मुख्य बिंदु:
सीईएनएस (सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज) के शोधकर्ताओं ने मिश्रित स्पाइनल जिंक फेराइट (ZnFe2O4) नैनोस्ट्रक्चर आधारित एक नया गैस सेंसर विकसित किया है।
यह सेंसर कमरे के तापमान पर भी नाइट्रोजन आक्साइड (NOx) का बहुत कम सान्द्रता (पीपीबी स्तर) पर पता लगा सकता है।
यह खोज शहरी और औद्योगिक क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता की सटीक निगरानी के लिए एक महत्वपूर्ण प्रगति है।
सेंसर की विशेषताएं:
उच्च संवेदनशीलता: 30 पीपीबी तक NOx का पता लगा सकता है।
तेज प्रतिक्रिया और रिकवरी समय: त्वरित और प्रभावी NOx डिटेक्शन।
उच्च चयनात्मकता: अन्य गैसों के बीच NOx को विशेष रूप से पहचान सकता है।
उत्कृष्ट स्थिरता: लंबे समय तक इस्तेमाल के लिए टिकाऊ।
कम ऊर्जा खपत: परिचालन लागत कम करता है।
महत्व:
NOx प्रदूषण के लिए निगरानी प्रणालियों को बेहतर बना सकता है।
वायु गुणवत्ता की निगरानी में सटीकता बढ़ा सकता है।
प्रदूषण कम करने और जन स्वास्थ्य की सुरक्षा में मदद कर सकता है।
उच्च प्रदर्शन वाले गैस सेंसर के विकास के लिए नई रणनीतियों को प्रदर्शित करता है।
अगले कदम:
व्यावसायिक उपयोग के लिए सेंसर का प्रोटोटाइप विकसित करना।
वास्तविक वातावरण में सेंसर का परीक्षण करना।
वायु गुणवत्ता निगरानी में सेंसर को एकीकृत करना।
यह नया गैस सेंसर NOx प्रदूषण को नियंत्रित करने और एक स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण बन सकता है।
मुख्य बिंदु:
ट्राई ने स्पैम कॉल की बढ़ती समस्या के लिए 50 से अधिक संस्थाओं को काली सूची में डाला है और 2.75 लाख से अधिक एसआईपी डीआईडी/मोबाइल नंबर/दूरसंचार संसाधनों का कनेक्शन काट दिया है।
यह कार्रवाई ट्राई द्वारा जारी किए गए कड़े निर्देशों के परिणामस्वरूप हुई है जिसमें सेवा प्रदाताओं को अपंजीकृत टेलीमार्केटर्स (यूटीएम) द्वारा स्पैमिंग रोकने का निर्देश दिया गया था।
ट्राई ने पहली छमाही (जनवरी-जून 2024) में 7.9 लाख से अधिक शिकायतें दर्ज होने के बाद ये कदम उठाए हैं।
ट्राई के निर्देश:
सेवा प्रदाताओं को अपंजीकृत प्रेषकों या टेलीमार्केटर्स द्वारा किए जा रहे प्रमोशनल वॉयस कॉल को तुरंत रोकने का निर्देश दिया गया है।
एसआईपी, पीआरआई या अन्य दूरसंचार संसाधनों का दुरुपयोग करने वाले यूटीएम के लिए 2 साल के लिए सभी दूरसंचार संसाधनों का कनेक्शन काटना और काली सूची में डाला जाना शामिल है।
परिणाम:
सेवा प्रदाताओं द्वारा उठाए गए कदमों से स्पैम कॉल में कमी आने की उम्मीद है।
ट्राई ने सभी हितधारकों से निर्देशों का पालन करने और एक स्वच्छ और अधिक कुशल दूरसंचार इकोसिस्टम में योगदान देने का आग्रह किया है।
महत्व:
ट्राई का यह कदम स्पैम कॉल की समस्या से जूझ रहे उपभोक्ताओं के लिए राहत प्रदान करेगा।
यह ट्राई की दूरसंचार क्षेत्र को विनियमित करने और उपभोक्ता हितों की रक्षा करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
अगले कदम:
ट्राई को स्पैमिंग को रोकने के लिए आगे भी कड़े कदम उठाने चाहिए।
सेवा प्रदाताओं को यूटीएम द्वारा किए जा रहे स्पैम कॉल को रोकने में और अधिक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
उपभोक्ताओं को स्पैम कॉल की शिकायत दर्ज करने के बारे में पता होना चाहिए।
