.58% की वृद्धि देखी गई। इन क्षेत्रों पर रियल एस्टेट का अधिकार हो गया है।
हिमालयी शहरों के विकास के लिए विशेष उपायों की आवश्यकता होती है क्योंकि यह क्षेत्र पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील होता है। कुछ प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं :
शहर का मानचित्रण : भूवैज्ञानिक एवं जल विज्ञान संबंधी दृष्टिकोण से संवेदनशीलता की पहचान की जानी चाहिए क्योंकि जलवायु-प्रेरित आपदाएँ प्रतिवर्ष ऐसे मानचित्रण के बिना बनाए गए बुनियादी ढाँचों को नष्ट कर देती हैं।
स्थानीय समुदाय की भागीदारी : नियोजन प्रक्रिया में स्थानीय लोगों को शामिल किया जाना चाहिए और नीचे से ऊपर की ओर दृष्टिकोण (Bottom-up Approach) का पालन करना चाहिए।
वित्त पोषण : इस क्षेत्र का कोई भी शहर अपनी बुनियादी ढांचे की जरूरतों के लिए पूंजी नहीं जुटा सकता है। वित्त आयोग को इस क्षेत्र के लिए शहरी वित्तपोषण पर एक अलग अध्याय शामिल करना चाहिए।
शहरी सेवाओं की उच्च लागत और औद्योगिक गलियारों की कमी से इन शहरों के लिए एक अनोखी वित्तीय स्थिति उत्पन्न होती है।
केंद्र से शहरी स्थानीय निकायों को वर्तमान अंतर-सरकारी हस्तांतरण जी.डी.पी. का मात्र 0.5% है। इसे बढ़ाकर कम-से-कम 1% किया जाना चाहिए।
सतत एवं पर्यावरण-हितैषी विकास : निर्माण कार्यों और बुनियादी ढांचा विकास में पर्यावरण को न्यूनतम क्षति पहुंचाने वाले उपाय अपनाए जाने चाहिए। इस क्षेत्र में भवन निर्माण के लिए स्थानीय सामग्री का उपयोग और पारंपरिक वास्तुकला को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण : जल स्रोतों, वन क्षेत्रों एवं जैव-विविधता का संरक्षण सुनिश्चित किया जाना चाहिए। पानी के स्रोतों को प्रदूषण से बचाने के लिए ठोस व तरल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली में सुधार आवश्यक है।
उदाहरणस्वरुप लेह एवं लद्दाख में बर्फ के स्तूप (Ice Stupas) का निर्माण गर्मियों में जल आपूर्ति के लिए काम आता है। छोटे जलाशयों और पारंपरिक जल संचयन प्रणालियों के पुनर्निर्माण के साथ-साथ जल सरंक्षण पर जोर देना चाहिए।
पर्यटन का सतत विकास : पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सतत पर्यटन नीतियों का निर्माण किया जाना चाहिए, जिससे पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव कम हो सके। पर्यटकों की संख्या को नियंत्रित करने और स्थानीय सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए भी योजना की आवश्यकता है, जैसे :
शिमला एवं नैनीताल जैसे शहरों में निर्माण के लिए पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) को अनिवार्य करना।
मनाली में ‘सतत पर्यटन’ को प्रोत्साहित करने के लिए पर्यटकों की संख्या सीमित करना, होमस्टे व इको-फ्रेंडली रिसॉर्ट्स को बढ़ावा देना।
भूस्खलन एवं आपदाओं से सुरक्षा : हिमालयी क्षेत्रों में भूस्खलन और अन्य प्राकृतिक आपदाओं का खतरा अधिक होता है। इसको ध्यान में रखते हुए जोखिम क्षेत्रों की पहचान, आपदा प्रबंधन प्रणाली का सुदृढ़ीकरण और जोखिम न्यूनीकरण उपायों का कार्यान्वयन किया जाना चाहिए।
उदाहरण के लिए, दार्जिलिंग एवं मसूरी जैसे क्षेत्रों में पहाड़ी ढलानों की स्थिरता को बनाए रखने के लिए ग्रीन बेल्ट्स के साथ-साथ रिटेनिंग वॉल्स का निर्माण और भूकंप-प्रतिरोधी भवनों का निर्माण।
सड़क एवं परिवहन व्यवस्था का सुधार : पहाड़ी क्षेत्रों में सड़क निर्माण के दौरान पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना जरूरी है। हवाई व सार्वजनिक परिवहन के विकास पर जोर देना चाहिए, ताकि यातायात का दबाव कम हो सके।
रानीखेत व औली जैसे छोटे शहरों में रोड, बिजली एवं इंटरनेट सुविधाओं के विकास से स्थानीय लोगों एवं पर्यटकों दोनों को सुविधा होती है।
पहाड़ी क्षेत्रों में रोपवे व टनल्स का निर्माण भी यातायात में सुधार के लिए उपयोगी हो सकता है।
शहरीकरण एवं जनसंख्या नियंत्रण : अनियंत्रित शहरीकरण से बचने के लिए नियोजित शहर विकास योजनाओं को लागू करना चाहिए। सुविधाओं का विकास जनसंख्या वृद्धि को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए।
उदाहरण के लिए, धर्मशाला व देहरादून जैसे शहरों में शहरीकरण को नियंत्रित करने के लिए सख्त ज़ोनिंग नियम और जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण आदि उपायों बल देना चाहिए।
निष्कर्ष
हिमालयी शहरों को स्थिरता के बारे में व्यापक संवाद में शामिल होना चाहिए, जिसमें सार्वजनिक भागीदारी के साथ मजबूत और पर्यावरण-केंद्रित नियोजन प्रक्रियाओं के माध्यम से शहरी भविष्य पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
यूनेस्को एवं विश्व खाद्य कार्यक्रम के नेतृत्व में डच (नीदरलैंड) सरकार द्वारा वित्तपोषित 10-वर्षीय शोध परियोजना के प्रारंभिक निष्कर्षों के अनुसार, अफ्रीका की चौथी सबसे बड़ी झील ‘तुर्काना’ में मत्स्ययन की प्रचुर संभावनाएं हैं।
हालाँकि, इस झील के अर्ध-लवणीय जल, उच्च वाष्पीकरण दर और झील के स्तर में प्रति दशक 8 मीटर तक उतार-चढ़ाव के कारण इसके सतत विकास पहल में बाधा आती है।
अवस्थिति : उत्तरी केन्या में पूर्वी भ्रंश घाटी में गर्म, शुष्क व सुदूर क्षेत्र में स्थित
पूर्वी अफ्रीक में स्थित इस झील का सुदूर उत्तरी छोर इथियोपिया तक विस्तृत है।
निर्माण : लगभग 4.3 मिलियन वर्ष पूर्व
विशेषता : अफ्रीका की चौथी सबसे बड़ी झील और दुनिया की सबसे बड़ी स्थायी रेगिस्तानी झील (Permanent Desert Lake) एवं क्षारीय झील
महत्व : अनूठी जैव-विविधता एवं सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण
तुर्काना राष्ट्रीय उद्यान स्थल को वर्ष 1997 में यूनेस्को के विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया था।
ओमो नदी तुर्काना झील के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
ओमो नदी की मौसमी बाढ़ इसके 90% से अधिक जल प्रवाह का निर्माण करती है और लिम्नोलॉजी, पारिस्थितिकी और मत्स्य पालन को प्रभावित करती है।
झीलों एवं ताजे पानी के अन्य निकायों की जैविक, रासायनिक व भौतिक विशेषताओं के अध्ययन को लिम्नोलॉजी (Limnology) कहते हैं।
इस झील में नील नदी के मगरमच्छों की सबसे अधिक संख्या पाई जाती है। यह एकमात्र झील है जो नील नदी के दो अलग-अलग जलग्रहण क्षेत्रों से जल ग्रहण करती है।
चीन ने दक्षिण चीन सागर में लिंगशुई 36-1 गैस क्षेत्र की खोज की घोषणा की है, जो इसे अत्यंत गहरे जल में विश्व का पहला बड़ा अल्ट्रा-शैलो गैस क्षेत्र बताता है। यह महत्त्वपूर्ण खोज क्षेत्र में पहले से मौजूद भू-राजनीतिक तनाव को और बढ़ा सकती है।
लिंगशुई 36-1 गैस क्षेत्र में 100 बिलियन क्यूबिक मीटर से अधिक प्राकृतिक गैस होने का अनुमान है, जो इसे दक्षिण चीन सागर में एक महत्त्वपूर्ण संसाधन बनाता है।
वर्ष 2023 में गैस पर लगभग 64.3 बिलियन अमरीकी डॉलर व्यय करने वाले विश्व के सबसे बड़े प्राकृतिक गैस आयातक के रूप में चीन का लक्ष्य इस खोज के साथ अपनी ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाना है।
दक्षिण चीन सागर की संयुक्त मूल गैस (OGIP) 1 ट्रिलियन क्यूबिक मीटर से अधिक है, जो वैश्विक ऊर्जा संसाधनों में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका पर ज़ोर देती है।
दक्षिण चीन सागर पर फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ब्रुनेई और ताइवान चीन के दावों का विरोध कर रहे हैं।
चीन के तेल रिग (rig) को लेकर वर्ष 2014 में वियतनाम में हुए विरोध प्रदर्शन जैसी पिछली घटनाएँ संसाधन विकास से जुड़े कूटनीतिक मुद्दों को दर्शाती हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान और सहयोगी छोटे देशों के दावों का समर्थन करते हैं जिससे क्षेत्रीय तनाव बढ़ता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि कथित फर्जी मुठभेड़ों के मामलों में अनिवार्य रूप से प्रथम सुचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज़ की जानी चाहिये, जिससे पुलिस की कार्रवाई के लिये कानूनी जवाबदेही मज़बूत होगी।
मामले की पृष्ठभूमि: एक कथित मुठभेड़ के दौरान एक व्यक्ति की मौत में शामिल पुलिस अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज़ करने के निर्देश देने वाले आदेशों को चुनौती देने हेतु याचिका दायर की गई थी।
एसडीएम की जाँच रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पुलिस ने आत्मरक्षा में गोली चलाई, इसके बावजूद न्यायालय ने यह निर्धारित करने के लिये आगे की जाँच पर ज़ोर दिया कि मुठभेड़ वास्तविक थी या हत्या का मामला था।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, 2013 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए इस बात पर ज़ोर दिया कि अगर शिकायत में संज्ञेय अपराध का सुझाव दिया गया है तो FIR दर्ज़ की जानी चाहिये, भले ही अंततः आरोप पत्र के बजाय क्लोज़र रिपोर्ट ही क्यों न हो।
न्यायालय ने मुख्यमंत्रियों को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के 1997 के पत्र पर प्रकाश डाला, जिसमें पुलिस द्वारा न्यायेतर हत्याओं की उचित जाँच की आवश्यकता पर बल दिया गया था।
संदर्भ
स्विट्जरलैंड स्थित ‘ग्लोबल अलायंस फॉर इम्प्रूव्ड न्यूट्रिशन (GAIN)’ संस्था द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में कृषि-खाद्य क्षेत्र में पोषण निवेश की मांग की गई है। इससे लैंगिक असमानता कम होने के साथ ही उत्पादकता एवं व्यापार लचीलेपन में वृद्धि की संभावना है।
रिपोर्ट में पौष्टिक खाद्य मूल्य श्रृंखलाओं (विशेष रूप से छोटे एवं मध्यम उद्यमों) के लिए वित्त पोषण बढ़ाने का उल्लेख किया गया है। इनके पास उभरते बाजारों में वित्त पोषण तक पहुंच की गंभीर कमी है।
खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर सभी कृषि-खाद्य श्रमिकों में महिलाओं की हिस्सेदारी 38% है।
हालाँकि, दुनिया के कम सुविधा प्राप्त भागों में कृषि-खाद्य क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी अत्यधिक है।
यह हिस्सेदारी उप-सहारा अफ्रीका में 66% और दक्षिण एशिया क्षेत्र में 71% है।
एफ.ए.ओ. के अनुसार, उत्पादक संसाधनों एवं सेवाओं तक महिलाओं की पहुँच में सुधार करके लैंगिक असमानताओं को कम करने से महिलाओं द्वारा कृषि उपज में 20-30% की वृद्धि हो सकती है।
महिलाओं का सशक्तिकरण बेहतर घरेलू आहार और विशेष रूप से बेहतर बाल पोषण से संबद्ध है।
पिछले वर्ष जारी की गई कृषि-खाद्य प्रणालियों में महिलाओं की स्थिति रिपोर्ट के अनुसार कृषि उत्पादकता में लैंगिक अंतराल और कृषि-खाद्य-प्रणाली रोजगार में मजदूरी अंतराल को पाटने से वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 1% या लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि होगी।
जिन कृषि-खाद्य क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी दर उच्च है वहां महिलाओं को कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। इनमें शामिल हैं :
भूमि, इनपुट, वित्त, विस्तार सेवाओं एवं प्रौद्योगिकी सहित प्रमुख परिसंपत्तियों, संसाधनों व सेवाओं तक कम पहुँच।
भेदभावपूर्ण सामाजिक मानदंड और कानूनी ढाँचे भी जोखिम भरी रोज़गार स्थितियों तथा लिंग आधारित हिंसा के प्रति संवेदनशीलता के आधार पर महिलाओं को वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त करने में बाधक हैं।
रिपोर्ट के अनुसार खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने के लिए, खाद्य उत्पादन एवं उपभोग के पोषण पहलू को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। पोषण निवेश, निवेशकों के लिए खाद्य मूल्य श्रृंखलाओं को मज़बूत करने का एक अवसर है।
लैंगिक दृष्टिकोण के आधार पर पौष्टिक खाद्य प्रणालियों में निवेश एक मजबूत व्यावसायिक व व्यवहार्य मामला है।
व्यावसायिक दृष्टिकोण से पोषण निवेश आपूर्तिकर्ता, उत्पादकता, व्यावसायिक लचीलेपन में सुधार के साथ ही महिलाओं को आकर्षित करके और अधिक उत्पादक कार्यबल का निर्माण कर सकता है।
इस तरह कृषि व्यवसाय प्रबंधन एवं कर्मचारी दोनों स्तरों पर अधिक विविधता से लाभान्वित हो सकते हैं।
पोषण निवेश वैश्विक खाद्य सुरक्षा एवं पोषण, महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण और जलवायु शमन व अनुकूलन में योगदान दे सकता है।
GAIN की रिपोर्ट में लैंगिक दृष्टिकोण से तीन भौगोलिक क्षेत्रों में छह पौष्टिक खाद्य मूल्य श्रृंखलाओं पर प्रकाश डाला गया है:
उप-सहारा अफ्रीका में काजू एवं मुर्गी पालन
अफ्रीका दुनिया में कच्चे काजू का सबसे बड़ा उत्पादक है। हालाँकि, उप-सहारा अफ्रीका में इनका केवल 10% प्रसंस्करण स्थानीय स्तर पर किया जाता है।
काजू के छिलके उतारने एवं छाँटने में महिलाएँ प्रमुख भूमिका निभाती हैं। स्थानीय स्तर पर मूल्य संवर्धन सुनिश्चित करने के लिए इस क्षेत्र में प्रसंस्करण सुविधाओं में निवेश करने का अवसर है।
दक्षिण एशिया में टमाटर एवं डेयरी
दक्षिण एशिया में टमाटर का उत्पादन बहुत अधिक है, जिसमें भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। महिलाएँ टमाटर की खेती एवं प्रसंस्करण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं किंतु संसाधनों पर उनका नियंत्रण सीमित होता है।
दक्षिण एशिया में महिलाओं के पास ऋण एवं नई कृषि प्रौद्योगिकियों जैसे संसाधनों तक सीमित पहुँच व नियंत्रण होता है। ये संसाधन बड़े पैमाने पर पुरुषों द्वारा नियंत्रित होते हैं।
लैटिन अमेरिका में जलीय कृषि एवं क्विनोआ
2X मानदंड : यह लैंगिक दृष्टिकोण वाली कंपनियों में निवेश के लिए एक स्पष्ट और मानकीकृत ढांचा प्रदान करता है। इसे जून 2024 में अपडेट किया गया था।
2X मानदंड निवेश का आकलन करने और संरचना करने के लिए वैश्विक उद्योग मानक हैं। ये निम्नलिखित में वृद्धि करते हैं :
महिलाओं को नेतृत्व के अवसर
गुणवत्तापूर्ण रोजगार
वित्त एवं उद्यम सहायता
आर्थिक भागीदारी तथा पहुँच को बढ़ावा देने वाले उत्पाद व सेवाएँ
अधिक पुरुष-प्रधान वाले मूल्य श्रृंखलाओं में महिलाएँ अनौपचारिक नौकरियों में अधिक संलग्न हैं। यहाँ लैंगिक दृष्टिकोण आधारित निवेश जलीय कृषि जैसे मूल्य श्रृंखला में महिलाओं के समावेश एवं उपचार को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं।
मूल्य श्रृंखलाओं में लैंगिक दृष्टिकोण आधारित निवेश, नेतृत्व में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की कमी को दूर करने और महिला उद्यमिता व स्वामित्व का समर्थन करने में मदद कर सकता है .