यह उम्मीद की जाती है कि ट्राई द्वारा उठाए गए कदमों से स्पैम कॉल की समस्या में कमी आएगी और उपभोक्ताओं को एक बेहतर और अधिक स्वच्छ दूरसंचार अनुभव प्रदान किया जा सकेगा।
महत्व:
एनीमिया, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों में, भारत में एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या है।
पोषण माह 2024 इस मुद्दे पर विशेष ध्यान देगा।
कार्य:
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने पिछले पोषण माह में 35 करोड़ से अधिक लोगों को एनीमिया के बारे में जागरूक किया।
योजना वर्तमान में गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और किशोरियों तक पहुंच रही है।
लक्ष्य: 10 करोड़ से अधिक लोगों तक पहुंच बनाना और उन्हें एनीमिया के बारे में शिक्षित करना।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम के साथ सहयोग।
आयुष मंत्रालय के साथ मिलकर आयुर्वेदिक औषधियों के माध्यम से एनीमिया का इलाज।
उद्देश्य:
एनीमिया के प्रति जागरूकता बढ़ाना।
एनीमिया को रोकने के लिए आवश्यक उपायों को बढ़ावा देना।
कुपोषण मुक्त भारत बनाने के लिए प्रयासों को तेज करना।
किशोरियों में एनीमिया के अंतर-पीढ़ीगत प्रभावों को कम करना।
मुख्य बिंदु:
आईएनएसटी के शोधकर्ताओं ने सूर्य की रोशनी का उपयोग करके क्रोमियम के विषाक्त हेक्सावेलेंट रूप (Cr(VI)) को कम विषाक्त ट्राइवेलेंट रूप (Cr(III)) में बदलने की एक नई तकनीक विकसित की है।
यह तकनीक माइक्रोफ्लुइडिक्स और नैनोकैटलिस्ट का उपयोग करती है, जिससे यह कम लागत वाली और पर्यावरण के अनुकूल है।
अपशिष्ट जल उपचार में, विशेष रूप से चर्म शोधन और इलेक्ट्रोप्लेटिंग उद्योगों में, यह एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।
तकनीक का विवरण:
माइक्रोफ्लुइडिक्स: छोटे, सूक्ष्म चैनलों का उपयोग करके, रिएक्शन को अधिक कुशल और नियंत्रित तरीके से संचालित किया जाता है।
फोटोकैटलिस्ट: टीआईओ 2 नैनोकणों का उपयोग सूर्य की रोशनी को अवशोषित करने और Cr(VI) को Cr(III) में बदलने के लिए किया जाता है।
निरंतर प्रवाह फोटोरिडक्शन: एक प्रक्रिया जिसमें अपशिष्ट जल लगातार नैनोकैटलिस्ट के संपर्क में आता है और सूर्य की रोशनी से सक्रिय होता है।
स्मार्टफोन आधारित वर्णमिति: इस तकनीक का उपयोग अपशिष्ट जल में Cr(VI) की मात्रा को मापने के लिए किया जाता है।
लाभ:
कम लागत: माइक्रोफ्लुइडिक्स और सूर्य की रोशनी जैसी सस्ती तकनीकों का उपयोग करके।
पर्यावरण के अनुकूल: रासायनिक प्रतिक्रियाओं के बजाय प्राकृतिक ऊर्जा (सूर्य की रोशनी) का उपयोग करके।
उच्च दक्षता: 95% से अधिक Cr(VI) को कम किया जा सकता है।
पुनर्नवीनीकरण: माइक्रोफ्लुइडिक रिएक्टरों और नैनोकैटलिस्टों को फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है।
भविष्य की संभावनाएं:
इस तकनीक को बड़े पैमाने पर अपशिष्ट जल उपचार में लागू किया जा सकता है।
यह अन्य विषाक्त पदार्थों को हटाने के लिए भी उपयोगी हो सकता है।
माइक्रोफ्लुइडिक्स के इस्तेमाल से कई अन्य औद्योगिक प्रक्रियाओं को बेहतर बनाया जा सकता है।
First Publish at 9:25 PM date :- 05 JULY 2024
उपरोक्त शीर्षक आप लोगों को व्यंग्यात्मक लग सकता है, क्योंकि कभी कभी मार्मिक घटना भी व्यंग्यात्मक संदेश दे जाते है।