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने चांद की सतह पर एक लाइटहाउस स्थापित करने की योजना बनाई है। इसका नाम लूनर नोड-1 है।
वैज्ञानिकों ने ओडीसियस (Odysseus) लैंडर पर लूनर नोड-1 (LN-1) डेमोस्ट्रेटर नामक एक स्वायत्त नेविगेशन प्रणाली का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है।
यह तकनीक चंद्रमा पर ‘लाइटहाउस’ के रूप में काम करेगी। यह अंतरिक्ष एजेंसी को अंतरिक्ष यात्रियों एवं रोबोट खोजकर्ताओं का वास्तविक समय का डाटा प्रदान करेगी।
ओडीसियस एक रोबोटिक लैंडर है जो फरवरी में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के निकट मालापर्ट ए नाम के क्रेटर में उतरा था।
इसका निर्माण ‘इंट्यूएटिव मशीन’ ने किया है। यह एक नोवा-सी चंद्र लैंडर है जिसे स्पेसएक्स फाल्कन 9 रॉकेट से लॉन्च किया गया था।
पेरेग्रीन लैंडर के बाद ओडीसियस निजी क्षेत का दूसरा प्रयास है।
50 से अधिक वर्षों में चंद्रमा पर उतरने वाला यह पहला अमेरिकी अंतरिक्ष यान है। इससे पूर्व वर्ष 1972 में अमेरिकी अंतरिक्ष यान अपोलो 17 चंद्रमा पर उतरा था।
यह मिशन नासा की कमर्शियल लूनर पेलोड सर्विसेज़ (CLPS) पहल और आर्टेमिस अभियान का हिस्सा है।
चंद्रमा पर ऑर्बिटर, लैंडर एवं अंतरिक्ष यात्रियों को जोड़ सकने में सक्षम
साथ ही, यह अन्य ग्राउंड स्टेशनों, नेटवर्क वाले अंतरिक्ष यान और गतिशील रोवर्स के संबंध में प्रत्येक अन्वेषणकर्ता की स्थिति को डिजिटल रूप से सत्यापित करने में मदद करता है।
खोजकर्ताओं के लिए चंद्रमा पर जाने और वहां पर स्थायी आधार स्थापित करने में सुरक्षात्मक रूप स सहायक
नेविगेशन व संचार रिले एवं पृष्ठीय नोड्स को बढ़ाने के साथ-साथ कक्षा व सतह पर विभिन्न उपयोगकर्ताओं को अधिक मजबूती तथा क्षमता प्रदान करने के लिए भी प्रयुक्त किए जा सकने में सक्षम।
संदर्भ
चीन के विज्ञान अकादमी के शोधकर्ताओं के अनुसार रात्रि में कृत्रिम प्रकाश (Artificial Light At Night: ALAN) के उच्च स्तर के कारण कीटों को वृक्षों की पत्तियों को खाने में कठिनाई हो रही है। इससे शहरी खाद्य शृंखलाओं के लिए खतरा उत्पन्न हो रहा है।
प्रकाश प्रदूषण को अवांछित, अनुचित या अत्यधिक कृत्रिम प्रकाश की उपस्थिति के रूप में परिभाषित किया जाता है। रात्रि के समय आनावश्यक एवं कृत्रिम प्रकाश के कारण आसमान में चकाचौंध हो जाती है।
इस प्रकार, प्रकाश प्रदूषण प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होने वाले प्रकाश स्तर में मानव निर्मित परिवर्तन है।
चकाचौंध (Glare) : दृश्य (देखने में) असुविधा का कारण बनने वाली अत्यधिक चमक
आकाशीय चमक (Sky Glow) : आवासीय क्षेत्रों में रात्रि में आकाश का चमकना
प्रकाश अधिकता (Light Trespass) : प्रकाश का उस स्थान पर पड़ना जहाँ उसकी आवश्यकता नहीं है।
बिखरा हुआ या अव्यवस्थित प्रकाश (Clutter) : प्रकाश स्रोतों का चमकदार, भ्रामक व प्रकाश स्रोतों का अत्यधिक बिखरा होना
आउटडोर लाइट एवं स्ट्रीटलाइट
लैंडस्केपिंग एंड मूडलाइटिंग
खेल में प्रकाश की व्यवस्था
शहरी प्रकाश व्यवस्था
तेल एवं गैस उत्पादन
प्रकाशयुक्त ग्रीनहाउस
इलेक्ट्रॉनिक विज्ञापन
उद्योग एवं कारखाने
घर एवं अपार्टमेंट
पार्किंग स्थल
उपग्रह
पौधे व जानवर प्रजनन, पोषण, नींद एवं शिकारियों से सुरक्षा जैसे जीवन-निर्वाह व्यवहारों के लिए प्रकाश और अंधकार के दैनिक चक्र पर निर्भर होते हैं।
वैज्ञानिक प्रमाणों के अनुसार, रात में कृत्रिम प्रकाश का उभयचर, पक्षी, स्तनधारी, कीटों व पौधों सहित कई जीवों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
रात्रिचर जानवर दिन में विश्राम करते हैं और रात में सक्रिय रहते हैं। प्रकाश प्रदूषण उनके रात्रि के वातावरण को मौलिक रूप से बदल देता है।
शिकार करने के लिए शिकारी प्रकाश का उपयोग करते हैं जबकि शिकार की प्रजातियाँ अंधेरे का उपयोग छिपने के रूप में करती हैं।
चकाचौंध उन आर्द्रभूमियों को भी प्रभावित करती है जो मेंढक व टोड जैसे उभयचरों का आवास हैं।
कृत्रिम रोशनी रात्रिचर जानवरों के प्रजनन में बाधा डालकर उनकी संख्या को कम करती है।
समुद्री कछुए रात के समय समुद्र तट पर अंडे देते हैं। अंडे से निकले बच्चे समुद्र के ऊपर चमकते क्षितिज को देखकर समुद्र में पहुँचते हैं। कृत्रिम रोशनी उन्हें समुद्र से दूर ले जाती है।
रात में प्रवास या शिकार करने वाले पक्षी चांद व तारों की रोशनी में अपना रास्ता बनाते हैं। कृत्रिम रोशनी के कारण वे रास्ते से भटक सकते हैं।
कई कीट प्रकाश की ओर आकर्षित होते हैं किंतु कृत्रिम रोशनी घातक आकर्षण उत्पन्न कर सकती है।
प्रकाश का स्तर आवश्यकता से अधिक होने से ऊर्जा की बर्बादी के कारण बहुत अधिक आर्थिक एवं पर्यावरणीय नुकसान होते हैं।
डार्क स्काई का अनुमान है कि केवल अमेरिका में सभी बाह्य प्रकाश व्यवस्था का कम-से-कम 30% बर्बाद हो जाता है। इससे प्रति वर्ष 21 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है।
इससे नींद संबंधी विकार, अवसाद, मोटापा व हृदय रोग, मधुमेह एवं कैंसर के जोखिम में वृद्धि होती है।
अत्यधिक कृत्रिम प्रकाश और आसमान में चकाचौंध से खगोल अनुसंधान में समस्या आती है। साथ ही, इससे तारों से आने वाले प्रकाश पर भी प्रभाव पड़ता है।
कृत्रिम प्रकाश से वृक्षों की पत्तियां सख्त हो जाती है जो शाकाहारी जानवरों के उपभोग के लिए अनुपयोगी हो सकती हैं।
इससे शाकाहारी कीटों की आहार संबंधी प्राथमिकताओं में परिवर्तन की संभावना होती है।
यह पक्षियों व नवजात समुद्री कछुओं को भी नकारात्मक रूप से प्रभवित करता है।
कृत्रिम प्रकाश के उच्च स्तर के कारण पौधे वृद्धि की बजाए सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे अधिक रासायनिक रक्षा यौगिकों से पत्तियां सख्त हो जाती हैं।
शोधकर्ताओं के अनुसार, रात में सर्वाधिक रोशनी वाले क्षेत्रों में पत्तियां बेहद सख्त थीं, जिनमें कीट गतिविधि के कोई संकेत नहीं दिख रहे थे।
फ्रंटियर्स इन प्लांट साइंस नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, कृत्रिम प्रकाश का पत्ती के पोषक तत्वों, आकार व रक्षा पदार्थों पर प्रजाति-विशिष्ट प्रभाव पड़ता है।
ये परिवर्तन पोषक चक्र एवं ऊर्जा प्रवाह जैसी प्रमुख कार्यात्मक विशेषताओं व पारिस्थितिक प्रक्रियाओं को महत्वपूर्ण रूप से बदल सकते हैं।
साइंस एडवांस में प्रकाशित वर्ष 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की 80% से अधिक आबादी प्रकाश-प्रदूषित वातावरण में रहती है।
वर्ष 2023 में साइंस जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार रात्रि के आसमान में प्रकाश की तीव्रता में निरंतर वृद्धि हो रही है। वहीँ दूसरी ओर वैज्ञानिकों ने तारों की दृश्यता में कमी दर्ज की है।
डार्क स्काई प्लेस प्रकाश प्रदूषण को कम करने के लिए एक स्वतंत्र रूप से प्रमाणित क्षेत्र है।
11 जनवरी, 2024 को महाराष्ट्र के पेंच टाइगर रिजर्व को भारत के पहले अंतर्राष्ट्रीय डार्क स्काई पार्क के रूप में नामित किया गया है।
इसे अंतर्राष्ट्रीय डार्क स्काई एसोसिएशन द्वारा प्रमाणित किया गया है।
यह एशिया का पाँचवाँ ऐसा पार्क है, जिसका उद्देश्य रात्रि आकाश की रक्षा करना और खगोल विज्ञान को बढ़ावा देना है।
पत्ती की कार्बन सामग्री के साथ-साथ पत्ती की कठोरता में वृद्धि के साथ शाकाहारी गतिविधि (Herbivory) में कमी आती है।
पत्ती की कठोरता पत्ती के सबसे महत्वपूर्ण लक्षणों, जैसे- संरचनात्मक शक्ति एवं यांत्रिक सुरक्षा में सहायक होती है।
उच्च कठोरता वाली पत्तियाँ धीमी दर से विघटित होती हैं, जो संभावित रूप से पोषक चक्रण को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं।
विशिष्ट पत्ती क्षेत्र (Specific Leaf Area : SLA) अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न प्रकाश तीव्रता के तहत पौधों की अनुकूली क्षमता को दर्शा सकता है।
उच्च प्रकाश की स्थिति SLA में वृद्धि को सीमित कर सकती है, जिससे कम प्रकाश कैप्चर दक्षता एवं पोषण के साथ मोटी पत्तियों का निर्माण होता है। यह शाकाहारी भोजन के लिए कम अनुकूल है।
पौधों से उच्च उभोक्ता स्तरों तक ऊर्जा प्रवाह के लिए उच्च कृत्रिम प्रकाश तीव्रता हानिकारक है।
यह शहरी पारिस्थितिकी प्रणालियों में आर्थ्रोपोड एवं पक्षी विविधता सहित जैव विविधता के रखरखाव के लिए संभावित खतरा उत्पन्न करती है।
राजस्थान के ऐतिहासिक जैसलमेर किले की दीवारें भारी बारिश के कारण ढह गईं, जिसके कारण इस यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के बेहतर रखरखाव और संरक्षण की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है। उचित रखरखाव के अभाव में दीवारें कमज़ोर होकर ढह गईं।
जैसलमेर किला भारत का एकमात्र ‘सक्रिय/जीवंत’ किला है, जहाँ आज भी कई निवासी रहते हैं, जिससे इस किले का रखरखाव उनकी सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
राजा रावल सिंह द्वारा 1156 ई. में निर्मित इस किले का निर्माण राज्य को आक्रमणों से बचाने के लिये रणनीतिक रूप से किया गया था। यह भारत को मध्य एशिया से जोड़ने वाले सिल्क रूट पर एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था।
सूर्य प्रकाश के कारण रंग बदलने वाले पीले बलुआ पत्थर से निर्मित यह किला सुनहरा दिखाई देता है, जिसके कारण इसे "सोनार किला" या "स्वर्ण किला" नाम दिया गया है।
राज महल (रॉयल पैलेस) किले के भीतर सबसे बड़ा महल है, जिसमें अलंकृत बालकनियाँ हैं और इस किले में जटिल नक्काशी की गई है। यह मध्ययुगीन राजस्थानी वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है जिसमें इस्लामी और राजपूत शैली के प्रभावों का एक उल्लेखनीय मिश्रण है।
किले के रखरखाव के लिये भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ज़िम्मेदार है।
चित्तौड़, कुंभलगढ़, रणथंभौर, गागरोन, आमेर और जैसलमेर किलों सहित राजस्थान के पहाड़ी किलों को वर्ष 2013 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया था।
जैसलमेर किला, चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़ व रणथंभौर किलों के साथ प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक तथा पुरातत्व स्थल एवं अवशेष (राष्ट्रीय महत्त्व की घोषणा) अधिनियम, 1951 के तहत भारत के राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारक के रूप में संरक्षित हैं।
भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने नई दिल्ली में आयोजित बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (BIMSTEC) व्यापार शिखर सम्मेलन में BIMSTEC मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर त्वरित गति से वार्ता की अपील की।
उन्होंने व्यापार वार्ता समिति और व्यापार समुदाय से अंतर-क्षेत्रीय व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने तथा क्षेत्रीय प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाने के लिये एक अधिमान्य/तरज़ीही व्यापार समझौते पर विचार करने का आह्वान किया।
भारत का BIMSTEC देशों के साथ कुल व्यापार वर्ष 2023-24 में 44.32 बिलियन अमरीकी डॉलर था।
थाईलैंड इस ब्लॉक में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था, जिसका निर्यात 5.04 बिलियन अमरीकी डॉलर तथा आयात 9.91 बिलियन अमरीकी डॉलर था।
बांग्लादेश का स्थान दूसरे स्थान पर था, जिसका निर्यात 11.06 बिलियन अमरीकी डॉलर तथा आयात 1.84 बिलियन अमरीकी डॉलर था, जिससे भारत के पक्ष में 9.22 बिलियन अमरीकी डॉलर का व्यापार संतुलन बना।
इस पर फरवरी 2004 में हस्ताक्षर किये गए थे।
इसमें सदस्य देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं, निवेश और आर्थिक सहयोग पर FTA पर वार्ता का प्रावधान शामिल है।
BIMSTEC देशों ने फ्रेमवर्क समझौते के अनुसार वार्ता को आगे बढ़ाने के लिये व्यापार वार्ता समिति का गठन किया।
हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में हुई तीव्र वनाग्नि से उष्ण-कपासी वर्षा मेघ (पाइरो-क्यूमुलो-निम्बस बादल: pyroCbs) बन गए, जिनमें भीषण गर्जना और अधिक अग्नि प्रज्ज्वलित करने की क्षमता है।
परिभाषा: पाइरो-क्यूमुलो-निम्बस बादल पृथ्वी की सतह से अत्यधिक ऊष्मा द्वारा निर्मित गर्जन वाले बादल हैं। इन्हें अग्निछाया या अग्नि मेघ भी कहा जाता है।
ये कपासी वर्षा मेघ (Cumulonimbus Clouds) के समान ही बनते हैं, लेकिन तीव्र ऊष्मा के परिणामस्वरूप जो प्रबल अपड्राफ्ट (मेघ का निर्माण) होता है, वह या तो भीषण वनाग्नि या ज्वालामुखी विस्फोट के कारण होता है।
इसके विरचन के लिये परिस्थितियाँ:
उष्ण-कपासी वर्षा (पाइरो-क्यूमुलो-निम्बस) मेघ अत्यधिक ऊष्मा (जैसे वनाग्नि) के कारण बनते हैं।
प्रत्येक वनाग्नि से ये बादल नहीं बनते, तापमान 800 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा होना चाहिये, जैसा कि वर्ष 2019-2020 में ऑस्ट्रेलिया में लगी वनाग्नि में देखा गया था।
आग की तीव्र गर्मी से गर्म वायु तीव्रता से ऊपर की ओर उठती है, जिससे राख, धुआँ और जल वाष्प निकलती है, जो ठंडा होने पर पाइरोक्यूम्यलस बादलों में संघनित हो जाती है।
ये बादल 50,000 फीट तक पहुँच सकते हैं और तड़ित और तीव्र वायु के साथ गरज के साथ वर्षा करते हैं।
प्रभाव और विशेषताएँ:
पाइरो-क्यूमुलो-निम्बस मेघ तड़ित उत्पन्न कर सकते हैं जो कई किलोमीटर दूर नई वनाग्नि को प्रज्वलित कर सकते हैं।
वे आम तौर पर कम वर्षा करते हैं, जिससे वनाग्नि के शमन के बजाय फैलने में मदद मिलती है।
ये बादल तेज़ वायु को ट्रिगर कर सकते हैं, जिससे वनाग्नि का प्रबंधन तेज़ और जटिल हो जाता है।
बढ़ता तापमान और विस्तारित फायर सीज़न: ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान बढ़ता है और शुष्क अवधि लंबी होती है, जिससे शुष्क परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं, जिससे वनाग्नि की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ जाती है तथा उष्ण-कपासी वर्षा मेघ निर्माण के लिये अधिक अवसर उपलब्ध होते हैं।
वनस्पति में वृद्धि और अनावृष्टि की स्थिति: उष्ण तापमान और बदलते वर्षा प्रतिरूप से वनस्पति में वृद्धि होती है, जो वनाग्नि के लिये ईंधन के रूप में कार्य करती है।
इसके अतिरिक्त, लगातार अनावृष्टि के कारण वन और घास के मैदान सूख जाते हैं, जिससे उनमें आग लगने की संभावना बढ़ जाती है।
चरम मौसम पैटर्न: तीव्र और निरंतर हीट वेव के साथ-साथ परिवर्तित वायु पैटर्न के कारण वनाग्नि की घटना हो सकती है और यह तेज़ी से फैल सकती है, जिससे उष्ण-कपासी वर्षा मेघ बनने की संभावना बढ़ जाती है।
मानवीय गतिविधियाँ: निर्वनीकरण, भूमि उपयोग में परिवर्तन और शहरीकरण मानव-जनित आग की संभावना को बढ़ाकर तथा अप्रत्यक्ष रूप से उष्ण-कपासी वर्षा मेघ निर्माण में योगदान देकर वनाग्नि के जोखिम को बढ़ाते हैं।
चक्रवात का लैंडफॉल (Cyclone Landfall)
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात, जिनकी उत्पत्ति कर्क एवं मकर रेखाओं के मध्य महासागरीय क्षेत्र में होती है। इसके उपरान्त इनका प्रवाह स्थलीय क्षेत्र की ओर होता है। वह स्थान जहाँ से उष्ण कटिबंधीय चक्रवात तट को पार कर जमीन पर पहुँचते है, 'चक्रवात का लैंडफॉल' कहलाता है।
दिल्ली का ऐतिहासिक स्थान मुरादाबाद की पहाड़ी हाल ही में चर्चा में आया है। 14वीं शताब्दी के सूफी संत सैयद मुराद अली के नाम पर बने इस स्थान पर अलग-अलग ऐतिहासिक काल की दो मस्जिदें हैं, जो इतिहासकारों और स्थानीय लोगों दोनों का ध्यान आकर्षित करती हैं।
इस स्थल पर तुगलक और लोदी राजवंशों की दो मस्जिदें हैं, जो उनकी विशिष्ट स्थापत्य शैली को दर्शाती हैं।
तुगलक-युग की मस्जिद को कसाई वाला गुम्बद के नाम से जाना जाता है।
शाही मस्जिद लोधी-युग की मस्जिद है जिसमें एक कमल कलश है।
यहाँ सैयद मुराद अली का मकबरा स्थित है, जो जटिल मेहराबों और अलंकृत द्वारों से सुसज्जित है।
इस जगह पर अब अब्दुल मन्नान अकादमी नामक एक मदरसा है जो समुदाय की सेवा करता है और इस स्थल की विरासत को संरक्षित करता है।
श्रीलंका में मादा टोक मकाक, जिनकी अनुमानित संख्या लगभग 3 मिलियन है, की आबादी को नियंत्रित करने के लिये उन पर अंतर्गर्भाशयी उपकरणों (Intrauterine Devices- IUD) का परीक्षण किया जा रहा है।
अंतर्गर्भाशयी उपकरण (IUD) एक छोटा गर्भनिरोधक उपकरण होता है जिसे गर्भावस्था को रोकने के लिये गर्भाशय (गर्भ) में निर्दिष्ट किया जाता है।
IUD के प्रकार: कॉपर IUD और हार्मोनल IUD, मिरेना और काइलेना ब्रांड नामों के तहत बेचे जाते हैं।
सरकार द्वारा यह कार्रवाई फसल क्षति को दूर करने के लिये किसानों को शॉटगन प्रदान करने और चीन को बंदरों के निर्यात की विवादास्पद योजना को त्यागने के पूर्व निर्णय के बाद की गई है।
विशेषज्ञों को इस बात पर भी संदेह है कि क्या अकेले गर्भनिरोधक की सहायता से बंदरों की संख्या में प्रभावी रूप से कमी आएगी, तथा उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया है कि जंगली बंदरों को मानव भोजन खिलाने पर प्रतिबंध लगाना भी आवश्यक है, क्योंकि भोजन तक पहुँच से उनके जीवित रहने और प्रजनन की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
टोक मकाक (Macaca sinica) श्रीलंका में पाया जाने वाला लाल-भूरे रंग का पूर्व काल का बंदर है।
IUCN स्थिति: संकटग्रस्त
ये अधिकतर फलभक्षी (फल खाने वाले) तथा दिवाचर जानवर (दिन में सक्रिय) हैं।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (National Council of Educational Research and Training- NCERT) ने वर्ष 2024 में जारी होने वाली कक्षा 3 और 6 की कई पाठ्यपुस्तकों से संविधान की प्रस्तावना को हटा दिया है।
NCERT ने स्पष्ट किया है कि संगठन अब राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार समग्र विकास के लिये प्रस्तावना, मौलिक कर्तव्यों, मौलिक अधिकारों और राष्ट्रगान सहित भारतीय संविधान के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
संविधान की प्रस्तावना संविधान में निहित मूल संवैधानिक मूल्यों का प्रतिबिंब है। यह इस बात पर प्रकाश डालती है कि:
भारत एक संप्रभुता, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनेगा जो लोगों के लिये न्याय, समानता और स्वतंत्रता हेतु प्रतिबद्ध होगा।
इसका उद्देश्य राष्ट्र की एकता और अखंडता बनाए रखने के लिये भाईचारे को बढ़ावा देना है।
संविधान के अधिकार का स्रोत भारत के लोगों के पास है।
इसे 26 नवंबर, 1949 को अपनाया गया था।
केशवानंद भारती केस, 1973 और केंद्र सरकार बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम, 1995 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि प्रस्तावना संविधान का अभिन्न अंग है।
प्रस्तावना मौलिक अधिकार प्रदान नहीं करती है और यह न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं है।
भारतीय सेना के मद्रास इंजीनियर समूह ने विनाशकारी भूस्खलन के बाद वाहनों और मशीनरी की आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिये केरल के वायनाड के चूरलमाला में 190 फुट लंबे बेली ब्रिज का निर्माण किया।
बेली ब्रिज आपदा प्रभावित क्षेत्रों में लोगों, भारी मशीनरी और एम्बुलेंस के परिवहन को सक्षम बनाता है।
बेली ब्रिज एक प्रकार का मॉड्यूलर ब्रिज है जिसके घटक/पुर्जे पहले से निर्मित होते हैं और आवश्यकतानुसार उन्हें तेज़ी से जोड़ा जा सकता है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसका आविष्कार करने का श्रेय एक अंग्रेज सिविल इंजीनियर डोनाल्ड कोलमैन बेली को जाता है।
भारतीय सशस्त्र बलों को बेली ब्रिज का डिज़ाइन अंग्रेज़ों से विरासत में मिला था, जिसका उपयोग उन्होंने वर्ष 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में और वर्ष 2021 में उत्तराखंड में आई बाढ़ के बाद विभिन्न आपदा राहत प्रयासों में किया था।
दुनिया का सबसे बड़ा हिमखंड A23a टेलर कॉलम (Taylor Column) के रूप में एक घूर्णनकारी समुद्री भंवर (Swirling Ocean Vortex) में फंस गया है। इसकी वजह से इसके पिघलने की दर में कमी आई है।
वर्ष 1986 में A23a नामक यह हिमखंड अंटार्कटिक तटरेखा से अलग हुआ था और वेडेल सागर (Weddell Sea) में जा गिरा और वस्तुतः एक बर्फ का द्वीप बन गया।
इसका क्षेत्रफल ग्रेटर लंदन के आकार से दोगुने से भी अधिक है।
यह हिमखंड 30 वर्षों से अधिक समय तक समुद्र तल पर अटका रहने के बाद आगे बढ़ा किंतु वर्तमान में यह अंटार्कटिका के ठीक उत्तर में टेलर कॉलम में फंस गया है।
अंटार्कटिका से अलग होने के बाद इस हिमखंड को शक्तिशाली अंटार्कटिक सर्कम्पोलर करंट (ACC) बहाकर आगे ले जाने वाला था। ACC एक महासागरीय धारा है जो अंटार्कटिका के चारों ओर पश्चिम से पूर्व की ओर दक्षिणावर्त चलती है।
हालांकि, इस प्रत्याशित पथ का अनुसरण करने के बजाए A23a अप्रैल 2023 की शुरुआत से लगभग स्थिर बना हुआ है।
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में पेरिस ओलंपिक में क्यूबा के पहलवान मिजैन लोपेज ने पुरुषों की ग्रीको-रोमन कुश्ती की 130 किलोग्राम श्रेणी में स्वर्ण पदक जीता
इन्होंने फाइनल मुकाबले में चिली के यास्मीन अकोस्टा को हराया
इस पदक के साथ ही मिजैन लोपेज एक ही स्पर्धा में लगातार पांच ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले खिलाडी बन गए
इन्होने पहली बार वर्ष 2008 ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता था
इसके बाद ये 2012, 2016 और 2021 ओलंपिक में भी स्वर्ण पदक जीत चुके हैं
मिजैन लोपेज अपने 23 ओलंपिक मैचों में से सिर्फ एक मैच में हारे हैं
ये वर्ष 2004 के एथेंस ओलंपिक के क्वॉर्टर फाइनल मैच में हार गए थे.