तो जरा सा यह लेख हाथरस, उत्तरप्रदेश में धार्मिक सभा में घटी भगदड़ से संबन्धित है। बहुत सारे कारणों का जिक्र है कि भगदड़ इस कारण से हुआ, उस कारण से हुआ, पर हमारा सवाल यह है नहीं है कि भगदड़ किस कारण से हुआ।
आपलोगों को ऐसा नहीं लगता है क्या कि हम भारतीयों को अंधभक्ति करने की आनुवंशिक बीमारी है, वैसी बीमारी जो लाइलाज है। चाहे जीतने भी ठगे जाए, दुर्घटनाओं, आपदाओं के शिकार हो जाए, आस्था रूपी Symptoms के कारण यह बीमारी छूटती नहीं है।
कुछ लोग,कुछ दिन,कुछ महीने, कुछ साल तक हो सकता है, इन बाबाओं, ढोंगियों, पाखंडियों के सभा में न जाए, फिर तो जायेंगे ही।
क्या लगता है, सिर्फ आस्था ही हैं जो लोगों को इनके पास खींचती हैं, न ना ऐसा नहीं है, इसका मूल जड़ है, वर्षों से लोक, परलोक, जादू, टोना, चमत्कार आदि का घुंटी पिलाना है अवसरवादियों के द्वारा। क्योंकि जब एक ही बात हजारों बार बोली जाय तो वह सच लगने लगती है।
यदि देखा जाय तो पूरे विश्व में ढेरों धर्म हैं, आखिर क्यों, यहां भी कहूंगा कि एक दूसरे पर वर्चस्व कायम करने के लिए ही है।
यदि आप भगवान में विश्वास रखते हैं तो उनकी भक्ति करने के लिए दूसरे की जरूरत क्यों, क्या इन बाबाओं का कनेक्शन भगवान जुड़ता है और आपका नहीं, जरा सोचो जब आपका कनेक्शन उनसे नहीं जुड़ पा रहा है,तो इन ढोंगियों का भी कभी नहीं जुड़ा है और जुड़ेगा क्योंकि वे आपके चमत्कार होने की आशा का फायदा उठा रहे हैं, और आप खुद नहीं जागे तो आगे भी फायदा उठाते रहेंगे और आप भगदड़ों, दुर्घटनाओं, आपदाओं का शिकार होते रहेंगे और ये लोग झूठी संवेदना प्रकट करते रहेंगे और अपनी बाजार चलाते रहेंगे।
आखिर इन बाबाओं के पास इतने सारे भीड़ पहुंचने क्यों लगती है ?
हां सवाल तो यही है ! इन लोगों की सेल्फ मार्केटिंग खुद हो जाती है, और इनकी भक्तों की संख्या गुणात्मक रूप से बढ़ता है और इन ढोंगियों के लिए सेल्फ मार्केटिंग का काम करती हैं महिलाएं। हां जी ज्यादातर महिलाएं ही बाबा की मार्केटिंग की जिम्मेदार होती हैं, होता कुछ ऐसा है कि किसी को कुछ फायदा हो गया किसी कारण से, तो दूसरे के कानों तो खबर कुछ इस प्रकार पहुंचाती हैं ये महिलाएं - " ये फलनवा के मईया , ये फलनवा के चाची, ये फलनवा के दीदी,ये फलनवा के मेहरारू जाना ही हम फलनवा बाबा के पास गाइलियो हल, बडी फायदा होलो",
अब फलनवा के मईया, चाची, दीदी और मेहरू के दिमाग गुमा, अब ये कहेंगी
"अबरी जैवा न तो हमरो लेले चलिया।"
अब एक दूसरे से कानाफूसी होते होते फलनवा बाबा के लाखों भक्त तैयार।
एक कहावत है बनावटी भगवान से ही जोड़कर इन महिलाओं के लिए "भगवान ने इनको धरती पर तो भेजा पर भेजे में भेजा नहीं भेजा"
पर इनको कहो चुगली करने एक दूसरे की तो ये मंथरा और शकुनी की मौसी हो जाती हैं, पर इन बाबाओं के झांसे के आगे दिमाग काम नहीं करता, पर चुगलखोरी में मत कहो क्या आनन्द आता है इनको, किसी यात्रा में दो अनजान औरत बैठी है एक साथ, और वो बात न करें हो ही नहीं सकता, जब बात करेंगे, तो एक दूसरे से जुड़े लोगों के शिकायतों का अंबार लगा देंगे, और साथ ही इन ढोंगी बाबाओं का मार्केटिंग भी कर देंगे।
सर्वथा धर्म फालतू नहीं, अगर सिर्फ इसे व्यक्तिगत स्तर पर अभ्यास किया जाय और फालतू के चमत्कार, जादू, टोना, अति आस्था से बचा जाय, और धर्म में लौकिक और परलौकिक शक्तियों को जोड़ा जाय, क्योंकि वैसा कुछ अस्तित्व में नहीं है।