एक ही स्पर्धा में लगातार 4 ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले खिलाडी -
कार्ल लुई - लंबी कूद
माइकल फेल्प्स - 200 मीटर तैराकी
केटी लेडेकी - 800 मीटर फ्रीस्टाइल तैराकी
अल ओर्टर - डिस्कस थ्रो
पॉल एल्वस्ट्रॉम – नौकायन
काओरी इको – कुश्ती
संदर्भ
वर्तमान में वैश्विक बाजारों में गिरावट देखी जा रही है। इस गिरावट का एक मुख्य कारण येन कैरी ट्रेड (Yen Carry Trade) का बंद होना भी है। इसके अन्य कारकों में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में आर्थिक मंदी की संभावना तथा पश्चिम एशिया में बढ़ती उथल-पुथल के कारण भू-राजनीतिक तनाव में वृद्धि आदि शामिल हैं।
प्राय: वैश्विक निवेशक ऐसे देश से पैसे उधार लेते हैं जहाँ ब्याज दरें कम हों और उस पैसे को (मुद्रा विनिमय के बाद) ऐसे देश में निवेश करते हैं जहाँ ब्याज दरें बहुत अधिक हों। इसे कैरी ट्रेड कहा जाता है।
विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों द्वारा उनकी विशिष्ट आर्थिक स्थितियों के अनुकूल ब्याज दरों को निर्धारित करने के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है।
जापान के केंद्रीय बैंक (बैंक ऑफ़ जापान) ने वर्ष 2011 से 2016 के बीच ब्याज दरों को 0% पर रखा था जिसे वर्ष 2016 में शून्य (-0.10%) से भी कम कर दिया गया।
कम ब्याज दरों के पीछे का विचार आर्थिक गतिविधि को प्रोत्साहित करना है।
तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के कारण जापान की सस्ती मौद्रिक नीति के वैश्विक प्रभाव होते हैं।
ऐसी कम ब्याज दरें निवेशकों को येन में सस्ते में उधार लेने और बेहतर रिटर्न पाने के लिए अन्य देशों (जैसे- ब्राजील, मैक्सिको, भारत और यहां तक कि अमेरिका) में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। इसे येन कैरी ट्रेड कहा जाता है।
बैंक ऑफ जापान द्वारा लंबे समय तक ब्याज दरें कम रखने के कारण अरबों डॉलर के ‘येन’ कैरी ट्रेड को प्रोत्साहन मिला जिसने दुनिया भर के कई देशों में निवेश को बढ़ावा दिया।
यहाँ तक कि रूस-यूक्रेन संघर्ष के बाद जब दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरें तेजी से बढ़ा दीं तब भी बैंक ने अपनी दरें अपरिवर्तित रखीं।
इस वर्ष मार्च एवं जुलाई के मध्य जापान के केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों में 35 आधार अंकों की वृद्धि की जिससे ब्याज दर -0.1% से बढ़कर 0.25% हो गई।
यद्यपि भारतीय परिप्रेक्ष्य (जहां ब्याज दरें 6.5% से ऊपर हैं) में यह बहुत बड़ी वृद्धि नहीं है लेकिन जापान के संदर्भ में यह मौद्रिक भूकंप के समान था।
यह भी संभावना व्यक्त की गई की जापानी केंद्रीय बैंक भविष्य में ब्याज दरों में और वृद्धि कर सकता है।
इसने उन निवेशकों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया जिन्होंने येन में उधार लिया था और ब्राजीलियाई रियल या मैक्सिकन पेसो या भारतीय रुपए में निवेश किया था।
जापान में ब्याज दरों में वृद्धि के कारण डॉलर और अधिकांश अन्य उभरती अर्थव्यवस्था वाली मुद्राओं के मुकाबले ‘येन’ मजबूत हुआ है।
पिछले सप्ताह येन की विनिमय दर डॉलर, रियल, रुपया, पेसो आदि मुद्राओं के मुकाबले मजबूत हुई है।
ऐसे में इन मुद्राओं में रखी गई संपत्तियां येन में वापस परिवर्तित होने पर अपेक्षाकृत कम मूल्य की थीं।
रिटर्न अंतर में कमी और इस दिशा में और वृद्धि की संभावना ने गिरावट को बढ़ावा दिया और निवेशकों को उन परिसंपत्तियों को बेचने के लिए प्रेरित किया जो सस्ते येन का उपयोग करके खरीदी गई थीं।
पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार, ओल डोइन्यो लेंगाई (Ol Doinyo Lengai) ज्वालामुखी विगत 10 वर्षों से तेज़ी से धंस रहा है।
भौगोलिक अवस्थिति : नैट्रॉन झील के दक्षिणी तट पर तंजानिया में स्थित एक स्ट्रैटोवोलकानो (Stratovolcano)
यह पूर्वी अफ़्रीकी भ्रंश प्रणाली के किनारे स्थित कई ज्वालामुखियों में से एक है।
स्थानीय नाम : स्थानीय मासाई लोगों द्वारा ‘ईश्वर के पर्वत’ के रूप में नामित
विशेषता : नैट्रोकार्बोनेटाइट्स लावा वाला दुनिया का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी
नैट्रोकार्बोनेटाइट्स लावा अत्यंत चिपचिपा प्रकार का मैग्मा होता है जो सोडियम, पोटेशियम एवं कैल्शियम कार्बोनेट से समृद्ध होता है किंतु इसमें सिलिकॉन की मात्रा कम पाई जाती है।
कार्बोनेटाइट मैग्मा सामान्य पानी की तरह प्रवाहित होता है।
इस ज्वालामुखी के एक से अधिक सक्रिय केंद्र हैं। ओल डोइन्यो लेंगाई के उपजाऊ निचले क्षेत्रों पर अंगूर एवं खट्टे फलों के बागान स्थित हैं।
सैटेलाइट डाटा के अनुसार ओल डोइन्यो लेंगाई प्रति वर्ष लगभग 3.6 सेमी. की दर से धंस रहा है।
इस घटना का कारण ज्वालामुखी के दो क्रेटर में से एक के नीचे खाली जलाशय का होना हो सकता है।
यह भंडार ज्वालामुखी से तीन किमी. या उससे अधिक नीचे स्थित एक बड़े मैग्मा भंडार से जुड़ा हो सकता है।
अवस्थिति : तंजानिया-केन्या सीमा पर
यह ग्रेगरी रिफ्ट (Gregory Rift) में स्थित है, जो पूर्वी अफ्रीकी रिफ्ट की पूर्वी शाखा है।
रामसर साइट : वर्ष 2001 में तंजानिया की लेक नैट्रॉन बेसिन रामसर सूची में शामिल
विशिष्टता : लेक नैट्रॉन में गर्म पानी, लवण, कास्टिक सोडा एवं मैग्नेसाइट जमाव की एक अनूठी संरचना विद्यमान
पर्यावरणीय महत्त्व : अफ्रीका के लेसर फ्लेमिंगो के लिए एकमात्र नियमित प्रजनन क्षेत्र
हाल ही में, भारत में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, सुक्रालोज के उपयोग के प्रभावों की जांच में ग्लूकोज (HbA1c) के स्तर पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पाया गया और शरीर के वजन, कमर की मोटाई और बॉडी मास इंडेक्स (BMI) में सुधार के संकेत मिले हैं।
क्या है : चीनी (सुक्रोज) के स्थान पर प्राय: उपयोग किया जाने वाला एक कृत्रिम स्वीटनर या मधुरक
खोज : वर्ष 1976 में टेट एंड लाइल कंपनी द्वारा
इसे आमतौर पर स्प्लेंडा ब्रांड नाम से बेचा जाता है।
अन्य कृत्रिम मधुरक : एस्पार्टेम, सैकरिन एवं स्टीविया
विशेषता : अन्य कृत्रिम मधुरकों के विपरीत सुक्रालोज़ से दांतों की कैविटी में वृद्धि न होना
तुलना : सुक्रोज (टेबल शुगर) से लगभग 600 गुना अधिक मीठा
लाभ : इसमें शून्य कैलोरी होने के कारण इसके उपभोग से वजन का न बढ़ना
चीनी के विकल्प के रूप में सुक्रालोज का उपयोग कैलोरी में वृद्धि किए बिना या रक्त शर्करा के स्तर को बढ़ाए बिना खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों को मीठा करने के लिए किया जाता है।
इसका उपयोग अपने कैलोरी उपभोग को कम करने, रक्त शर्करा के स्तर को प्रबंधित करने या अपने वजन को नियंत्रित करने वाले लोगों द्वारा किया जाता है।
हालाँकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गैर-मधुमेह रोगियों को शरीर के वजन को नियंत्रित करने के लिए कृत्रिम मधुरक का उपयोग करने के खिलाफ चेतावनी जारी की है।
सुक्रालोज़ आंतों के माइक्रोबायोटा को संशोधित कर सकता है और इनमें से कुछ अच्छे बैक्टीरिया को खत्म कर सकता है, जिससे लीवर जैसे आंतरिक अंगों में सूजन हो सकती है।
पेट में मौजूद अनुकूल बैक्टीरिया संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं, जो प्रतिरक्षा तंत्र, हृदय, वजन एवं अन्य स्वास्थ्य पहलुओं को लाभ पहुंचाते हैं।
सुक्रालोज़ पाचन तंत्र में हार्मोन के स्तर को बदल सकता है, जिससे असामान्यताएं हो सकती हैं जो मोटापे या टाइप 2 मधुमेह जैसे चयापचय संबंधी विकारों में योगदान कर सकती हैं।
सुक्रालोज़ के कारण होने वाले चयापचय परिवर्तन से ग्लूकोज असहिष्णुता (Glucose Intolerance) हो सकती है, जिससे मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है।
सुक्रालोज़ से खाना बनाना भी खतरनाक हो सकता है।
उच्च तापमान पर खाना पकाने या बेकिंग के दौरान सुक्रालोज़ विघटित हो सकता है, जिससे संभावित रूप से विषाक्त क्लोरीनयुक्त यौगिक बन सकते हैं।
संदर्भ
सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) को दिल्ली सरकार के मंत्रिपरिषद की सहायता एवं सलाह के बिना दिल्ली नगर निगम (MCD) में 'एल्डरमैन' को नामित करने का अधिकार है।
एल्डरमैन शब्द की उत्पत्ति दो शब्दों ‘ओल्ड’ (Old/Ald/Eald) और ‘मैन’ (Man) के संयोजन से हुई है जिसका अर्थ है वृद्ध या अनुभवी व्यक्ति।
एल्डरमैन शब्द की शुरुआत पुराने अंग्रेजी शब्द एल्डोरमैन (Aldormonn/Ealdormann) से हुई है। पुराने समय में किसी कबीले या जनजाति के बुजुर्गों को इस शब्द से संदर्भित किया जाता था।
दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 (DMC अधिनियम) के अनुसार, 25 वर्ष से अधिक आयु के 10 लोगों को LG द्वारा MCD में नामित किया जा सकता है।
इन लोगों से नगरपालिका प्रशासन में विशेष ज्ञान या अनुभव की अपेक्षा की जाती है।
जनवरी 2023 में दिल्ली के LG ने दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 की धारा- 3 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए 10 एल्डरमैन को मनोनीत किया था।
इसके विरोध में दिल्ली सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में LG के इस फैसले को अनुच्छेद 239(A)(A) के उल्लंघन के आधार पर चुनौती दी थी।
अनुच्छेद 239(A)(A) के अनुसार, दिल्ली राज्य में मंत्रिपरिषद और मुख्यमंत्री "उन मामलों के संबंध में अपने कार्यों के अभ्यास में LG की सहायता एवं सलाह करेंगे, जिनके संबंध में विधानसभा को कानून बनाने की शक्ति है, सिवाय इसके कि उन्हें किसी कानून के तहत या अपने विवेक से कार्य करने की आवश्यकता है"।
विधानसभा के पास राज्य सूची में 'सार्वजनिक व्यवस्था', 'पुलिस' एवं 'भूमि' के अलावा सभी विषयों पर कानून बनाने की शक्ति प्राप्त है।
सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 (DMC अधिनियम) दिल्ली LG को मंत्रिपरिषद से परामर्श किए बिना एल्डरमैन को नामित करने की ‘स्पष्ट’ शक्ति प्रदान करता है और जनवरी 2023 में 10 एल्डरमैन को नामित करना शक्ति का वैध प्रयोग था।
पीठ के अनुसार, LG को यह शक्ति DMC अधिनियम, 1957 की धारा 3(3)(बी)(1) से प्राप्त है।
यह अधिनियम, एक संसदीय कानून है, जिसे 1993 में संशोधित कर 10 विशेषज्ञ व्यक्तियों को नामित करने की शक्ति प्रदान की गई।
न्यायालय के अनुसार, दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्ति संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य एवं समवर्ती सूची के विषयों से निपटने वाले संसदीय कानून के अनुरूप होगी।
LG को कानून के अनुसार काम करना है, न कि मंत्रिपरिषद की सहायता एवं सलाह से निर्देशित होना है।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने इस फैसले के लिए दिल्ली सरकार बनाम भारत संघ (2023) में पांच जजों की पीठ के फैसले का हवाला दिया।
वर्ष 2023 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि संसद के पास राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बनाने का अधिकार होगा, यदि मामला दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT) का हो।
इस मामले में 'स्थानीय सरकार' पर कानून पारित करने का अधिकार भी शामिल होगा, जो राज्य सूची के अंतर्गत आता है और यह DMC अधिनियम भी इस अधिकार के दायरे में आएगा।
DMC अधिनियम के तहत दिल्ली को 12 क्षेत्रों में विभाजित किया गया है।
यह अधिनियम प्रत्येक क्षेत्र के लिए एक 'वार्ड समिति' भी गठित करता है जिसमें उस क्षेत्र के निर्वाचित प्रतिनिधि एवं एल्डरमैन शामिल होते हैं।
हालाँकि, एल्डरमैन को MCD की बैठकों में वोट देने का अधिकार नहीं है किंतु वे वार्ड समिति के माध्यम से सदन के कामकाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