भारतीय समाज में ढोंग की प्रकृति
गाँव देहात और छोटे शहरों में एक प्रकार की देवियों का अपवाह रहता है, और उनके पास भी अच्छे खासे अंधभक्त पहुंचते हैं, और ये देवियाँ जो हैं न अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग रूपों में किसी पर सवार होती हैं, कहीं वैष्णो माता के रुप में तो कहीं काली माता के रुप में।
तो चलिए, इस पर विस्तार से बात रखते हैं, तो हमारा परिवार भी कम अंधविश्वासी नहीं रहा है, और अभी भी कुछ हद तक है, तो बचपन में क्षेत्रिय बाबाओं और देवियों के पास जाना रहा है, तो चलिए उस शख्स की बात करते हैं जिस शख्स पर वैष्णो माता, भैरो भैया और एगेरा वगैरा देवी देवता आते थे, तो एकबार यह शख्स हमारे घर आए हुए थे, और मेरी एक बहन को आंख मूंद कहकर अलग अलग देवी देवता दिखा रहे थे और वह बोल रही थी कि हां दिख रहा है, तो मेरी भी उत्सुकता जागी और मैने उस शख्स से कहा दीदी (शख्स) हमें भी देवी देवता देखना है , मैं भी आंख मूंद बैठ गया और वह मंत्र पढ़ रही थी, मुझे भी बजरंग बली दिखे क्योंकि मैं उन्हे ही देखने की कोशिश कर रहा था।
अब आप में से कुछ अंधभक्त या कुछ धूर्त कहोगे कि हुआ तो चमत्कार, दिखे तो देवी देवता। पर रुको जरा, पहले स्वप्न ब्लैक एंड व्हाइट आते थे और अब कलरफुल आते हैं, तो भाई एवम् बहनों, Technologies के साथ आपके स्वप्न में भी बदलाव आए, उसी प्रकार जो देवी देवता मुझे और मेरी एक बहन को दिख रहे थे , वह तो टीवी, फोटो वगैरा में जिन देवी देवताओं को देखे थे न, उसे माइंड इंटरप्रेरेट कर दिखा रहा था, तो यदि वह शख्स मंत्र पढ़ता या नहीं पढ़ता तो भी आंख बंद करने पर देवी देवता दिखता ही, और अभी भी आप कोशिश कर लो दिखेगा ही, यह सामान्य सा गौर करने वाली बात है, आप देखने की कोशिश करो, एक से एक अभिनेत्रियां, आपकी मेहरारू, आपकी गर्लफ्रेंड्वा, आपके फेवरेट एक्टोरवा , क्रिकेट्रवा सब दिखेंगे।
पर ढोंगी बाबा और ढोंगी देवियों न इसे अलग तरह से देखा और अपनी ढोंग का विशाल मार्केट खड़ा कर लिया, और आगे भी करते रहेंगे क्योंकि भारतीयों की भक्ति करने की जेनेटिक बीमारी जो है, और यह लाइलाज बीमारी कुछ की ठीक होती है, हमने तो अपनी ठीक कर ली बहुत पहले, आप कब करोगे, कब तक, इन ढोंगियों के झांसे में फंस पैसा और समय बरबाद करते रहोगे, ओह नो, मैं अपलोगों से क्या उम्मीद कर रहा हूं, आनुवंशिक बीमारी जो है, ठीक कैसे होगा?
General Edu के ये व्यक्तिगत विचार है, फिर भी आप इन बाबाओं, ढोंगियों, अवसरवादियों के चंगुल में फंसना चाहते हैं तो फंस सकते हैं, और हमने तो शुरु ही में कहा भारतीयों कि भक्ती आनुवंशिक बीमारी है जो लगभग लाइलाज है, जबतक कि आप इसका इलाज खुद न ढूंढ लें.
अभी भी ये लेख अधुरा है........
जैसा की खबर है पूजा खेडकर, एक पूर्व IAS अधिकारी की बेटी, UPSC परीक्षा में फर्जी करने की दोषी पायी गई है .
तो मैं इस आर्टिकल में इस मोहतरमा पर ज्यादा कुछ फ़िलहाल नहीं बोलने वाला हूँ क्योंकि इस मोहतरमा की पाप की घड़ा भर चुका है और उफन कर गिर भी रहा है.
बात तो उनकी करनी जिनकी पाप का घड़ा नहीं भरा और तीस मार खां बने बैठे हैं .
तो चलिए शुरू करते हैं भारत में प्रतियोगी परीक्षाओं में होने वाली फर्जिनामे की , तो यह आप और हम भी जानते हैं कि कोई भी परीक्षा 100% FARE तरीके से नहीं होता है.