12 वार्ड समितियों में से प्रत्येक को अपनी पहली बैठक में MCD स्थायी समिति का हिस्सा बनने के लिए एक सदस्य का चुनाव करना होता है।
एल्डरमैन इन चुनावों में मतदान कर सकते हैं और स्थायी समिति के सदस्य के रूप में चुने जाने के लिए उम्मीदवार भी हो सकते हैं।
हालांकि, मेयर MCD का प्रमुख होता है, लेकिन स्थायी समिति निगम के कार्यों का प्रभावी प्रबंधन करती है, और मतदान प्रक्रिया में एल्डरमैन की भागीदारी के बिना इसका गठन नहीं किया जा सकता।
इस समिति के बिना MCD निम्नलिखित महत्वपूर्ण कार्य नहीं कर सकती है :
5 करोड़ रुपए से अधिक व्यय वाले अनुबंध करना
MCD अधिकारियों को प्रमुख पदों पर नियुक्त करना
बजट संशोधन की सिफारिश करना
चालू वर्ष से परे व्यय से संबंधित किसी भी शक्ति के प्रयोग को मंजूरी देना
संदर्भ
जम्मू एवं कश्मीर के उपराज्यपाल ने संविधान के अनुच्छेद 311(2)(सी) के तहत नार्को-आतंकवाद (Narco-Terrorism) के आरोप में जम्मू एवं कश्मीर में छह सरकारी अधिकारियों को उनके पदों से हटा दिया। बर्खास्त किए गए लोग पहले से ही नार्को आतंकवाद के मामले में जेल में थे।
नार्को-आतंकवाद को ‘ड्रग उत्पादकों एवं आतंकवादी हमलों को अंजाम देने वाले विद्रोही समूह के बीच गठबंधन’ के रूप में परिभाषित किया जाता है।
इसमें आतंकवादी संगठन या विद्रोही समूह अवैध ड्रग व्यापार के माध्यम से अपनी गतिविधियों को वित्तपोषित करते हैं।
यह शब्द 1983 में पेरू के तत्कालीन राष्ट्रपति फर्नांडो बेलांडे द्वारा लैटिन अमेरिका में मादक पदार्थ रोधी कानून प्रवर्तन एजेंसियों के खिलाफ संगठित आपराधिक गिरोहों द्वारा किए गए हिंसक कृत्यों का वर्णन करने के लिए गढ़ा गया था।
नार्को-टेररिज्म गतिविधियों को दो प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है :
ड्रग तस्करी नेटवर्क द्वारा आतंकी रणनीति का इस्तेमाल। इसमें ड्रग तस्करी करने वाले सिंडिकेट हिंसा का इस्तेमाल करके इलाकों पर कब्ज़ा करने, सरकारों को नियंत्रित करने और बड़े इलाकों पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए करते हैं।
आतंकवादी संगठनों द्वारा अपनी गतिविधियों के लिए धन के स्रोत के रूप में नशीली दवाओं का उत्पादन व व्यापार।
दक्षिण एशिया में ‘गोल्डन क्रिसेंट’ (पाकिस्तान, अफगानिस्तान व ईरान तक विस्तृत) ड्रग-तस्करी का केंद्र है जो दुनिया के सबसे बड़े अफीम उत्पादक क्षेत्रों में से एक है। यह अल-कायदा और हक्कानी नेटवर्क को अफीम के उत्पादन व व्यापार से लाभ प्रदान करता है।
भारत दुनिया के दो सबसे बड़े अफीम उत्पादक क्षेत्रों के बीच में स्थित है।
गोल्डन ट्राइंगल क्षेत्र : म्यांमार, थाईलैंड, लाओस और वियतनाम।
गोल्डन क्रिसेंट क्षेत्र : पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान।
पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, सिक्किम, असम, मणिपुर व मिजोरम जैसे राज्यों के अधिक लोग अवैध ड्रग्स से प्रभावित हैं।
संदर्भ
संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने वनों में लगने वाली आग (वनाग्नि) के जोखिम प्रबंधन को लेकर देशों को दिशा-निर्देश जारी किया है। वनाग्नि से व्यक्तियों एवं पर्यावरण को अत्यधिक खतरा हो सकता है।
इसमें सिद्धांत एवं रणनीतिक कार्यों को शामिल किया गया है। यह एफ.ए.ओ. का नवीनतम प्रकाशन है, जो दो दशक पूर्व पहली बार प्रकाशित अग्नि प्रबंधन दिशानिर्देशों को अपडेट (अद्यतन) करता है।
यह संस्करण जलवायु संकट से उत्पन्न वर्तमान चुनौतियों को संबोधित करता है और सक्रिय रणनीतियों तथा तैयारियों पर जोर देता है।
इसे सर्वप्रथम वर्ष 2006 में जारी किया गया। इसका उद्देश्य देशों को अनुसंधान एवं विश्लेषण, जोखिम में कमी से लेकर प्रतिक्रिया (आग लगने पर) और बहाली तक अग्नि प्रबंधन के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करना था।
वर्तमान में इसका दूसरा संस्करण प्रकाशित किया गया है, जिसका शीर्षक ‘एकीकृत अग्नि प्रबंधन स्वैच्छिक दिशा-निर्देश : सिद्धांत एवं रणनीतिक कार्रवाइयाँ’ हैं।
सामाजिक एवं सांस्कृतिक
आग का उपयोग एवं प्रबंधन उचित तरीके से करके सतत आजीविका को बढ़ावा देना।
आग के प्रतिकूल प्रभावों को न्यूनतम करके मानव स्वास्थ्य एवं सुरक्षा में सुधार करना।
स्थानीय लोगों एवं पारंपरिक ग्रामीण समुदायों की भूमि पर आग का उपयोग समुदायों के अनुरूप प्रथा के रूप में करना।
हालाँकि, इसे वर्तमान में पर्यावरण अनुकूल बनाया जाना चाहिए।
आर्थिक : एक कुशल एकीकृत अग्नि प्रबंधन कार्यक्रम के माध्यम से लाभ को अधिकतम करना और वन की अग्नि से होने वाली हानि को न्यूनतम करना।
पर्यावरण : नियोजन एवं प्रबंधन में जलवायु परिवर्तन, वनस्पति तथा अग्नि व्यवस्था को एकीकृत करना।
विधान एवं शासन : सभी अग्नि प्रबंधन गतिविधियाँ कानूनी ढांचे पर आधारित होनी चाहिए तथा स्पष्ट नीति एवं प्रक्रियाओं द्वारा समर्थित होनी चाहिए।
एकीकृत पहलों, अनुभवों एवं ज्ञान के संवर्धन व विस्तार पर चर्चा करने के लिए फायर हब के प्रमुख साझेदारों को एक साथ लाना।
अग्नि प्रबंधन रणनीतियों में पारंपरिक ज्ञान एवं प्रथाओं व वैज्ञानिक प्रगति को एकीकृत करने के महत्व को समझना।
वैश्विक वन अग्नि प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाने तथा समुदायों व पर्यावरण पर वन की अग्नि के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए सहयोग को बढ़ावा देना एवं सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करना।
सक्रिय रणनीतियों का निर्माण
विज्ञान एवं पारंपरिक ज्ञान का एकीकरण
लिंग समावेशन
रणनीतिक कार्यवाहियाँ
वनाग्नि मुख्यतः अनियोजित आग होती है। अंटार्कटिका को छोड़कर लगभग सभी महाद्वीपों में वनाग्नि की घटनाएँ देखी गई हैं।
42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से वन को संविधान की सातवीं अनुसूची में समवर्ती सूची में शामिल किया गया हैं।
मानव जनित कारण : वनाग्नि की लगभग 90% घटनाएँ मानव जनित होती हैं। इसमें कैंपफायर को बिना बुझाए छोड़ देना, जलती सिगरेट को फेंकना, जानबूझकर की गई आगज़नी, कूड़े-मलबे आदि को ग़लत तरीके से जलाना एवं आतिश बाज़ी आदि आदि मुख्य हैं।
प्राकृतिक कारण : आकाशीय बिजली, ज्वालामुखी विस्फोट एवं उच्च वायुमंडलीय तापमान व सूखापन वनाग्नि के लिये अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करते हैं। वनाग्नि के प्रमुख कारणों में आकाशीय बिजली एक है।
इसके अतिरिक्त जलवायु परिवर्तन से सतह पर वायुताप में वृद्धि हो रही है, जिससे कार्बन डाईऑक्साइड व वनाग्नि के प्रसार की प्रतिशतता में वृद्धि हुई है।
क्राउन फायर (Crown Fires) : इसमें वृक्ष अपनी पूरी लंबाई अर्थात ऊपर तक जल जाते हैं। ये सबसे तीव्र व खतरनाक वनाग्नि होती है।
सरफेस फायर (Surface Fires) : यह केवल वन क्षेत्र की सतह को प्रभावित करती है और पृष्ठीय कूड़े व मलबे के जलने का कारण बनती है। यह सबसे साधारण आग है जो वन को न्यूनतम रूप से प्रभावित करती है।
ग्राउंड फायर (Ground Fires) : इसे कभी-कभी भूमिगत या उपसतह आग कहा जाता है। ह्यूमस, पीट एवं इसी तरह की मृत वनस्पति पर्याप्त शुष्क हो जाती हैं और इनमें लगी आग को उपसतह अग्नि कहते हैं। ये आग अत्यधिक मंद गति से बढ़ती है किंतु इससे पूर्णतया बाहर निकलना या इस आग को नियंत्रित करना बहुत कठिन होता है।
मूल्यवान लकड़ी (टिम्बर) संसाधनों की क्षति
जलग्रहण वाले क्षेत्रों का क्षरण
जैव-विविधता, पौधों एवं जानवरों की विलुप्त का खतरा
वैश्विक तापमान में वृद्धि
कार्बन सिंक संसाधन की हानि के साथ-साथ वातावरण में CO2 के प्रतिशत में वृद्धि
माइक्रॉक्लाइमेट (किसी विशेष लघु क्षेत्र की जलवायु) में परिवर्तन
मृदा अपरदन एवं मृदा उत्पादकता पर प्रभाव
ओज़ोन परत रिक्तीकरण
आदिवासियों एवं ग्रामीणों की आजीविका की क्षति
अनुमान है कि इस सदी के अंत तक भीषण वनाग्नि की घटनाएँ लगभग 50% बढ़ जाएंगी। साथ ही, जलवायु परिवर्तन से संबंधित पर्यावरणीय परिवर्तनों, जैसे- सूखे में वृद्धि, उच्च वायु तापमान एवं तेज हवाओं के कारण आग लगने की अवधि अधिक गर्म, शुष्क व लंबी हो सकती है।
वर्तमान में पृथ्वी की सतह का लगभग 340 मिलियन से 370 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र प्रतिवर्ष जंगल की आग से प्रभावित होता है। चरम स्थिति में पहुँचने की स्थिति में जंगल की आग सतत विकास को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकती हैं, समुदायों की आजीविका को ख़तरा पैदा कर सकती हैं और अत्यधिक मात्रा में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित कर सकती हैं।
इसके प्रबंधन के लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राष्ट्रीय वनाग्नि कार्य योजना, 2018 (National Action Plan on Forest Fires) जारी किया है।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय वनाग्नि निवारण एवं प्रबंधन (Forest Fire Prevention and Management : FPM) योजना के तहत वनाग्नि से बचाव व प्रबंधन उपायों की देखरेख करती है।
एफ.पी.एम. के तहत आवंटित धनराशि में पूर्वोत्तर एवं पश्चिमी हिमालयी क्षेत्रों में केंद्रीय व राज्य निधि का अनुपात 90:10 है जबकि अन्य सभी राज्यों के लिये यह अनुपात 60:40 का है।
वैश्विक अग्नि प्रबंधन हब (Global Fire Management Hub) को एफ.ए.ओ. एवं यू.एन.ई.पी. ने मई 2023 में लॉन्च किया। इसे कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, पुर्तगाल, दक्षिण कोरिया और अमेरिका जैसे देशों का समर्थन प्राप्त है।
इसका उद्देश्य वैश्विक अग्नि प्रबंधन समुदाय को एकजुट करना है और एकीकृत अग्नि प्रबंधन रणनीतियों को लागू करने के लिए राष्ट्रीय क्षमताओं को बढ़ाना है।
एकीकृत अग्नि प्रबंधन रणनीतियों के लिए राष्ट्रीय क्षमता बढ़ाने के लिए लगभग 5 मिलियन डॉलर की धनराशि सुरक्षित की गई है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने वैश्विक सरकारों से एक नया 'फायर रेडी फॉर्मूला' अपनाने का आह्वान किया है। इसमें वनाग्नि प्रबंधन के लिये कुल बजटीय आबंटन में 66% हिस्सा नियोजन, रोकथाम, तैयारी एवं रिकवरी के लिये, जबकि शेष हिस्से को प्रतिक्रिया (Response) पर व्यय करने की परिकल्पना की गई है।
असम सरकार ने पारंपरिक झुमुर नृत्य के एक बड़े प्रदर्शन की घोषणा की है, जिसमें राज्य के चाय समुदाय के 8,000 कलाकार शामिल होंगे। चाय बागानों में कार्य करने वाले विभिन्न जनजातीय समुदायों के लोगों को चाय समुदाय कहा जाता है।
क्या है : असम के चाय समुदायों का पारंपरिक नृत्य
पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में भी इसका आयोजन किया जाता है।
समय एवं स्थान : शरद ऋतु के दौरान आमतौर पर खेतों या वृक्षों के नीचे खुले क्षेत्रों में
प्रतिभागी : मुख्यत: युवा बालिकाओं द्वारा प्रतिभाग
इसमें पुरुष सदस्य मुख्यतः लय, स्वर व संगीत वाद्ययंत्र बजाने का कार्य करते हैं।
इस नृत्य में गीत एवं संवाद शामिल होते हैं, जो आम लोगों के रोजमर्रा के जीवन के सुख-दुख, लालसा एवं आकांक्षाओं को दर्शाते हैं।
अनुष्ठान पूजा, हर्ष-उल्लास और वर्षा के लिए प्रार्थना के रूप में पारंपरिक रूप से इस नृत्य का आयोजन किया जाता है।
वाद्ययंत्र : यह नृत्य मादल (एक प्रकार का ढ़ोलक) की लयबद्ध संगत के साथ किया जाता है।
ऐतिहासिक महत्व : माना जाता है कि थकाऊ कृषि कार्य के चरणों के बीच मनोरंजन के साधन के रूप में इसकी उत्पत्ति हुई थी।
अरुणाचल प्रदेश के नामदाफा राष्ट्रीय उद्यान में 61 वर्षों के बाद एक चार चक्र वाली तितली ‘यप्थिमा कैंटलीई’ को रिकॉर्ड किया गया है।
2018-19 के दौरान नामदाफा राष्ट्रीय उद्यान के मियाओ रेंज (Miao Range) में तितली विविधता का दस्तावेजीकरण करने के लिए एक सर्वेक्षण के दौरान इस चार-रिंग वाली तितली की तस्वीर ली गई थी।
इसके पहले इसे 1957 में पूर्वी असम के मार्गेरिटा में चिंहित किया गया था।
वैज्ञानिक वर्गीकरण:
जीनस- यप्थिमा
परिवार – निम्फालिडे
प्रजाति - यप्थिमा कैंटलीई
भौगोलिक वितरण : नामदाफा राष्ट्रीय उद्यान, चांगलांग जिला, अरुणाचल प्रदेश।
पारिस्थितिक महत्व : सैटिरिना उपपरिवार वन पारिस्थितिकी तंत्र में अपनी पारिस्थितिक भूमिका के लिए जाना जाता है। अलग-अलग ऊंचाई पर पाये जाने के कारण यह एक विस्तृत पारिस्थितिक सीमा का संकेत देता है।
चर्चा में क्यों
दुनिया भर में एथलीट बेहतर प्रदर्शन के लिए जेनेटिक स्क्रीनिंग सहारा ले रहे हैं और अपने शरीर में खाद्य एलर्जी और आवश्यक खनिजों और विटामिनों की कमी की जाँच करवाकर प्रतिपूरकों की मदद से अपन प्रदर्शन को बेहतर करने का प्रयास कर रहे हैं।
2017 में, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने कथित तौर पर भारतीय पुरुष क्रिकेट खिलाडियों में गति बढ़ाने, वसा को कम करने, पुनर्प्राप्ति समय और मांसपेशियों के निर्माण में सुधार करने में मदद करने के लिए जेनेटिक स्क्रीनिंग शुरू किया था।
जेनेटिक स्क्रीनिंग या आनुवंशिक परीक्षण की शुरुआत बीमारियों या प्रवृत्तियों का पता लगाने के लिए की गई थी।
खेल जगत में इसका उपयोग 1990 के दशक के उत्तरार्ध में शुरू हुआ, जब वैज्ञानिकों ने एथलेटिक प्रदर्शन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करने में जीन की भूमिका के प्रमाण जुटाने शुरू किए।
आनुवंशिक परीक्षण में कोशिकाओं में मौजूद डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (DNA) में संग्रहीत निर्देशों को डी-कोड किया जाता है।
डीएनए में मौजूद कोड शरीर के काम करने के तरीके से लेकर रूप-रंग तक को निर्धारित करता है
इसके अलावा यह कुछ बीमारियों के विकसित होने की संभावनाओं को भी प्रभावित करता है।
यह आनुवंशिक डाटा में चार अक्षरों या रसायनों (नाइट्रोजन बेस) - एडेनिन, गुआनिन, साइटोसिन और थाइमिन के विशिष्ट अनुक्रमों के रूप में संगृहीत होता है।
इन अनुक्रमों को कोशिकीय मशीनरी द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे शरीर में प्रोटीन की आपूर्ति के लिए सहायक अमीनो एसिड का निर्माण होता है।
वैज्ञानिक विशिष्ट डीएनए अनुक्रमों में उत्परिवर्तन से उत्पन्न होने वाले आनुवंशिक वेरिएंट का अध्ययन करके अद्वितीय एथलेटिक विशेषताओं और लक्षणों में योगदान करने वाले उत्परिवर्तनों की पहचान करते हैं।
अंततः एथलीटों में ऐसे उत्परिवर्तनों को लागू करके उनके प्रदर्शन को बेहतर करने का प्रयास किया जाता है।
उदाहरण
फिनलैंड के स्कीइंग एथलीट ईरो एंटेरो मंतिरंता की लाल रक्त कोशिका गणना अन्य एथलीटों की तुलना में 20 प्रतिशत अधिक थी, जबकि सभी अन्य एथलीटों प्रशिक्षण उनके ही समान ही था।
1990 के दशक में, वैज्ञानिकों ने इस एथलीट सहित उनके परिवार के 200 सदस्यों में से 50 के जीन में एक दुर्लभ उत्परिवर्तन की पहचान की थी, जिससे उनकी लाल रक्त कोशिकाओं की ऑक्सीजन-वहन क्षमता 25-50 प्रतिशत बढ़ गई और उनके प्रदर्शन में वृद्धि हुई।
इस एथलीट ने 1960 के दशक में चार ओलंपिक खेलों में सात पदक जीते थे।
अक्टूबर 1990 में शुरू की गई मानव जीनोम परियोजना के हिस्से के रूप में, मानव जीनोम के प्रारंभिक अनुक्रमण की घोषणा वर्ष 2000 में की गई थी।
सार्वजनिक रूप से उपलब्ध इस जानकारी के बाद दुनिया भर के वैज्ञानिकों को मानव जीव विज्ञान के रहस्यों को समझने में मदद मिली।
वर्ष 1998 में, वैज्ञानिकों ने पहली बार रक्तचाप और कंकाल की मांसपेशियों के कार्य के नियंत्रण में शामिल एंजियोटेंसिन-कंवर्टिंग एंजाइम (angiotensin-converting enzyme : ACE) जीन की पहचान की।
इस जीन का एक प्रकार, ACE-I, धीरज प्रदर्शन (endurance performance) से जुड़ा है जो धावकों, नाविकों और पर्वतारोहियों को दूसरों पर बढ़त देता था।
इस जीन का एक अन्य प्रकार, ACE-D ताकत बढ़ाने से जुड़ा है, जो भारोत्तोलन के लिए आवश्यक है।
इसीप्रकार, जीन अल्फा-एक्टिनिन 3 (ACTN3) भी खेल प्रदर्शन को बेहतर करता है।
यह जीन ACTN3 प्रोटीन का उत्पादन करता है, जो कंकालीय मांसपेशी ऊतक में पाया जाता है, विशेष रूप से टाइप 2 या “फास्ट-ट्विच” मांसपेशी फाइबर में।
ये मांसपेशी फाइबर छोटी, शक्तिशाली गतिविधियां उत्पन्न करने के लिए जाने जाते हैं।
आनुवंशिक परीक्षण से लैक्टोज़ असहिष्णुता (Lactose intolerant) का भी पता लगाया जाता है।
यह परीक्षण विशिष्ट खाद्य एलर्जी की पहचान भी कर सकते हैं और प्रदर्शन में सुधार के लिए आहार समायोजन में मदद करते हैं।
हाल ही में जापान ने शिकार की जाने वाली व्हेल मछलियों की सूची में फिन व्हेल को भी शामिल किया है।
केवल तीन देशों- नॉर्वे, आइसलैंड और जापान द्वारा व्हेल का वाणिज्यिक स्तर शिकार किया जाता है।
शिकार किए जाने वाले व्हेल प्रजातियों की इस सूची में फिन व्हेल के अलावा मिंक, ब्राइड और सेई व्हेल शामिल हैं।
फिन व्हेल पृथ्वी पर ब्लू व्हेल के बाद दूसरी सबसे बड़ी व्हेल प्रजाति है, जिसे 'फ़िनबैक' या 'रेज़रबैक' व्हेल भी कहा जाता है।
वैज्ञानिक नाम : बालेनोप्टेरा फिसालस (Balaenoptera physalus)।
IUCN स्थिति : संकटग्रस्त (EN)।
पर्यावास एवं विस्तार : सामान्य तौर पर सभी प्रमुख महासागरों के गहरे, अपतटीय जल में पाई जाती हैं, मुख्य रूप से समशीतोष्ण से ध्रुवीय अक्षांशों में।
कैलिफोर्निया की खाड़ी, जापान के समीप पूर्वी चीन सागर तथा भूमध्य सागर।
विशेषताएं :
चिकने व सुव्यवस्थित शरीर के साथ V आकार का सिर। ब्लू व्हेल की तुलना में फिन व्हेल का सिर अधिक नुकीला होता है।
पीठ पर हल्के रंगों के विभिन्न पैटर्न होते हैं।
ये आमतौर पर समूहों में पाई जाती हैं।
जीवनकाल लगभग 90 वर्ष तक का होता है।
गर्मियों के दौरान क्रिल या अन्य छोटी मछलियों का शिकार जबकि सर्दियों में उपवास करती हैं।
खतरा
वाणिज्यिक स्तर पर शिकार
समुद्री जहाजों से टक्कर
मछली पकड़ने के गियर में उलझना
मानव जनित महासागरीय शोर
आवास की कमी
समुद्र में विषाक्त पदार्थों की बढ़ती मात्रा
जलवायु परिवर्तन
संदर्भ
हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक व्यक्तियों, ट्रांसजेंडर्स एवं महिला यौनकर्मियों (LGBTQ+) को रक्तदान से वंचित रखने को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को औपचारिक नोटिस जारी किया है।
भारत में रक्तदान की प्रक्रिया के लिए 11 अक्तूबर, 2017 को राष्ट्रीय रक्त आधान परिषद और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन द्वारा ‘रक्तदाता चयन एवं रक्तदाता रेफरल दिशानिर्देश, 2017’ (Guidelines for Blood Donor Selection & Blood Donor Referral, 2017) जारी किया गया था।
इन दिशानिर्देशों के अनुसार, सुरक्षित रक्ताधान के लिए, ब्लड बैंकों को निम्न बुनियादी सिद्धांतों का पालन करना चाहिए :
रक्त केवल स्वैच्छिक, धन के बिना (Non-Remuneration), निम्न जोखिम वाले, सुरक्षित एवं स्वस्थ दाताओं से ही स्वीकार किया जाना चाहिए।
स्वस्थ दोहराए जाने वाले दाताओं की पर्याप्त संख्या को प्रोत्साहित करने और बनाए रखने की दिशा में प्रयास किए जाने चाहिए।
दाताओं को उनके योगदान के लिए उचित सम्मान व धन्यवाद ज्ञापित करना चाहिए।
‘रक्तदाता चयन एवं रक्तदाता रेफरल दिशानिर्देश, 2017’ के खंड 12 में यह अनिवार्य है कि ‘दाता को रक्ताधान से फैलने वाली बीमारियों से मुक्त होना चाहिए, और एच.आई.वी., हेपेटाइटिस बी या सी संक्रमण के जोखिम वाला नहीं होना चाहिए, जैसे कि ट्रांसजेंडर, समलैंगिक व्यक्ति एवं महिला यौनकर्मी आदि’।
इस प्रकार, ये दिशानिर्देश ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, महिला यौनकर्मियों एवं समलैंगिक संबंध वाले व्यक्तियों को रक्तदाता बनने से स्थायी रूप से प्रतिबंधित करते हैं।
इस तरह का पूर्ण प्रतिबंध भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 17 एवं 21 के तहत संरक्षित समानता, सम्मान व जीवन के अधिकार का उल्लंघन है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो रक्तदान पर इस तरह का कठोर प्रतिबंध इस धारणा पर आधारित है कि व्यक्तियों का एक विशेष समूह यौन संचारित रोगों से पीड़ित हो सकता है।
चिकित्सा प्रौद्योगिकी एवं शिक्षा में, विशेष रूप से रक्त विज्ञान के क्षेत्र में, 21वीं सदी में बहुत तेजी से प्रगति हुई है और प्रत्येक रक्तदान से पहले रक्तदाताओं की जांच की जाती है।
हेमेटोलॉजी में रक्ताधान से पहले रक्तदाताओं की जांच की जाती है।
ऐसे युग में समलैंगिक व्यक्तियों के प्रति अत्यधिक भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण से उत्पन्न कठोर प्रतिबंध तर्कसंगत नहीं है।
संदर्भ
केरल के वायनाड में भूस्खलन घटना के बाद घटना स्थल को देखने के लिए पहुँचने वाले बड़ी संख्या को देखते हुए केरल पुलिस ने ‘डार्क टूरिज्म’ के खिलाफ चेतावनी दी है तथा लोगों से आपदा प्रभावित स्थानों पर घूमने जाने से बचने का आग्रह किया है।
मृत्यु या त्रासदी से जुडे स्थलों की बिना किसी विशिष्ट उद्देश्य के यात्रा को डार्क टूरिज्म या शोक पर्यटन के रूप में संबोधित किया जाता है।
इसमें उन जगहों पर जाना शामिल है जहाँ इतिहास की कुछ सबसे गंभीर घटनाएँ घटित हुई हैं; जैसे नरसंहार, हत्या, युद्ध, आपदा आदि।
इसे थानाटूरिज्म या ब्लैक टूरिज्म भी कहा जाता है।
आपदा पर्यटन, डार्क टूरिज्म का एक हिस्सा है जिसमें प्राकृतिक या आकस्मिक आपदा वाले स्थलों का दौरा किया जाता है।
ऐतिहासिक उदाहरण :
यह शब्द 1990 के दशक में गढ़ा गया था, हालाँकि यह परिघटना बहुत पुरानी है।
2019 में वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार “यह कोई नई घटना नहीं है। इस बात के सबूत हैं कि डार्क टूरिज्म वाटरलू की लड़ाई से जुड़ा है, जब लोग अपनी गाड़ियों से युद्ध को होते हुए देखते थे।”
इससे पहले 16वीं शताब्दी में लंदन में सार्वजनिक फांसी देखने के लिए भीड़ जमा होती थी।
डार्क टूरिज्म के लोकप्रिय स्थलों में ऑशविट्ज़, चेर्नोबिल, हिरोशिमा और न्यूयॉर्क में 9/11 स्मारक शामिल हैं।
डार्क टूरिज्म में बढ़ती दिलचस्पी के कई कारण हो सकते हैं :
उन लोगों की भावनाओं से जुड़ना जिन्होंने त्रासदी को सीधे अनुभव किया हो
शैक्षिक उद्देश्यों के लिए स्थलों पर जाकर जानकारी जुटाना
दैनिक जीवन की एकरसता से हटकर कुछ नया या अलग अनुभव करने की जिज्ञासा
शैक्षणिक उद्देश्य के पीछे निजी हितों से प्रेरित शोध या जानकारी एकत्र करने का प्रयास किया जाता है।
ऐसी जानकारी का पर्यटन स्थलों या टूर ऑपरेटरों द्वारा पीड़ितों और अपराधियों दोनों के विचारों को असंवेदनशील तरीके से साझा करके अपने हितों को पूरा करने में किया जाता है।
सबसे महत्वपूर्ण चिंताओं में से एक त्रासदी और पीड़ा के व्यावसायीकरण को लेकर नैतिक दुविधा है।
ऐसे स्थलों को पर्यटक आकर्षण में बदलना अपमानजनक और शोषणकारी माना जा सकता है, जिससे इन स्थानों की पवित्रता कम हो जाती है।
घटना की गलत व्याख्या का जोखिम भी एक बड़ी चुनौती है, जहां आगंतुक वास्तविक संदर्भ को पूरी तरह से नहीं समझ पाते, जिसके परिणामस्वरूप जटिल घटनाओं के बारे में अतिसरलीकृत या विकृत दृष्टिकोण सामने आता है।
डार्क टूरिज्म कभी-कभी सांस्कृतिक असंवेदनशीलता और ताक-झांक को जन्म दे सकता है।
आगंतुक अनजाने में या जानबूझकर इन स्थलों से जुड़े स्थानीय समुदायों के रीति-रिवाजों और संवेदनशीलताओं के प्रति अनादर या उपेक्षा दिखा सकते हैं।