और फर्जी नामे करने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाये जाते हैं, जैसे मुन्ना भाइयों के द्वारा परीक्षा दिलाया जाना , परीक्षा भवन के किसी खास रूम सेटरों द्वारा कण्ट्रोल करना, यदि संभव हो पाया तो एग्जाम बाद OMRSHEET को रंगा जाना आदि आदि .
अब बात करते हैं ऑनलाइन परीक्षाओं की , इन परीक्षाओं में ऑनलाइन सेंटरों के कुछ अपने मुन्ना भाई होते हैं . ऊपरी तौर पर जब आप सेंटर में प्रवेश करने वाले होते हैं तो खूब कड़ाई से जाँच की जाती है ताकि भोले भाले परीक्षार्थी को भनक भी न लगे , पर इन परीक्षार्थियों को भी एक दो एग्जाम देने के बाद पता चल ही जाता है , फिर भी बेचारे ये कहते हुए एग्जाम देते ही रहते हैं कि खा पी के जो सीट बचेगा उसी सीट पर फाइट करना है और करते भी है और करते भी रहना है , क्योंकि चोरों की डर से अपनी क्षमता पर सवाल उठाना सरासर गलत है .
तो प्रिय परीक्षार्थियों , इन चोरों ,लुटेरों और सेटरों, मुन्ना भाइयों के पनपने देने का जिम्मेदार भी आप लोग ही हैं , आप लोग ही अपने आसपास के ऐसे दू शातिर लोगों के विरोध में आवाज नहीं उठाते हैं और हमेशा ताक में रहते हैं की भगत सिंह पैदा हो तो बगल के घर से , अपने घर से नहीं.
और ऐसे भी ये अंग्रेज लोग थोड़े ही हैं जो भगत सिंह बनने की जरुरत है , हाँ थोड़ा लक्ष्मीनारायण ( धन ) के च क्कर में इनका दिमाग विक्षिप्त रहता है , और आपके भविष्य से खिलवाड़ करते हैं , फर्जीवाड़ा करते हैं , तो यदि आपके संज्ञान में फर्जीवाड़े का पता चले तो प्रशासन में खबर करना है.
मुन्ना भाइयों को कैसे परीक्षा के लिए तैयार किया जाता है ?
तो स्कॉलर टाइप के बच्चे को ये सेटर लोग तरह तरह के सपने दिखा , अपने गुट में शामिल करते हैं . हाँ इन मुन्ना भाइयों को सेटिंग के बाजार में स्कॉलर के नाम से जाना जाता है.
फिर इन मुन्ना भाइयों को जिस कैंडिडेट के बदले एग्जाम देना होता है उसके पता माता -पिता के नाम, जन्म तिथि, सिग्नेचर का अभ्यास , अगैरा वगैरा याद रखने का अभ्यास कराया जाता है.
जब फॉर्म भरा जाता है तो उस समय मुन्ना भाई और वास्तविक कैंडिडेट के फोटो का मिक्स अप तैयार किया जाता है ताकि परीक्षक को भ्रम पैदा ना हो.
एडवांस में मुन्ना भाइयों को कुछ दिया जाता है ताकि पकड़े जाने पर मामू लोग को कुछ थमा के रफ्फु चक्कर होया जा सके .
यह आर्टिकल अभी भी अधुरा है और भी लिखा जाना बाकि है .....
IAS,प्रतियोगी परीक्षाओं और अन्य परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोचिंगों में इतनी भीड़ क्यों ?
हाँ दोस्तों, आखिर कोचिंगों में इतनी भीड़ क्यों होती है। सामान्य प्रतियोगिता परीक्षा का स्तर लगभग 10 वीं से 12 वीं तक के सिलेबस पर आधारित होता है, फिर जब हम प्रतियोगिता के क्षेत्र में आते हैं तो कोचिंगों की ओर दोड़ते हैं, आखिर क्यों हमें इन कोचिंगों की ओर दौड़ने की जरूरत है क्या हम जिन सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं, क्या वहाँ गुणवता पूर्ण शिक्षा का अभाव है, जिसके कारण हमें कोचिंग की जरूरत पड़ती है।
तो हाँ ऐसा ही है क्योंकि सरकारी विद्यालयों में पढ़ाने वाले शिक्षक अपने खुद के सुपुत्र और सुपुत्रियों को सरकारी स्कूल में लगभग नहीं पढ़ाते हैं, ये निजी स्कूलों में पढ़ते हैं, जिस दिन सरकारी शिक्षकों के बच्चे सिर्फ और सिर्फ सरकारी स्कूल में पढ़ना शुरू कर देंगे और कोचिंग बग़ैरा में पढ़ना छोड़ देंगें ,उस दिन से कुछ हद तक सरकारी स्कूल में शिक्षा पद्धति गुणवता पूर्ण हो जायेगी, हाँ कुछ हद तक इसीलिए बोल रहा हूँ क्योंकि सरकारी स्कूल के सभी शिक्षकगण भी गुणता पूर्ण होना चाहिए।
अतः जिन सरकारी शिक्षण संस्थानों को उचित और गुणवता पूर्ण शिक्षा मुहैया कराना चाहिए वो नाकामयाव ही हैं लगभग , जिसके कारण कुकुरमुत्ते की तरह कोचिंग हैं, और बच्चे किसी भी हालत और बद से बदत्तर कोचिंग पर्यावरण में पढ़ने को मजबूर हैं।
दूसरा बात सरकारी स्कूलों की रेटिंग इन निजी शिक्षण संस्थानों के कारण हीं अच्छी बनी रहती है, और लाल फ़ीतासाही हो ही जाता है और साथ ही शिक्षा अधिकारियों को भी पता है कितना गुणवता पूर्ण शिक्षा उनके शिक्षण संस्थान मुहैया करा रहे हैं और साथ ही सबसे बड़ी खामियां है राजनीति इच्छा शक्ति की , जिसके कारण कई वरदराज, वरदराज ही रह जाते हैं, दूसरे शब्दों में ढाक के तीन पात।
अग्निवीर द्वारा चोरी और लूटपाट की घटनाएँ:
अनिश्चितता और असुरक्षा: अग्निवीर केवल 4 साल तक सेवा करते हैं, जिसके बाद उनका भविष्य अनिश्चित रहता है। नौकरी की गारंटी न होने से कुछ अग्निवीर अपराध का रास्ता अपना सकते हैं।
सामाजिक-आर्थिक दबाव: अधिकांश अग्निवीर गरीब परिवारों से आते हैं, और उन्हें अपनी सेवा के बाद परिवार का भरण-पोषण करना होता है। नौकरी न मिलने की स्थिति में, वे अपराध करने के लिए मजबूर हो सकते हैं।
समाज में एकीकरण: 4 साल की सेवा के बाद, अग्निवीर समाज में वापस आते हैं, लेकिन उनके पास नौकरी या कौशल की कमी होती है। यह उन्हें अपराध की ओर धकेल सकता है।
अग्निपथ के माध्यम से अग्निवीर (सेना चुनना) उचित है या अनुचित:
उचित तर्क:
युवाओं के लिए रोजगार: यह योजना युवाओं को सशस्त्र बलों में सेवा करने का अवसर प्रदान करती है।
सेना में युवा रक्त: अग्निवीर योजना से सेना में युवा रक्त का प्रवेश होगा, जो आधुनिक तकनीक और युद्ध नीतियों में दक्ष होगा।
सेना में लागत में कमी: यह योजना सेना पर लागत कम करने में मदद करेगी।
अनुचित तर्क:
अनिश्चित भविष्य: अग्निवीर के भविष्य की गारंटी न होना एक प्रमुख चिंता का विषय है।
सेना की कुशलता पर प्रभाव: 4 साल की कम सेवा से सेना की कुशलता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
सामाजिक समस्याएँ: सेवा के बाद अग्निवीर के समाज में वापस आने पर उनके सामने कई सामाजिक चुनौतियाँ हो सकती हैं।
नैतिक पक्ष:
नौकरी की गारंटी न देना: सरकार का अग्निवीर को नौकरी की गारंटी न देना नैतिक रूप से गलत है, क्योंकि वे अपनी सेवा के बाद बेरोजगार हो सकते हैं।
सेवा के बाद पुनर्वास: अग्निवीर के सेवा के बाद पुनर्वास के लिए सरकार को पर्याप्त प्रावधान करने की आवश्यकता है।
समाज में अग्निवीर की भूमिका: समाज को अग्निवीर को अपनाने और उनके पुनर्वास में सहयोग करना चाहिए।
निष्कर्ष:
अग्निवीर योजना का उद्देश्य सेना को युवा और कुशल बनाना है, लेकिन इसमें कुछ नैतिक और व्यावहारिक चुनौतियाँ भी हैं। सरकार को अग्निवीर के भविष्य की गारंटी देने और उनके पुनर्वास के लिए उचित प्रावधान करने की आवश्यकता है।