कुछ पर्यटकों के लिए, काले इतिहास वाले स्थलों का दौरा करना भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक रूप से परेशान करने वाला हो सकता है। दर्दनाक घटनाओं के संपर्क में आने से भावनात्मक तनाव हो सकता है और मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है।
पर्यटकों की आमद से इन स्थलों के आस-पास के पर्यावरण और बुनियादी ढांचे पर असर पड़ सकता है। पैदल यातायात, कूड़ा-कचरा और प्रदूषण बढ़ने से प्राकृतिक परिवेश को नुकसान पहुँच सकता है और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर असर पड़ सकता है।
रक्षा प्रक्रियाओं की गंभीर विफलता और गलत पहचान के कारण इजरायली सेना के हमले में वर्ल्ड सेंट्रल किचन (World Central Kitchen : WCK) के कर्मचारियों की मौत के बाद यह चर्चा में रही।
यह एक गैर-लाभकारी एवं गैर-सरकारी संगठन है।
इस संगठन द्वारा मानवीय, जलवायु और सामुदायिक संकटों के प्रत्युत्तर में अग्रिम मोर्चे पर भोजन उपलब्ध कराने का कार्य किया जाता है।
“भोजन एक सार्वभौमिक मानव अधिकार है” इस संगठन का मूल सिद्धांत है।
स्थापना : 2010 में अमेरिकी शेफ जोस एंड्रेस ने हैती में आए भूकंप के बाद की थी।
मुख्यालय: वाशिंगटन डी.सी. (USA)
यह संगठन विश्व भर के देशों में युद्धों और मानवीय आपदा एवं संकट के समय भोजन के स्तर पर योगदान देता है।
खान मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही में खनिज उत्पादन के आँकड़े प्रकाशित किये।
वित्त वर्ष 2023-24 में कुल MCDR खनिज उत्पादन में लौह अयस्क (275 MMT) और चूना पत्थर (450 MMT) का योगदान लगभग 80% होगा।
भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा एल्युमीनियम उत्पादक, तीसरा सबसे बड़ा चूना पत्थर उत्पादक तथा चौथा सबसे बड़ा लौह अयस्क उत्पादक है।
विश्व स्तर पर, चीन एल्युमीनियम और चूना पत्थर का सबसे बड़ा उत्पादक है, जबकि ऑस्ट्रेलिया लौह अयस्क का सबसे बड़ा उत्पादक है।
ओडिशा भारत का सबसे बड़ा एल्युमीनियम अयस्क और लौह अयस्क उत्पादक राज्य है। भारत में चूना पत्थर उत्पादन में राजस्थान की हिस्सेदारी सबसे अधिक है।
एल्युमीनियम अयस्क, लौह अयस्क और चूना पत्थर के उत्पादन में निरंतर वृद्धि ऊर्जा, बुनियादी ढाँचे, निर्माण, ऑटोमोटिव तथा मशीनरी जैसे उपयोगकर्त्ता क्षेत्रों में निरंतर मज़बूत आर्थिक गतिविधि की ओर इंगित करती है।
खनिज उत्पादन की रिपोर्ट 19 राज्यों से प्राप्त हुई, जिनमें से लगभग 97.04% खनिज उत्पादन का बड़ा हिस्सा केवल 7 राज्यों तक ही सीमित था।
हिस्सेदारी के अनुसार खनिज उत्पादन का क्रम - ओडिशा (44.11%), छत्तीसगढ़ (17.34%), राजस्थान (14.10%), कर्नाटक (13.24%), झारखंड (4.36%), मध्य प्रदेश (2.44%), और महाराष्ट्र (1.45%)।
शेष 12 राज्यों की संचयी हिस्सेदारी कुल मूल्य के 3% से भी कम है।
पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थी (WPR) वे व्यक्ति हैं जो वर्ष 1947 में विभाजन के दौरान पश्चिमी पाकिस्तान से तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य (अब केंद्रशासित प्रदेश) में चले आए थे और मुख्य रूप से जम्मू संभाग के जम्मू, कठुआ तथा राजौरी ज़िलों में बस गए थे।
यह निर्णय क्षेत्र में विधानसभा चुनाव कराने के लिये सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 30 सितंबर, 2024 की समय-सीमा से पहले लिया गया।
विस्थापितों को राज्य की भूमि पर अधिकार प्रदान करके भेदभाव समाप्त हो गया तथा उनके अधिकारों को पाकिस्तान अधिकृत जम्मू और कश्मीर (Pakistan Occupied Jammu and Kashmir- PoJK) से विस्थापित व्यक्तियों के अधिकारों के समान कर दिया गया।
इससे पहले, WPR परिवारों को "गैर-राज्य विषय" माना जाता था और वर्ष 1947 के विभाजन के समय निवासी नहीं होने के कारण वे जम्मू तथा कश्मीर में मत नहीं दे सकते थे।
5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद उन्हें अधिवास का दर्जा और मतदान का अधिकार दिया गया।
संदर्भ
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने दविंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया कि आरक्षण के लिए अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) का उप-वर्गीकरण किया जा सकता है।
शीर्ष न्यायालय ने ई.वी. चिन्नैया मामले के अपने फैसले की समीक्षा की, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि राज्य विधानसभाएं प्रवेश और सार्वजनिक नौकरियों में आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकृत नहीं कर सकती हैं।
वर्तमान फैसले के प्रमुख बिंदु
अनुसूचित जातियाँ कोई समरूप समूह नहीं है। एससी/एसटी के सदस्य अक्सर व्यवस्थागत भेदभाव के कारण आगे नहीं बढ़ पाते हैं। अतः अनुच्छेद 14 जाति के उप-वर्गीकरण की अनुमति देता है।
सरकारें अनुसूचित जाति के बीच अधिक भेदभाव झेलने वाले लोगों को 15% आरक्षण में अधिक भार देने के लिए उन्हें उपवर्गीकृत कर सकती हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब और तमिलनाडु जैसे राज्यों में उप-वर्गीकरण की अनुमति देने वाले कानूनों की वैधता की पुष्टि की है।
राज्य एस.सी. और एस.टी. श्रेणी में क्रीमी लेयर की पहचान करने और उन्हें सकारात्मक कार्रवाई (आरक्षण) के दायरे से बाहर निकालने के लिए नीतियां विकसित कर सकता है।
आरक्षण किसी श्रेणी में केवल पहली पीढ़ी के लिए होना चाहिए।
अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 341 के तहत अनुसूचित जातियों की पहचान करने के विशेष अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है।
उप-वर्गीकरण करने की राज्यों की शक्ति न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
उप-वर्गीकरण का अर्थ है अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को उनके सापेक्ष पिछड़ेपन के आधार पर उप-समूहों में विभाजित करना।
साथ ही उप-वर्गीकरण के अनुरूप अनुसूचित जातियों के लिए 15% और अनुसूचित जनजातियों के लिए 7.5% के समग्र आरक्षण के भीतर विभेदक आरक्षण प्रदान करना।
इस प्रकार के उप-वर्गीकरण को “कोटा के भीतर कोटा” या “आरक्षण के भीतर आरक्षण” के रूप में भी जाना जाता है।
इस विचार का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आरक्षण का लाभ अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सबसे वंचित और बहिष्कृत समूह तक पहुंचे, जिन्हें अक्सर “दलितों के बीच दलित” या “आदिवासियों के बीच आदिवासी” कहा जाता है।
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में समरूपता नहीं हैं, बल्कि इनके अंतर्गत विभिन्न जातियाँ और जनजातियाँ शामिल हैं, जिनमें सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक पिछड़ेपन की अलग-अलग डिग्री है।
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के कुछ समूह (उप-जातियाँ) दूसरों की तुलना में आरक्षण के लाभों तक अधिक पहुँच बनाने में सक्षम रही हैं, जिसके कारण इन समूहों के भीतर एक ‘क्रीमी लेय’ या ‘कुलीन वर्ग’ का निर्माण हुआ है।
इसके परिणामस्वरूप अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में सबसे कमजोर और वंचित वर्ग और अधिक हाशिए पर चले गए हैं, जिसके कारण उन्हें जो लगातार भेदभाव, हिंसा और गरीबी का सामना करना पड़ रहा है।
उप-वर्गीकरण का उद्देश्य इस अंतर-समूह असमानता को दूर करना और यह सुनिश्चित करना है कि आरक्षण नीति अधिक न्यायसंगत और समावेशी हो।
भारत का संविधान एस.सी. और एस.टी. के उप-वर्गीकरण पर रोक नहीं लगाता है, बल्कि इन समूहों के कल्याण के लिए कानून बनाने को संसद और राज्य विधानमंडलों के विवेक पर छोड़ता है।
अनुच्छेद 341- 342 के तहत संविधान राष्ट्रपति और संसद को यह अधिकार देता है कि ये राज्य/केंद्रशासित क्षेत्र में किसी समूह को एस.सी. अथवा एस.टी. की सूची में शामिल या अपवर्जित कर सकता है।
संविधान का अनुच्छेद 16(4) राज्य को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों में आरक्षण प्रदान करने का अधिकार देता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों की शक्ति को भी मान्यता दी है कि वे प्रासंगिक आंकड़ों और उनके पिछड़ेपन के अनुभवजन्य साक्ष्य के आधार पर अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का उप-वर्गीकरण कर सकते हैं।
शीर्ष न्यायालय ने ई.वी. चिन्नैया मामले में अपने ही फैसले को खारिज कर दिया है, जिसमें 2000 में आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण को खारिज कर दिया गया था।
न्यायालय ने माना है कि चिन्नैया मामले में गलत निर्णय लिया गया था और इसमें जमीनी हकीकत और सामाजिक न्याय के संवैधानिक जनादेश पर विचार नहीं किया गया था।
उप-वर्गीकरण का देश की सार्वजनिक सेवाओं और शैक्षणिक संस्थानों में एस.सी. और एस.टी. के प्रतिनिधित्व और सशक्तिकरण पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।
इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि एस.सी. और एस.टी. के अंतर्गत आरक्षण के लिए सबसे योग्य और जरूरतमंद वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व मिले और वे सामाजिक सीढ़ी में सबसे नीचे न रहें।
यह एससी और एसटी की विविधता और समावेशिता को भी बढ़ावा देगा और कुछ जातियों और जनजातियों द्वारा आरक्षण लाभों के वर्चस्व और एकाधिकार को रोकेगा।
इससे एस.सी. और एस.टी. को आपस में प्रतिस्पर्धा करने और अपने प्रदर्शन व योग्यता में सुधार करने के लिए प्रोत्साहित मिलेगा।
सटीक आंकड़ों का अभाव: उप-वर्गीकरण के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विभिन्न उप-समूहों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति और शैक्षिक प्राप्ति पर विश्वसनीय और अद्यतन आंकड़ों के संग्रह और विश्लेषण की आवश्यकता होगी।
आरक्षण की राजनीति : इस निर्णय से पिछड़ी जातियों के बीच आरक्षण के राजनीतिकरण होने की प्रबल सम्भावना है।
समानता के सिद्धांत और एस.सी. और एस.टी. की एकता के उल्लंघन के तर्क पर इसे उप-वर्गीकरण के विरोधियों से उत्पन्न होने वाली कानूनी और राजनीतिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ सकता है।
विभिन्न हितधारकों की सहमति की आवश्यकता : इसके लिए एस.सी. और एस.टी. के परामर्श और आम सहमति की भी आवश्यकता होगी, जिनके उप-वर्गीकरण के मुद्दे पर अलग-अलग विचार और हित हो सकते हैं।
इसे आरक्षण के मौजूदा लाभार्थियों और उप-वर्गीकरण के नए लाभार्थियों के हितों के बीच संतुलन बनाना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि समग्र आरक्षण सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% की सीमा से अधिक न हो।
सामुदायिक विभाजन की चुनौती : इससे समाज में पिछड़े समुदायों के बीच सामाजिक विभाजन में वृद्धि हो सकती है।
साथ ही इससे उप-वर्गीकरण के लिए सटीक पहचान और दस्तावेज़ प्राप्त करने में जटिलताएँ पैदा हो सकती है।
निष्कर्ष
उप-वर्गीकरण सामाजिक न्याय तथा एस.सी. और एस.टी. के सशक्तिकरण के संवैधानिक दृष्टिकोण को साकार करने की दिशा में एक प्रगतिशील और व्यावहारिक कदम है।
इसे एक लोकतांत्रिक और सहभागी प्रक्रिया के रूप में देखा जा सकता है जिसमें आरक्षण नीति के निर्माण और कार्यान्वयन में एस.सी. और एस.टी. की सक्रिय भागीदारी और प्रतिनिधित्व शामिल है।
एक गतिशील और विकसित अवधारणा के रूप में एस.सी. और एस.टी. की बदलती जरूरतों और परिस्थितियों के आधार पर नीतियों की निरंतर समीक्षा और संशोधन भविष्य की राह मजबूती प्रदान करते हैं।
डेजा वू (Deja Vu)
यह किसी स्थिति से पहले से परिचित होने की एक काल्पनिक या कृत्रिम अनुभूति है। इस स्थिति में व्यक्ति के मस्तिष्क में एक भ्रम उत्पन्न होता है। इसमें व्यक्ति को लगता है कि वह उस निश्चित गतिविधि, स्थान या संदर्भ से अत्तीत में रूबरू हो चुका है, किंतु वह अतीत की उस स्थिति को याद कर पाने में असमर्थ होता है। एक फ्राँसीसी दार्शनिक व शोधकर्ता एमिल बोइराक ने डेजा वू शब्द को वर्ष 1876 में गढ़ा था।