1. ग्रहों का प्रभाव:
जन्म कुंडली: जन्म कुंडली, जिसे ज्योतिषीय चार्ट भी कहा जाता है, एक व्यक्ति के जन्म के समय ग्रहों की स्थिति का एक नक्शा है। यह मान्यता है कि यह चार्ट किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व, स्वास्थ्य, करियर और वैवाहिक जीवन सहित उनके जीवन के सभी पहलुओं को प्रभावित करता है। कई लोग अपनी जन्म कुंडली के आधार पर महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं, जैसे कि शादी, व्यवसाय या यात्रा।
शुभ और अशुभ दिन: यह विश्वास है कि कुछ दिन शुभ होते हैं, जबकि अन्य अशुभ होते हैं। लोग विशेष अवसरों, जैसे विवाह या घर बनाने के लिए शुभ दिनों का चुनाव करते हैं। अशुभ दिनों में, वे महत्वपूर्ण निर्णय लेने से बचते हैं या नई परियोजनाओं की शुरुआत नहीं करते हैं।
राशिफल: दैनिक राशिफल पंचांगों या पत्रिकाओं में प्रकाशित होते हैं। वे प्रत्येक राशि चिह्न के लिए भविष्यवाणियाँ प्रस्तुत करते हैं, यह बताते हैं कि दिन कैसा बीतेगा। कई लोग अपनी दैनिक दिनचर्या, कार्य और निर्णय लेने के लिए राशिफल पर भरोसा करते हैं।
2. जादू-टोना:
बुरी नज़र: यह विश्वास है कि किसी की नज़र, विशेषकर ईर्ष्यालु व्यक्ति की, किसी व्यक्ति या वस्तु को नुकसान पहुँचा सकती है। इसे बुरी नज़र या नज़र लगना भी कहा जाता है। बच्चों को बुरी नज़र से बचाने के लिए माता-पिता उन्हें नीले रंग की मोतियों से सजे तावीज़ पहनाते हैं, या उन्हें "नज़र उतारने" के लिए कुछ विशेष क्रियाएँ करते हैं।
भूत-प्रेत: भारत में भूतों और प्रेतों में विश्वास आम है। यह माना जाता है कि ये अदृश्य प्राणी किसी व्यक्ति को नुकसान पहुँचा सकते हैं या उनके जीवन को प्रभावित कर सकते हैं। कई लोग भूतों से डरते हैं और अपने घरों को भूतों से बचाने के लिए पूजा या तावीज़ का उपयोग करते हैं।
तंत्र-मंत्र: तंत्र-मंत्र का उपयोग जादुई शक्तियों को नियंत्रित करने, दुश्मनों को नुकसान पहुँचाने या लोगों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। यह माना जाता है कि तंत्र-मंत्र का प्रयोग कर व्यक्ति किसी को बीमार कर सकता है, धन हासिल कर सकता है या अपने दुश्मन को परास्त कर सकता है।
3. भाग्य और अशुभ शकुन:
काले बिल्ली का पार करना: यह मान्यता है कि काली बिल्ली का पार करना अशुभ होता है। इसे भाग्य का बुरा संकेत माना जाता है।
खाली हाथ घर आना: कुछ लोग मानते हैं कि खाली हाथ घर आना अशुभ होता है। उन्हें लगता है कि घर में आने से पहले कुछ खरीदना चाहिए, चाहे वह छोटी सी चीज ही क्यों न हो, ताकि घर में सुख और समृद्धि बनी रहे।
टूटने वाला दर्पण: यह विश्वास है कि दर्पण टूटने पर 7 साल का दुर्भाग्य आता है। यह मान्यता है कि दर्पण में व्यक्ति की आत्मा का प्रतिबिंब होता है और उसे तोड़ने से उस व्यक्ति की आत्मा को नुकसान पहुँचता है।
4. धार्मिक अंधविश्वास:
पूजा: भारत में विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा एक आम प्रथा है। लोग पूजा के समय विभिन्न नियमों का पालन करते हैं, जैसे कि पूजा करने से पहले स्नान करना, पूजा स्थल को साफ करना, मंत्रों का जाप करना, और देवताओं को भोजन, फूल, और धूप चढ़ाना। यह माना जाता है कि पूजा करने से देवताओं की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
मंदिरों में चढ़ावा: मंदिरों में चढ़ावा देना भी एक आम प्रथा है। यह मान्यता है कि चढ़ावा देने से देवता खुश होते हैं और भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।
धार्मिक अनुष्ठान: भारत में कई प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, जैसे यज्ञ, हवन, पूजा, और जप। इन अनुष्ठानों का उद्देश्य देवताओं को प्रसन्न करना, अपने पापों का प्रायश्चित करना, और आध्यात्मिक उन्नति करना होता है।
5. अन्य अंधविश्वास:
नजर उतारना: नजर उतारना एक प्रथा है जो किसी व्यक्ति को बुरी नज़र से बचाने के लिए की जाती है। यह विभिन्न तरीकों से किया जाता है, जैसे कि लाल मिर्च, नींबू, या नारियल का उपयोग करके।
शनि देव का प्रभाव: शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है। कुछ लोग मानते हैं कि शनि देव का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में दुर्भाग्य लाता है। शनि देव के प्रतिकूल प्रभाव से बचने के लिए कई लोग शनि देव की पूजा करते हैं, दान करते हैं, या अन्य उपाय करते हैं।
वास्तु दोष: वास्तु शास्त्र एक प्राचीन भारतीय वास्तुकला का सिद्धांत है। यह मान्यता है कि घर के निर्माण में कुछ विशेष दिशाओं का पालन करना बहुत महत्वपूर्ण होता है। वास्तु दोष होने पर, घर में रहने वालों को दुर्भाग्य, बीमारी, या धन हानि हो सकती है।
अंधविश्वासों के दुष्प्रभाव:
अज्ञानता: अंधविश्वासों का मूल अज्ञानता में होता है। वे तार्किक सोच को कमजोर करते हैं और विज्ञान के प्रति लोगों की समझ में कमी लाते हैं।
भय और अशांति: अंधविश्वास भय और अशांति का कारण बनते हैं। वे लोगों को उनके जीवन में होने वाली घटनाओं के बारे में चिंतित और डरपोक बनाते हैं।
सामाजिक विभाजन: अंधविश्वास समाज में विभाजन पैदा कर सकते हैं, क्योंकि कुछ लोग अन्य लोगों से अपने अंधविश्वासों के आधार पर भेदभाव करते हैं।
अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: जादू-टोने, वास्तु दोष, और अन्य अंधविश्वासों से संबंधित सेवाओं पर पैसा खर्च करने से लोगों को आर्थिक नुकसान हो सकता है।
अंतिम विचार:
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अंधविश्वासों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। वे केवल मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित हैं। लोगों को तर्क और विज्ञान पर आधारित सोच को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि अंधविश्वासों को दूर किया जा सके और समाज में जागरूकता बढ़ाई जा सके।
प्रतीकात्मक छवि
"स्किनी फैट" (Skinny Fat) उस स्थिति को दर्शाता है जब व्यक्ति सामान्य वजन या पतले दिखता है, लेकिन शरीर में वसा प्रतिशत अधिक और मांसपेशियों का द्रव्यमान कम होता है। भारतीय लोगों के संदर्भ में, इस स्थिति के पीछे कई कारण हो सकते हैं:
आनुवंशिकी: आनुवंशिक प्रवृत्ति शरीर की संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कुछ व्यक्तियों में वसा, विशेष रूप से आंतरिक वसा, को जमा करने की प्रवृत्ति अधिक हो सकती है, भले ही वे अधिक वजन के न हों।
आहार: पारंपरिक भारतीय आहार में कार्बोहाइड्रेट और शर्करा की मात्रा अधिक हो सकती है, जैसे चावल, रोटी और मिठाइयाँ। प्रोटीन और स्वस्थ वसा की कमी मांसपेशियों की हानि और वसा के संचय का कारण बन सकती है।
निष्क्रिय जीवनशैली: कई लोग शहरी क्षेत्रों में डेस्क जॉब्स और सीमित शारीरिक गतिविधियों के कारण निष्क्रिय जीवनशैली जीते हैं, जो मांसपेशियों की हानि और वसा के संचय में योगदान कर सकता है।
संस्कृतिक कारक: कुछ सांस्कृतिक धारणाएँ पतलेपन को फिटनेस पर प्राथमिकता देती हैं, जिससे अस्वस्थ खाने की आदतें और शारीरिक व्यायाम की अनदेखी हो सकती है।
चयापचय: कुछ व्यक्तियों का चयापचय धीमा हो सकता है, जो उनके शरीर के भोजन को संसाधित करने और वसा को संग्रहीत करने के तरीके को प्रभावित कर सकता है।
तनाव और नींद: उच्च तनाव स्तर और खराब नींद की गुणवत्ता हार्मोनल असंतुलन का कारण बन सकती है, जो वसा के संचय और मांसपेशियों की हानि को बढ़ावा देती है।
"स्किनी फैट" की स्थिति को सामान्यतः आहार में बदलाव, शारीरिक गतिविधि (विशेष रूप से शक्ति प्रशिक्षण) में वृद्धि, और जीवनशैली में सुधार के माध्यम से संबोधित किया जा सकता है, ताकि समग्र स्वास्थ्य और शरीर की संरचना में सुधार हो सके।