संदर्भ
हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने “उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021” में संशोधन के लिए एक नया विधेयक पेश किया है जिसका उद्देश्य कानून को और अधिक सख्त एवं प्रभावी बनाना है।
वर्तमान संशोधन विधेयक कुछ समूहों के व्यक्तियों की सुरक्षा के उद्देश्य से पेश किया गया है, जिनमें नाबालिग, दिव्यांग, महिलाएँ और अनुसूचित जाति (SC) एवं अनुसूचित जनजाति (ST) समुदायों के लोग शामिल हैं।
वस्तुतः मौजूदा अधिनियम के तहत दंडात्मक प्रावधान इन समूहों से संबंधित व्यक्तिगत धर्म परिवर्तन और सामूहिक धर्म परिवर्तन को रोकने तथा नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
यह संशोधन इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा व्यक्त किए गए हालिया विचार को दर्शाता है।
वस्तुतः मौजूदा अधिनियम के तहत एक आरोपी द्वारा दायर जमानत याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि “अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोगों और आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्तियों को ईसाई धर्म में धर्मांतरित करने की गैरकानूनी गतिविधि पूरे उत्तर प्रदेश राज्य में बड़े पैमाने पर की जा रही है”।
विधेयक के "अधिनियम की धारा 4 के अनुसार यह कानूनी मामलों के संबंध में अतीत में उत्पन्न हुई कुछ कठिनाइयों का समाधान करेगा"।
वर्तमान में अधिनियम की धारा 4 "किसी भी पीड़ित व्यक्ति, उसके माता-पिता, भाई, बहन, या किसी अन्य व्यक्ति जो रक्त, विवाह या गोद लेने से उससे संबंधित है" को पुलिस में गैरकानूनी धर्म परिवर्तन के लिए FIR दर्ज करने की अनुमति देता है; जिसकी व्याख्या के संबंध में न्यायालय के समक्ष कठिनाई उत्पन्न हुई थी जैसे -
वर्ष 2023 के अपने कुछ फैसलों में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि वाक्यांश "कोई भी पीड़ित व्यक्ति" का मतलब यह नहीं है कि ‘कोई भी’ गैरकानूनी धर्म परिवर्तन के लिए FIR दर्ज कर सकता है।
सितंबर 2023 में, जोस पापाचेन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में, न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि "कोई भी पीड़ित व्यक्ति" में केवल उस व्यक्ति का उल्लेखकिया जा सकता है जो "व्यक्तिगत रूप से अपने कपटपूर्ण धर्म परिवर्तन से पीड़ित है"।
फरवरी 2023 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फ़तेहपुर सामूहिक धर्मांतरण मामले में भी धारा 4 का यही विश्लेषण दिया था।
वर्तमान अधिनियम की धारा 4 के शब्द ‘कोई भी पीड़ित व्यक्ति’ को नए संशोधन विधेयक में ‘कोई भी व्यक्ति' से बदल दिया गया है।
इस प्रकार संशोधित प्रावधान के अनुसार, ‘कोई भी व्यक्ति’ भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के तहत गैर-कानूनी गतिविधियों के मामले में FIR दर्ज कर सकता है।
BNSS की धारा 173 FIR दर्ज करने से संबंधित है। इसके तहत किसी अपराध के बारे में जानकारी पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को दी जा सकती है; "अपराध चाहे किसी भी क्षेत्र में हुआ हो"।
वस्तुतः कोई भी व्यक्ति अधिनियम के तहत कथित अपराधों के लिए FIR दर्ज करने के लिए किसी भी पुलिस स्टेशन से संपर्क कर सकता है।
वर्तमान अधिनियम की धारा 3 “गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी भी धोखाधड़ी के माध्यम से” धर्म परिवर्तन को दंडित करती है, जिसमें सूचीबद्ध अवैध साधनों के उपयोग के माध्यमों में “विवाह या विवाह की प्रकृति में संबंध के द्वारा धर्मांतरण” भी शामिल है।
धारा 3 के तहत आरोपियों के लिए विधेयक में कठोर जमानत शर्तों को पेश करने का प्रस्ताव है जो धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत जमानत शर्तों के समान हैं।
नई प्रस्तावित धारा 7 के तहत, किसी आरोपी को तब तक जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता जब तक कि निम्नलिखित दो शर्तें पूरी न हो जाएं-
सरकारी वकील (अपराध पर मुकदमा चलाने वाले राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील) को जमानत आवेदन का विरोध करने का अवसर दिया जाना चाहिए।
अदालत को इस बात से संतुष्ट होना चाहिए कि "यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि वह इस तरह के अपराध का दोषी नहीं है और जमानत पर रहते हुए उसके द्वारा कोई अपराध करने की संभावना नहीं है"।
वर्तमान में धारा 3 का उल्लंघन करने पर निम्नलिखित सजा का प्रावधान है -
मूल अपराध के लिए 1-5 वर्ष की कैद और कम से कम 15,000 रु का जुर्माना।
यदि पीड़ित नाबालिग, महिला या SC अथवा ST समुदाय से संबंधित व्यक्ति है तो 2-10 वर्ष की कैद और कम से कम 20,000 रु. का जुर्माना।
सामूहिक धर्मांतरण के मामलों में 3-10 साल की सज़ा और कम से कम 50,000 रु. का जुर्माना।
संशोधन विधेयक में उपरोक्त जेल की अवधि और जुर्माने को बढ़ाने का प्रस्ताव है जैसे–
मूल अपराध के लिए 3-10 वर्ष की कैद और कम से कम 50,000 रु. का जुर्माना।
यदि पीड़ित नाबालिग, महिला या SC अथवा ST समुदाय से है, शारीरिक रूप से विकलांग है अथवा किसी मानसिक बीमारी से ग्रसित है तो ऐसी स्थिति में 5-14 वर्ष की कैद और कम से कम 1,00,000 रु. का जुर्माना।
सामूहिक धर्मांतरण के मामलों में 7-14 साल की कैद और कम से कम 1,00,000 रु. का जुर्माना।
नए विधेयक में अपराधों की दो नई श्रेणियां जोड़ी गई हैं , जिनमे शामिल हैं-
यदि आरोपी ने अवैध धर्मांतरण के सिलसिले में “विदेशी या अवैध संस्थानों” से धन प्राप्त किया है, तो उसे 7-14 साल की कैद और कम से कम 10,00,000 रुपये का जुर्माना हो सकता है।
यदि आरोपी किसी व्यक्ति को
"उसके जीवन या संपत्ति का भय उत्पन्न करता है।
हमला करता है या बल का प्रयोग करता है।
शादी का वादा करता है या बहकाता है।
किसी नाबालिग, महिला या व्यक्ति की तस्करी करने या अन्यथा उन्हें बेचने के लिए षड्यंत्र करता है या प्रेरित करता है।
उपरोक्त परिस्थितियों में उसे न्यूनतम 20 वर्ष कारावास की सजा दी जाएगी, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।
वर्तमान अधिनियम में विवाह के द्वारा गैरकानूनी रूप से धर्म परिवर्तन के लिए अधिकतम 10वर्तमान की कैद की सजा का प्रावधान है।
भारत के अन्य राज्यों जैसे उत्तराखंड, गुजरात और मध्य प्रदेश ने भी इसी तरह के धर्मांतरण विरोधी कानून बनाए हैं।
वस्तुतः उत्तर प्रदेश विधानसभा द्वारा धर्मांतरण विरोधी संशोधन विधेयक को अन्य राज्यों द्वारा भी अपनाया जा सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार धर्मांतरण विरोधी कानून तब तक संवैधानिक हैं जब तक वे किसी व्यक्ति के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को प्रभावित नहीं करते हैं।
इस पहल का उद्देश्य लंबित मामलों से निपटना और त्वरित न्याय प्रदान करना है।
इस पहल में सर्वोच्च न्यायालय की पहली सात पीठें शामिल हैं, जिसमें मुख्य न्यायाधीश पाँच सदस्यीय पैनल का नेतृत्व करते हैं, जिसमें प्रमुख न्यायाधीश और कानूनी पेशेवर शामिल हैं।
कवर किये गए मामले: इसमें वैवाहिक विवाद, संपत्ति विवाद, मोटर दुर्घटना दावे, भूमि अधिग्रहण, मुआवज़ा और सेवा एवं श्रम मुद्दे शामिल हैं।
लंबित मामलों वाले नागरिकों को सौहार्दपूर्ण और त्वरित समाधान के लिये भाग लेने हेतु प्रोत्साहित किया जाता है।
इस अभियान में विवाद समाधान को सुविधाजनक बनाने के लिये एक अनौपचारिक, प्रौद्योगिकी-आधारित समाधान का उपयोग किया जाता है, जिससे यह प्रक्रिया जनता के लिये अधिक सुलभ और कुशल हो जाती है।
लोक न्यायालय गांधीवादी सिद्धांतों पर आधारित अनौपचारिक, स्वैच्छिक और सुलहनीय विवाद समाधान मंच हैं, जिन्हें विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत वैधानिक समर्थन प्राप्त है।
यह वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) प्रणाली का एक घटक है जो आम लोगों को अनौपचारिक, सस्ता और शीघ्र न्याय प्रदान करता है।
हाल ही में भारत और अमेरिका ने सांस्कृतिक कलाकृतियों की अवैध तस्करी से निपटने तथा पुरावस्तुओं को उनके मूल स्थान पर वापस लौटाने को सुनिश्चित करने के लिये पहली बार सांस्कृतिक संपदा समझौते (Cultural Property Agreement- CPA) पर हस्ताक्षर किये।
यह समझौता सांस्कृतिक संपत्ति के अवैध आयात, निर्यात और स्वामित्व हस्तांतरण के निषेध एवं रोकथाम के साधनों पर यूनेस्को कन्वेंशन के 1970 के अनुच्छेद 9 के अनुरूप है।
CPA 1.7 मिलियन वर्ष पूर्व से लेकर वर्ष 1947 तक की कुछ पुरातात्त्विक और नृवंशविज्ञान संबंधी सामग्रियों के अमेरिका में आयात पर प्रतिबंध लगाता है। आयात के लिये प्रतिबंधित ऐसी वस्तुओं की सूची अमेरिकी सरकार द्वारा प्रख्यापित की जाएगी।
अमेरिका, भारत को नामित सूची में शामिल किसी भी वस्तु या सामग्री को वापस करने की पेशकश करेगा, जो अमेरिकी सरकार द्वारा ज़ब्त कर ली गई हो।
इसी प्रकार के समझौते अमेरिका और अल्जीरिया, कंबोडिया, चीन, मिस्र और इटली जैसे देशों के बीच भी हैं।
यह समझौता G20 बैठकों के दौरान शुरू की गई साल भर की द्विपक्षीय चर्चाओं का परिणाम है। भारत की G20 अध्यक्षता के तहत, सांस्कृतिक संपत्ति की सुरक्षा पर ध्यान सर्वोच्च प्राथमिकता रही है।
काशी कल्चर पाथवे और वर्ष 2023 में नई दिल्ली नेताओं की घोषणा (New Delhi Leaders’ Declaration- NDLD) ने अवैध तस्करी से लड़ने की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया।
यह वैश्विक विकास रणनीति में बदलाव का प्रतीक है, जो वर्ष 2030 के बाद के विकास ढाँचे में संस्कृति को एक स्वतंत्र लक्ष्य के रूप में महत्त्व देता है।
वर्ष 2023 में, संयुक्त राज्य अमेरिका भारत के लिये तरलीकृत प्राकृतिक गैस (Liquefied Natural Gas- LNG) का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता बनकर उभरा, जिसने वर्ष 2023 में 3.09 मिलियन टन (MT) की आपूर्ति करते हुए संयुक्त अरब अमीरात को पीछे छोड़ दिया। कतर 2023 में शिपमेंट के साथ सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता बना रहा। यह बदलाव वैश्विक LNG बाज़ार की बदलती परिस्थितियों और विकसित व्यापार गतिशीलता से प्रेरित है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर LNG की कमज़ोर होती कीमतें तथा केप ऑफ गुड होप के माध्यम से भारत की भौगोलिक निकटता ने अमेरिकी एलएनजी को उत्तरी एशिया सहित अन्य आपूर्तिकर्त्ताओं की तुलना में अधिक प्रतिस्पर्द्धी बना दिया है।
वैश्विक स्तर पर चौथे सबसे बड़े LNG आयातक भारत में वर्ष 2022 में बढ़ती कीमतों के कारण LNG आयात में गिरावट देखी गई, लेकिन भारत को अमेरिकी निर्यात वर्ष 2022 में 2.16 मीट्रिक टन से बढ़कर 2023 में 3.09 मीट्रिक टन हो गया।
पिछले वर्षों में गिरावट के बाद वर्ष 2023 में भारत को UAE का LNG निर्यात 2.85 मीट्रिक टन तक पहुँच गया।
LNG प्राकृतिक गैस है, जिसे लगभग -260°F पर तरल अवस्था में ठंडा किया जाता है, तरल अवस्था में प्राकृतिक गैस की मात्रा गैसीय अवस्था में इसकी मात्रा से लगभग 600 गुना कम होती है। इस प्रक्रिया से प्राकृतिक गैस को उन जगहों पर पहुँचाना संभव हो जाता है जहाँ पाइपलाइन नहीं पहुँच पाती। टर्मिनलों पर LNG को वापस गैस में परिवर्तित किया जाता है और पाइपलाइनों के माध्यम से वितरित किया जाता है।
प्राकृतिक गैस पारंपरिक हाइड्रोकार्बन की तुलना में अधिक स्वच्छ और किफायती विकल्प है, जिसमें 70-90% मीथेन होता है, जो भारत के हरित ऊर्जा की ओर संक्रमण के लिये महत्त्वपूर्ण है।